शोधकर्ताओं की चिंता स्वच्छ भारत एम्बेस्डर की कलम से

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– डॉ डीपी शर्मा –

निःसंदेह भूमंडलीकरण औद्योगिक क्रांति ने विकास के नए आयाम तो खोले, परंतु इस विकास के साथ जो विकार उत्पन्न हुए वह आज दुनिया के वैज्ञानिकों एवं नीति निर्माताओं के लिए चुनौती साबित हो रहे हैं। इस नवीन चिंता एवं चुनौती को ध्यान में रखते हुए यूनाइटेड नेशंस इंडस्ट्रियल डेवलपमेंट ऑर्गेनाइजेशन ने ग्रीन इंडस्ट्री की पहल साजा समृद्धि के लिए की है।
पिछले 100 साल में हमने जो ताबड़तोड़ औद्योगिकीकरण के कदम उठाए, उस भूमंडलीकरण औद्योगिकीकरण एवं पूंजीवाद के धुंध और द्व्ंद में हम यह भूल गए कि कहीं ये औद्योगिक क्रांति हमें एक नवीन चुनौती की ओर तो नहीं ले जायेगी। जो मानव सभ्यता के लिए न केवल खतरनाक होगी बल्कि ऐसी दिशा में जा सकती है जहां से वापस लौटना मुश्किल होगा। इसी को ध्यान में रखते हुए यूनाइटेड नेशंस इंडस्ट्रियल डेवलपमेंट ऑर्गेनाइजेशन आज ग्रीन इंडस्ट्री पहल में साझा समृद्धि के साथ साथ आर्थिक प्रतिस्पर्धा को आगे बढ़ाना, पर्यावरण की रक्षा करना, शोध ज्ञान संस्थानों को हरित उद्योग संबंधी एजेंडा पर काम कर रहा है ताकि पर्यावरण की रक्षा के साथ-साथ औद्योगिक विकास की भूमंडलीकरण रफ्तार को कम ना किया जा सके‌।

पिछले कुछ वर्षों में, अपने शासनादेश को ध्यान में रखते हुए, UNIDO ने नई वैश्विक स्थायी विकास चुनौतियों के संदर्भ में सतत औद्योगिक विकास को स्थापित करने के लिए अवधारणा ग्रीन इंडस्ट्री को गढ़ा है। हरित उद्योग का अर्थ है, हरित सार्वजनिक निवेशों को शुरू करने और पर्यावरणीय रूप से जिम्मेदार निजी निवेशों को प्रोत्साहित करने वाली सार्वजनिक नीतिगत पहलों को लागू करके विकास के अधिक स्थायी मार्ग के लिए प्रयास करना। भारत सरकार ने इस संदर्भ में मेक इन इंडिया मिशन के तहत स्वीडन सरकार के साथ में कुछ समझौते किए हैं जो स्मार्ट सिटी, ग्रीन सिटी एवं ग्रीन औद्योगिक दिशा में मील के पत्थर साबित हो सकते हैैं। सनद रहे कि ग्रीन ट्रांसपोर्ट के संदर्भ में स्वीडन पहले से ही एक नवीन पहल के तहत अपनी बसों को बायोगैस या बिजली से दौड़ा रहा है परंतु भारत में आज भी हमारी सरकारी बसें कहीं भी और किसी भी मोड़ पर पर्यावरण को धता बताते हुए बीच चौराहे पर दम तोड़ देती हैं । और हम हैं कि स्मार्ट सिटी के मुंगेरीलाल सपने देख रहे हैं । स्मार्ट सिटी का सपना देखना गलत नहीं है परंतु क्या हमारा कृतित्व, व्यक्तित्व, हमारी सोच एवं हम स्वयं स्मार्ट हैं इस पर विचार करने की आवश्यकता है आज । अभी सन २०१६ में भारत सरकार ने स्वीडन के साथ में कुछ समझौते किए जिनमें ग्रीन हाउसिंग, ग्रीन लाइफ स्टाइल, ग्री एग्रीकल्चर एवं ग्रीन तकनीक शामिल हैं। इस द्विपक्षीय समझौते के तहत 3.5 मिलियन डॉलर्स सिर्फ और सिर्फ स्वीडन के सहयोग से रिन्यूएबल एनर्जी पर शोध करने के लिए प्रस्तावित हैं। परंतु अभी तक इसका कोई ठोस परिणाम जमीन पर दिखाई नहीं देता । राजस्थान में कुछ सोलर प्लांट एवं हिमाचल प्रदेश में विंड प्लांट की शुरुआत जरूर हुई है । परंतु परिणाम आना अभी बाकी है । हमें सीखना होगा स्वीडन से किस प्रकार एक छोटा सा देश एवं उसका प्रधानमंत्री 2040 तक देश को फॉसिल ईंधन से मुक्त करने की प्रतिबद्धता के साथ आगे बढ़ रहा है और हम सवा अरब के देश वाले लोग अभी भी खटारा वाहनों को धुआं के बवंडरों के साथ सड़कों पर यमराज की तरह दौड़ा रहे हैं ।

