अनिल सिन्दूर की पांच रचनाएँ
1-
तू ही नही,
डरता है सूरज भी
अँधेरों से,
समय आता है जैसे ही
अँधेरों का
‘वो’ कहीं
दूर छिप कर बैठ
करता है इंतजार
अपने समय का,
करना होगा तुझे भी
इंतजार
उस समय का !
2-
अरे ओ,
समाज को राह दिखाने वाले ठेकेदारो
न बोये होते यदि कड़बे बीज
जिन्होनें बढ़ा दी खायी
बीच उनके जो हुआ करते थे करीब
तो पूजे जाते तुम
जो बोया है वही काटना है तुम्हें
जिन्होनें तुम्हारे चरणों को दिया था
एक ऐसा आवरण जो सुरक्षित रख सके उन्हें
तुमने दंभ में, उसके सर पर ही
उन्हें रखने का अपराध कर डाला
3-
मित्र ,
तमाम प्रयासों के बाद भी
टूटता नहीं वो
हथोड़ों की चोट से भी नहीं
और न ही संवेदनाओं के आहत होने से
चोट दर चोट
और मजबूत हुआ है वो
लोहे की तरह !
प्रयास जारी रखना
क्यों कि तुम्हें नहीं मालूम
तुम हार गये तो
हार जायेगा वो भी !!
4-
वो बंद कर लेना चाहता है
दरवाजे
और बैठना चाहता है
ख़ामोश
सुनने को अनकही आवाज़े
जो गूंजती रहती हैं
वे-आवाज़ बेहद करीब
वो बंद कर लेना चाहता है
कपाट
करना चाहता है अट्टहास
और हो जाना चाहता है शांत
बेहद शांत
सुनने को अनकही अन्दर की
आवाज़
5-
मित्र ,
होता है जब वो उदास
अपने मोबाइल की तरह
दिमाग में अपनों की
‘कोंटेक्ट लिस्ट’ को खंगाल
निकालना चाहता है एक नाम
और पूछना चाहता है
निवारण, अपनी उदासी काजब खोजने पर भी नहीं मिलता
उसे वो ‘नाम’
तब खो जाना चाहता है वो
गुमनामी की भीड़ में,
तलाशने को ‘राहत’
और ठहर जाता है
वहीँ …………….
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28 वर्षों से पत्रिकारिता क्षेत्र में , कथाकार , रचनाकार, सोशल एक्टिविष्ट , रंगमंच कलाकार , आकाशवाणी के नाटकों को आवाज़, खादी ग्रामौद्योग कमीशन बम्बई द्वारा शिल्पी पुरस्कार , सॉलिड वेस्ट मनेजमेंट पर महत्वपूर्ण योगदान
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सभी रचनाएं बहुत ही सुंदर और सार्थक।