जमशेद आज़मी की बाल कहानी : भेड़ चोर

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भेड़ चोर

jamshed azami, writer jamshed azmiमोहनी अपनी दादी के साथ एक गांव में रहती थी। बूढ़ी दादी के अलावा उसका अपना कोई नहीं था। उनके पास सौ भेड़ों का झुंड था। जिनसे उन्हें ऊन और दूध मिल जाता था। दोनांे भेड़ों का दूध और ऊन बेंच कर गुजर बसर करने लायक पैसे कमा लेती थीं।

इसी गांव में मुरारी नाम का धूर्त आदमी रहता था। वह हमेशा मोहनी को किसी न किसी बहाने सताता रहता था। क्योंकि वह उससे जबरदस्ती शादी करना चाहता था। पर मोहनी उसे बिल्कुल पंसद नहीं करती थी। इसलिए उसे अपने पास फटकने भी नहीं देती थी।

एकदिन मोहनी भेड़ें चराने जंगल जा रही थी। तभी मुरारी की नजर उस पर पड़ी, तो वह बड़बड़ाया- ‘‘यह मोहनी मुझ से कुछ ज्यादा ही अकड़ती है। मैंने कितनी बार कहा कि मुझ से शादी कर लो। पर वह मानने को तैयार ही नहीं होती। शायद वह सौ भेड़ों के झुंड की वजह से अकड़ती है। यदि मैं किसी तरह उसकी भेडं़े हथिया लूं तो वह खुद ब खुद शादी करने को तैयार हो जाएगी।’’

सोचकर वह भेड़ें हासिल करने की जुगत लगाने लगा। जल्दी ही उसे तरकीब सूझ गई और वह खुशी के मारे उछल पड़ा।
अगले दिन मुरारी ने भेड़ की खाल खरीदी और उसे पहन कर घनी झाड़ियों में छिपकर बैठ गया। जहां मोहनी अपनी भेड़ें चराती थी।
मोहनी ने आते ही भेड़ों को घांस के मैदान में चरने के लिए छोड़ दिया और खुुद पेड़ के नीचे बैठ कर आराम करने लगी।

उधर झाड़ियों में छिपा मुरारी हरी घांस हिलाकर अकेली भेड़ को ललचाने लगा। जैसे ही भेड़ नजदीक आई, तो उसने भेड़ को अंदर खींच लिया और बांधकर हरे भरे पत्तों के बीच छिपा दिया। इस तरह मोहनी को पता ही नहीं चला कि उसकी एक भेड़ कम हो गई है।

कुछ दिन बीते तो मोहनी को लगा कि उसकी भेड़ें 1-1 कर कम हो रही हैं, तो वह परेशान हो उठी। उसने जब यह बात दादी को बताई तो उन्होंने उसे बहुत डांटा। बेचारी मोहनी अपना सा मुंह लेकर रह गई।
अगले दिन मोहनी भेड़ें लेकर जाने लगी, तो दादी ने कहा- ‘‘भेड़ों को आंखों से ओझल मत होने देना। ध्यान देना कि कहीं कोई भेड़िया तो हमारी भेड़ें नहीं चुरा रहा। हम गरीब हैं। इसलिए हमारे लिए 1-1 भेड़ कीमती है।’’
‘‘…जी, मैं ध्यान रखूंगी,’’ -कहकर वह चली गई।

मोहनी रोज की तरह जंगल में गई और भेड़ें चराने लगी। उसने भेड़ों के झुंड को चोर से बचाने के लिए पूरी सावधानी बरती। पर लाख कोशिश करने के बाद भी उसकी 1 भेड़ कम हो गई।
शाम को जब उसने भेड़ें गिनी तो उसका दिल धक रह गया। वह बड़बड़ाई- ‘‘…उफ, आज फिर 1 भेड़ कम हो गई। पता नहीं उसे जमीन निगल गई या आसमान खा गया। मुझे तो कुछ गड़बड़ लग रही है। मैंने जल्दी ही भेड़ चोर को नहीं पकड़ा तो दादी मार-मार कर मेरा भुर्ता बना देगी।’’

घर लौटते वक्त उसे रास्ते में मुरारी दिखाई पड़ा। जो उसे देखकर मुस्कुरा रहा था। तभी उसे याद आया कि जब से उसकी भेड़ें कम हुई हैं, मुरारी के पास भेड़ों की संख्या बढ़ती जा रही है। तो उसका माथा ठनका।
घर लौटकर मोहनी ने बुझे मन से खाना खाया और भेड़ों की चिंता में पूरी रात करवटें बदलते हुए गुजारी।

अगली सुबह मोहनी भेड़ चोर का पता लगाने के मकसद से जंगल में जा पहुंची। वह फैसला करके आई थी, कि आज चोर का पता लगाकर ही दम लेगी। उसने झुंड को रोज की तरह घांस के मैदान में छोड़ दिया और खुद घूम घूम कर रखवाली करने लगी।

