हम कब तक खोते रहेंगे सैनिकों को ?

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 -डॉ. मयंक चतुर्वेदी –

Pakistan-sponsored-terrorisयह प्रश्‍न किसी एक भारतीय का नहीं, देश के हर उस भारतीय का है जो अपने देश को अपार प्रेम करता है। पाकिस्‍तान प्रायोजित आतंकवाद से देश के अंदर और सीमाओं पर हमारे अपने सैनिक पाकिस्‍तानी गोलियों के शिकार हो रहे हैं। भारत सरकार फिर वो आज की राष्‍ट्रीय जनतान्‍त्रिक गठबंधन की सरकार हो या इसके पूर्व संयुक्‍त प्रगतिशील गठबंधन की सरकार रही हो, दोनों के समय में ही पाकिस्‍तानी सीमा पर जिस तरह से हम अपने सैनिकों की जानें गंवा रहे हैं उससे तो अब यह लगने लगा है कि हमारे यहां नेताओं के भाषणों का मोल एक सैनिक की जिन्‍दगी से ज्‍यादा हो गया है।

नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद से लेकर बीते ढ़ाई साल में जिस तरह उन्‍होंने निर्णय लिए, उसे देखते हुए देश उनसे यही उम्‍मीद कर रहा है कि वे पाकिस्‍तान को लेकर भी कुछ ऐसा निर्णय लेंगे, जिसके बाद से वह कम से कम भारत में आतंकवाद को प्रायोजि‍त करने की अपनी मानसिकता हमेशा के लिए भूल जाएगा। हालांकि नोटबंदी के बाद उसका प्रायोगिक तौर पर आंशिक असर दिखा भी, लेकिन समय के साथ वह भी कमजोर होता जा रहा है। जिस जम्‍मू-कश्‍मीर राज्‍य में पत्‍थर फैंकने की शिकायतों और हुड़दंगियों के हुड़दंग में कमी आई, आज समस्‍या यह है कि उसी कश्‍मीर के रास्‍ते भारत की सीमाओं में घुस रहे आतंकी हमारे सैनिकों को अपना निशाना बनाने में बार-बार सफल हो रहे हैं।

इससे जुड़ा एक तथ्य यह भी है कि सितंबर माह में जम्‍मू-कश्‍मीर के उरी में आर्मी कैंप पर हुए आतंकी हमले के बाद केंद्र सरकार ने सख्‍ती बरतना शुरू कर दी है, किंतु समझने के लिए इतना ही पर्याप्‍त होगा कि इस एक हमले में ही हमारे 19 जवान शहीद हुए थे। इसके जवाब में सरकार ने भारतीय सेना को खुली छूट दे दी थी कि वह जरूरत पड़ने पर सीमाओं के पार जाकर भी आतंकवादियों पर अपनी कार्रवाई करे और हुआ भी ऐसा। भारतीय सेना द्वारा आतंकवादियों के खिलाफ सर्जिकल स्ट्राइक की गई। सेना ने पीओके में घुसकर कई आतंकी कैंपों को नेस्तनाबूद किया था। पर इसके बाद क्‍या हुआ ? सर्जिकल स्ट्राइक के बाद से सुरक्षा बलों पर आतंकी हमलों की वारदातों में इजाफा हो गया है, और हम लाख प्रयत्‍न करने के बाद भी अपने सैनिकों को शहीद होने से नहीं बचा पा रहे हैं।

जम्मू और कश्मीर के पंपोर में सेना के काफिले पर हुए आतंकी हमले में एक बार फिर वही हुआ, हमारे 3 जवान शहीद हो गए एवं दो गंभीर रूप से अभी भी घायल हैं। यहां आतंकवादियों ने दक्षिण कश्मीर के पुलवामा में दोपहर के वक्त श्रीनगर-जम्मू हाईवे से गुजर रहे सेना के काफिले पर उस समय हमला किया जब चारों ओर आम जनता मौजूद थी, आतंकी हमला करने के बाद फरार होने में सफल रहे और सेना राजमार्ग पर जनता के होने के कारण अपनी जवाबी कार्यवाही भी नहीं कर सकी।

