अनीता मौर्या ‘अनुश्री’ की पाँच कविताएँ

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अनीता मौर्या ‘अनुश्री’ की पाँच कविताएँ 

(1) इश्क़

इक पल को मेरी आँख में मंजर ठहर गया
लो इश्क़ आज हुस्न के दिल में उतर गया,

कहता था मैकदे में भी बुझती नहीं है अब,
वो तिश्नगी अजब लिए जाने किधर गया

मुद्दत से जिसका रास्ता तकती रही थी मैं,
लम्हा हमारे प्यार का पल में गुजर गया,

इक रोज हर लहर ने दिया साथ छोड़ जब,
खुद पर था जिसको नाज़ समन्दर वो मर गया..

बन कर के सारे जख़्म का मेरे इलाज़ वो,
खुशियाँ तमाम आज मेरे नाम कर गया….

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(2) प्यार का रंग

तीर दिल में उतर गया कोई,
टूट कर फिर बिखर गया कोई,

रंग सारे जहाँ के फीके हुए,
प्यार में यूँ निखर गया कोई,

मेरी चाहत को अलविदा कह कर,
चुप सी होठों पे धर गया कोई,

ख़्वाहिशों के अजब लगे मेले,
जिन्दगी खर्च कर गया कोई,

आशिक़ी का सिला मिला मुझको,
दर्द आँखों में भर गया कोई …

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(3)न मिलन , न बिछोह

मेरे ‘तुम’
तमाम प्रयासों के बाद भी
नहीं मार पायी
हृदय में जन्मा प्रेम,
खींच निकालना चाहा बाहर,
कुचलना चाहा
‘मैं’ तले,
‘असफल’ रही,
स्वीकारती हूँ,
नियति ने रच रखा है हमें
पृथक संसार के लिए,
‘सच’,
कुछ भी तय नहीं होता,
न मिलन , न बिछोह।
हम फिर – फिर मिलेंगे,
फिर – फिर बिछड़ेंगे,
अनेक बिम्बों में ढलते हुए,
यह क्रम, चलता रहेगा,
अनन्तकाल तक ….

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(4) रफ़ूगर

‘तुम’
बढ़ जाना आगे,
अपने सपनों,
अपनी सम्पूर्णता की तलाश में,
वो अपने अधूरेपन के
साथ स्थिर हो जाना चाहती है,
तुम्हारे प्रेम में,
उसे नहीं लौटना है पीछे,
और न ही आगे बढ़ने की
तमन्ना है,
‘हाँ’
वो गुम जाना चाहती है,
अपने एकाकीपन के साथ,
कि फिर कोई संगीत,
उसे सुनाई न दे ,
उसे नहीं बुनना कोई खुशियों भरा गीत,
वो काट देना चाहती है रातें,
‘चाँद’ के साथ,
जो सवाल नहीं करता,
बस ‘चुप’ सुनता है,
‘चुप’ कहता है,
उतार लेना चाहती है तुम्हें
आँसुओं की एक- एक बूँद में,
ये जो आसमान ने,
समेट रखे हैं न,
चाँद, सितारे, अपने बाहुपाश में,
वो भी समेट लेना चाहती है
‘मन’
छुपा लेना चाहती है,
जगह – जगह से उधड़ा हुआ ‘मन’,
दिल के किसी कोने में,
उसे पता है,
उसकी उधड़न रफू करने वाला,
रफ़ूगर नहीं लौटने वाला …..

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(5)  जिन्दगी की रेल

जिन्दगी की रेल
सरपट दौड़ती जा रही है,
वो उचक – उचक कर
खिड़की से निहारती है,
पीछे छूटता बचपन,
घर का आँगन,
यौवन की दहलीज़ का
पहला सावन,
पहले प्यार की खुशबू,
उन दिनों के
मौसम का जादू
जो अक्सर सर चढ़ कर बोलता था।
और भी बहुत कुछ
देखना चाहती थी वो,
अपना आसमान छू
लेने का सपना,
चाँद – सितारों को
मुट्ठी में भर लेने का सपना,
लेकिन रेल की तेज रफ़्तार ने
सब धुंधला कर दिया,
धीरे – धीरे छूट गया सब।
समझने लगी है वो,
ख़ाक हो जाना है उसे
यूँ ही
स्वयं में स्वयं को तलाशते हुए,
जल जाना है
अपनी ही प्यास की आग में
‘एक दिन’ …..

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anitamauryaanushree,anitamauryaपरिचय – : 

अनीता मौर्या ‘अनुश्री’

लेखिका व् कवयित्री 

शिक्षा – स्नातक, पूर्वांचल यूनिवर्सिटी (दर्शनशास्त्र)

प्रकाशन –विभिन्न ई- पत्रिकाओं और समाचार पत्रों में कविताएँ प्रकाशित

सम्मान – रोटरी क्लब उन्नाव सेंट्रल द्वारा ‘विभा पाण्डेय स्मृति सम्मान’ २०१३ से सम्मानित
लायंस क्लब द्वारा ‘कवियत्री सम्मान’ २०१३ से सम्मानित तथा 2014 में ‘मानस संगम’ कानपुर द्वारा प्राप्त, ‘मानस गौरव’ से सम्मानित, ‘अमर उजाला द्वारा आयोजित ‘अमर वाणी – 2015’ में सांत्वना पुरस्कार प्राप्त   व विभिन्न राष्ट्रीय संस्थाओं द्वारा अनेक सम्मान ..

प्रसारण – आकाशवाणी से
सम्प्रति – स्वतंत्र लेखन
निवास – कानपुर
पुस्तक का नाम – ‘काव्य उपवन’ संपादक : भुवनेश सिंघल ‘भुवन’ (२५ रचनाकारों का संयुक्त काव्य संग्रह)

ईमेल – anitaayushi@gmail.com

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