सावधान ! शायद आप सेल्फिशनेस की चपेट में हैं ?

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– शालिनी तिवारी – 

स्व-जागृति :

shalini-tiwariबीती सदियों में जब इंसान सार्थक ज्ञान के सन्निकट पहुँच जाता था तो वह संसारिक झंझावातों से दूर हटकर स्वयं में लीन हो जाता था । जिसे सनातन धर्म में समाधि, जैन धर्म में कैवल्य और बौद्ध धर्म में निर्वाण कहा जाता है । मुख्यतः यह योग का अन्तिम पड़ाव होता है जिसमें इंसान परम-जागृत यानी परम-स्थिर हो जाता है । इसे हम आधुनिक भाषा में परम स्वतंत्र अतिमानव या सुपरमैन भी कहते हैं । संस्कृत में भी कहा गया है –

“तदेवार्थ मात्र निर्भासं स्वरूप शून्यमिव समाधि।।
न गंध न रसं रूपं न च स्पर्श न नि:स्वनम्।
नात्मानं न परस्यं च योगी युक्त: समाधिना।।”

आशय यह है कि ध्यान का अभ्यास करते- करते साधक ऐसी अवस्था में पहुँच जाता है कि उसे स्वयं का ज्ञान नहीं रह जाता और केवल ध्येय मात्र रह जाता है, तो उस अवस्था को समाधि कहते हैं।

आत्म-केन्द्रियता का आधुनिक रूप है सेल्फी :

दौर बदला, आज हम इंसानों ने स्व-जागृति की परिभाषा ही बदल ड़ाली । हम स्वयं से इतने सन्निकट हो गए कि हमारी समूची आत्म-केन्द्रियता महज हमारे बाहरी आवरण पर आ टिकी । यह सिलसिला इतने पर ही नहीं थमा, इस जमाने की अत्याधुनिकता ने हमारी आत्म-केन्द्रियता को सिर्फ और सिर्फ लुभावनें चेहरे पर केन्द्रित कर दिया और इसी थोथी आत्म-केन्द्रियता को ही हमारे समाज नें “सेल्फी” का नाम दे दिया ।

संकुचित हो रही सोच ही मूल वजह :

पहले हमने अध्यात्मिक ज्ञान को अपनाकर “बसुधैव कुटुम्बकम्” माना, यानी समूची धरा को अपना माना । कालान्तर में धीरे धीरे हमारी सोच राष्ट्र, समाज, परिवार, एकल परिवार और अब स्वयं तक सिमट गई । आज तो हम अन्धी आधुनिकता की लोलुपता में इतने मशगूल हो गए हैं कि हमारी सोच सिर्फ और सिर्फ हम तक ही सिमट गई । दौर सेल्फी का चला तो हम सेल्फी की जद् में आकर इतने सेल्फिस हुए कि हमारी स्वयं को अच्छा दिखाने की चाहत ने प्रभुप्रदत्त रूप को ही बदलना शुरू कर दिया । हेयर इस्टाइल, प्लास्टिक सर्जरी, रंगीन जुल्फें अन्य अन्य तरीके अपनाकर चेहरे पर कुछ पल के लिए बनावटी मुस्कान भी लाने लगे ।
खैर सार्थक ज्ञान से परे लोगो के लिए यह बिल्कुल समाधि जैसी ही है । सेल्फी की सनक में समय, जगह और स्वयं तक को भूल गए । चलती ट्रेनों, पहाड़ की ऊँची ऊँची चोटियों, गगन चुम्बी इमारतों व अन्य जोखिम भरे स्थानों पर स्वयं को कैमरों में कैद करने लगे । नतीजा भी साफ दिखने लगा, आए दिन सेल्फी मौत का कारण बनती जा रही है । सेल्फिशनेस इस कदर बढ़ी कि पहले हम एक दूसरे के दिलों और विचारों के करीब होते थे मगर अब तो लोग महज एक दूसरों के चेहरों के करीब होने लगे, कन्धों की तरफ झुकने लगे और खूबसूरत दिखने की लत में झूठी मुस्कान भी चेहरे पर सजाने लगे ।

“सेल्फीटिस” आज का नया रोग :

