- किसी भी देशी भाषा से हिंदी को खतरा नहीं – राजेंद्र मिलन
- केंद्रीय हिंदी संस्थान में दो संवर्धनात्मक पाठ्यक्रमों का उदघाटन
- अंग्रेजी का बहिष्कार अवश्य होना चाहिए : डॉ. राजेंद्र मिलन
‘‘अंग्रेजी का बहिष्कार अवश्य होना चाहिए। किसी भी देशी भाषा से हिंदी को खतरा नहीं है। खतरा है तो एकमात्र अंग्रेजी से ’’ यह बात आज केंद्रीय हिंदी संस्थान, आगरा के नवीकरण एवं भाषा प्रसार विभाग द्वारा संस्थान के नजीर सभागार में आयोजित एक कार्यक्रम में नगर के सुप्रसिद्ध कवि एवं संस्कृतिकर्मी डॉ. राजेंद्र मिलन ने कही। डॉ. मिलन संस्थान में सरकारी हिंदी शिक्षक प्रशिक्षण महाविद्यालय , मैसूर (कर्नाटक) एवं मिजोउरम हिंदी प्रशिक्षण महाविद्यालय, आइजोल के प्रशिक्षणार्थियों के लिए आयोजित संवर्धनात्मक पाठ्यक्रम के उदघाटन समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में बोल रहे थे। डॉ. मिलन ने कहा कि देश की किसी भी समर्थ भाषा को राष्ट्रभाषा का दर्जा दिया जा सकता है। कोई जरूरी नहीं कि हिंदी ही राष्ट्रभाषा बने। अंग्रेजी से मुठभेड़ के लिए मलयालम, कन्नड़ या बांग्ला जैसी किसी भी सक्षम भारतीय भाषा को मुकाबले में खड़ा किया जा सकता है। कार्यक्रम का उदघाटन उपस्थित विद्वतजनों द्वारा दीप प्रज्ज्वलन और वाग्देवी प्रतिमा पर माल्यार्पण के साथ हुआ। तत्पश्चात् कार्यक्रम के उद्देश्य और महत्व पर पाठ्यक्रम संयोजक और कार्यक्रम के संचालक डॉ. प्रमोद रावत ने प्रकाश डाला। कार्यक्रम की अध्यक्षता नवीकरण एवं भाषा प्रसार विभाग की अध्यक्ष प्रो. सुशीला थॉमस ने की। छात्र-छात्राओं के मार्गदर्शक के रूप में मैसूर से पधारीं डॉ. सुजाता और आइजोल से आईं सुश्री जूही ने भी मंच को सुशोभित किया। सुजाता जी ने हिंदी की समन्वयकारी भूमिका की प्रशंसा की। सुश्री जूही ने कहा कि केवल पुस्तकीय ज्ञान छात्रों के लिए पर्याप्त नहीं है। आपसी मेल-जोल और संवाद से छात्रों के भाषा-ज्ञान और भाषा-व्यवहार का समुचित विकास होता है। उन्होंने अपने छात्रों की ओर से संस्थान के अध्यापकों से अनुरोध किया कि वे विद्यार्थियों को भाषा-शिक्षण देते समय भाषा के व्यवहार-पक्ष का विशेष ध्यान रखें, क्योंकि भिन्न क्षेत्रीय भाषा और संस्कृति से संबद्ध होने के कारण उनका व्याकरण पक्ष काफी कमजोर होता है। कार्यक्रम के अंत में अध्यक्षीय भाषण प्रो. सुशीला थॉमस ने दिया। उन्होंने कहा कि आज सुदूर पूर्व और दक्षिण की दो धाराओं का संस्थान में मिलन हो रहा है। दोनों मिलकर एक शक्तिशाली धारा का निर्माण करेंगे। प्रो. थॉमस ने कहा कि आज हिंदी का प्रसार दुनिया के कोने-कोने में ही नहीं, भारत के सुदूर क्षेत्रों में भी हो गया है। समाचार-पत्रों और टी.वी. चैनलों ने इस कार्य में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। द्वितीय भाषा के रूप में भी हिंदी अनेक जगहों में पढ़ाई जाती है। प्रो. थॉमस ने पाठ्यक्रम के बारे में सामान्य सूचना देते हुए बताया कि दोनों पाठ्यक्रम समानांतर रूप से चलेंगे। मैसूर के छात्रों का पाठ्यक्रम बी.एड. स्तरीय होगा और आइजोल के छात्रों का पाठ्यक्रम डिप्लोमा स्तरीय। उन्होंने कहा कि इन पाठ्यक्रमों में लेखन-क्षमता, उच्चारण और व्याकरण पर विशेष ध्यान दिया जाएगा। पाठ्यक्रम 08.11.2013 को समाप्त होगा। इस अवसर पर छात्र-छात्राओं ने सांस्कृतिक कार्यक्रम भी प्रस्तुत किए। अंत में संस्थान के कुलसचिव डॉ. चंद्रकांत त्रिपाठी ने सभी जनों का आभार प्रकट किया।