तमाम सियासी घटनाक्रमों के बीच साल 1998 का एक किस्सा हमेशा चर्चा में रहा, जहां उन्हें अपनी सीएम की कुर्सी गंवानी तो पड़ी, लेकिन अगले ही दिन वे दोबारा प्रदेश के मुखिया भी बन गए. इस वाक्ये को विस्तार से समझते हैं.
कल्याण सिंह नहीं रहे, लेकिन उनके सियासी कारनामे हमेशा याद किए जाएंगे. 1991 में भारतीय जनता पार्टी को उत्तर प्रदेश की सत्ता तक पहुंचाने का बड़ा श्रेय कल्याण सिंह को ही जाता है. हिंदूवादी नेता की छवि के साथ आगे बढ़े सिंह भारत के सबसे ज्यादा आबादी वाले राज्य के तीन बार मुख्यमंत्री भी बने. यूपी में बीजेपी के पहले सीएम बनने की उपलब्धि भी सिंह के नाम पर ही दर्ज है. हालांकि, तमाम सियासी घटनाक्रमों के बीच साल 1998 का एक किस्सा हमेशा चर्चा में रहा, जहां उन्हें अपनी सीएम की कुर्सी गंवानी तो पड़ी, लेकिन अगले ही दिन वे दोबारा प्रदेश के मुखिया भी बन गए. इस वाक्ये को विस्तार से समझते हैं.
करीब 23 साल पहले यानी 1998 में यूपी की सत्ता का नेतृत्व कर रहे कल्याण सिंह अमरोहा में थे. वे एक प्रत्याशी के समर्थन में जनसभा को संबोधित कर रहे थे. कार्यक्रम के दौरान उन्हें फोन से खबर मिली कि उनकी सरकार गिर गई है. वहीं, सिंह की सरकार में मंत्रिमंडल के सदस्य रहे कांग्रेस के जगदंबिका पाल को सीएम बनाने का फैसला किया गया है. रात करीब 10:30 बजे पाल को सीएम पद की शपथ दिलाई गई.
तारीख 21 फरवरी थी, यूपी के राज्यपाल रोमेश भंडारी ने उन्हें पद से बर्खास्त कर दिया था. राज्य की राजनीति में इतने बड़े बदलाव के बाद विरोध के सुर उठे और मामला उच्च न्यायालय जा पहुंचा. पूर्व प्रधानमंत्री दिवंगत अटल बिहारी वाजपेयी भी राज्यपाल के फैसले का विरोध करने में सबसे आगे थे. उन्होंने आमरण अनशन का ऐलान कर दिया था. अदालत में सुनवाई के दौरान राज्यपाल के फैसले पर रोक लगा दी गई थी.
इस पूरे सियासी घटनाक्रम में दो अहम मोड़ आए. पहला, तो अदालत की सुनवाई के दौरान राज्यपाल को ही बदले जाने के आदेश जारी हो गए. दूसरा सीएम पद संभाल रहे पाल बहुमत पेश नहीं कर सके. ऐसे में उन्हें पद छोड़ना पड़ा और यूपी की सत्ता के नेतृत्व की चाबी दोबारा कल्याण सिंह को मिल गई. सिंह को दोबारा सीएम पद तक पहुंचाने में वाजपेयी ने बड़ी भूमिका निभाई थी. पीएलसी।PLC