और अब बलात्कार पर भी होने लगी राजनीति?

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2 Sisters allegdly raped & killed at Badayun{ तनवीर जाफ़री }

                        दो वर्ष पूर्व दिल्ली में हुए दामिनी बलात्कार कांड को अभी देश भूल नहीं पाया था कि उत्तर प्रदेश के बदायूं जि़ले में दो नाबालि ग बहनों के बलात्कार के बाद उनकी हत्या कर फांसी के फंदे पर उनके शव लटका दिए जाने जैसा हृदय विदारक हादसा सामने आ गया। जिस प्रकार दामिनी बलात्कार कांड की दरिंदगी ने विश्व मीडिया का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया था उसी प्रकार बदायूं में दो  मासूम दलित बच्चियों के साथ हुई इस लोमहर्षक घटना ने पूरी दुनिया का ध्यान अपनी तर फ खींचा है। संयुक्त राष्ट्र संघ के महासचिव बान की मून ने भी इस घटना का संज्ञान लिया है। बड़े अ फसोस की बात है कि भारतवर्ष जिसे संतो,पीरों- फ कीरों तथा महर्षियों की धरती के नाम से दुनिया जानती थी अब उसी भारत का नाम बलात्कार,दंगे-फ़साद,अराजकता,भ्रष्टाचार तथा राजनीति के दिन-प्रतिदिन गिरते जा रहे स्तर की वजह से जाना जा रहा है। और इससे भी शर्मनाक बात यह है कि एक-दूसरे को नीचा दिखाने की  िफरा क में हर समय लगे रहने वाले भारतीय राजनीति के महारथी बलात्कार जैसे संगीन अपराध में भी अपने लिए राजनैतिक संभावनाएं तलाशते देखे जा रहे हैं। 

                        जिस समय दिल्ली में दामिनी बलात्कार कांड हुआ था उस समय पूरे देश में बलात्कारियों को फांसी देने की मांग को लेकर धरने-प्रदर्शन किए गए थे तथा जुलूस निकाले गए थे। प्रदर्शनकारी तो दिल्ली के इंडिया गेट से दिसंबर की कडक़ड़ाती ठंड में  जाने का नाम ही नहीं ले रहे थे। उस समय भी ऐसी घटनाओं में राजनीति करने का अवसर तलाश करने वाला एक वर्ग दिल्ली की तत्कालीन मुख्यमंत्री शीला दीक्षित के त्यागपत्र की मांग कर रहा था। उसी तर्ज पर बदायंू़ की घटना का जहां जगह-जगह विरोध किया जा रहा है तथा  बलात्कार व हत्या के आरोपियों को फांसी पर लटकाने की मांग की जा रही है वहीं राजनीति के खिलाड़ी इस घटना में भी उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के त्यागपत्र की ज़रूरत महसूस कर रहे हैें। कुछ नेता उत्तर प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लगाए जाने की मांग कर रहे हैं। उधर अखिलेश यादव भी विरोधी दलों के बढ़ते दबाव की वजह से तथा लोकसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी के विरुद्ध आए जनादेश के मद्देनज़र इस घटना पर बड़े ही गंभीर  फैसले ले रहे हैं।  फास्ट ट्रैक कोर्ट का गठन किया जा चुका है। मुख्य सचिव तथा गृहसचिव जैसे उच्च पदों पर बैठे अधिकारियों को इसी घटना के चलते हटाया जा चुका है। गोया अखिलेश यादव भी इस घटना के बाद यह दिखाना चाह रहे हैं कि बड़े से बड़े अधिकारी के विरुद्ध स ख्त से स ख्त कार्रवाई करने में वे हिचकिचाने वाले नहीं हैं। उधर एक केंद्रीय मंत्री ने तो यहां तक कह दिया है कि बलात्कार के संबंध में मुलायम सिंह यादव द्वारा दिया गया बयान बलात्कारियों के हौसले बढ़ा रहा है।  गौरतलब है कि पिछले लोकसभा चुनावों के दौरान एक सभा में मुलायम सिंह यादव ने बलात्कार के आरोपियों को फांसी दिए जाने की वकालत करने वालों का विरोध करते हुए यह कहा था कि ‘बच्चों से  गलती हो जाती है’ उन्हें ऐसी  गलती के लिए फांसी नहीं दी जानी चाहिए। बदायूं बलात्कार कांड को लेकर एक वर्ग ऐसा भी है जो इस घटनाक्रम को दलित उत्पीडऩ के नज़रिए से देख रहा है।  

