बुंदेली ग़ज़ले शायर महेश कटारे सुगम

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बुंदेली ग़ज़ल

1-

खूब धरम की सीखें दै रये
हाथन में बंदूकें दै रये
अच्छौ कछू बदल नईं पा रये
सड़ी पुरानी लीकें दै रये
जोंन बात नईं मानत उनकी
काट कें उनकी घींचें दै रये
आये हते हम न्याय मांगवे
वे हम खौं तारीखें दै रये
हमनें अफरा दऔ वोटन सें
बदले में वे भूखें दै रये
सब धर लऔ अपनी जेबन में
रैयत खौं अब भीखें दै रये
जो पैले सें पैसा वारे
उन खौं आँखें मींचें दै रये
चीन ,चीन अपने वारन खौं
पट्टे, पैसा ,लीजें दै रये
जाकें उनसें कछू कहौ तौ
सुधर जाओ ,की सीखें दै रये

2-
गांव में रै वौ पाप समझ रये
हमें अंगूठा छाप समझ रये
लम्बे कुर्ता पैर केँ खुद खौ
बुद्धिमान कौ बाप समझ रये
एकइ सौ क़ानून सबई खौ
बात काय नईं साफ़ समझ रये
जी सें खून उबल र औ सब कौ
नईं वौ असली ताप समझ रये
अक्कल पै पथरा पर गए हैं
खुश हाली अभिशाप समझ रये
समझा रये सो मानत नईंयाँ
सब वे अपने आप समझ रये
बुकरेलू के कान काट रये
और शेर खौ माफ़ समझ रये

3-
हम तो हर रोज़ शरारों से मिला करते हैं
मुस्कराते हुए खारों से मिला करते हैं
वक्त ने छोड़ दिया हमको खिज़ा में लाकर
हम यहाँ पर भी बहारों से मिला करते हैं
कोई तूफ़ान नहीं हमको डिगा पाया है
हम तो हर बार किनारों से मिला करते हैं
तीरगी रात की आती है तन्हा करने को
शान से चाँद सितारों से मिला करते हैं
दर्द तन्हाई का जब जब भी जकड़ लेता है
हम तसब्बुर में ही यारों से मिला करते हैं

4-

गाँव भर में चल रही है धौंस लम्बरदार की
एक ही भाषा है उसके पास में कलदार की
कह दिया जो कुछ भी पत्थर की लकीरें मानिये
बस वही कानून है और आज्ञा सरकार की
मुल्क अब आज़ाद है इससे नहीं मतलब उसे
है रिवायत आज भी उसके यहां दरबार की
राज्य के कुछ मंत्रियों से उसकी गहरी दोस्ती
दो टके की हैसियत टी आई थानेदार की
सामना उसका भला कोई करे तो किस तरह
एक दहशत गांव में है लाठियों की मार की
कौन सी आजादियों की बात करते हो हुज़ूर
काट दी जाती जुबां भी हसरते इंकार की

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Mahesh-Katare-sugampoet-Mahesh-Katare-sugam.Mahesh-Katare-poet-sugam,बुंदेली ग़ज़लपरिचय :-

महेश कटारे ‘सुगम’

लेखक व् शायर 

बुन्देली भाषा के एक सशक्त हस्ताक्षर

आप बीना म.प्र. में रहते हैं

स्वास्थ्य विभाग में कार्यरत थे

संपर्क –
mobile : 097130 24380 ,  mahesh.katare_sugam@yahoo.in

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