सुधेश की रचनाएँ
मेरे गीत
आख़िर जीता प्यार
ढोता है मन कितनी कुण्ठाओं का भार
जीवन रण में मगर न मानेगा वह हार ।
तन का बोझ लिये काँधे पर
चलता जाता है पाँव
मन का बोझ उठाये मन ही
फिर भी तो मिले न गाँव ।
चलना ही जीवन है जीत मिले या हार
ढोता है मन ——–
दुनिया चमक दमक के पीछे
चाहे हो खोटा स्वर्ण
जो हैं गुण की खान सदा ही
जीवन में उन के रुदन ।
सोने को सहनी पडती सुनार की मार
ढोता है मन —–
मेरा रूप कुरूप न देखो
सुन लो बस मेरे बोल
कोयल दुनिया से कहती है
जंगल जंगल डोल ।
नफ़रत कभी न जीती आख़िर जीता प्यार
ढोता है मन कितनी कुण्ठाओं का भार ।— सुधेश
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पल पल बीत रहा है जीवन
समय निरन्तर चलता रहता
नयनों के सपनों को छलता
जीवन घट से रीत रहा ज्यों
बूँद बूँद का नश्वर जीवन ।
कितना चाहा कितना पाया
कितना पाया और गँवाया
हँसते हँसते कह जाता है
मौन छलकते आँसू का कन ।
हाथ रहे करते धरते कुछ
पाँव चले गिरते पड़ते कुछ
पाँव न पहुँचे उस मंज़िल तक
मिले हाथ को चार रेत कन ।
सपनीली आँखों के सपने
कितने हो पाये वे अपने
ठोकर लगते आँख खुली तो
बिखर गया फूलों का उपवन ।
इच्छाएँ,उड़ती पतंग सी
कट कर भी जीवित अनंग सी
कटी पतंगों के पीछे ही
दौड़ दौड़ हारा यह जीवन
पल पल बीत रहा है जीवन
— सुधेश
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मन भर जाता है
यह दुनिया हो कितनी सुन्दर
इक दिन तो मन भर जाता है ।
स्वर्ण छडी अनब्याही लड़की
मूर्त्ति नहीं है किन्तु रबड़ की
यह जो नशा जवानी का है
देर सवेर उतर जाता है ।
बचपन में यौवन के सपने
यौवन में सिन्दूरी सपने
उन की काली राख देख कर
आख़िर में मन मर जाता है ।
दूधधुली यह रात चाँदनी
मदमाती है गन्ध चन्दनी
कैसा हँसता फूल डाल पर
कुछ घण्टों में झर जाता है ।
— सुधेश
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जीवन तो संग्राम
किस को कितना जीना है
कितना विष हालाहल पीना है
किसी को भी पता नहीं है ।
इन थकी उनींदी आँखों में
रंगीन स्वप्न के चिर डेरे हैं
तन मन के चारों ओर मगर
जड़ बाधाओं के निर्मम घेरे हैं ।
जीवन तो है संग्राम भयंकर
यह शराब का नशा नहीं है ।
हल्दी की गाँठ मिली जिस को
बन्दर झट पन्सारी बन बैठा
जो धुप्पल में कुर्सी पर जा बैठा
संत्री भी मन्त्री सा तन कर ऐंठा ।
अपना हक़ भीख में मिला कहाँ
उसे छीनो तो कोई ख़ता नहीं है ।
आपा धापी छीना झपटी के युग में
जन अभिजन में चूहा दौड़ मची है
कहाँ समन्वय सामाजिक न्याय कहाँ
मानव गरिमा की चमक नहीं बची है ।
दान में पाया जो स्वर्णकलश भी
तो जीने का कोई मज़ा नहीं है ।
— सुधेश
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प्रतीक्षा
पता नहीं कब यम का हरकारा आएगा
आख़िरी सफर की तैयारी की ख़बर सुनाएगा ।
सहसा बिना सूचना आए तो बेहतर
जैसे बाज़ झपट ले विवश कबूतर
अच्छा होगा झंझट से मुक्ति मिले
यह वक्त न ज़्यादा देर सताएगा ।
अफ़सोस यही जो करना चाहा कर न सका
जब जीना चाहा जी न सका मर्ज़ी से मर न सका
गीतों के पंछी गगन में खो गये कहीं
उन्हें फिर कैसे कविता प्रेमी दुहराएगा ।
पाला पड़ा कुछ छोटे बड़े कमीनों से
उन्हों ने छेदा शब्दों की संगीनों से
बडी पुरानी परम्परा है जग की
जीते जी मारेगा मरने पर अश्रु बहाएगा ।
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सुधेश
