इलाहाबाद उच्च न्यायालय के शिक्षा संबंधी फैसले की पूरे देश को ज़रूरत

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–   तनवीर जाफऱी –

2,हमारे देश की लगभग सभी सरकारें व सभी राजनैतिक दलों के नेता प्राय: गला फाड़-फाड़ कर यह चीख़ते-चिल्लाते दिखाई देते हैं कि ‘हमारे देश के बच्चों को शिक्षा के समान अवसर मिलने चाहिए तथा सभी को शिक्षा का समान अधिकार होना चाहिए’। परंतु ऐसी लोकलुभावनी बातें करने वाले देश के किसी भी नेता का बच्चा या उसके परिवार का कोई भी सदस्य देश के किसी भी सरकारी स्कूल में पढ़ता नज़र नहीं आएगा। समान शिक्षा की बातें करने वाले हमारे देश के ढोंगी नेता तथा उनके मददगार नीति निर्माता सरकारी अधिकारी अधिकांशत: अपने बच्चों को व अपने नाती-पोतों,भतीजों व भांजे-भांजियों को बड़े से बड़े व मंहगे से मंहगे स्कूलों में दािखला कराते नज़र आएंगे। कई तथाकथित राष्ट्रभक्त तो ऐसे भी मिलेंगे जिनके बच्चे विदेशों में स्कूल की शिक्षा ग्रहण करने चले जाते हैं। निश्चित रूप से यही कारण है कि जब देश के इन ‘भाग्यविधाताओं’ के बच्चे सरकारी स्कूलों में नहीं पढ़ते फिर आिखर सरकारी स्कूलों की सुध कौन ले और क्यों ले? और इन्हीें तथाकथित संभ्रांत लोगों से कदमताल मिलाते हुए मध्यम वर्ग के लोग भी अब अपने बच्चों को सरकारी स्कूलों में भेजने व दािखला कराने से परहेज़ करने लगे हैं। भले ही किसी परिवार को अपने बच्चों की पढ़ाई के लिए बैंक से शिक्षा हेतु ऋण क्यों न लेना पड़े परंतु मध्यम वर्ग का व्यक्ति भी अब यह धारणा बना चुका है कि सरकारी स्कूल अच्छे नहीं होते। सरकारी स्कूलों की इमारतें ठीक नहीं होतीं। और वहां पढ़ाई का स्तर भी ठीक नहीं है इसलिए क्यों न वे अपने बच्चों को किसी बड़े कॉन्वेंट या निजी स्कूल में पढ़ाएं। चाहे वह कितना ही मंहगा स्कूल क्यों न हो। हालांकि यही अभिभावक अक्सर यह भी चीखते-चिल्लाते नज़र आते हैं कि निजी स्कूलों ने शिक्षा को व्यवसाय बना लिया है,यहां नाजायज़ तरीके से ज़्यादा फीस वसूली जा रही है, निजी स्कूलों द्वारा स्कूल में पढ़ाई जाने वाली किताबें,कापियां,स्कूल के बस्ते यहां तक कि स्कूल के यूनीफार्म व जूते-जुराब तक स्कूल प्रशासन द्वारा बच्चों को बेचे जा रहे हैं। बच्चों की पिकनिक के नाम पर तो कभी किसी आयोजन अथवा पार्टी के नाम पर बच्चों से पैसों की वसूली की जाती है। ऐसी अंधेरगर्दी का ज्ञान होने के बावजूद भी आज प्रत्येक मध्यम वर्ग का व्यक्ति अपने बच्चों को इन्हीं लुटेरी प्रवृति के स्कूलों में ही भेजना चाहता है। ज़ाहिर है इसका एकमात्र कारण है कि हमारे देश के अभिभावकों को इस बात का विश्वास हो गया है कि निजी स्कूल सरकारी स्कूलों की तुलना में बच्चों को बेहतर शिक्षा व बेहतर भविष्य देते हैं।

