द ईज ऑफ डूइंग बिजनेस

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– अरुण जेटली – 

The Ease of Doing Business by Arun Jaitley, Ease of Doing Business by  Arun Jaitley, Arun Jaitley,Ease of Doing Business,The Ease of Doing Businessविश्‍व बैंक ने ईज ऑफ डूइंग बिजनेस की रैंकिंग में भारत का स्‍थान 12 अंक ऊपर कर दिया है। पिछले महीने विश्‍व आर्थिक फोरम ने भी भारत को अपग्रेड किया था। हालांकि रैंक में सुधार मध्‍यम है लेकिन यह विपरीत रुझान को मोड़ने की शुरुआत है। सरकार ने पिछले 17 महीने में जो कदम उठाए हैं उन्‍हें देखते हुए भारत का स्‍थान खासा ऊंचा होना चाहिए था। मैं समझता हूं कि इन सभी कदमों को संज्ञान में नहीं लिया गया है क्‍यों‍कि विश्‍व बैंक का मानदंड एक निर्धारित तिथि पर आधारित है। साथ ही वह घोषणाओं का असर होने तक प्रतीक्षा भी करती है। फिर भी भारत की स्थिति में जो सुधार हुआ है उसमें त्‍वरित निर्णय प्रक्रिया, तीव्र नीतिगत बदलाव, शीर्ष स्‍तर पर भ्रष्‍टाचार खत्‍म होने और मंजूरी प्रक्रिया सरल होने की अहम भूमिका है। एफआइपीबी और पर्यावरण मंजूरी नियमित तौर पर दी जा रही हैं। निवेशकों को अब नीतियों में बदलाव या मंजूरियों के लिए दिल्‍ली आकर मंत्रालयों के आगे लाइन लगाने की जरूरत नहीं पड़ती।

ऐसा ही एक उत्‍साहजनक कारक यह है कि राज्‍यों ने भी अपनी कार्य संस्‍कृति में बदलाव किया है। निवेश सभी आर्थिक गतिविधियों का शुरुआती बिन्‍दु है। इसलिए एक निवेशानुकूल राज्‍य में स्‍वाभाविक तौर पर निवेश आएगा। राज्‍यों को इस बात का अहसास हो गया है। प्रतिस्‍पर्धी संघवाद देखा जा सकता है। वैश्विक निवेशकों की शिखर बैठक के गुजरात मॉडल को तमिलनाडु, मध्‍य प्रदेश, पश्चिम बंगाल और पंजाब ने अपनाया है। इस महीने राजस्‍थान भी वैश्विक निवेशकों को आकर्षित करने का प्रयास करेगा। तेलंगाना और आंध्र प्रदेश भी वैश्विक निवेशकों तक पहुंचने की कोशिश कर रहे हैं। अच्‍छी खासी आदिवासी आबादी वाले तीन राज्‍य– छत्‍तीसगढ़, झारखंड, और उड़ीसा का विश्‍व बैंक की ईज ऑफ डूइंग बिजनेस की रैंकिंग में शीर्ष छह राज्‍यों में स्‍थान है। अधिकांश राज्‍यों में कार्य संस्‍कृति बदल रही है।

केंद्र सरकार ने पिछले हफ्ते दो महत्‍वपूर्ण अध्‍यादेश जारी किए। आर्बिट्रेशन लॉ (मध्‍यस्‍थता कानून) में बदलाव किए गए हैं ताकि मध्‍यस्‍थता को न्‍यायिक हस्‍तक्षेप से अलग सस्‍ता और त्‍वरित बनाया जा सके। निवेश संबंधी मामलों में न्‍यायिक प्रक्रिया शीघ्र पूरी करने के लिए सभी उच्‍च न्‍यायालयों में एक कमर्शियल डिवीजन स्‍थापित की जा रही है। इससे संविदा प्रवर्तन में सुधार आएगा जहां भारत की रैंक अपेक्षाकृत कमजोर है। पुराने पड़ चुके विशेष राहत कानून, जिसमें प्रवर्तन की जगह क्षतिपूर्ति का प्रावधान है, को भी संशोधित करने की जरूरत है। अधिकांश क्षेत्रों को विदेशी निवेश के लिए खोलने के बाद इस बात की समीक्षा करने की भी जरूरत है कि जिन शर्तों के आधार पर एफडीआइ की सिफारिश की गई थी वे कितनी प्रासंगिक हैं। हमें जरूरी मंजूरी की संख्‍या को भी कम करने की जरूरत है ताकि निवेश का निर्णय लेने और वास्‍तविक निवेश के बीच समय कम किया जा सके। राज्‍यों को भी यह बात समझनी चाहिए कि जिन स्‍थानीय कानूनों के तहत जमीन उपलब्‍धता, पर्यावरण मंजूरी, भवन योजना को मंजूरी दी जाती है उन पर भी पुन:विचार किया जाए। एक बार अगर किसी टाउनशिप या औद्योगिक क्षेत्र को पर्यावरण मंजूरी मिल जाती है तो क्‍या उसमें बनने वाली किसी इकाइ को अलग से पर्यावरण मंजूरी लेनी चाहिए? कई देशों में भवन योजना को मंजूरी देने की जगह किसी वास्‍तुविद के प्रमाणपत्र को ही स्‍वीकार करने की प्रणाली को अपना लिया है। जब आपको किसी भवन का निर्माण कार्य पूरा होने लिए प्रमाणपत्र अनिवार्य है तो निर्माण के लिए अनुमति की जरूरत को एक नियामक तंत्र बनाकर खत्‍म कर देना चाहिए। इन अतिरिक्‍त उपायों से भारत की ईज ऑफ डूइंग बिजनेस रैंकिंग में और सुधार आएगा।

