नवीकरणीय उर्जा- आगे का रास्‍ता

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Ashok Handoo{ *अशोक हान्‍डू }

सरकार ने 2017 तक नवीकरणीय स्रोंतों से  में 10 गीगा वॉट और 2022 तक 20 गीगा वॉट बढ़ाने के अपने लक्ष्‍य के रूप में नवीकरणीय उर्जा स्रोतों से अधिक उर्जा पैदा करने के लिए हाल ही में एक महत्‍वकांक्षी योजना की घोषणा की है। इस दिशा में उठाये जा रहे कदमों में राजस्‍थान में सांभर झील के पास ए‍क अल्‍ट्रा मेगा हरित सौर उर्जा परियोजना की स्‍थापना है। दुनिया में इस स्‍तर की पहली परियोजना होगी और भविष्‍य की परियोजनाओं के लिए एक मॉडल की तरह होगी।

श्रेष्‍ठ लक्ष्‍य के रूप में जवाहर लाल नेहरू सौर मिशन के पहले चरण को पूरा करने के बाद देश अपने दूसरे चरण को शुरू कर रहा है। पहले चरण में अपने निर्धारित लक्ष्‍य 1100 मेगावाट की तुलना में 1685 मेगावाट उर्जा पैदा की गई है। दूसरे चरण में ध्‍यान केन्‍द्रीत करने के लिए राजस्‍थान, कारगिल और लद्दाख क्षेत्रों की पहचान की गई है।

सौर उर्जा उत्‍पादन ने 2010 में जवाहर लाल नेहरू राष्‍ट्रीय सौर मिशन शुरू होने के बाद से इसने लंबा रास्‍ता तय किया है। आज हम 1.8 गीगावाट विद्युत का उत्‍पादन सौर उर्जा से करते हैं जिसमें कि आने वाले वर्षो में वृद्धि होगी।

बावजूद इसके, सौर ऊर्जा देश में विद्युत उत्‍पादन का एक छोटा हिस्‍सा बनाती है।वास्‍तव में नवीकरणीय उर्जा का पूरा क्षेत्र ही राष्‍ट्रीय विद्युत में केवल 12 प्रतिशत का ही योगदान करता है, जिसमें छोटी जल विद्युत परियोजनाएं भी शामिल हैं: लगभग 17 प्रतिशत जल विद्युत से आता है और 2 प्रतिशत परमाणु उर्जा से आता है। बाकी बड़ा 70 प्रतिशत हिस्‍सा कोयले और गैस पर आधारित संयत्रों से आता है।

नवीकरणीय उर्जा स्रोतों का 65 प्रतिशत हिस्‍सा पवन उर्जा से आता है। बायोमास का हिस्‍सा 14 प्रतिशत, छोटी जल विद्युत परियोजनाओं का 13 प्रतिशत और सौर उर्जा का 5 प्रतिशत योगदान है। अन्‍य स्रोत लगभग 3 प्रतिशत का योगदान करते हैं।

यह असंतुलित आवश्‍यकताएं कई तरह से ठीक होनी हैं जिसमें शीर्ष पर पर्यावरणीय चिंताएं हैं। जब दुनिया ग्‍लोबल वार्मिंग पर गंभीरता से चिंतित है तो उर्जा के गैर पंरपरागत स्रोतों का अधिकतम सीमा तक दोहन करना होगा। और भारत निश्चित रूप से ऐसा करने की कोशिश कर रहा है। इसके अतिरिक्‍त देश 70 प्रतिशत तेल का आयात करता है जोकि इसके विदेशी विनिमय भंडार की बडी निकासी है।

देश में कुल विद्युत उत्‍पादन की स्‍थापित क्षमता उसकी आवश्‍यकताओं की तुलना में कम, अभी केवल 223 गीगावाट है। देश में 2020 तक विद्युत मांग कम से कम 16 गीगावॉट प्रतिवर्ष बढ़ने का अनुमान है।

ऐसी परिस्थितियों में बढ़ती हुई अर्थव्‍यवस्‍था की जरूरतों को पूरा करने के लिए उर्जा के प्रत्‍येक स्रोत को पकड़ने की जरूरत है। 12वीं योजना में उत्‍पादन क्षमता को थर्मल क्षेत्र में 72 गीगावॉट, जल क्षेत्र में 11 गीगावॉट और परमाणु क्षेत्र में 5 प्रतिशत से अधिक बढ़ाना है।

भौतिक शब्‍दावली में विद्युत में नवीकरणीय उर्जा 29 गीगावॉट योगदान करती है। देश को इसे दोगुना करके 2017 तक 55 गीगावॉट करेगा। केवल सौर उर्जा में ही जवाहर लाल नेहरू राष्‍ट्रीय सौर उर्जा मिशन के तहत इसमें 20 गीगावॉट की बढ़ोतरी होगी।