तभी अचानक उसकी नजर एक भेड़ पर पड़ी, जो झाड़ियों की ओर जा रही थी। देखकर वह उसके पीछे पीछे चल पड़ी। जैसे ही भेड़ झाड़ियों के पास गई, तो भेड़ के भेष में छिपे मुरारी ने उसे अंदर खींच लिया और रस्सी से बांधकर पत्तों में छिपा दिया।
देखकर मोहनी के कदम ठिठक गए। वह मन ही मन बोली- ‘‘…उफ, एक बड़ी भेड़ ने मेरी भेड़ को झाड़ियों में खींच लिया। जरूर यह मुरारी की ही चाल है। मुझ से शादी करने के चक्कर में, वह भेड़ चोर बन गया है। कल मैं उसे ऐसा मजा चखाऊंगी कि जीवन भर याद रखेगा।’’

फिर वह उसे सब सिखाने की तरकीब सोचने में जुट गई। शाम को वह घर लौटी और भेड़ चोर को सबक सिखाने की तैयारी करने लगी।
दूसरी ओर मुरारी इस बात से अनजान था, कि मोहनी उसका राज जान चुकी है।

अगले दिन मोहनी मिट्टी का तेल और माचिस लेकर जंगल जा पहुंची और रोज की तरह भेड़ें चराने लगी। उसकी नजर उन झाड़ियों की ओर थी। जहां मुरारी छिपा बैठा था।
कुछ देर बाद जैसे ही मुरारी ने भेड़ को ललचा कर अपने पास बुलाया और उसे झाड़ियों में खींचा, तो मोहनी वहां जा धमकी।
झाड़ियों के अंदर बड़ी भेड़ को देखकर, वह गुस्से से आगबबूला होकर चीखी- ‘‘शैतान भेड़ों, मुझे पता चल गया है कि तुम सब झाड़ियों के अंदर छिपकर बैठी हो। चुपचाप बाहर निकल आओ। नहीं तो मैं जबरदस्ती बाहर निकालूंगी….’’

सुनकर मुरारी ने पसीना छोड़ दिया। उस ने मोहनी को बहकाने की नाकाम कोशिश की- ’’…नहीं, हम भेड़ें तुम्हारे साथ रहना नहीं चाहतीं। इसलिए वापस लौट जाओ। अब यह झाड़ियां ही हमारा घर हैं।’’
‘‘क…क्या? इन झाड़ियों में आजादी से कुछ दिन क्या गुजार लिए, इन्हें अपना घर समझने लगीं। ठहर जाओ.., अभी मजा चखाती हूं…’’ -कहते हुए वह झाड़ियों पर मिट्टी का तेल छिड़कने लगी और फिर माचिस की तीली से आग लगा दी।

आग लगते ही झाड़ियां धू धू कर जल उठीं। इससे भेड़ की खाल पहने मुरारी आग की चपेट में आ गया। वह घबराकर झाड़ियों से बाहर कूद पड़ा और चीखने चिल्लाने लगा- ‘‘ब…बचाओ.., मेरी ऊन में आग लग गई। जल्दी से मेरे ऊपर पानी डालो। नहीं तो मैं जल जाऊंगा।’’

‘‘हा..हा..,धूर्त मुरारी, मुझे पता था कि तुम्हारे अलावा मेरी भेड़ें कोई नहीं चुरा सकता। तुम्हारी भलाई इसी में है, कि मेरी भेड़ें वापस कर दो। नहीं तो….’’ -मोहनी ने हंसते हुए कहा।
‘‘मुझे माफ कर दो। मैं तुम्हारी भेड़ें वापस करने को तैयार हूं। मैं वादा करता हूं कि फिर कभी तुम्हें तंग नहीं करूंगा। प्लीज, मुझे बचा लो,’’ -मुरारी गिड़गिड़ा कर बोला।
सुनकर मोहनी को रहम आ गया और उसने पानी डालकर आग बुझा दी। उसकी हिम्मत देखकर मुरारी बुरी तरह डर गया। उसने उसकी सारी भेड़ें वापस कर दीं और फिर कभी पास नहीं फटका।
मुरारी की करतूत जब दादी को पता चली, तो वह ठहाका लगाकर हंस पड़ीं। उन्होनें मोहनी को बहादुरी से काम लेने के लिए शाबाशी दी और गरमा गरम जलेबियां बनाकर खिलाईं।

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writer jamshed azmi,  jamshed azmi writer, poet  jamshed azmi,  jamshed azmi poet, story teller  jamshed azmi,  jamshed azmi story tellerलेखक का परिचय

जमशेद आज़मी

लेखक व् कहानीकार 

25 वर्षों से बाल पत्रिकाओं में कहानी लेखन

चंपक ,  बाल हंस,  बाल भारती,  नंदन,  सुमन सौरभ,  बाल भाष्कर, बच्चों का  देश, शब्द सरिता, आदि

संपर्क – : 15 मोहन पूरा , उरई- 285001

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