अमेरिकन साइकेट्रिक एसोसिएशन के मुताबिक, अगर आप दिन में तीन से ज्यादा सेल्फी लेते हैं तो यकीनन आप मानसिक रूप से बीमार हैं और इस बीमारी को सेल्फीटिस का नाम दिया । वास्तव में यह उस बीमारी का नाम है  जिसमें व्यक्ति पागलपन की हद तक अपनी फोटो लेने लगता है और उसे सोशल मीड़िया पर पोस्ट करने लगता है । इतना ही नहीं, ऐसा करने से धीरे धीरे उसका आत्मविस्वास कम होने लगता है, निजता पूरी तरह से भंग हो जाती है और वह एंजाइटी का इस कदर  शिकार हो जाता है कि आत्महत्या करने की सोचने लगता है ।

विशेषज्ञों की राय पर एक नजर :

शोधकर्ताओं की माने तो जरूरत से ज्यादा सेल्फी लेने की चाहत “बॉड़ी ड़िस्मॉर्फिक ड़िसऑर्ड़र” नाम की बीमारी को जन्म दे सकती है । इस बीमारी से लोगों को एहसास होने लगता है कि वो अच्छे नहीं दिखते हैं । कॉस्मेटिक सर्जन का भी यही कहना है कि सेल्फी के दौर ने कॉस्मेटिक सर्जरी कराने वालों की सँख्या में जोरदार इजाफ़ा किया है, जो बेहद चिन्तनीय है ।

 
हैरान करने वाले सच :

ऑक्सफोर्ड़ के मुताबिक, सेल्फी शब्द साल 2013 में अंग्रेजी भाषा के अन्य शब्दों की तुलना में 1700 बार ज्यादा इस्तेमाल किया गया । जब सेल्फी शब्द सुर्खियों में आया तो ऑक्सफोर्ड़ ड़िक्सनरी की सम्पादकीय प्रमुख जूरी पियरसल ने यह भी कहा कि फोटो शेयरिंग वेबसाइट फ्लिकर्स द्वारा साल 2004 से ही सेल्फी को हैशटैग के साथ इस्तेमाल किया जाता रहा है । मगर साल 2012 तक इसका इस्तेमाल बहुत नहीं हुआ था ।
टाइम मैगजीन ने सेल्फी स्टिक को साल 2014 का सबसे बढ़िया आविस्कार बताया था । अप्रैल 2015 में समाचार एजेंसी पी टी आई की एक खबर के मुताबिक सेल्फी स्टिक का आविस्कार 1980 के दशक में हुआ था । यूरोप की यात्रा पर गए एक जापानी फोटोग्राफर ने इस तरकीब को जन्म दिया । वो अपनी पत्नी के साथ किसी भी फोटो में आ ही नही पाते थे । एक बार उसने अपना कैमरा किसी बच्चे को दिया और वो लेकर भाग गया । इस दर्द ने एक्सटेंड़र स्टिक का जन्म दिया, जिसका साल 1983 में पेटेंट कराया गया और आज के दौर में इसे सेल्फी स्टिक कहा जाने लगा ।

आपको अब गुनना ही होगा :

बदलाव के दहलीज पर खड़े हम सब कहीं इस कदर न बदल जाए कि जब हमें वास्तविकता का पता चले तो वापस भी न लौट सकें । हमें अपने वर्तमान और भविष्य को सँजोनें के लिए दूरदर्शिता की दरकार है । हमें अपने साथ साथ दूसरों को जागरूक करना ही होगा, क्योंकि जब तक समाज का अन्तिम जन रोजमर्रा की समस्याओं से वाकिफ़ नहीं होगा तब तक हम एक सुदृढ़, समृद्ध राष्ट्र का निर्माण नहीं कर सकते । इसलिए सेल्फी की संक्रामकता से हमें स्वयं को बचाना बेहद जरूरी हैं, वरना परिणाम तो दुख:दायी ही होगा ।

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shalini tiwari परिचय -:

शालिनी तिवारी

स्वतंत्र लेखिका

“अन्तू, प्रतापगढ़, उत्तर प्रदेश की निवासिनी शालिनी तिवारी स्वतंत्र लेखिका हैं । पानी, प्रकृति एवं समसामयिक मसलों पर स्वतंत्र लेखन के साथ साथ वर्षो से मूल्यपरक शिक्षा हेतु विशेष अभियान का संचालन भी करती है । लेखिका द्वारा समाज के अन्तिम जन के बेहतरीकरण एवं जन जागरूकता के लिए हर सम्भव प्रयास सतत् जारी है ।”

सम्पर्क : shalinitiwari1129@gmail.com

Disclaimer : The views expressed by the author in this feature are entirely her own and do not necessarily reflect the views of INVC NEWS.

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