शिक्षक ,लेखक , कवि व् आलोचक
जवाहरलाल नेहरू वि वि में २३ वर्षों तकअध्यापन प़ोफेसर पद से सेवानिवृत्त
शिक्षा देवबन्द, मुज़फ़्फ़रनगर , देहरादून में पाई । एम ए हिन्दी में ( नागपुर वि वि ) पीएच डी आगरा विवि से ।
उ प़ के तीन कॉलेजों में अध्यापन के बाद दिल्ली के जवाहरलाल नेहरू वि वि में २३ वर्षों तकअध्यापन । । तीन बार विदेंश यात्राएँ । अब स्वतन्त्र लेखन ।
सम्पर्क:
डा सुधेश
314 सरल अपार्टमैन्ट्स , द्वारिका , सैक्टर 10 . दिल्ली 110075
फ़ोन नम्बर – : 09350974120 – email- : dr.sudhesh@gmail.com
अब तक 29 पुस्तके प़काशित , पुस्तकें व् काव्य कृतियाँ
१ फिर सुबह होगी ही ( राज पब्लिशिंग हाउस ,पुराना सीलमपुर ,दिल्ली ) १९८३
२ घटनाहीनता के विरुद्ध ( साहित्य संगम , विद्याविहार , पीतमपुरा ,दिल्ली ) १९८८ ,
३ तेज़ धूप ( साहित्य संगम , दिल्ली ) सन १९९३
४ जिये गये शब्द ( अनुभव प़काशन , साहिबाबाद़ ,ग़ाज़ियाबाद ) सन १९९९
५ गीतायन ( गीत और ग़ज़लें ) कवि सभा,विश्वास नगर , शाहदरा ,दिल्ली – २००१
६ बरगद ( खण्डकाव्य ) प़खर प़काशन ,नवीनशाहदरा ,दिल्ली – २००१
७ निर्वासन ( खण्ड काव्य ) साहित्य संगम , पीतमपुरा , दिल्ली – सन २००५
८जलती शाम (काव्यसंग़ह) अनुभव प़काशन , साहिबाबाद़, ग़ाज़ियाबाद-२००७
९ सप्तपदी , खण्ड ७(दोहा संग़ह ) ंअयन प़काशन , महरौली ,दिल्ली सन २००७
१०हादसों के समुन्दर ( ग़ज़लसंग़ह ) पराग बुक्स , ग़ाज़ियाबाद – सन २०१०
११ तपती चाँदनी ( काव्यसंग़ह ) अनुभव प़काशन , साहिबाबाद़ – २०१३
आलोचनात्मक पुस्तकें
१ आधुनिक हिन्दी और उर्दू कविता की प़वृत्तियां ,राज पब्लिशिंग हाउस ,पुराना
सीलम पुर दिल्ली सन १९७४
२ साहित्य के विविध आयाम -शारदा प़काशन ,दिल्ली १९८३
३ कविता का सृजन और मूल्याँकन – साहित्य संगम, पीतमपुरा ,दिल्ली १९९३
४ साहित्य चिन्तन – साहित्य संगम , दिल्ली १९९५
५ सहज कविता ,स्वरूप और सम्भावनाएँ – साहित्य संग़म ,दिल्ली १९९६
६ भाषा ,साहित्य और संस्कृति – स्रार्थक प़काशन ,दिल्ली २००३
७ राष़्ट्रीय एकता के सोपान – इण्डियन पब्लिशर्स,क़मला नगर ,दिल्ली २००४
८ सहज कविता की भूमिका – अनुभव प़काशन ,ग़ाज़ियाबाद २००८
९ चिन्तन अनुचिन्तन – यश पब्लिकेंशन्स, दिल्ली २०१२
१० हिन्दी की दशा और दिशा -जनवाणी प़काशन , दिल्ली २०१३
विविध प़काशन
तीन यात्रा वृत्तान्त ,दो संस्मरण संग़ह,एक उपन्यास,एक व्यंग्यसंग़ह , एक आत्मकथा प़काशित । कुल २९ पुस्तकें प़काशित ।
पुरस्कार व् सम्मान
मध्यप़देश साहित्य अकादमी का भारतीय कविता पुरस्कार २००६
भारत सरकार के सूचना प़सारण मंत्रालय का भारतेन्दु हरिश्चन्द़ पुरस्कार २०००
लखनऊ के राष्ट़़धर्म प़काशन का राष्ट़़धर्म गौरव सम्मान २००४
आगरा की नागरी प़चारिणी सभा द्वारा सार्वजनिक अभिनन्दन २००४
इन गीतों से परिचित होना सुखद रहा। इनमें सहज परिपक्व एहसासों का लेखा-जोखा है, जो हम सब के मन का हो सकता है, है भी। इस दृष्टि से ये गीत मुझे नितांत अपने लगे। इस अपनेपन से परिचित कराने के लिए इन गीतों को नमन और इनके रचयिता का हार्दिक आभार।
आपके इन गीतों से परिचित होना सुखद रहा। इनमें आपके सहज परिपक्व एहसासों का लेखा-जोखा है, जो हम सब के मन का हो सकता है, है भी। इस दृष्टि से ये गीत मुझे नितांत अपने लगे। इस अपनेपन से परिचित कराने के लिए इन गीतों को नमन और इनके रचयिता का हार्दिक आभार।