अमित बैजनाथ गर्ग की कविताएँ

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अमित बैजनाथ गर्ग  की कविताएँ 

जिंदगी मेरी वैसे काम आए
जैसे एक ‘औरत’ की आती है
और मिटे तो हीना की मानिंद
जो पिसकर भी निखर जाती है…
– अमित बैजनाथ गर्ग

हो आलिंगन जब मृत्यु का
चेहरे पर निर्भय का भाव हो
नए साल में हो नव सृजन
जीवन पर ना कोई प्रभाव हो…
– अमित बैजनाथ गर्ग

जब तुम थीं, मैं था और ये जिंदगी थी
न अब तुम हो, न मैं हूं, ना जिंदगी है…
– अमित बैजनाथ गर्ग

न मैं मंदिर में राम ढूंढ़ता हूं
न मस्जिद में रसूल पाता हूं
बख्शी है खुदा ने मुझे नेमत
मैं जिंदगी में उसूल पाता हूं…
– अमित बैजनाथ गर्ग

आंगन में सन्नाटा पसरा है, बच्चे भूखे बैठे हैं
रोती अम्मा सोच रही, मैं कहां से खाना लाऊं
मेहंदी अभी उतरी भी नहीं, उस आधी बेबा की
सोच रही बिन पति, मैं कैसे खुद को सजाऊं
मेरे बच्चे, भाई-बहन, आधा देश भूखा सोएगा
ऐसे में तुम ही बोलो, मैं कैसे नया साल मनाऊं…
– अमित बैजनाथ गर्ग

एक कांधे पर अब मैं रोना चाहता हूं
किसी की आगोश में खोना चाहता हूं
यूं बहुत जी लिया हूं मैं जिंदगी अपनी
अब लंबी-गहरी नींद सोना चाहता हूं…
– अमित बैजनाथ गर्ग

तुम्हें जो लगे, समझना मुझे
जहां रख सको, रखना मुझे
ये वजूद अब मोहताज नहीं
फिर कभी मत परखना मुझे…
– अमित बैजनाथ गर्ग

…और कितने यीशू सूली पर लटकाओगे
खुदा पाकर जिहादियों भला कहां जाओगे
धर्मरक्षा की आड़ में आज दंगे कराने वालों
कल उनमें अपने ही बच्चों के निशां पाओगे…
– अमित बैजनाथ गर्ग

संसद तुम्हारी है, सौदागर भी तुम ही हो
भौंपू भी तुम्हारे हैं, भांड भी तुम ही हो
अपनों को आजाद करो, गैरों को सजा दो
शबाब के इस बाजार में, खरीदार भी तुम हो…
– अमित बैजनाथ गर्ग

प्यार बिक रहा, परिवार बिक रहा
रिश्ते-नाते भी खड़े हैं बाजार में
जेब में हो सिक्कों की खनक तो
सब कुछ मिल रहा है बाजार में…
– अमित बैजनाथ गर्ग

मेरे आंसू तेरी…
मेरे आंसू तेरी मसरूफियत को ना समझे
मैं तुम्हें क्या समझा, तुम मुझे क्या समझे
चंद ख्वाबों में मैंने जिंदगी तमाम सजा दी
ना तुमने मेरे किस्से सुने, ना नगमे समझे…
– अमित बैजनाथ गर्ग

बदल गए तुम, यकीन ना हुआ
इतना प्यार भी, जहीन ना हुआ
मैंने क्या खोया और क्या पाया
कुछ भी तो मुमकिन ना हुआ…
– अमित बैजनाथ गर्ग

करना है मकान खाली, सामान समेटा हुआ है
सुनहरे कल की आस में, आज अटका हुआ है
तुझे पाने की चाहत में, दर-बदर भटका हूं मैं
एक सफे पर मैं, दूजे पर नसीब लेटा हुआ है…
– अमित बैजनाथ गर्ग

चाहे भगवान हो, अपने हों या फिर हो प्यार
चाहत किसी की भी समझना आसान नहीं
जतन लाख कर लिए जाएं इसे-उसे पाने को
मिलना जरूरी नहीं, चलना भी आसान नहीं…
– अमित बैजनाथ गर्ग

बड़ा पुराना रिश्ता है इन गमों से
बिल्कुल वैसे ही, जैसा तुमसे है
जब तुम आई, तब गम चले गए
अब तुम गई, दिल गम के भरोसे है…
– अमित बैजनाथ गर्ग

संवार लूंगा ये बिखरी हुई जिंदगी भी
भले ही आचमन मैं आंसुओं से करूं
अब कोई साथ मिले न मिले, गम नहीं
सीखूंगा जहीनियत, चाहे भटकता फिरूं…
– अमित बैजनाथ गर्ग

रूहानी नाद-अनहद को जानना होगा
खुद को अब फिर से पहचानना होगा
हार-जीत से परे भी है जीवन का सच
समय की दीवारों को लांघना ही होगा…
– अमित बैजनाथ गर्ग

