*अहमदिया समुदाय मुसलमान है या नहीं, कौन तय करे?

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 **तनवीर जाफरी

इस्लाम धर्म से संबद्ध विभिन्न वर्गो  व समुदायों के उलेमाओं से अक्सर यह सुनने को मिलता है कि इस्लाम धर्म में विभिन्न आस्थाओं, विश्वासों  व अकीदों से जुड़े हुए 73 अलग-अलग वर्ग या फिरके  हैं। मुसलमान होने के बावजूद इस प्रकार से वर्ग,समुदाय या फिरको  के रूप में इस्लाम धर्म को मानने वालों का विभिन्न वर्गो  में विभाजित होना स्वयं अपने-आप में इस बात का प्रमाण है कि इन अलग-अलग वर्गो  में  कहीं न कहीं धार्मिक, ऐतिहासिक अथवा विश्वास  संबंधी कोई न कोई मतभेद अवश्य हैं। परंतु इन सब मतभेदों के बावजूद सभी वर्ग बड़े ही गर्व के साथ स्वयं को मुसलमान व इस्लाम धर्म का मानने वाला कहते आ रहे हैं, एक निराकार अल्लाह पर सभी विश्वास  करते हैं,हज़रत मोहम्मद  को लगभग सभी वर्गो  के लोग अपना आखरी  पैगम्बर  या आखरी नबी मानते हैं। और सभी अपने धर्मग्रंथ, पवित्र कुरआन मजीद  को अल्लाह की पवित्र किताब के रूप में स्वीकार करते हैं।

इन्हीं के मध्य स्वयं को मुसलमान कहने वाले एक अत्यंत विवादित वर्ग का नाम है  कादियानी या अहमदिया समुदाय। भारत के पंजाब राज्य के कादियान नामक  कस्बे में इस समुदाय का मु यालय होने के कारण इसे कादियानी समुदाय भी कहा जाता है। जबकि वैश्विक स्तर पर इसे अहमदिया समुदाय के नाम से जाना जाता है। इस अहमदिया समुदाय के लोग स्वयं को मुसलमान मानते व कहते हैं और अपने मुसलमान होने पर गर्व करते हैं। परंतु अहमदिया समुदाय के अतिरिक्त शेष सभी मुस्लिम वर्गो  के लोग इन्हें मुसलमान मानने को हरगिज़ तैयार नहीं। इसका कारण यह है कि जहां अहमदिया समुदाय अल्लाह, कुरान शरीफ ,नमाज़,दाढ़ी,टोपी,बातचीत व लहजे आदि में मुसलमान प्रतीत होते हैं वहीं इस समुदाय के लोग अपनी ऐतिहासिक मान्याताओं,परंपराओं व उन्हें विरासत में मिली शिक्षाओं व जानकारियों के अनुसार हज़रत मोहम्मद  को अपना आखरी पैगम्बर  स्वीकार नहीं करते। बजाए इसके इस समुदाय के लोग नबुअत (पैगम्बरी ) की परंपरा को अभी तक चलती हुई स्वीकार करते हैं। इस समुदाय के लाग अपने वर्तमान सर्वोच्च धर्मगुरु को नबी के रूप में ही मानते हैं। इसी मु य बिंदु को लेकर अन्य मुस्लिम समुदायों के लोग समय-समय पर सामूहिक रूप से इस समुदाय का ज़बरदस्त विरोध करते हैं। तथा बार-बार इन्हें यह हिदायत देने की कोशिश करते हैं कि अहमदिया समुदाय स्वयं को इस्लाम धर्म से जुड़ा समुदाय न घोषित किया करे और इस समुदाय के सदस्य अपने-आप को मुसलमान हरगिज़ न कहें।