UNIDO की यह औध्योगिक हरियाली पहल स्थायी आर्थिक विकास को प्राप्त करने और स्थायी अर्थव्यवस्थाओं को बढ़ावा देने की एक विधि है। इसमें नीति निर्धारण, बेहतर औद्योगिक उत्पादन प्रक्रियाएं और संसाधन-कुशल उत्पादकता शामिल हैं।

यूनाइटेड नेशंस इंडस्ट्रियल डेवलपमेंट ऑर्गेनाइजेशन की हरित उद्योग पहल जागरूकता, ज्ञान और क्षमता बनाता है और औद्योगिक संस्थानों का समर्थन करने के लिए सरकारों के साथ काम करता है जो बदले में उद्योग की हरियाली से संबंधित सभी पहलुओं में उद्यमों और उद्यमियों को सहायता प्रदान करते हैं। उन क्षेत्रों का संक्षिप्त अवलोकन व
विश्लेषण कुछ इस प्रकार है

१. संसाधन कुशल और स्वच्छ उत्पादन (आरईसीपी):
सामग्री, ऊर्जा, पानी, अपशिष्ट और उत्सर्जन का ध्यान रखने से अच्छी व्यावसायिक समझ बनती है। आरईसीपी इसे प्राप्त करने का तरीका है। आरईसीपी निवारक प्रबंधन रणनीतियों के अनुप्रयोग को शामिल करता है जो प्राकृतिक संसाधनों के उत्पादक उपयोग को बढ़ाता है, कचरे और उत्सर्जन की पीढ़ी को कम करता है, और सुरक्षित और जिम्मेदार उत्पादन को बढ़ावा देता है।

२. क्लीनर उत्पादन (सीपी):
आरईसीपी सीपी का उपयोग प्रक्रियाओं, उत्पादों और सेवाओं के लिए निवारक पर्यावरण रणनीतियों के अनुप्रयोग में तेजी लाने के लिए करता है, ताकि दक्षता बढ़ सके और मनुष्यों और पर्यावरण के लिए जोखिम कम हो सके। यह संबोधित करता है, ए) उत्पादन क्षमता: प्राकृतिक संसाधनों (सामग्री, ऊर्जा और पानी) के उत्पादक उपयोग का अनुकूलन; बी) पर्यावरण प्रबंधन: कचरे और उत्सर्जन में कमी के माध्यम से पर्यावरण और प्रकृति पर प्रभाव को कम करना; और, ग) मानव विकास: लोगों और समुदायों के लिए जोखिम को कम करना और उनके विकास के लिए समर्थन करना।

३. स्टॉकहोम कन्वेंशन और लगातार कार्बनिक प्रदूषक (पीओपी):
स्टॉकहोम कन्वेंशन मानव स्वास्थ्य और पर्यावरण को रसायनों से बचाने के लिए एक वैश्विक संधि है, लगातार कार्बनिक प्रदूषक (पीओपी), जो लंबे समय तक पर्यावरण में बरकरार रहते हैं, व्यापक रूप से भौगोलिक रूप से वितरित हो जाते हैं, मनुष्यों और वन्यजीवों के फैटी टिशू में जमा होते हैं , और मानव स्वास्थ्य या पर्यावरण पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है

४. मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल (एमपी):
मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल एक अंतरराष्ट्रीय पर्यावरण संधि है जिसे ओज़ोन रिक्तीकरण के लिए जिम्मेदार माने जाने वाले पदार्थों के उत्पादन को चरणबद्ध करके ओज़ोन परत की सुरक्षा के लिए बनाया गया है। सन 1989 के बाद से, एक टाइम टेबल अलग-अलग चरण की स्थापना करता है; उदाहरण के लिए, शुरू में चरण-आउट हाइड्रो-क्लोरोफ्लोरोकार्बन (HCFC) – एक रासायनिक यौगिक जिसमें हाइड्रोजन शामिल है – 2015 तक अंतिम चरण-आउट के साथ 2030 तक सहमति दी गई है। रथ उपरोक्त सभी बिंदुओं पर भारत की सोच यदा-कदा कागज पत्र नजर आती है परंतु जमीन पर नहीं अब देखना यह है कि नवीन सरकार प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में इस पर कितना अमल करती है और भारत को कितना स्वच्छ एवं औद्योगिक दृष्टि से हरित क्रांति की ओर ले जाती है।

इन सभी प्रयासों के साथ साथ यूनाइटेड नेशंस इंडस्ट्रियल डेवलपमेंट ऑर्गेनाइजेशन अपने दैनिक कार्य में, ओजोन-को नष्ट करने वाले पदार्थों (ओडीएस) को कम करने के लिए लागत प्रभावी तरीकों पर ध्यान केंद्रित करता है, जैसे कि फ्रोजन, हैलोन और क्लोरोफ्लोरोकार्बन (सीएफसी), प्रशीतन, प्लास्टिक के फोम, हलन, सॉल्वैंट्स, फ्यूमिगेंट्स और एरोसोल के क्षेत्रों में। अपुष्ट आंकड़ों के अनुसार भारत अभी भी इसका कोई प्रभावी लाभ नहीं उठा पाया है।

रसायन प्रबंधन के तहत यूनाइटेड नेशंस इंडस्ट्रियल डेवलपमेंट ऑर्गेनाइजेशन अपनी परियोजनाओ, नीतियों और विनियमों, संस्थानों और क्षेत्रीय क्षमता-निर्माण, निवारक दृष्टिकोण के विकास और केमिकल लीजिंग जैसे नए व्यापार मॉडल के साथ काम करता है, जो उद्यमों को रसायनों के उपयोग से संबंधित जोखिमों और प्रभावों को कम करने में सहायता करता है। भारत के कुछ और कुछ उद्योगों ने स्कोर अडॉप्ट करने की कोशिश की है परंतु व्यापक रूप से राष्ट्रीय स्तर पर अभी काम किया जाना बाकी है।

भारत ने कॉर्पोरेट सामाजिक जिम्मेदारी (CSR) की शुरुआत तो की है और कुछ संस्थान इस संदर्भ में अपनी भूमिका और अपनी जिम्मेदारी को बखूबी निभा भी रहे हैं परंतु इतने बड़े देश में व्यापक स्तर पर अगर देखा जाए तो यह ऊंट के मुंह में जीरे के बराबर है।
आजकल, पर्यावरणीय चिंताओं, मानवाधिकार मुद्दों, उचित श्रम स्थितियों और औद्योगिक विकास में सुशासन के एकीकरण की आवश्यकताएं विकासशील और संक्रमण वाले देशों में व्यावसायिक क्षेत्रों को काफी प्रभावित कर रही हैं। इसे कॉर्पोरेट सोशल रिस्पांसिबिलिटी (CSR) कहा जाता है। इस संदर्भ में, यूएनआईडीओ छोटे और मध्यम आकार की फर्मों (एसएमई) के लिए एक रूपरेखा पर काम कर रहा है जो सीएसआर सिद्धांतों को एक प्रासंगिक एसएमई परिप्रेक्ष्य में ट्रांसफार्म करने में मदद करता है, जिससे उनकी प्रतिस्पर्धात्मकता और बाजार पहुंच बढ़ जाती है। तकनीकी सहायता गतिविधियों, वैश्विक मंच की घटनाओं और अनुसंधान परियोजनाओं की एक श्रृंखला के माध्यम से, UNIDO एसएमई और उनके समर्थन संस्थानों को इस क्षेत्र में हितधारकों की उत्पादकता / गुणवत्ता, पर्यावरण और सामाजिक आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए एक सरल और व्यावहारिक दृष्टिकोण भी प्रदान करता है।