इंतजार तेरा आज भी है इस दिल को
मेरा बहुत कुछ अनकहा ही रह गया
हसरतें लिए कहां भटकता रहूंगा मैं!
जाने से पहले मिलना बाकी रह गया…
– अमित बैजनाथ गर्ग

ये नाथूराम की बे-गैरत औलादें
यूं खुद को वैचारिक बताती हैं
अपने गुनाहों पर अफसोस नहीं
दूसरों पर जमकर आंसू बहाती हैं…
– अमित बैजनाथ गर्ग

संता भी उन गलियों से नहीं गुजरा
गिफ्ट के इंतजार में वे रोकर सो गए
हम लाल टोपियों के लिए झगड़ते रहे
वो बच्चे ठंड में सिकुड़कर मर गए…
– अमित बैजनाथ गर्ग

उनके फैसलों ने लिखी नई ईबारत
जो जीए अटल, सदा रहे अटल
देश उन पर सदा ही फख्र करेगा
यह काव्य अटल सदा अटल रहेगा…
– अमित बैजनाथ गर्ग

मैं जानता हूं एक ऐसी लड़की
जिसमें मौजूद हैं जहीन बातें
खुले मन से कहने की कला
दिल से समर्पण की सौगातें
मैं जानता हूं…
जो नहीं जानती खूबियां अपनी
हंसी उसकी कागुलों की सी बातें
बातों में आधी रात का उनींदापन
चेहरे पर बचपन की कई शरारतें
मैं जानता हूं…
– अमित बैजनाथ गर्ग

कभी-कभी मैं सोचता हूं
कि गर ये गम ना होते तो
…और तुम भी ना होते तो
मैं खुद को कैसे समझता
ना अपने पाता, न गैर होते
पल-पल यूं ही भटकता रहता
तुमसे मिलकर गर ना बिछड़ता
ना टूटता-बिखरता, न ही संवरता…
– अमित बैजनाथ गर्ग

उम्मीदों का दामन तो पहले ही छोटा था
तुमसे मिलने के बाद ज्यादा सिकुड़ गया
जो दर्द मिले, मैं अनुभव समझता गया
सीखता गया और आगे बढ़ता चला गया…
– अमित बैजनाथ गर्ग

ये हिंदुत्व पर नहीं टिकते, उनका ईमान गायब है
सब कुछ दिख जाएगा यहां, पर इंसान गायब है
लाकर थोड़ी सी शर्म इनकी आंखों में भर दे कोई
यूं तो नस्लें आदम की हैं, पर इंसानियत गायब है…
– अमित बैजनाथ गर्ग

यूं अब आहटों का दौर नजर नहीं आता
कमबख्त इस दिल को कुछ नहीं भाता
वो समां सुहाना था, बहार और ही थी
अब वो भी नहीं आती, मैं भी नहीं जाता…
– अमित बैजनाथ गर्ग

गर मैं हार गया हूं तो हारा ही सही
तुम अपनी उम्मीदें जिंदा रहने दो
मेरी जिंदगी यूं लाख अंधेरों में सही
तुम अपने सपनों को रोशन रहने दो
आज गम हैं, कल और ज्यादा होंगे
फिर भी जिंदगी हार-जीत में बहने दो…
– अमित बैजनाथ गर्ग

देखो, मां पाकिस्तान की रो रही है
मां मेरे हिंदुस्तान की भी रो रही है
ऐसे जिहाद से अल्लाह नहीं मिलता
मौला! मां इस जहान की रो रही है…
– अमित बैजनाथ गर्ग

हम हमेशा दु:खी होंगे ऐसे हमलों पर
क्योंकि हम कोई और नहीं हिंदुस्तान हैं
जो खुदा बनना चाहते हैं, बनते फिरें
कल हमारे दर्द में भी हम इंसान थे
आज तुम्हारे जख्मों में भी हम इंसान हैं…
– अमित बैजनाथ गर्ग

बस्तों से यूं खून रिस रहा है
बच्चों में दहशत का साया है
कोई तो महफूज रख लो इन्हें
उनींदा बचपन अलसाया सा है…
– अमित बैजनाथ गर्ग

आवाज मत करो, देश सोया हुआ है
भूखे पेट ही सपनों में खोया हुआ है
सांसों से जरूरी यहां मंदिर-मस्जिद हैं
‘संस्कृति महान’ का राग रोया हुआ है…
– अमित बैजनाथ गर्ग

क्या था मैं और तुमने मुझे क्या बना डाला
मुझ हंसते-खेलते को पल-पल रुला डाला
तुमसे तो अच्छी हैं तवायफों की रवायतें
तुमने नफरत से गुलिस्तां भी जला डाला…
– अमित बैजनाथ गर्ग

मैं रहूं न रहूं, अब कुछ बाकी हो ना हो
लबों पर लाली, हाथों में यूं मेहंदी खिले
इस महफिल में मेरा बसर अब ना सही
मैं कफन में हूं, तुझको रोशन सवेरा मिले…
– अमित बैजनाथ गर्ग