गत् 23 सितंबर से 2भ् सितंबर के मध्य इसी अहमदिया समुदाय ने नई दिल्ली के कान्सित्यूश्नल  क्लब में एक तीन दिवसीय प्रदर्शनी का आयोजन किया था। यह प्रदर्शनी कुरान शरीफ व इसकी विस्तृत मानव कल्याणकारी शिक्षाओं पर आधारित थी। अहमदिया समुदाय के एक सदस्य के अनुसार यह प्रदर्शनी इसलिए आयोजित की गई थी ताकि दुनिया को कुरान शरीफ के संबंध में कुछ लोगों द्वारा पैदा की जा रही गलत फहमियों के बारे में आगाह कराया जा सके तथा यह बताया जा सके कि कुरान शरीफ अमन, शांति,मानवता व भाइचारे का संदेश देता है,क्रूरता व नफरत का नहीं। परंतु इस प्रदर्शनी को दिल्ली के कई अलग-अलग मुस्लिम समुदायों के भारी संयुक्त विरोध के कारण बंद कर दिया गया। अहमदिया समुदाय द्वारा आयोजित की जाने वाली कुरान शरीफ से संबंधित इस प्रदर्शनी के विरोध का मुद्दा इतना मुखर था कि दिल्ली की शाही जामा मस्जिद  के इमाम मौलाना अहमद बुखारी को अपने सैकड़ों समर्थकों के साथ लगभग 4 घंटे के लिए अपनी गिरफ़्तारी  तक देनी पड़ी। अहमदिया समुदाय की इस कुरान शरीफ संबंधी नुमाईश के विरोध को लेकर एकदम विपरीत ध्रुव समझे जाने वाले शिया-सुन्नी,देवबंदी-बरेलवी  सभी समुदायों की शीर्ष धार्मिक हस्तियां इस विषय पर एकजुट होती दिखाई दीं। और आख़िरकार  सरकार पर इस  क्वअस्थाई मुस्लिम एकतां का इतना दबाव पड़ा कि सरकार को यह प्रदर्शनी स्थगित करनी पड़ी। उपराष्ट्रपति हमीदुल्ला अंसारी को भी इस कार्यक्रम में मुख्या  अतिथि के रूप में शिरकत करनी थी, परंतु उन्हें भी इसी विरोध के कारण अपना कार्यक्रम स्थगित करना पड़ा। इसी प्रकार और भी कई जानी-मानी मुस्लिम हस्तियां इस कार्यक्रम में आमंत्रित थीं उन्हें भी इस कार्यक्रम से अपना मुंह मोड़ना पड़ा।

मुसलमानों में ही अहमदिया समुदाय का विरोध इस हद तक है कि पाकिस्तान जैसे तथाकथित इस्लामी राष्ट्र में भी अहमदिया समुदाय को अल्पसं यकों का दर्जा प्राप्त है। यानी पाक सरकार भी इन्हें मुसलमान स्वीकार नहीं करती। पाकिस्तान में  शिया-समुदाय के लोगों, उनके धार्मिक जुलूसों व इमामबाड़ों पर होने वाले घातक हमलों की ही तरह अहमदिया समुदाय के सदस्यों व उनके धर्मस्थलों पर आए दिन हमले होते रहते हैं। पिछले दिनों देवबंद समुदाय से जुड़े एक मुस्लिम युवक ने मुझसे मुलाकात के दौरान बड़े क्वगर्वंसे यह बताया कि सहारनपुर में एक अहमदिया समुदाय के सदस्य की मृत्यु हो जाने पर किसी भी मुस्लिम समुदाय के सदस्य ने उस मृतक शरीर को अपने समुदाय से संबंधित कब्रिस्तान में दफ़्न  न नहीं होने दिया। हो सकता है उस मृतक अहमदिया व्यक्ति को अपने-अपने कब्रिस्तानों में दफन न करवाकर इन मुस्लिम समुदायों के लोगों ने अपने अकीदे या अपनी रूढ़ीवादी सोच के तहत बहुत अच्छा या क्वपुण्यं कमाने वाला कार्य किया हो परंतु इस घटना को सुनने वाले आम व निष्पक्ष सोच-विचार रखने वाले लोगों को शायद इस प्रकार का निर्णय अच्छा नहीं लगा होगा। वैसे भी केवल अहमदिया समुदाय ही नहीं बल्कि इस्लाम धर्म से संबद्ध लगभग सभी फिरको  के धर्मगुरुओं से जब आप अलग-अलग बातें करें तो यही सुनने को मिलेगा कि सच्चे मुसलमान तो दरअसल वही हंै और शेष समुदाय के लोग तो घोर पापी हैं और अपने को बेवजह मुसलमान कहते फिर रहे हैं।

