राम्पा विद्रोह के नायक : अल्लूरी सीताराम राजू

1
47

– के वी कर्मनाथ  –

Alluri-Sitaram-Raju,-Rmpa-uअल्‍लूरी सीताराम राजू भारत भूमि में जन्म लेने वाले महान व्यक्ति हैं।  उन्होंने मातृ भूमि के बंधनों को तोड़ने के लिए अपने प्राण दे दिए। आज भी तेलगू प्रांत के लोगों को राम राजू के प्रेरणादायक प्रसंग प्रेरित करते हैं। हालांकि अंग्रेजों के साथ उनकी लड़ाई दो साल तक ही चली, उन्होंने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में एक अमिट छाप छोड़ी और देशवासियों के दिलों में स्थायी जगह बनाई।

इतिहासकार सुमित सरकार ने अपनी पुस्तक- माडर्न इंडिया 1885-1947 में वीर राम राजू के विद्रोह का वृतांत लिखा था:  ‘’इस लोकप्रिय विद्रोह का सबसे स्पष्ट सबूत गोदावरी के उत्तर में अशांत आधे आदिवासी राम्पा क्षेत्र से मिलता है। सीताराम राजू के नेतृत्व में अगस्त1922 और मई 1924 के बीच गुरिल्ला युद्ध का यह दृश्य – वास्तव में आंध्र प्रदेश के असाधारण लोक नायक की कहानी है’’।

सरकार ने अपनी पुस्तक में इस तथ्य की ओर भी संकेत किया है कि इतिहास के पन्नों में जो स्थान लोकनायक को मिलना चाहिए था वह नहीं मिला। लेकिन वह कहीं अन्यत्र भी लगभग अज्ञात है।

विशाखापट्टनम के तटीय शहर के पास एक छोटे से गांव में 4 जुलाई, 1897 को राम राजू का जन्म एक विनम्र मध्यम वर्ग परिवार में हुआ। राम राजू अपने प्रारंभिक जीवन में ही देशभक्ति के भाषणों से काफी प्रभावित थे। 13 वर्ष की आयु में जब एक मित्र ने उन्हें किंग जॉर्ज की तस्वीर वाले मुट्ठी भर बैच दिए तो उन्होंने सभी फेंक दिए मगर एक बैच अपनी कमीज पर टांक कर कहा कि इसे पहनना अपनी दासता प्रदर्शित करना है, लेकिन आप सभी को यह याद दिलाने के लिए कि एक विदेशी शासक हमारे जीवन को कुचल रहा है इसलिए  मैंने अपने दिल के पास अपनी कमीज पर इसे लगाया है।

उनके पिता की मृत्यु के पश्चात उनकी स्कूली शिक्षा बाधित हो गई और वह तीर्थ यात्रा पर निकल गए। उन्होंने किशोरावस्था के दौरान पश्चिमी, उत्तरी-पश्चिमी, उत्तरी और उत्तर-पूर्वी भारत का दौरा किया था। ब्रिटिश शासन के तहत देश की सामाजिक-आर्थिक स्थिति,विशेष रूप से आदिवासी क्षेत्रों की स्थिति देखकर उनके मन पर गहरा प्रभाव पडा। इन यात्राओं के दौरान उन्होंने चटगांव (जो अब बांग्लादेश में है) में क्रांतिकारियों से मुलाकात की।

राम राजू ने अंग्रेजों के खिलाफ एक आंदोलन शुरू करने का मन बना लिया। उन्होंने पूर्वी घाट (विशाखापट्टनम और गोदावरी जिले के आस-पास के वन क्षेत्र) को अपना घर बनाया और उन आदिवासियों के लिए काम करने का फैसला लिया, जो घोर गरीबी में जीवन जी रहे थे और जिन्हें मन्याम (वन क्षेत्र) में पुलिस, वन और राजस्व विभाग के अधिकारियों द्वारा लूटा-खसोटा गया था। उन्होंने आदिवासियों के बीच काम करना शुरू कर दिया और यात्रा के दौरान अर्जित ज्ञान के माध्यम से उन्हें शिक्षा और चिकित्सा सुविधा देकर उनकी मदद करने लगे। उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ अपनी लड़ाई के लिए इस क्षेत्र को केन्द्र बनाने का फैसला किया।

उन्होंने पुलिस, वन और राजस्व अधिकारियों के अत्याचार के खिलाफ आदिवासियों को संगठित करना शुरू किया, और मन्‍याम क्षेत्र का व्‍यापक दौरा किया।     राम राजू ने आदिवासियों को बताया कि वे वन संपदा के एकमात्र मालिक है और उन्हें दमनकारी मद्रास वन अधिनियम, 1882 के खिलाफ लड़ने के लिए तैयार किया। प्रारंभिक सफलताओं से आदिवासियों और आसपास के गांवों के लोगों के बीच आशा और विश्वास पैदा हुआ और अधिक से अधिक ग्रामीण राम राजू के नेतृत्व में  रैली निकालने लगे।

उन्हें अपने द्वारा चुने गए मार्ग पर इतना विश्वास था कि उन्होंने एक पत्रकार(उनका एकमात्र साक्षात्कार) से कह दिया कि वह दो साल के भीतर ही अंग्रेजों  को उखाड़ फेंकेंगे।