परंतु पिछले दिनों इलाहाबाद उच्च न्यायालय की जस्टिस सुधीर अग्रवाल की पीठ ने देश की स्वतंत्रता के बाद पहली बार सरकारी स्कूलों व आम लोगों खासकर गरीबों की शिक्षा संबंधी इस पीड़ा को समझते हुए एक अत्यंत महत्वपूर्ण निर्णय दिया। न्यायमूर्ति सुधीर अग्रवाल ने अपने इस 3ऐतिहासिक फैसले में कहा कि देश के सांसदों,विधायकों,नौकरशाहों तथा सरकारी तनख्वाह पाने वाले सभी कर्मचारियों के बच्चों को सरकारी प्राईमरी स्कूलों में पढऩा अनिवार्य किया जाए। माननीय अदालत ने कहा कि ऐसा न करने वालों के विरुद्ध दंडात्मक कार्रवाई का भी प्रावधान किया जाए। और यदि फिर भी इनके बच्चे कान्वेंट स्कूलों में पढ़ें तो वहां की फीस के बराबर की रकम उनकी तनख्वाह से काटी जाए। इतना ही नहीं बल्कि ऐसे लोगों का इंक्रीमेंट व पदोन्नति भी कुछ समय के लिए रोकने की व्यवस्था की जाए। उच्च न्यायालय ने उत्तर प्रदेश सरकार को आदेश दिया कि वह इस संबंध में 6 महीने के भीतर कानून बनाए और अगले वर्ष शुरु होने वाले नए सत्र से यह आदेश लागू किया जाए। माननीय अदालत ने कहा कि जो लोग इस आदेश का पालन नहीं करें उनके विरुद्ध कड़ी कार्रवाई की जाए। अदालत ने अपने फैसले में कहा है कि संासद,विधायक,सरकारी अधिकारी व सरकारी कर्मचारी तथा सरकार से सहायता प्राप्त करने वाले लोगों के बच्चे जब तक सरकारी प्राईमरी स्कूलों में नहीं पढ़ेंगे तब तक सरकारी स्कूलों की हालत नहीं सुधरेगी । अदालत का यह ऐतिहासिक फैसला नि:संदेह स्कूली शिक्षा के क्षेत्र में क्रांतिकारी परिवर्तन ला सकता है। ज़ाहिर है जब देश के भाग्यविधाताओं व नीति निर्माताओं के अपने बच्चे सरकारी स्कूलों में पढऩे जाएंगे तभी इन्हें इस बात का एहसास होगा कि किन सरकारी स्कूलों में छत नहीं है,कहां-कहां शौचालय नहीं हैं,किन-किन स्कूलों में बिजली नहीं है और कहां-कहां शिक्षक बच्चों के अनुपात में कम हैं और कहां शिक्षक आते ही नहीं। इस समय अकेले उत्तर प्रदेश के एक लाख चालीस हज़ार जूनियर व सीनियर बेसिक स्कूलों में अध्यापकों के दो लाख सत्तर हज़ार पद खाली हैं। प्रदेश में सैकड़ों स्कूल ऐसे हैं जहां पानी,शौचालय,उपयुक्त इमारत तथा छात्रों के बैठने की उचित व्यवस्था जैसी मूलभूत सुविधाओं की भारी कमी है। परंतु इन सब बातों की जानकारी होने के बावजूद नेता व अधिकारी इस ओर केवल इसीलिए ध्यान नहीं देते क्योंकि उनके अपने बच्चे इन स्कूलों में शिक्षा प्राप्त नहीं करते।

हालांकि यह आदेश इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा केवल उत्तर प्रदेश सरकार के 4लिए जारी किया गया है। ज़ाहिर है इस आदेश का संबंध केवल उत्तर प्रदेश के सरकारी स्कूलों से ही है। परंतु हकीकत में इस समय देश के लगभग सभी राज्यों में सरकारी स्कूलों की कमोबेश यही स्थिति है। सभी राज्यों में नेता अधिकारी व संभ्रांत लोग अपने बच्चों को मंहगे से मंहगे स्कूलों में शिक्षा दिलाना चाहते हैं। लिहाज़ा यदि वास्तव में देश के सभी बच्चों को बिना किसी भेदभाव के शिक्षा के समान अवसर उपलब्ध कराने हैं तो बिना किसी भेदभाव के पूरे देश में ऐसी ही व्यवस्था की जानी चाहिए कि अमीर-गरीब नेता व जनता,अधिकारी व चपरासी,चौकीदार,उच्च वर्ग हो या दलित सभी के बच्चे समान स्कूलों में समान रूप से बैठकर समान शिक्षा ग्रहण कर सकें। यहां एक बात और काबिले गौर है कि सरकारी स्कूलों में जिन शिक्षकों की नियुक्ति सरकारी स्तर पर की जाती है वे प्राय: शिक्षक होने के सभी मापदंड पूरा करते हैं। परंतु निजी स्कूलों में शिक्षकों की भर्ती के लिए ऐसा कोई विशेष पैमाना नहीं है। यहां कम शिक्षित,सिफारिशी तथा स्कूल प्रबंधन से परिचय रखने वाले लोगों को भी शिक्षक के रूप में नौकरी मिल जाती है। लिहाज़ा यह कहा जा सकता है कि सरकारी स्कूल का शिक्षक निजी स्कूल के शिक्षक की तुलना में अधिक ज्ञानवान होता है। इसके बावजूद चूंकि यह धारणा आम हो चुकी है कि सरकारी स्कूल अच्छी शिक्षा नहीं देते और निजी व मंहगे स्कूल बच्चों को अच्छी शिक्षा व अच्छा भविष्य देते हैं इसलिए ज़्यादातर लोग अपने बच्चों को निजी स्कूलों में पढ़ाना पसंद करते हैं।

