अरुण तिवारी की कविताएँ

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कविताएँ

1. मकां बनते गांव

झोपङी, शहर हो गई,
जिंदगी, दोपहर हो गई,
मकां बङे हो गये,
फिर दिल क्यांे छोटे हुए ?
हवेली अरमां हुई,
फिर सूनसान हुई,
अंत में जाकर
झगङे का सामान हो गई।
जेबें कुछ हैं बढी
मेहमां की खातिर
फिर भी टोटे हो गये,
यूं हम कुछ
छोटे हो गये।
हा! ये कैसे हुआ ?
सोचो, क्यूं हो गया ??
अलाव साझे थे जो
मन के बाजे थे जो
बाहर जलते रहे
प्रेमरस फलते रहे
क्यूं अब भीतर जले ?
मन क्यूं न्यारे हुए ?
चारदीवारी में कैद क्यूं
अब दुआरे हुए ?
आबरु, अब सुरक्षित घर में नहीं
अस्मत, बेचारी
गल्ली गल है बिकी,
हा! ये कैसे हुआ ?
सोचो, क्यूं हो गया ??

2. . विकृत होते प्रकृति संबंध

’हम’ को हटा
पहले ’मैं’ आ डटा
फिर तालाब लुटे
औ जंगल कटे,
नीलगायों के ठिकाने भी
’मैं’ खा गया।
गलती मेरी रही
मैं ही दोषी मगर
फिर क्यूं हिकारत के
निशाने पे वो आ गई ?
हा! ये कैसे हुआ ?
सोचो, क्यूं हो गया ??
घोसले घर से बाहर
फिंके ही फिंके,
धरती मशीं हो गई
गौ, व्यापार हो गई,
बछङा, ब्याज सही,
नदियां, लाश सही,
तिजोरी खास हो गई।
सुपने बङे हो गये
पेट मोटे हुए,
दिल के छोटे हुए,
दिमाग के हम
क्यंू खूब हम खोटे हुए ?
हा! ये कैसे हुआ ?
सोचो, क्यूं हो गया ??

3.  व्यापार बनती शिक्षा

शिक्षा, बाजार हुई
मास्टरी, व्यापार हुई
विद्यार्थी, ग्राहक हुआ
ज्ञान, अंक हो गया
विश्व गुरु का नारा
भजन-भोजन हमारा
सब ’जंक’ हो गया
महाशक्ति का सपना
क्यूं रंक हो गया ?
हा! ये कैसे हुआ ?
सोचो, क्यूं हो गया ??
आचार्य के आचार पर
क्यूं छाई छई ?
धर्म, गोरु हुआ,
पैसा, जोरू हुआ
स्ंातान, पापा की
नजरों की पैकेज हुई
हा! ये कैसे हुआ ?
सोचो, क्यूं हो गया ?

4. प्रतीक्षा करता सवाल

कुछ कर न सको गर
जुबां तो ये खोलो
ऐ मेरे देश बोलो..
मेरे देश बोलो
कब तक सहोगे
ये दर्द-ए-मंजर ?
कब तक रहोगे
दिल मेरे मौन तुम ??
अब न कुछ तुम सहो,
दिल को खोलो.. कहो,
हा! ये कैसे हुआ ?
सोचो, क्यूं हो गया ??

…………………………

arun-tiwariaruntiwariअरूण-तिवारी112परिचय -:

अरुण तिवारी

लेखक ,वरिष्ट पत्रकार व् सामजिक कार्यकर्ता

1989 में बतौर प्रशिक्षु पत्रकार दिल्ली प्रेस प्रकाशन में नौकरी के बाद चौथी दुनिया साप्ताहिक, दैनिक जागरण- दिल्ली, समय सूत्रधार पाक्षिक में क्रमशः उपसंपादक, वरिष्ठ उपसंपादक कार्य। जनसत्ता, दैनिक जागरण, हिंदुस्तान, अमर उजाला, नई दुनिया, सहारा समय, चौथी दुनिया, समय सूत्रधार, कुरुक्षेत्र और माया के अतिरिक्त कई सामाजिक पत्रिकाओं में रिपोर्ट लेख, फीचर आदि प्रकाशित।

1986 से आकाशवाणी, दिल्ली के युववाणी कार्यक्रम से स्वतंत्र लेखन व पत्रकारिता की शुरुआत। नाटक कलाकार के रूप में मान्य। 1988 से 1995 तक आकाशवाणी के विदेश प्रसारण प्रभाग, विविध भारती एवं राष्ट्रीय प्रसारण सेवा से बतौर हिंदी उद्घोषक एवं प्रस्तोता जुड़ाव।

इस दौरान मनभावन, महफिल, इधर-उधर, विविधा, इस सप्ताह, भारतवाणी, भारत दर्शन तथा कई अन्य महत्वपूर्ण ओ बी व फीचर कार्यक्रमों की प्रस्तुति। श्रोता अनुसंधान एकांश हेतु रिकार्डिंग पर आधारित सर्वेक्षण। कालांतर में राष्ट्रीय वार्ता, सामयिकी, उद्योग पत्रिका के अलावा निजी निर्माता द्वारा निर्मित अग्निलहरी जैसे महत्वपूर्ण कार्यक्रमों के जरिए समय-समय पर आकाशवाणी से जुड़ाव।

1991 से 1992 दूरदर्शन, दिल्ली के समाचार प्रसारण प्रभाग में अस्थायी तौर संपादकीय सहायक कार्य। कई महत्वपूर्ण वृतचित्रों हेतु शोध एवं आलेख। 1993 से निजी निर्माताओं व चैनलों हेतु 500 से अधिक कार्यक्रमों में निर्माण/ निर्देशन/ शोध/ आलेख/ संवाद/ रिपोर्टिंग अथवा स्वर। परशेप्शन, यूथ पल्स, एचिवर्स, एक दुनी दो, जन गण मन, यह हुई न बात, स्वयंसिद्धा, परिवर्तन, एक कहानी पत्ता बोले तथा झूठा सच जैसे कई श्रृंखलाबद्ध कार्यक्रम। साक्षरता, महिला सबलता, ग्रामीण विकास, पानी, पर्यावरण, बागवानी, आदिवासी संस्कृति एवं विकास विषय आधारित फिल्मों के अलावा कई राजनैतिक अभियानों हेतु सघन लेखन। 1998 से मीडियामैन सर्विसेज नामक निजी प्रोडक्शन हाउस की स्थापना कर विविध कार्य।

संपर्क -:
ग्राम- पूरे सीताराम तिवारी, पो. महमदपुर, अमेठी,  जिला- सी एस एम नगर, उत्तर प्रदेश
डाक पताः 146, सुंदर ब्लॉक, शकरपुर, दिल्ली- 92
Email:- amethiarun@gmail.com . फोन संपर्क: 09868793799/7376199844

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