दिल्ली से ‘विजेता’ बनकर यूँ ही नहीं लौटे ‘आंदोलनजीवी ‘

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–  तनवीर जाफ़री – 

 
कृषि प्रधान देश भारत में किसानों के आंदोलनों का वैसे तो लंबा इतिहास रहा है। परन्तु एक वर्ष तक चलने के बाद पिछले दिनों समाप्त हुआ किसान आंदोलन पूरे विश्व में चर्चा का विषय बना। संयुक्त किसान मोर्चा द्वारा संचालित यह किसान आंदोलन निश्चित रूप से स्वतंत्र भारत के इतिहास का सबसे चुनौतीपूर्ण आंदोलन था। इसमें एक और केंद्र की पूर्ण बहुमत प्राप्त सत्ता थी। उसके समर्थन में भाजपा शासित राज्य सरकारें थीं। मुख्य धारा का ‘गोदी मीडिया ‘ खुलकर तीनों विवादित कृषि क़ानूनों व सरकार का पक्ष ले रहा था। इन सबके पीछे देश के जाने माने उद्योगपति खड़े थे। लगभग पूरा केंद्रीय मंत्रिमंडल अपने मंत्रालय के काम काज छोड़ ‘लेखक’ बनकर संपादकीय पृष्ठों पर काले कृषि क़ानूनों के हक़ में आलेख लिखकर अपने ‘आक़ा ‘ को ख़ुश करने में लगा था। सरकार द्वारा अरबों रूपये के विज्ञापन पूरे देश के समाचार पत्रों के मुख्य पृष्ठ पर एक दो नहीं बल्कि कई कई बार प्रकाशित कराये गये जिसमें सरकार द्वारा तीनों कृषि क़ानूनों को किसानों का हितैषी क़ानून बताया जाता था। स्वयं प्रधानमंत्री ने संसद में इन्हीं किसान नेताओं को ‘आन्दोलनजीवी’ बताया तो किसी मंत्री ने ‘आन्दोलनजीवी’ से भी एक क़दम आगे बढ़कर आंदोलनकारी किसानों को  ‘मवाली ‘ भी बताया। हरियाणा के मुख्य मंत्री मनोहर लाल खट्टर ने तो अपनी पार्टी से जुड़े किसानों को उकसा कर उन्हें लठ्ठ धारण कर आंदोलनकारी  किसानों का मुक़ाबला करने की बात तक कही । बाक़ी नक्सल,अर्बन नक्सल,ख़ालिस्तानी,विपक्ष के हाथों की कठपुतली,लाल क़िले पर तिरंगे का अपमानकर्ता, विदेशी फ़ण्डिंग से चलने वाला आंदोलन आदि न जाने क्या क्या उपाधियाँ पहले ही दे डाली थीं।
                                                              परन्तु झूठ,अहंकार और साज़िश चूँकि कभी स्थायी विजय नहीं पा सकते। जीत भले ही देर से हो परन्तु अंततोगत्वा जीत सच्चाई,विनम्रता और बलिदान की ही होती है। वही अन्नदाताओं के इस आंदोलन के साथ भी हुआ। ऐसे में यह सवाल ज़रूरी है कि क्या सरकार को इन्हीं ‘आन्दोलनजीवियों ‘ व ‘ख़ालिस्तानियों’, ‘देश विरोधियों’ व ‘मवालियों’ के आगे झुकना पड़ा ? या फिर सरकार ने यह मान लिया कि वास्तव में यह मवाली या ख़ालिस्तानी नहीं बल्कि यह ‘देश का अन्नदाता’ है ? धरनास्थल पर लगभग 700 किसानों की क़ुर्बानी देने के बाद किसानों ने जो जीत हासिल की है,जिस तरह ठिठुरती ठण्ड,बारिश,भयंकर गर्मी के बीच आंदोलनकारी किसानों उनके बुज़ुर्गों व महिलाओं ने दिन रात धरना स्थल पर बैठकर आंदोलनकारियों व सभी आगंतुकों की सेवा सत्कार करते हुये आंदोलन में फ़तेह हासिल की है उसकी दूसरी मिसाल दुनिया में कहीं नहीं मिल सकती।
                                                                        गोदी मीडिया को किसान आंदोलन अराजक,राष्ट्र विरोधी और दिल्ली में लोगों का रास्ता रोके बैठे विपक्षी दलों द्वारा उकसाये जाने वाले मुट्ठी भर किसानों का ही आंदोलन नज़र आया क्योंकि उसकी आँखों पर बेशर्मी का पर्दा पड़ा था। अन्यथा वास्तव में यह आंदोलन कई राज्यों में जगह जगह फैला हुआ था। विपरीत मौसम की परवाह किये बिना पूरे वर्ष किसानों के शिक्षित बच्चे विभिन्न शहरों के मुख्य चौराहों पर सारा दिन खड़े होकर कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ प्रदर्शन करते तथा जनसमर्थन जुटाते। चंडीगढ़ सहित अनेक शहरों में किसानों के परिजन  ‘ No Farmers-No food ‘ की तख़्तियां लेकर रेड लाइट पर खड़े होते और लोगों से अपने वाहनों का हॉर्न बजाकर समर्थन मांगते। यह सिलसिला पूरे वर्ष सैकड़ों शहरों व क़स्बों में चला। परन्तु गोदी मीडिया पर सत्ता की चाटुकारिता का ऐसा नशा सवार था और अभी भी है कि उसे किसानों व उनके परिजनों का यह संघर्ष व क़ुर्बानी कभी नज़र नहीं आयी।      
