आयुष झा आस्तीक की चिन्ता और चिन्तन व् अन्य चार कविताएँ

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 कविताएँ

1. बिलाने लगा है नींद का लोटा

रात के कुंआ से
बिलाने लगा है नींद का लोटा…
जबसे यक़ीन की गाछि से
खसा है हमारे प्रेम का खोता…
चिरई!
अरी किस अंबर में
मेरे हिस्से का अहरा बाँट रही हो?
चंदा!
कहो किस चरखा पर
भ्रम का जनेऊ काट रही हो?
कहो प्रेयसी!
तुम किस चूल्हा पर
देह तुम्हारा ताप रही हो?
क्या उस अंबर के
जमीन पर है चैन की शय्या?
क्या उस चरखा की
नदी में है शौहरत की नैया?
क्या उस चूल्हे की
साइकिल में है
रोटी की पहिया?
लड़की!
क्या तुम भूल कर भी
मुझको कभी भी
बिसार सकोगी?
कहो मिट्ठू!
क्या तुम नून चटा कर
मीठी ख्वाहिशों के नवजात शिशू को
मार सकोगी?
अरी पगली!
तुम नींद में भी
मेरी अनुपस्थिति को
कहाँ स्वीकार सकोगी?
जैसे मैं मेरे ज़ेहन में
महसूसता रहा हूँ,
तुम्हारी उपस्थिती की
खुशबू का झौंका…
है मेरी ज़िंदगी सुपारी,
तुम्हारी स्मृतियां है सरौता…
रात के कुंआ से
बिलाने लगा है नींद का लोटा…
जबसे यक़ीन की गाछि से
खसा है हमारे प्रेम का खोता…

  2 .  सेलीचर

सेलीचर!
तुम्हारी आँखों में
तैरते रहना तय किया था
उस बेबकूफ मछुआरे ने।
तुम्हारे पलकों का झपकना तुम्हारी
रजामंदी थी
जैसे डूब रहा था
इटली का वेनिस शहर ..
सेलीचर!
तुम्हारे आँखों में डूबना,
बाढ में तराबा
द्वीप पर पनाह पाने जैसा था।
पर डूब कर डूब मरना
शायद नियति।
कि जैसे बाढ के नमकीन जल से
तय था
फसलों का बर्बाद होना।
तय था
कीरिबाटी द्वीप पर
दीमकों का स्तूप…
सेलीचर!
तुम्हारा ना-हाँ और फिर
ना कहना।
महज जलवायु परिवर्तन ही कहाँ था?
सब कुछ तो वही था
हाँ था तो वही
वही धूप,
बारीश,
तुम्हारे नाखून,
मेरी देह…
पर एक पल में ही
मायने अलग-अलग।
जैसे दिन को हो
दिन होने पर संदेह ,
रात को रात होने का पश्चाताप।
सेलीचर!
याद करो
उस मासूम मछुवारे को
विदा कहने का ठीक वो वक्त!
जब मेरे हिस्से के प्रेम को
डाल दिया था तुमने
मगरमच्छ की मुंह में…
एक जहाज डूब रहा था,
और पतवार के
गले में था अटका
गफलत की बंसी ..
तुम्हारी बेरूखी
जैसे फिलिपिंस में
हैयान तूफान का हो दस्तक।
सच कहूं तो उस
महासागरीय सैंडी द्वीप का अस्तित्व!
सिर्फ कागज तक ही
कहाँ था सिमीत?
सुनो,
दर्ज करो एकांत में
मेरी उपस्थिति
के होठों पर अपने देह का ताप…
मैं करता हूँ
मौसम बदलने का पुर्वानुमान।
सेलीचर!
डूब जाने दो मुझे
तुम्हारी आँखों मे
बचा लो जहाज को डूबने से…

