सस्ता खाने की पहल और पेचीदा क्रियान्वयन

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– संजय रोकड़े –

SHIVRAJSINGH-CHAUHAN-INVC-Nभारत की राजनीति में फ्री के उपहारों व सस्ती चीजों का बड़ा महत्व है। इस तरह के उपायों को राजनीति में गेंम चेंजर के रूप में भी देखा जा सकता है। मध्यप्रदेश की शिवराज सरकार भी इस गेंम चेंजर खेल को राज्य में आने वाले विधानसभा चुनाव- 2018 में हथियार की तरह प्रयोग करना चाहती है। अब तक तमिलनाडु की मुख्यमंत्री जयललिता ही अम्मां कैंटीन के लिए देश भर में प्रसिद्ध थी,लेकिन अब प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान भी प्रदेश के बड़े शहरों में दीनदयाल सहकारी थाली योजना के नाम से भोजनालयों की शुरूआत करने जा रहे हैं। इसके लिए दीनदयाल सहकारी थाली योजना के तहत बजट आवंटित किया जाएगा। योजना का संचालन सहकारी संस्था बनाकर किया जाना है। इस योजना में प्रदेश भर के उन लोगों को भी शामिल किया जाएगा जो सेवा करने के इच्छुक है। इन लोगों से जनसहयोग लिया जाएगा। इस तरह के भोजनालयों में सीएम ने मात्र 10 रुपये में भरपेट भोजन देने का मन बनाया है। थाली में दाल, रोटी, सब्जी, पुलाव और अचार होगा। हालाकि शुरुआत में इसे भोपाल, इंदौर, ग्वालियर और जबलपुर में लॉन्च किया जाएगा। फिलहाल भोपाल में एक भोजनालय खोलकर प्रयोग किया जाएगा। बाद में इनकी संख्या बढ़ाई जाएगी। अगर इन शहरों में सफलता मिलती है तो इसे पूरे प्रदेश में लागू किया जाएगा। वैसे तो प्रदेश सरकार गरीबों को1 रुपये किलो गेहूं और चावल दे ही रही है। साथ में नमक भी दिया जाता है लेकिन इससे काम बनते नजर नही आया तो सस्ता भोजन देने का मन बना लिया। तमिलनाड़ु में मुख्यमंत्री जयललिता द्वारा अम्मा कैंटीन और ओडि़शा के सीएम नवीन पटनायक ने नवीन पटनायक नाम से आहार नाम से ऐसी ही स्कीम चला रखी हैं। छत्तीसगढ़ में चार रूपये किलो चावल जैसी योजना संचालित है।

तमिलनाड़ु में अभी जो कैंटीन संचालित है वह जयललिता ने अपने मौजूदा कार्यकाल में शुरू करवाएं हैं। इन्हें 2013 में शुरू किया गया था और जल्दी ही ये इतनी लोकप्रिय हो गए कि सिर्फ चेन्नई में ऐसे 200 कैंटीन खोलने पड़े। इनमें मिलने वाले अच्छे खाने की वजह से गरीब ही नहीं बल्कि मध्यमवर्गीय लोग भी यहां खाना खाने आते है। इस सस्ते खाने के लिए तमिलनाडु सरकार सालाना 65 करोड़ रुपये की सब्सिडी देती है। ये कैंटीन हर शहर में नगर निगम के जिम्मे हैं और इन्हें चलाने का काम महिला स्वावलंबी समूहों को दिया गया है। अब इस कड़ी में एमपी के सीएम शिवराज भी अपना नाम जोडऩे के लिए अग्रसर है। जनचर्चा यह है कि इस योजना का विचार शिवराज के दिमाग में भाजपा की पंचमढ़ी बैठक में आया था, दूसरी चर्चा यह भी है कि इस कैंटीन को शुरू करने की प्रेरणा उन्हें तमिलनाड़ु की अम्मा कैंटीन से मिली है। अम्मा कैंटीन में खाना बहुत सस्ते दामों पर मिलता है- एक रुपया में इडली से लेकर पांच रुपये में सांबर-चावल तक। अम्मा कैंटीन के खाने का स्तर भी बहुत अच्छा होता है और यह बहुत साफ-सुथरे माहौल में बनाया जाता है। इधर प्रदेश में शुरू होने वाली सस्ती कैंटीन योजना के संबंध में बीजेपी के प्रदेश उपाध्यक्ष अजय प्रताप सिंह ने बताया कि यह खाना खाद्य विभाग द्वारा सप्लाई किया जाएगा और संभवत: इसका नाम अन्नपूर्णा रखा जाएगा, फिलहाल इसकी अधिकारिक घोषणा होना बाकी है। बहरहाल इसको लेकर बाजार में चर्चाएं बड़े जोरों पर चल पड़ी है कि प्रदेश में भले ही शिवराज सरकार सुशासन दे या न दे लेकिन चुनाव आने के ठीक पहले दस रूपये में सस्ता भोजन जरूर देगी। इसके साथ ही यह भी कहा जा रहा है कि सरकार को अपने कर्मचारियों को समय पर वेतन देने के भले ही लाले पड़ रहे हो लेकिन नई-नई योजनाओं की घोषणाओं में कोई कमी नही हो रही है। इसकी सफलता और असफलता को लेकर भी चर्चाएं जोरों पर है। सबसे पहले तो यह अशंका जाहिर कि जा रही है कि अगर सरकार द्वारा जनता को कोई सुविधा देनी ही थी तो कम से कम इस तरह की योजनाओं का सर्वे कर लेना चाहिए था, ताकि लंबे समय तक चल सकती। सस्ते भोजन की सुविधा देने के पूर्व सरकार कम से कम तमिलनाडु में ही अफसरों को भेज कर इसके संचालन की विधि को समझ लेती। किसी भी योजना को आनन-फानन में शुरू कर देने भर से कई तरह की परेशानियां आ सकती है और इसकी सफलता को लेकर भी शंका बनी रहती है। इसकी सफलता से अधिक असफलताओं को लेकर शंकाएं जाहिर कि जा रही है।