आदिवासियों को उनकी वन्य संपदा पर अधिकार के लिए संगठित करने के दौरान उन्हें उस क्षेत्र की पूर्ण जानकारी हो चुकी थी, जिससे भविष्य में अंग्रेजों के खिलाफ गुरिल्ला युद्ध में उनको काफी मदद मिली। वह एक जगह एक समय दिखाई देते और पल में गायब हो जाते कुछ ही समय में कहीं और प्रकट हो जाते। उन्होंने ब्रिटिश फौज की रातों की नींद हराम कर दी थी। उनके हमलों और पुलिस स्टेशन को बर्बाद करने के उनके कारनामे लोककथाओं का हिस्सा बन गए। उन्होंने इस क्षेत्र में अनुयायियों की एक मजबूत टीम का निर्माण किया,जिन्होंने एक सेना तैयार की।  यह सेना धनुष, तीर और भाले जैसे पारंपरिक हथियारों का उपयोग करती थी और इनके जरिए उन्होंने ब्रिटिश सेना के खिलाफ शानदार सफलता हासिल की।
उन्होंने आदिवासियों से युद्ध के समय कसौटी पर खरे उतरने वाले तरीकों को सीखा और उसमें अपनी रणनीति मिलाकर अंग्रेजों के खिलाफ एक भयावह लड़ाई की शुरूआत की। उदाहरण के लिए, उनकी टीम ने सीटियां और ढोल की आवाज का क्रांतिकारियों के बीच संदेशों का आदान-प्रदान करने के लिए प्रयोग किया। उन्हें जल्द ही यह एहसास हो गया कि पारंपरिक हथियार का उपयोग भारी हथियारों से लैस ब्रिटिश सेना के सामने बेकार है। उन्होंने सोचा कि सबसे अच्छा तरीका दुश्मन से हथियार छीनना होगा, जिसके लिए  बिजली की गति के साथ पुलिस स्टेशनों पर हमले किये गये।

इस प्रकार का पहला हमला 22 अगस्त 1922 को राजू के नेतृत्व में 300 क्रांतिकारियों ने विशाखापट्टनम एजेंसी क्षेत्र में चिंतापल्ली थाना पर किया गया। इसी तरह के अन्य हमले कृष्णादेवी पेटा और राजा ओमानगी थाना क्षेत्र पर भी किए गए। इन सभी हमलों में उन्होंने हथियार और शस्त्रागार छीन लिए। विशाखापट्टनम, राजमुंदरी, पार्वतीपुरम और कोरापुट से रिजर्व पुलिस कर्मियों का एक बड़ा दल इन क्षेत्रों में ब्रिटिश अधिकारियों के नेतृत्व में भर्ती कराया गया। 24 सितंबर 1922 को क्रांतिकारियों के साथ लडाई में स्कॉट और हीटर नाम के दो अधिकारी मारे गए और कई अन्य घायल हो गए।

सभी हमलों को अंतिम रूप देने के लिए राजू द्वारा खुद हस्ताक्षरित एक ट्रेडमार्क पत्र के माध्यम से स्टेशन डायरी में लूट की जानकारी दी गई। हमलों की एक और खासियत थी कि हमले के दिन और समय की घोषणा भी की जाती थी।
एजेंसी के कमिश्नर जे.आर. हिगिन्स ने राम राजू का सिर काटकर लाने के लिए 10,000 और उनके सहयोगियों गनतम डोरा और मालू डोरा पर 1000 रू के इनाम की घोषणा की थी। उन्होंने शीर्ष ब्रिटिश अधिकारियों के नेतृत्व में आंदोलन को कुचलने के लिए 100 से भी अधिक संख्या वाली मलाबार और असम राईफल की विशिष्ट सेना को भी तैनात किया था। जब राजू और उनके साथियों ने उन्हें हमला रोकने की चुनौती दी तो
सैंडर्स और फोर्ब्स जैसे अधिकारियों को कई बार अपने कदम पीछे हटाने पड़े।

मन्याम विद्रोह को नियंत्रित करने में असमर्थ, ब्रिटिश सरकार ने अप्रैल 1924 में टी जी रदरफोर्ड को आंदोलन दबाने के लिए नियुक्त किया। रदरफोर्ड ने राजू के ठिकाने और उसके प्रमुख अनुयायियों का पता पाने के लिए हिंसा और अत्याचार का सहारा लिया।

ब्रिटिश बलों द्वारा अथक प्रयास करने के बाद, राम राजू को पकड़ लिया गया और 7 मई, 1924 वह शहीद हो गए। इसके पश्चात उनके साथियों पर सप्ताह भर अकथनीय दमन और हिंसा होती रही जिसके चलते कई क्रांतिकारियों को अपनी जान गंवानी पडी थी। 400 से अधिक कार्यकर्ताओं पर राजद्रोह सहित कई आरोपों के तहत मामले दर्ज किये गये।

राम राजू एक कार्यकुशल दुर्जेय गुरिल्ला के रूप में अंग्रेजों की प्रशंसा के पात्र बन गए। उन दिनों सरकार को यह विद्रोह दबाने के लिए में 40 लाख रुपये से अधिक खर्च करने पड़े जिसके बारे में रम्पा विद्रोह की सफलता के बारे में संस्करणों में देखने को मिलता है।

दुर्भाग्यवश राम राजू की जिंदगी और आंदोलन पर शोध बहुत कम हुआ है। आज जब देश 70वां स्वतंत्रता दिवस मनाने जा रहा है ऐसे में राम राजू को याद करने और उनके प्रति सम्मान प्रकट करने का यह एक सुनहरा मौका है। उनकी अस्थियां कृष्णादेवी पेटा विशाखापट्टनम में दफनाई गई हैं। राष्‍ट्र उनकी याद में स्मारक का निर्माण कर इस दिशा में एक बेहतर कार्य कर सकता है।

________________

k V Karmnathपरिचय

के वी कर्मनाथ

वरिष्ठ पत्रकार

_________________
____________
___________________

*के वी कर्मनाथ, उप संपादक, हिंदु बिजनेस लाइन।

_________________

Disclaimer : The views expressed by the author in this feature are entirely his own and do not necessarily reflect the views of  INVC NEWS.

1 COMMENT

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here