3. चिन्ता और चिन्तन

चिन्ताजनक यह है
कि चिन्तक नही
बल्कि चिन्तित हो आप…
चिन्तक हो सकने की
प्रथम शर्त है चिन्तामुक्त होना।
है चिन्ता
वक्त की खल्ली से
श्यामपट्ट पर
भूख लिख कर
प्राण फूंकने की प्रक्रिया…
अनिश्चित आकार,
अनिश्चित परिमाण वाली भूख।
यह भूख कुछ पाने की हो
या कुछ खोने की चाह…
पर कितना पाना है?
क्या-क्या खोना है?
महज़ यह नदी में फेका गया
कोई जाल है।
या हवा में
उछाला गया कोई पत्थर…
क्यूंकि रंग,रूप,गंध
कुछ भी निश्चित है कहाँ?
बस निश्चित यह है
कि भूख
ठीक हवा की तरह ही
छेकती है जगह…
है चिन्तन
किसी मखमली रूमाल के
डस्टर से
भूख की खल्ली को
सठा कर
चंदन लेपने की स्वतः प्रक्रिया…

4. मृत्यु

मृत्यु,
अनिश्चितकालीन अज्ञातवास का
प्रारंभ बिंदु है।
और समय,
गंधार नरेश कपटी शकुनी
जो फेंकता रहता है पासा।
है परिस्थिती से हारना
आत्महत्या की असफल कोशिश!
पर समय के समक्ष घुटने टेकना
अज्ञात वास की स्वीकृति है।
इनसान मरता नही है
मरने के बाद भी…
कभी
रहस्यमयी कंदराओं में
तो कभी
बर्फीली चट्टानों पर
खानाबदोश की तरह।
सफर करता रहता है
पसीने से लथपथ
बटोही की तरह!
बाट ( अज्ञात वास ) के
अंतीम छोर पर
पहूँचने के लिए व्याकुल…
” लगभग ” असंभव ही होता है
बाट के छोर का मिलना!
” लगभग ” असंभव ही होता है
अज्ञातवास का खत्म होना।
इसी ” लगभग ” शब्द की नाभी में
विद्यमान है
पुनर्जन्म का रहस्य…

5. यह कौन सा प्रदेश है

चलो,
रूको सेनापति!
कहो यह कौन सा प्रदेश है?
मगध अवध हस्तिनापूर
मिथिला,अंग या कलिंग?
विजय-पराजय की
चिन्ता से मुक्त,
रथ हाँकता चल सारथी।
समय,
परशुराम का है शाप।
हर पाप है पुण्य,
हर पुण्य है पाप।
हर कवच-कुडंल विहिन कर्ण को
दान-पुण्य ने दिया है मात…
है पूर्वाग्रह
शिव का धनुष!
जो तोड़ता वही राम है।
पर कहाँ है राम?
कहाँ जानकी?
अयोध्या से मिथिला तक,
हूँ भटक-भटक कर
थक कर चूर।
है स्वयंवर में,
विडंबनाओं की फौज।
यह वक्त घोर अभिशप्त है…
चुप कोलंबस,
लुप्त वास्कोडिगामा,
चाह खोज की विरक्त है।
पूर्वाग्रह सशक्त है।
यह वक्त घोर अभिशप्त है…
चलो,
रूको सेनापति!
यह कौन सा प्रदेश है?
गदहे/खच्चर हिनहिना रहे,
घोड़े, अस्तबल में गोबरा रहे।
अरे इन भेड़ियों की चाल देख,
कि भेड़/ बकरियों को जाल में फँसा रहे…
प्रजा कपोत की तरह
फुसफुसा रही है खोप से।
शिवीर/जुलूस/धरना व्यर्थ
क्यूंकि है सब स्वार्थ के प्रकोप से…
चलो,
रूको सेनापति!
कहो यह कौन सा प्रदेश है?
मगध,अवध,हस्तिनापूर
मिथिला,अंग या कलिंग?
विजय-पराजय की
चिन्ता से मुक्त
रथ हाँकता चल सारथी…

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poet-aayush-jha-astikpoet-ayush-jha-aastik-ayush-jha-astiks-poem-187x300परिचय – :

आयुष झा आस्तीक

लेखक व् कवि

यांत्रिकी अभियंता –  नोयडा सेक्टर

 सम्पर्क -:मो नं- 8743858912

ई मेल  – : ashurocksiitt@gmail.com

 स्थायी निवास- ग्राम-रामपुर आदि , पोष्ट- भरगामा, जिला-अररिया ,  पिन -854334

वर्तमान पता- एकता नगर, मलाड ( मुंबई )

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