दिल्ली में भी पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित ने शहर में गरीबों को सस्ता खाना देने के लिए आपकी रसोई और जन आहार नामक दो कार्यक्रम शुरू किए थे। लेकिन तैयारी पूरी नही होने के कारण बहुत कम समय में उसे बंद करना पड़ा था। हालाकि इसके बंद होने के अनेक कारण माने जाते है। सबसे पहले तो यह माना जाता है कि शीला सरकार ने उस समय दिल्ली में कुछ ही जगहों पर स्टॉल खोले थे , स्टालों का विस्तार भी कम किया था। स्टालों की सहज मौजूदगी के अभाव में भी यह शुरू होने के साथ ही खत्म होने लगी थी। धीरे-धीरे खाने का स्तर खराब होते चला गया , कीमतें भी बहुत कम नहीं थी। हालाकि इन कार्यक्रमों में सरकार की कोई खास दिलचस्पी नही होने का भी आरोप लगा था और इसके चलते भी योजना को बंद करना पड़ा। काबिलेगौर हो कि जब पिछली बार महाराष्ट्र में भाजपा-शिवसेना की सरकार सत्ता में थी, तब उसने भी मुंबई में एक रुपया में झुणका भाकर मुहैया कराने के केंद्र खोले थे। हालांकि, इन केंद्रों को शुरू करने और चलाने के पीछे कोई दृष्टि और प्रशासनिक कौशल नहीं था इसलिए वक्त के साथ-साथ वह धीरे-धीरे सारे झुणका भाकर स्टॉल नियमित फास्ट फूड और शीतल पेय की दुकानों में तब्दील हो गए। इस कारण यह योजना भी विफल हो गई। शिवसेना पर उस दौर में ये आरोप भी लगे थे कि यह लोगों को सस्ता आहार देने से ज्यादा अपने कार्यकर्ताओं को रोजगार देने का कार्यक्रम था। लेकिन विचार बुरा नही था। गुजरात की पूर्व मुख्यमंत्री आंनंदी बेन भी अपने कार्यकाल में राज्य में जनता को सस्ता खाना देने की पहल कर चुकी है। अगर इसे इस तरह से कहे कि तमिलनाडु की मुख्यमंत्री जे जयललिता की अम्मा कैंटीन के खाने की सुगंध गुजरात की आनंदी बेन तक भी पहुंच चुकी थी तो इसे कोई अतिश्योक्ति नही कहा जा सकता है।

आनंदीबेन पटेल तो अम्मा कैंटीन का जायजा लेने के लिए एक दल को भी चेन्नई तक भेज चुकी थी। खबरे तो ये भी है कि पूर्व मुख्यमंत्री को यह योजना खूब भा गई थी। इसलिए तो उनने रोजगार व प्रशिक्षण विभाग के संयुक्त सचिव के नेतृत्व में तीन सदस्यीय दल तमिलनाडु भेजकर अम्मा कैंटीन की सारी जानकारी मंगा ली थी। उस समय दल वहां से अम्मा कैंटीन पर गहन अध्ययन करके लौटा था। खाने पर कितना खर्च होता है, भोजन का स्वाद कैसा है उसकी गुणवत्ता क्या है और कैसे बनता है, खाना बनाए जाने वाले स्थान पर सफाई कैसे रहती है, किस प्रकार से इसका संचालन होता है, इस तरह की तमाम जानकारियां हासिल की थी। बताते है कि दिल्ली की अरविंद केजरीवाल सरकार ने भी शहर की जनता को सस्ता खाना देने के लिए अनेक राज्यों में अफसरों को अध्ययन व सर्वे के लिए भेजा था। बताते है कि गुजरात की आंनदीबेन दिल्ली की केजरीवाल सरकार से पहले ही प्रदेश के गरीबों को कम कीमत में खाना मुहैया कराना चाहती थी लेकिन दुर्भाग्य से ऐसा संभव नही हो पाया और वह वक्त से पहले ही पदच्युत हो गई। बहरहाल यह जान ले कि कोई भी योजना तभी कामयाब होती है, जब प्रशासन उसको लेकर यह समझे कि राजनीतिक नेतृत्व उसमें गहरी दिलचस्पी ले रहा है। पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित की व्यक्तिगत रूचि के अभाव में रसोई और जन आहार जैसी अहम योजनाओं ने दम तोड़ दिया था।