भारत में अभी जल प्रबंधन प्रभावी रूप से नहीं हो पारा अर्थात आज भी करोड़ों लोग स्वच्छ जल से महरूम हैं। जल प्रबंधन के संदर्भ में
UNIDO का जल प्रबंधन कार्यक्रम उद्योग में जल उत्पादकता में सुधार करने के लिए सर्वोत्तम उपलब्ध पर्यावरणीय ध्वनि प्रौद्योगिकियों और पर्यावरण प्रथाओं को स्थानांतरित करने के साथ-साथ अंतर्राष्ट्रीय जल (नदियों, झीलों, आर्द्रभूमि और तटीय क्षेत्रों) में औद्योगिक अपशिष्टों के निर्वहन को रोकने के लिए सेवाएं प्रदान करता है। भावी पीढ़ियों के लिए जल संसाधनों की रक्षा करना सर्वोच्च प्राथमिकताओं में से है।आज भारत जैसे विशाल देश में इलेक्ट्रॉनिक कचरे को वैज्ञानिक तरीके से निस्तांरित करने का कोई भी प्रभावी फार्मूला एवं परियोजना व्यापक स्तर पर शुरू नहीं हो पाई है। आज भी जन सामान्य की समझ यह नहीं हो पाई कि किस प्रकार इन इलेक्ट्रॉनिक आइटम्स जिनमें कैडमियम, क्रोमियम, मरकरी एवं लैड जैसे कैंसर एवं अस्थमा पैदा करने वाले टॉक्सिक पदार्थों का इस्तेमाल होता है और हम उन्हें इधर-उधर नदियों तालाबों में बिना सोचे समझे फेंक देते हैं। आने वाले वक्त में शायद नदियों एवं तालाबों का पानी छूने लाइक ना बचे। इन सबके साथ साथ
UNIDO का उद्देश्य नवीकरणीय ऊर्जा परियोजनाओं पर जोर देने के साथ गरीबों के लिए आधुनिक ऊर्जा सेवाओं तक पहुँच प्रदान करना है। संगठन आगे औद्योगिक ऊर्जा दक्षता परियोजनाओं में सुधार करके उत्पादकता और प्रतिस्पर्धा को बढ़ाने में मदद करता है, और विशेष रूप से जलवायु परिवर्तन के लिए क्षमता-निर्माण परियोजनाओं और विशेष रूप से क्योटो प्रोटोकॉल तंत्र के माध्यम से जीएचजी उत्सर्जन को कम करने पर काम करता है। भारत सरकार ने इस संदर्भ में हर घर हर गांव तक बिजली पहुंचाने की तो कोशिश की है परंतु इस को लंबे समय तक स्थाई एवं ग्रीन बनाने की कोशिश अभी भी दूर की कौड़ी बनी हुई है। अंततः यही कहा जा सकता है कि अंतरराष्ट्रीय संस्थान तो अपना काम निष्ठा एवं ईमानदारी के साथ करने की कोशिश कर रहे हैं।  क्या भारत सरकार एवं भारत का जनमानस इस दिशा में जागरूक ईमानदार एवं प्रतिबद्ध है या नहीं? क्या हम सिर्फ नारो एवं घोषणाओं में ही स्मार्ट वनने, बनाने व देखने एवं दिखाने का काम तो नहीं कर रहे ? आइए यूनाइटेड नेशंस इंडस्ट्रियल डेवलपमेंट ऑर्गेनाइजेशन के साथ भारत सरकार की यदि कोई पहल होती है तो उसके साथ कदम से कदम मिलाकर इस पर्यावरण को स्वच्छ, स्वस्थ एवं हरा बनाएं ।
कहते हैं कि
आसमां भर गया परिंदों से,
पेड़ कोई फिर हरा गिरा होगा ।
हरे पेड़ को गिरने से रोके, प्रकृति हमारे गिरने पर अपने आंचल में हमें थाम लेगी।

 

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परिचय – :

डॉ डीपी शर्मा 

परामर्शक/ सलाहकार  

 
 
 
 
 
 

अंतरराष्ट्रीय परामर्शक/ सलाहकार
यूनाइटेड नेशंस अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन
नेशनल ब्रांड एंबेसडर, स्वच्छ भारत अभियान

 
 

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