                        उधर बदायूं कांड के बाद लगता है मीडिया ने भी अपना पूरा ध्यान उत्तर प्रदेश में होने वाली बलात्कार की घटनाओं को तत्काल प्रसारित किए जाने पर केंद्रित कर दिया है। इन्हीं  खबरों से यह पता चल रहा है कि उत्तर प्रदेश में प्रतिदिन 2 से लेकर 4 तक बलात्कार की घटनाएं घटित हो रही हैं। राहुल गांधी के संसदीय क्षेत्र अमेठी में भी बलात्कार की घटना घटित होने का समाचार है। प्रदेश में एक अल्पसंख्यक युवती के साथ भी बलात्कार किए जाने समाचार है। और हद तो यह है कि प्रदेश की एक महिला मजिस्ट्रेट के घर में घुसकर कुछ लोगों द्वारा बलात्कार किए जाने जैसी हैरतअंगेज़ घटना सामने आई है। गोया यदि मीडिया में प्रसारित होने वाली बलात्कार की  खबरों को ही देश का सच माना जाए तो या तो केवल शीला दीक्षित के शासनकाल में दिल्ली में बलात्कार हो रहा था या फिर अब अखिलेश यादव की सरकार के रहते केवल यूपी में ऐसी घटनाएं हो रही हैं? परंतु यदि हम मीडिया की  खबरों से अलग हटकर आंकड़ों पर नज़र डालें तो हमें यह पता चलता है कि बलात्कार व महिला यौन उत्पीडऩ की सबसे अधिक घटनाएं मध्य प्रदेश राज्य में होती हैं। वैसे भी देश का कोई भी राज्य ऐसी घटनाओं से अछूता नहीं है। सवाल यह है कि बलात्कार की घटनाएं भले ही किसी भी राज्य में घटित हो रही हों और वहां किसी भी पार्टी की सरकार क्यों न हो परंतु क्या सीधे तौर पर सरकार को इन घटनाओं का दोषी  करार दे देना, ऐसी घटनाओं के लिए मुख्यमंत्री से त्यागपत्र मांगना या राज्य सरकार पर निशाना साधना मुनासिब है? क्या कोई भी सरकार चाहते हुए भी बलात्कार की घटनाओं पर  काबू पा सकती है? इतने विशाल देश में जहां ट्रेन,बस तथा सडक़ों पर चलते हुए यातायात पर रेलवे स्टेशन व हवाई अड्डों पर यहां तक कि सीमा पर पूरी तरह से निगरानी नहीं रखी जा सकती वहां सुनसान जगहों पर,अंधेरी गलियों में,खेतखलिहानों में होने वाली बलात्कार की घटनाओं पर सरकारी तंत्र का नज़र रख पाना आ िखर किस प्रकार संंभव है?  