अहमदिया समुदाय से संबद्ध नई दिल्ली के उपरोक्त घटनाक्रम के दौरान पिछले दिनों शाही इमाम मौलाना अहमद बुखारी ने अहमदिया समुदाय को न सिर्फ स्वयं को मुसलमान कहने से बाज़ आने की हिदायत दी बल्कि उनपर यह भी इल्ज़ाम मढ़ा कि यह फिरका  अमेरिका व इज़राईल द्वारा समर्थित है तथा इन देशों के इशारे पर इस्लाम धर्म में फूट डालने का प्रयास कर रहा है। यहां यह याद दिलाना ज़रूरी है कि इसी प्रकार के इल्ज़ाम देवबंद समुदाय के उलेमाओं द्वारा शिया समुदाय के ऊपर भी लगाए जा चुके हैं। शिया समुदाय के लोगों को भी रूढ़ीवादी सुन्नी जमात के लोग काफ़िर ,बिदअत करने वाले और मुशरिक जैसे विशेषणों से समय-समय पर नवाज़ते रहते हैं। इन ऐतिहासिक तथ्यों की तो बात छोड़ा  पाकिस्तान, इराक, अफगानिस्तान तथा कभी-कभार भारत में भी विभिन्न मुस्लिम वर्गो  में होने वाले सांप्रदायिक तनाव व पाक,अफगान व इराक में होने वाली सामूहिक खूनरेज़ी की घटनाएं इस बात का पुख्ता  सुबूत हैं कि एक मुस्लिम वर्ग दूसरे मुस्लिम वर्ग को मुसलमान मानने को कतई तैयार नहीं है। ज़ाहिर है इस प्रकार के विरोध का कारण केवल धार्मिक,ऐतिहासिक, हदीस संबंधी तर्क-वितर्क व मतभेद हैं जो किसी भी वर्ग या समुदायों के बच्चों को अपने-अपने पुर्वजों से विरासत में हस्तांरित होते आ रहे हैं।

बड़ी खुशी की बात है कि अहमदिया समुदाय के विरोध को लेकर ही सही परंतु कम से कम किसी बहाने तो शिया-सुन्नी,बरेलवी -देवबंदी जैसे धुर विरोधी मुस्लिम समुदायों के लोग एक मंच पर सामयिक रूप से एक  होते तो दिखाई दिए। परंतु अहमदिया समुदाय के खिलाफ  एकजुट होने वाले इन्ही  समुदायों के सदस्य जब एक-दूसरे को नीचा दिखाने, एक-दूसरे के कुरान शरीफ के अनुवाद, नमाज़ पढ़ने के तौर-तरीके,कल्मे की विभिन्नता, रोज़ा रखने या खोलने के समय, मोहर्रम मनाने या न मनाने, ताçज़यादारी करने न करने को लेकर आपसी मतभेद में उलझे हुए दिखाई देते हैं, पीरों-$फकीरों की मज़ार पर जाने, $कव्वाली,नात आदि सुनने-सुनाने को लेकर इनमें भीषण मतभेद सुनने को मिलते हैं और यही मतभेद हिंसा के चरम तक जाते हैं। उस समय स्वयं को बड़े गर्व के साथ मुसलमान कहने वाले इन्हीं विभिन्न समुदायों के लोग बेहिचक एक-दूसरे पर कु$फ्र का $फतवा जारी कर देते हैं तथा एक-दूसरे की धार्मिक गतिविधियों को संदेह व आलोचना की दृष्टि से देख़ते हैं। ऐसे में यह सवाल अपनी जगह पर लाज़मी है कि कौन सा वर्ग वास्तव में मुसलमान है और कौन सा वर्ग काफिर  है या मुसलमान कहने योग्य नहीं है। और साथ ही साथ प्रश्र्न यह भी है कि आç$खर इस बात को निर्धारित  करने का अधिकार किसे प्राप्त हो जो यह तय करे कि स्वयं को मुसलमान कहने वाले उपरोक्त सभी फिरको  में वास्तव में सच्चा मुसलमान है कौन?                          

**Tanveer Jafri ( columnist),

(About the Author)
Author  Tanveer Jafri, Former Member of Haryana Sahitya Academy (Shasi Parishad),is a writer & columnist based in Haryana, India.He is related with hundreds of most popular daily news papers, magazines & portals in India and abroad. Jafri, Almost  writes in the field of communal harmony, world peace, anti communalism, anti terrorism, national integration, national & international politics etc.He is a devoted social activist for world peace, unity, integrity & global brotherhood. Thousands articles of the author have been published in different newspapers, websites & news-portals throughout the world. He is also a recipient of so many awards in the field of Communal Harmony & other social activities.
(Email : tanveerjafriamb@gmail.com )

Tanveer Jafri ( columnist),
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*Disclaimer: The views expressed by the author in this feature are entirely his own and do not necessarily reflect the views of INVC

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