कभी तो मेरा समर्पण भी पढ़ लिया होता
एक मिसरा मेरे लिए भी गढ़ लिया होता
मैंने तुम्हारा हर रंग अपनी जिंदगी में घोला
काश! तुमने मेरा एक ही रंग भर लिया होता…
– अमित बैजनाथ गर्ग

कुछ दिशा हम चुनते हैं
कुछ दिशाएं हमें चुनती हैं
उनींदी सी जिंदगी यूं ही
हंसती-उछलती-मचलती है…
– अमित बैजनाथ गर्ग

दिल में दबी सी आंच बुझने वाली है
बिछड़ी हुई वो राह मिलने वाली है
सिला इंतजार का बाकी ही नहीं रहा
सांसें तमाम अब थमने ही वाली है…
– अमित बैजनाथ गर्ग

जिन्होंने स्वीकारा हंसते-हंसते डूब जाना
उन्हें, कोई दरिया-समंदर से क्या उबारेगा!
जो अपनों के फरेब से मर गए जीते-जी
उन्हें क्या कोई हराएगा, क्या कोई मारेगा!
– अमित बैजनाथ गर्ग

क्या तुझसे शिकायत रखूं, क्या शिकवा करूं
कौन-कौन सा गम, अब मैं तुझसे साझा करूं
मैं अपनों से भरी भीड़ में, अनजाना सा ही रहा
अब जिंदगी को जिंदगी कहूं, या कुछ ना करूं!
– अमित बैजनाथ गर्ग

दिल में दबी बात अब जुबां पर लाएं
जिसे जो चाहिए, उसे मयस्सर कराएं
गुलों में एक बार फिर भर दें साझा रंग
यूं ही खुद को बेवजह मुकम्मल बनाएं…
– अमित बैजनाथ गर्ग

जो काम इंसानों ने नहीं किया
वो अब शायद पत्थर कर जाएंगे
गीत जो तुम्हारे लब ना गा सके
शब्द मेरे होंगे, पर पत्थर गाएंगे…
– अमित बैजनाथ गर्ग

उतारो ये मुखौटे, असली चेहरा दिखाओ
गांधी के खून से सने हाथों को बताओ
तुमने, जो बांटी है सियासत इतने रंगों में
जरा एक रंग इंसानियत का भी मिलाओ…
– अमित बैजनाथ गर्ग

बैसाखियों के सहारे रेंगते धर्म
उस पर भी संस्कारों का खांचा
जीते-जी इंसानों को तिलांजलि
प्यार पर भारी पत्थरों का ढांचा…
– अमित बैजनाथ गर्ग

बच्चे भूख से बिलखते मर गए
56 भोग से निवाला नहीं मिला
सकीना की इज्जत लुटती ही रही
चादरों से एक टुकड़ा नहीं मिला
मंदिर-मस्जिद से बचेगी संस्कृति!
जीते इंसानों से नहीं कोई सिला…
– अमित बैजनाथ गर्ग

नए नजरिए से कश्मीर देखें…
शिकारे में बैठकर अमन की दुआ मांगें
दिलों में जलती नफरत की शमशीर फेंकें
लाल किले की प्राचीर पर खड़े होकर
आइए, हम नए नजरिए से कश्मीर देखें…
– अमित बैजनाथ गर्ग

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अमित बैजनाथ गर्ग
कवि. लेखक. गीतकार. पत्रकार. प्रेस सलाहकार

कुछ मेरे बारे में : पेशे से कवि, लेखक, गीतकार, पत्रकार और प्रेस सलाहकार. अलवर कॉलेज से ग्रेजुएशन, माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विवि., भोपाल से पत्रकारिता एवं जनसंचार में ग्रेजुएशन, राजस्थान विवि. से पत्रकारिता एवं जनसंचार तथा हिंदी साहित्य में पोस्ट ग्रेजुएशन. राजस्थान पत्रिका, जयपुर से कॅरियर का आगाज. फिर बेंगलूरु, कर्नाटक में दो साल तक पत्रकारिता-लेखन. सुनहरा राजस्थान, डेकोर इंडिया, दैनिक लोकदशा, राजस्थान डायरी व खुशखबर पोस्ट के जरिए एडिटिंग और फीचर एडिटर तक का सफर. एक पुस्तक काव्य संग्रह ‘खामोश सहर’ प्रकाशित. पीआर कैंपेन और प्रेस एडवाइजिंग के साथ बतौर फ्रीलांसर विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं, शख्सियतों, राजनीतिज्ञों, समूह-संस्थाओं के लिए स्पीच, आर्टिकल, क्रिएटिव एड और स्लोगंस लिखने तथा अनुवाद करने का काम जारी

09680871446, 07877070861 , ई-मेल : amitbaijnathgarg@gmail.com

1 COMMENT

  1. शानदार कविताएँ ,पढ़ने के बाद काफी देर तक विचार मग्न होना पढ़ा !

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