                        पिछले दिनों उत्तरप्रदेश के एक डीआई जी ने यह कहा कि लड़कियों के खुली जगहों पर शौच के लिए जाने की वजह से बलात्कार की घटनाएं होती हैं। निश्चित रूप से यह भी एक वजह हो सकती है। परंतु केवल इसी वजह से बलात्कार होता हो ऐसा भी नहीं है। अब यदि हम पूरी ईमानदारी के साथ बलात्कार व महिला यौन उत्पीडऩ में शामिल लोगों पर नज़र डालें तो हम देखेंगे कि न्यायधीश से लेकर मंत्री,सांसद,विधायक ,आईएएस,आईपीएस अधिकारी, संत-महंत, मौलवी,डॉक्टर,अभिनेता गोया समाज के तथाकथित सभी संभ्रांत वर्ग के लोगों के नाम इस दरिंदगी से जुड़ चुके हैं। कोई भी सरकार इनके चंगुल से किसी मासूम या अबला लडक़ी को कैसे छुड़ा सकती है? क्या सचमुच यह सरकार की नाकामी की वजह है? हो सकता है ऐसी घटनाओं के बाद राज्य सरकारों को दोषी ठहराने वाले लोगों का मत ऐसा हो  खासकर जबकि दोष मढऩे वाले लोग विपक्ष में बैठकर सत्तापक्ष पर निशाना साध रहे हों? परंतु वास्तव में ऐसा नहीं है। दरअसल बलात्कार का सीधा संबंध किसी भी व्यक्ति की रुग्ण मानसिकता से है। हमारे देश में लडक़े व लडक़ी की परवरिश के दौरान किए जाने वाले उस भेदभाव पूर्ण रवैये से है जिसमें होश संभालते ही लडक़े को लडक़ी के मु काबले अधिक तरजीह दी जाती है। लडक़े की परवरिश के दौरान उसे शह दी जाती है। उसे प्रोत्साहित किया जाता है। उसके बुरे कामों पर पर्दा डाला जाता है। उसकी आक्रामक हरकतों को नज़र अंदाज़ किया जाता है। जबकि ठीक इसके विपरीत एक लडक़ी की परवरिश उपेक्षा,भय तथा उसे नज़रअंदाज़ किए जाने के वातावरण में होती है। हमारे देश में जिस समय किसी के घर लडक़ा पैदा होता है तो उसी समय उसके घर में बधाई देने वाले लोगों का अंदाज़ और सुर कुछ अलग होता है। पैदाईश का जश्र भी कुछ ज़्यादा ही मनाया जाता है। परंतु कन्या के जन्म लेने पर परिवार के लोगों के चेहरे उतरे दिखाई देते हैं। केवल औपचारिकता अदा करने के लिए बधाई देने वाले लोग इसी एक वाक्य से काम चला लेते हैं कि ‘चलो कोई बात नहीं घर में लक्ष्मी आई है’। और यदि हम इससे भी पहले की स्थिति को देखें तो कन्या भ्रुण हत्या जैसा अपराध हमारे देश में किस  कद्र गहरी जड़ें जमा चुका है।  

                        उपरोक्त परिस्थितियां इस निष्कर्ष पर पहुंचने के लिए पर्याप्त हैं कि जहां जन्म से पूर्व व जन्मोपरांत बालिका को उपेक्षा की दृष्टि से देखा जा रहा हो वहां वही कन्या बड़ी होकर यदि पुरुष समाज की दरिंदगी का श्किाार बनती है तो इसमें निश्चित रूप से पारिवारिक व सामाजिक परिवेश ही सबसे बड़ा दोषी,जि़म्मेदार व गुनहगार है। न कि किसी भी राजनैतिक दल द्वारा चलाई जाने वाली राज्य सरकारें अथवा केंद्र सरकार। मैं नहीं समझता कि बलात्कार जैसे गंभीर व संवेदनशील सामाजिक अपराध की आड़ में राजनीति की जानी चाहिए।

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Tanveer Jafri**Tanveer Jafri –  columnist,(About the Author) Author Tanveer Jafri, Former Member of Haryana Sahitya Academy (Shasi Parishad),is a writer & columnist based in Haryana, India.He is related with hundreds of most popular daily news papers, magazines & portals in India and abroad. Jafri, Almost writes in the field of communal harmony, world peace, anti communalism, anti terrorism, national integration, national & international politics etc. He is a devoted social activist for world peace, unity, integrity & global brotherhood. Thousands articles of the author have been published in different newspapers, websites & news-portals throughout the world. He is also a recipient of so many awards in the field of Communal Harmony & other social activities.Contact Email : tanveerjafriamb@gmail.com
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*Disclaimer: The views expressed by the author in this feature are entirely his own and do not necessarily reflect the views of INVC.

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