मध्यप्रदेश में भी सस्ते भोजन की योजना वक्त से पहले ही कहीं असफल साबित न हो जाए इसके चलते अनेक अशंकाएं जाहिर की जा रही है। हालाकि इस तरह की अशंकाओं पर अंकुश लगाते हुए भाजपा नेता यह कह रहे है कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह प्रदेश की जनता को एक सौगात देना चाहते है उनकी दिली तमन्ना है कि आम इंसान को सस्ता व अच्छा खाना मिले। इसके लिए वे व्यक्तिगत स्तर पर प्रयास कर रहे है। योजना लम्बे समय तक चले इसके लिए तमाम राज्यों से जानकारियां हासिल की गई है और की जा रही है। जो लोग आरोप लगा रहे है कि इस योजना को शुरू करने के पूर्व कोई सर्वे या अध्ययन नही किया गया है यह सच नही है। कई राज्यों के प्रोजेक्ट देखे है। बहरहाल इसमें कोई दोराय नही है कि प्रदेश में खासकर भोपाल में आज भी सस्ते व अच्छे खाने की कोई सुविधा नही है। इस तरह की सुविधा की डिमांड प्रदेश में बहुत है। आज भी यहांं गरीब को सस्ता व अच्छा खाना नहीं मिल पा रहा है। सस्ते कैंटीन के माध्यम से राज्य में भी कम दाम में स्वच्छ भोजन और शुद्ध पानी मिलना चाहिए वो भी महज 5 से 10 रुपये में। इस बात से सभी भली-भांति अवगत है कि प्रदेश भर से रोजगार की तलाश में बड़ी संख्या में युवा बेरोजगार व आम इंसान नौकरी-पेशे की खोज में पलायन करके भोपाल व अन्य शहरों में जाते है। युवा बेरोजगार व आम बेरोजगारों के लिए शुरूआती दौर मुफलसी का होता है, ऐसे में देखा गया है कि उनको उस समय ठीक से दो वक्त की रोटी तक नसीब नही हो पाती है।

भोपाल में सस्ते कैंटीन शुरू होते है तो यह न केवल गरीबों को राहत प्रदान करेगें बल्कि शिवराज सरकार की घटती साख को भी दुरूस्त करेगें। बता दे कि आम गरीब को सस्ता खाना मुहैया कराने वाली यह योजना एक तरफ जयललिता की सफलता से सराबोर है तो दूसरी तरफ दिल्ली की शीला दीक्षित व शिवसेना की विफलता जैसे नतीजे भी हमारे सामने है। सफलता व विफलता दोनों के नतीजे हमारे सामने है। अब इन दोनों से सीख लेकर मध्यप्रदेश सरकार को आगे बढऩा चाहिए। इस योजना से चुनावी लाभ लेना हो तो शिवराज को अच्छी तरह से समझ-बुझ कर पहल करना चाहिए। थोड़ी सी गलती के चलते यह लाभ देने के बजाय हानि भी दे सकती है। इसे योजनाबद्ध तरीके से लागू करने के लिए हर पहलू पर सकारात्मक व नकारात्मक पक्षों को जान लेना बेहतर होगा ताकि इसका हश्र भी मुंबई के झुणका भाकर स्टॉलों व दिल्ली की आपकी रसोई और जन आहार जैसा न हो। आम तौर पर ऐसे सरकारी कार्यक्रमों का हश्र बहुत अच्छा नहीं होता है।

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परिचय – :

संजय रोकड़े

पत्रकार ,लेखक व् सामाजिक चिन्तक

103, देवेन्द्र नगर अन्नपुर्णा रोड़ इंदौर
संपर्क 09827277518

नोट- लेखक पत्रकारिता जगत से सरोकार रखने वाली पत्रिका मीडिय़ा रिलेशन का संपादन करते है और सम-सामयिक मुद्दों पर कलम भी चलाते है।

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*Disclaimer : The views expressed by the author in this feature are entirely his  own and do not necessarily reflect the views of INVC NEWS.

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