इस तरह यदि हम जम्मू और कश्मीर में इस साल अब तक आतंकी हमलों में अपने जवान खो देने का आंकड़ा देखें तो आंखें भर आती हैं। इस साल हमारे अपने 87 जवान शहीद हो चुके हैं। इनमें से 71 जवान सिर्फ कश्मीर घाटी में शहीद हुए हैं। शहीदों में 6 अफसर भी शामिल हैं। इसके पहले के वर्षों की बात करें तो वर्ष 2015 में यहां हमारे 41 सैनिकों को अपनी शहादत देनी पड़ी, वर्ष 2014 में 51 सैनिक शहीद हुए। कांग्रेस के शासन के दौरान 2013 में ये आकड़ा 61 सैनिकों की शहादत का रहा। इसके पहले वर्ष 2012 में आतंकी हमलों में 17 जवान हमने खोए और 2011 में 30 जवान शहीद हुए थे। इससे और पीछे जाकर आंकड़ों पर गौर करें तो वर्ष 2010 में 67 तथा 2009 में जम्‍मू-कश्‍मीर राज्‍य में 78 जवान आतंकी हमलों में शहीद हुए थे1 वर्ष 2008 में 90 जवान शहीद हुए थे। यह आंकड़ा इस साल शहीद हुए जवानों के करीब रहा है।

कुल मिलाकर यहां कहने का आशय यही है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नोटबंदी के माध्‍यम से देश को यह संदेश देने में सफलता प्राप्‍त की कि वे देश से बेईमानी और भ्रष्‍टाचार को जड़ से समाप्‍त करने के लिए प्रतिबद्ध हैं। सत्‍ता में आने के बाद से हमारी सेना का बजट भी लगातार बढ़ाया गया है, किंतु जिस तरह की छूट पाकिस्‍तान सीमा पर सैनिक कार्रवाई करने की होनी चाहिए, उसमें अब भी कहीं न कहीं कोई कमी दिखाई दे रही है, नहीं तो कोई कारण नहीं था कि उचित सबक मिलने के बाद वह आतंकवादियों को भारतीय सीमा में भेजने में सफल हो पाता ?

देश अपने प्रधानमंत्री से यही चाहता है कि आतंकवाद के खिलाफ सीमापार कर एक स्‍ट्राइक करनेभर से काम चलने वाला नहीं है। पाकिस्‍तान बेशर्म देश है, वह अपनी हरकतों से बाज आने वाला नहीं, उसे तो बार-बार सामरिक, कूटनीतिज्ञ और मनोवैज्ञानिक तरीके से कमजोर करना होगा। हमारे एक सैनिक की जिन्‍दगी की कीमत जब तक पाकिस्‍तान के 100 से एक हजार सैनिक नहीं होगी, तब तक कहीं ऐसा न हो कि हम हमने सैनिकों की शहादत पर शोक मनाते रहें और अपनी सफलता के जश्‍न में पाकिस्‍तान फटाके फोड़ता रहे ?

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dr.-mayank-chaturvedidr.भावनाओं-की-राजनीति-में-माहिर-वामपंथी-डॉ.-मयंक-चतुर्वेदीपरिचय -:

डॉ. मयंक चतुर्वेदी

वरिष्‍ठ पत्रकार एवं सेंसर बोर्ड की एडवाइजरी कमेटी के सदस्‍य

डॉ. मयंक चतुर्वेदी मूलत: ग्वालियर, म.प्र. में जन्में ओर वहीं से इन्होंने पत्रकारिता की विधिवत शुरूआत दैनिक जागरण से की। 11 वर्षों से पत्रकारिता में सक्रिय मयंक चतुर्वेदी ने जीवाजी विश्वविद्यालय से पत्रकारिता में डिप्लोमा करने के साथ हिन्दी साहित्य में स्नातकोत्तर, एम.फिल तथा पी-एच.डी. तक अध्ययन किया है। कुछ समय शासकीय महाविद्यालय में हिन्दी विषय के सहायक प्राध्यापक भी रहे, साथ ही सिविल सेवा की तैयारी करने वाले विद्यार्थियों को भी मार्गदर्शन प्रदान किया। राष्ट्रवादी सोच रखने वाले मयंक चतुर्वेदी पांचजन्य जैसे राष्ट्रीय साप्ताहिक, दैनिक स्वदेश से भी जुड़े हुए हैं। राष्ट्रीय मुद्दों पर लिखना ही इनकी फितरत है।

सम्प्रति : मयंक चतुर्वेदी हिन्दुस्थान समाचार, बहुभाषी न्यूज एजेंसी के मध्यप्रदेश ब्यूरो प्रमुख हैं।

Disclaimer : The views expressed by the author in this feature are entirely his own and do not necessarily reflect the views of INVC NEWS.

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