इलाहाबाद उच्च न्यायालय की ही तरह देश के सर्वोच्च न्यायालय को भी बेसिक शिक्षा के क्षेत्र में दखल अंदाज़ी करते हुए पूरे देश में इसी प्रकार की व्यवस्था किए जाने के आदेश दिए जाने की ज़रूरत है। इस व्यवसथा के लागू होने से केवल सबको समान शिक्षा के अवसर ही उपलब्ध नहीं होंगे बल्कि सरकारी स्कूलों के स्तर खासतौर पर उनके भवन,पानी-बिजली,शौचालय आदि के रख रखाव में भी क्रांतिकारी परिवर्तन आ सकेगा। इसके अतिरिक्त जब अमीरों व गरीबों तथा अधिकारियों,चपरासियों व चौकीदारों के बच्चे स्कूलों से ही एकसाथ पढऩे व खेलने-कूदने लगेंगे तो इससे सामाजिक समरसता के क्षेत्र में भी एक क्रांतिकारी सकारात्मक परिवर्तन होगा। और यह स्थितियां देश की तरक्की व एकता के लिए अत्यंत कारगर साबित होंगी।  उत्तर प्रदेश की अखिलेश यादव सरकार का अब यह कर्तव्य है कि वह इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फैसले को सम्मान देते हुए इस संबंध में यथाशीघ्र संभव कानून बनाए तथा इसे लागू कर पूरे देश के लिए एक आदर्श स्थापित करे। संभव है कि अखिलेश सरकार पर नेताओं व उच्चाधिकारियों द्वारा इस बात का दबाव भी बनाया जाए कि प्रदेश सरकार, उच्च न्यायालय के निर्णय को सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दे। परंतु यदि अखिलेश सरकार को किसी भी नौकरशाह अथवा नेता द्वारा ऐसी सलाह दी जाए तो उन्हें यह समझ लेना चाहिए कि ऐसी सलाह देने वाला कोई भी व्यक्ति शिक्षा के आधार पर समाज में असमानता चाहता है। और वह देश के गरीबों के बच्चों को अच्छी शिक्षा दिए जाने का पक्षधर नहीं है। निजी स्कूल खासतौर पर कान्वेंट स्कूलों को संचालित करने वाली लॉबी भी इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती देने हेतु अखिलेश सरकार पद दबाव बना सकती है। परंतु मुख्यमंत्री को सबको समान शिक्षा दिए जाने के पक्ष में उच्च न्यायालय के फैसले का आदर करते हुए पूरे देश के समक्ष एक मिसाल पेश करनी चाहिए।
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1,Abaut the Auther

Tanveer Jafri

Columnist and Author

Tanveer Jafri, Former Member of Haryana Sahitya Academy (Shasi Parishad),is a writer & columnist based in Haryana, India.He is related with hundreds of most popular daily news papers, magazines & portals in India and abroad. Jafri, Almost writes in the field of communal harmony, world peace, anti communalism, anti terrorism, national integration, national & international politics etc.

He is a devoted social activist for world peace, unity, integrity & global brotherhood. Thousands articles of the author have been published in different newspapers, websites & news-portals throughout the world. He is also a recipient of so many awards in the field of Communal Harmony & other social activities

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