यद्यपि भारत में पवन की गति वैश्विक औसत से कम है, फिर भी देश में पवन उर्जा नवीकरणीय उर्जा का सबसे सफल स्रोत है। तमिलनाडु के नेतृत्‍व के रूप में इस‍का बड़ा हिस्‍सा केवल पांच राज्‍यों से आता है। एक प्रोत्‍साहित करने वाला कारक इसमें यह है कि अपतटीय पवन उर्जा जीवश्‍म से पैदा हाने वाली उर्जा का प्रतिस्‍पर्धी बन रहा है। यह इसीलिए विद्युत उत्‍पादन के लिए एक आकृषक विकल्‍प बनता है।

बायोमास भी एक अन्‍य क्षेत्र है जो अच्‍छी आशा रखता है। भारत की 60 प्रतिशत आबादी कृषि पर निर्भर करती है, यह क्षेत्र विद्युत उत्‍पादन के लिए अवसर देता है। कोई आश्‍चर्य नही कि इस क्षेत्र में विभिन्‍न राज्‍यों से, विशेषकर पंजाब से प्रमुख परियोजनाएं आ रही हैं। इस क्षेत्र में अनुमानित विद्युत क्षमता 18000 मेगावॉट पर रखी गई है। ब्रिटेन में और कुछ अन्‍य यूरोपीय देशों में कोयला जलाने वाले संयत्रों को बायोमास में बदला जा रहा है। इस क्षेत्र में उचित दोहन के लिए संयत्रों और भंडार क्षमता के निर्माण में भारी निवेश की आवश्‍यकता है, जिस तरह से फिनलैंड और स्‍वीडन कर चुके हैं। फिनलैंड में 20 प्रतिशत और स्‍वीडन में 16 प्रतिशत विद्युत आपूर्ति बायोमास से आती है। भारत में प्रतिवर्ष 200 टन कृषि अपशिष्‍ट के प्रयोग नही होने के कारण इस क्षेत्र में दोहन की ठोस संभावनाएं हैं।

हालांकि भारत में ग्रीन हाउस गैस उत्‍सर्जन कम होने के बाद भी उसने पिछले दशक में लगभग 2000 स्‍वच्‍छ उर्जा परियोजनाओं को जोड़ा है। जहां ग्रीन हाउस भवनों की जगह सौर और पवन ऊर्जा प्रणाली और जल संचयन आदि, की संख्या 2204 तक पहुँच गयी है। इस संख्या को 2025 तक 1 लाख के महत्वकांक्षी लक्ष्य तक पंहुचाने की योजना है।

एशियाई विकास बैंक ने एकदम अभी घोषणा की है कि वह 500 मिलीयन डॉलर राज्य राष्ट्रीय ग्रीड के लिए राजस्थान पवन और सौर ऊर्जा परियोजनाओं से स्वच्छ विद्युत लेने के लिए एक विद्युत ट्रांसमिशन प्रणाली निर्माण के लिए उपलब्ध कराएगा। उत्पादन केंद्रों से बिजली प्रवाहित करने के लिए ट्रांसमिशन लाइनों को स्थापित करना एक बड़ी चुनौती है, इन समस्याओं से निपटने में लंबा समय लगेगा।

आज भारत दूसरे देशों को सहायता करने की स्थिति में भी है। इसमें क्यूबा को तेल आयात पर निर्भरता कम करने के लिए नवीकरणीय ऊर्जा परियोजना को विकसित करने में ऋण और विशेषज्ञों की पेशकश की है। एक निश्चित दर पर एनटीपीसी बांग्लादेश को 250 मेगावॉट बिजली का निर्यात कर रहा है। भारत ने भूटान में भी विद्युत परियोजनाओं में निवेश किया है।

संक्षेप में, पूरी दुनिया में विकासशील देशों में विद्युत कमी और बढ़ रही मांग और पर्यावरण चुनौतियों को ध्यान में रखकर भारत को भी शेष दुनिया की तरह गैर पंरपरागत स्रोतों के माध्यम से विद्युत उत्पादन पर समुचित ध्यान देने की आवश्यकता है। एक अनुमान के अनुसार भारत में अकेले नवीकरणीय ऊर्जा से ही 150 गीगावॉट बिजली करने की संभावनाएं हैं- वर्ष भर के अधिकतर भाग में रहने वाली सूर्य की रोशनी और देश भर के अधिकतर हिस्सों में पाए जाने वाले अच्छे पवन वेग को धन्यवाद। परन्तु इसे महसूस करने के लिए एक बड़े निवेश की आवश्यकता है। स्वच्छ विद्युत उत्पादन को प्रोत्साहित करने के लिए धनी देशों को विकासशील देशों की सहायता के लिए आगे आना चाहिए। भारत इस क्षेत्र में अच्छी तरह आगे बढ़ रहा है।

*लेखक स्‍वतंत्र पत्रकार हैं

डिस्क्लेमर: इस लेख में व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं और आई एन वी सी  का उनसे सहमत होना अनिवार्य नहीं है।

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