तंबाकू उत्पादों के सेवन से कैंसर ही नही पर्यावरण पर भी पड़ रहा प्रतिकूल असार

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Dr. Pawan Singhal ,ENT Department, SMS Hospital , Jaipur, Rajasthan
Dr. Pawan Singhal ,ENT Department, SMS Hospital , Jaipur, Rajasthan

आई एन वी सी न्यूज़
जयपुर

अक्सर हम सब सोचतें है कि बीड़ी, सिगरेट, पान, गुटखों, धूम्रपान उत्पादों के सेवन से कैंसर हो सकता है, लेकिन इससे भी अधिक खतरा बढ़ रहा है हमारे पर्यावरण पर, जिससे हम सब प्रभावित हो रहे है। तंबाकू व अन्य चबाने वाले उत्पादों के सेवन से देशभर में करीब 13 लाख लोग अकारण ही मौत के शिकार हो जाते है। वहीं राजस्थान में करीब 65 हजार लोगों की मौत हो जाती है। इस पर राजस्थान के ईएनटी चिकित्सकों, सुखम फाउंडेशन, एसोसियेशन आॅफ आटोलंरेंगोलेजिस्ट आॅफ इंडिया (एओआई) सहित कई सामाजिक संगठनों ने ‘‘विश्व तंबाकू निषेध दिवस’’ के मुद्दे पर गंभीर चिंता जताई है।

सवाई मान सिंह चिकित्सालय जयपुर के कान नाक गला विभाग आचार्य डा.पवन सिंघल ने बताया कि प्रदेश में ही नही देशभर में आज सिगरेट, बीड़ी के बट्स, गुटखे के खाली पाउच, पान मसाला, धूम्रपान उत्पादों को उपभोग के बाद खुले में फैक दिया जाता है। कुछ ही समय बाद ये सब नालियों में जमा हो जाते है। जिससे नालियां भी अवरुद्व हो जाती है, और इसके विषेले पदार्थ मिट्टी में तथा उसके माध्यम से भूमिगत पानी में भी चले जाते है, जैसा कि हम जानते है कि तंबाकू उत्पादों में करीब 7 हजार से अधिक विषेले रसायन होते है। जोकि ना केवल मानव स्वास्थ्य वरण पर्यावरण पर भी बड़े खतरे के रुप में उभर रहे है।

तंबाकू उत्पाद पर्यावरण पर बड़ा खतरा

उन्होने बताया कि सिगरेट, बिड़ी के टुकड़े, लोगों द्वारा पान सुपारी, गुटखे की पीक जमीन पर थूकने से जमीन का पानी विषेला होता जा रहा है। सिगरेट के बट में प्लास्टिक होता है, जोकि कभी गलता नही है। सिगरेट बट को बनाने वाले पदार्थ सेल्यूलोज एसीटेट, पेपर और रेयाॅन के साथ मिलकर पानी और जमीन को भी प्रदूषित और विषेला बना रहे है।
तंबाकू के सेवन से मुंह का कैंसर, फैफड़े, हृदय, गले का कैंसर तो होता ही है। यह हमारे पर्यावरण को भी कैंसर बनाता जा रहा है। हवा से लेकर पानी तक पर भी इसका प्रभाव सामने आ रहा है। सिगरेट के बट माइक्रोप्लास्टिक से जुड़े प्रदूषण की बड़ी समस्या बनता जा रहा है।

डॉ.सिंघल ने बताया कि टुथ इनीशिएटिव की रिसर्च में भी सामने आया है कि सिगरेट बट और धूम्रपान के अन्य उत्पादों से जितना विषैला जहर निकलता है वह हमारे ताजे पानी और नमकीन पानी की 50 फीसदी मछलियों को भी मार सकता है। इसका दूरगामी परिणाम पर्यावरण को नुकसान पहुंचाता है तथा पर्यावरण की खाद्य श्रृंखला पर प्रतिकूल प्रभाव डाल रहा है।
वर्ष 2022 में राष्ट्रीय हरित ट्रिब्यूनल ने भी केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को भी इसके लिए दिशा निर्देश जारी किए थे।
ईएनटी चिकित्सकों ने विश्व तंबाकू निषेध दिवस पर जताई चिंता

विश्व स्वास्थ्य संगठन की और से विश्व तंबाकू निषेध दिवस प्रतिवर्ष एक थीम के साथ मनाया जाता है। वर्ष 2022 के लिए ‘‘पर्यावरण की रक्षा करें’’ की थीम रखी गई है। विश्व तंबाकू निषेध दिवस की थीम के माध्यम से सालभर इस मुद्दे पर काम किया जाता है, ताकि तंबाकू व अन्य उत्पादों के सेवन से होने वाले खतरों व बीमारियों के साथ स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभाव के प्रति लोगों में जागरुकता फैलाई जा सके। इसे विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा विश्व तंबाकू निषेध दिवस के रुप में 31 मई 1987 से लगातार मनाया जाता है।प्रदेश के ईएनटी चिकित्सकों के संगठन व सामाजिक संगठनों के प्रतिनिधियों की और से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को विश्व तंबाकू निषेध दिवस के अवसर पर पत्र देकर तंबाकू व चबाने वाले सभी तरह के उत्पादों पर प्रतिबंध लगाने का आग्रह किया जा रहा है। इसके साथ ही इससे होने वाले खतरों के बारे में भी जानकारी दी जाएगी।

वहीं तंबाकू व अन्य धूम्रपान उत्पादों के सेवन से होने वाली बीमारियों पर तंबाकू उत्पादों से होने वाले राजस्व आय से तीन गुणा अधिक इन उत्पादों से बीमार होने वालों के स्वास्थ्य पर खर्च करना पड़ता है। इन सभी उत्पादों की पीक, खाली पाउच, सिगरेट व बीड़ी के बट को साफ करने पर भी सरकार को अधिक खर्च करना पड़ता है।

सुखम फाउंडेशन की ट्रस्टी संतोष फनात ने बताया कि ग्लोबल एडल्ट टोबैको सर्वे, 2017 के अनुसार राजस्थान में वर्तमान में 24.7 प्रतिशत लोग (5 में से 2 पुरुष, 10 में से 1 महिला यूजर) किसी न किसी रूप में तंबाकू उत्पादों का उपयोग करते है। जिसमें 13.2 प्रतिशत लोग धूम्रपान के रूप में तंबाकू का सेवन करते है, जिसमें 22.0 प्रतिशत पुरुष, 3.7 प्रतिशत महिलाएं शामिल है। यहाँ पर 14.1 प्रतिशत लोग चबाने वाले तंबाकू उत्पादों का प्रयोग करते है, जिसमें 22.0 प्रतिशत पुरुष व 5.8 प्रतिशत महिलाएं शामिल है। उन्होने बताया कि आज भी तंबाकू उत्पादों को पारंपरिक रीति रिवाज के रूप में देखा जाता है। इसलिए इसे सामाजिक तौर से बहिष्कृत करने की महती जरूरत है।

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