कारोबार शुरु करने की प्रक्रिया को सरल बनाने के साथ ही व्‍यवसाय बंद करने की प्रक्रिया भी सरल बनानी चाहिए। इसके लिए सरकार बैंकरुप्‍सी लॉ (दिवालियेपन पर कानून) का मसौदा तैयार कर रही है। सार्वजनिक परियोजनाओं के संबंध में विवादों के शीघ्रता से निस्‍तारण के लिए एक तंत्र होना चाहिए। सरकार इस पर भी काम कर रही है।

सरकार ने प्राकृतिक संसाधनों और सार्वजनिक ठेकों के आवंटन की प्रक्रिया को भी पूरी तरह पारदर्शी बनाने के लिए काफी कुछ किया है। सरकारी अधिकारियों को आसानी तथा सा‍हसिक निर्णय लेने का अधिकार देने के लिए भ्रष्‍टाचार निरोधक कानून के पुराने पड़ चुके प्रावधानों में भी सुधार की आवश्‍यकता है। सरकार ने इसे संसद में भी पेश कर दिया है। ऐसे समय जबकि पूरी दुनिया की विकास दर धीमी है, भारत तेजी से बढ़ना चाहता है। हमारी मौजूदा विकास दर में एक या दो प्रतिशत की बढ़ोत्‍तरी के लिए कारोबार शुरु करने की सुगम प्रक्रिया के साथ ही सरल प्रत्‍यक्ष और परोक्ष कर व्‍यवस्‍था तथा सिंचाई और ढांचागत क्षेत्र में अधिक निवेश महत्‍वपूर्ण भूमिका निभाएगा। तेल और वस्‍तुओं की सस्‍ती दर भी इस दिशा में सरकार के लिए मददगार है।

प्रधानमंत्री श्री नरेन्‍द्र मोदी के नेतृत्‍व में सरकार भारत की विकास दर को तेज करने की कोशिश कर रही है, कई लोग ऐसे हैं जिन्‍होंने बौद्धिक तौर पर सत्‍ता में भाजपा के विचार को स्‍वीकार नहीं किया है। स्‍वाभाविक तौर पर इसमें कांग्रेस, कई वामपंथी विचारक और कार्यकर्ता शामिल हैं। कई दशकों से वे भाजपा के प्रति वैचारिक असहिष्‍णुता का बर्ताव कर रहे हैं। 2002 से स्‍वयं प्रधानमंत्री वैचारिक असहिष्‍णुता के शिकार हुए हैं। ऐसे लोगों की दोतरफा रणनीति है। पहला, संसद में व्‍यवधान डालो और सुधार मत होने दो क्‍यों‍कि ऐसा होने पर मोदी सरकार को श्रेय मिलेगा। दूसरे, संगठित दुष्‍प्रचार के माध्‍यम से ऐसा माहौल बनाइए कि भारत में सामाजिक संघर्ष है। वे भारत को एक असहिष्‍णु समाज के तौर पर प्रचारित करना चाहते हैं। जबकि सच्‍चाई बिल्‍कुल अलग है। इस दुष्‍प्रचार के षड़यंत्रकारियों ने विश्‍वविद्यालयों, शैक्षिक संस्‍थानों और सांस्‍कृतिक संगठनों में, जिनको ये नियंत्रित करते हैं, कभी वैकल्पिक विचारधारा को पनपने नहीं दिया। वे इतने अ‍सहिष्‍णु हैं कि दूसरी विचारधारा को बर्दाश्‍त नहीं करते। दादरी में जो घटना हुई वह दुर्भाग्‍यपूर्ण और निंदनीय है। दोषियों को सजा मिलेगी। इस तरह के अपवाद को छोड़ दें तो भारत बेहद सहिष्‍णु और उदार समाज है। हमारे सांस्‍कृतिक मूल्‍यों में सह-अस्तित्‍व समाहित है। भारत ने बारंबार असहिष्‍णुता को खारिज किया है। यह भड़काऊ कोशिशों के झांसे में नहीं आता। इसलिए भारत तथा मौजूदा सरकार के शुभचिंतकों की जिम्‍मेदारी है कि वे अपने किसी भी कृत्‍य या वक्‍तव्‍य से उन लोगों को कोई मौका न दें जो भारत के विकास में बाधा डालना चाहते हैं। बाधा डालने वालों की सीधी योजना है- अगर वे राजनीतिक तौर पर नहीं लड़ सकते तो वे दुष्‍प्रचार करेंगे।

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Arun Jaitley

Union minister for finance , Information & Broadcasting and  Corporate Affairs

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