                                                                      दिल्ली की सीमाओं से किसानों की ‘घर वापसी ‘ की चर्चा वैसे तो 19 नवंबर को प्रधानमंत्री की कृषि क़ानून वापसी की घोषणा के बाद ही शुरू हो गयी थी। परन्तु किसानों ने इसे संसद में वापस लेने व अपनी अन्य मांगें मनवाने की प्रतीक्षा की और 11 दिसंबर को आधिकारिक रूप से सरकार को अपनी मांगों व समझौतों संबंधित कुछ चेतावनियां देकर धरनास्थल से हटने की घोषणा की। जिस तरह दुनिया ने इस आंदोलन की गंभीरता,इसमें शामिल किसानों के जुझारूपन को तथा किसानों की मांगों की गंभीरता को देखा ठीक उसी तरह यह किसान अपनी मांगें मनवाकर दिल्ली की सीमाओं से भी ‘फ़ातेह ‘ अथवा ‘विजेता’ बनकर घर वापस लौटा। जिस धैर्य व साहस से अन्नदाताओं ने एक वर्ष दुःख तकलीफ़ व परेशानियां झेलीं, अपने साथ रोज़ाना दिल्ली द्वार पर बैठकर लाखों ग़रीबों व ज़रूरतमंदों को तीनों समय का भोजन उपलब्ध कराया व तरह तरह के पकवान आम लोगों को बनाकर खिलाये ज़ाहिर है उन लाखों लोगों की दुआएं भी इन अन्नदाताओं के साथ थीं।
                                                                     कृषि क़ानूनों की वापसी के बाद दिल्ली से पंजाब-हरियाणा-राजस्थान-उत्तर प्रदेश की ओर अपने घरों-खेतों की ओर वापस जाने वाले किसानों का सैकड़ों किलोमीटर लंबे रास्तों में जिस तरह पूरे रास्ते आम लोगों ने स्वागत किया वह दृश्य अत्यंत भावुक था। प्रत्येक रास्तों में जगह जगह फूल वर्षा की गयी,ढोल नगाड़े बजे,पूरे रास्ते मिठाइयां बांटी गयीं,कुछ जगहों पर हैलीकॉप्टर से पुष्प वर्षा की गयी। पंजाब के किसान नेताओं की वापसी की ही तरह राकेश टिकैत भी जब ग़ाज़ीपुर बार्डर से आंदोलन समाप्त करने की घोषणा कर वापस गये तो उनका भी एक ‘विजेता’ के रूप में भव्य स्वागत किया गया। जगह जगह आतिशबाज़ियाँ छोड़ी गयीं। ज़ाहिर है यह टिकैत के ‘भावुकतापूर्ण आंसुओं’ की जीत तो थी ही साथ ही उनके इस संकल्प की भी जीत थी जिसमें टिकैत कहा करते थे कि ‘मैं रोटी को पूंजीपतियों की तिजोरी में बंद नहीं होने दूंगा ‘।
                                                                    ज़ाहिर है प्रधानमंत्री ने जिस अंदाज़ में क़ानून वापसी की घोषणा की और क़ानून वापसी की घोषणा में जिन शब्दों का चयन किया उससे भी यह स्पष्ट है कि सरकार अब भी इस बात पर अड़ी है कि क़ानून तो अच्छे थे,किसानों के हित में थे परन्तु सरकार ‘कुछ लोगों को’ समझा नहीं सकी’। यह भी समझ से परे था कि सरकार ने इन ‘किसान हितैषी’ क़ानूनों को वापस लेते समय भी इन पर संसद में चर्चा क्यों नहीं कराई ? ज़ाहिर है पूर्ण बहुमत की अड़ियल व पूंजीपतियों की खुले तौर पर हितैषी यह सरकार जिसने  साम-दाम-दण्ड भेद सभी उपाय किसानों पर आज़मा डाले परन्तु सरकार को आख़िरकार किसानों की एकता व एकजुटता के समक्ष घुटने टेकने ही पड़े। कहना पड़ेगा कि किसान विरोधी  क़ानून वापसी के बाद  दिल्ली से यूँ ही ‘विजेता’ बनकर नहीं लौटे हैं ये ‘आंदोलनजीवी ‘।  
 

About the Author 

Tanveer Jafri

Columnist and Author

Tanveer Jafri, Former Member of Haryana Sahitya Academy (Shasi Parishad),is a writer & columnist based in Haryana, India.He is related with hundreds of most popular daily news papers, magazines & portals in India and abroad. Jafri, Almost writes in the field of communal harmony, world peace, anti communalism, anti terrorism, national integration, national & international politics etc.

He is a devoted social  activist for world peace, unity, integrity & global brotherhood. Thousands articles of the author have been published in different newspapers, websites & news-portals throughout the world. He is also recipient of so many awards in the field of Communal Harmony & other social activities.

Contact – : Email – tjafri1@gmail.com –

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