2019 में मोदी-शाह भाजपा की ज़रूरत या मजबूरी ?

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– तनवीर जाफरी –

दिल्ली के ऐतिहासिक रामलीला मैदान में पिछले दिनों भारतीय जनता पार्टी का दो दिवसीय राष्ट्रीय अधिवेशन आयोजित किया गया। भाजपा सूत्रों के मुताबिक इस अधिवेशन में देशभर से लगभग 12 हज़ार प्रतिनिधियों ने भाग लिया। इन में पार्टी के मंत्री,सांसद,विधायक,पदाधिकारी तथा कार्यकर्ता आदि सभी शामिल थे। इस अधिवेशन में जहां पार्टी ने राजनैतिक व आर्थिक मुद्दों पर पार्टी के रुख को स्पष्ट करते हुए प्रस्ताव पारित किए वहीं भाजपा ने 2019 के लिए भी एक बार फिर नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में चुनाव लडऩे का इरादा ज़ाहिर किया। इसका सबसे बड़ा प्रमाण रामलीला मैदान में चारों ओर लगाए गए वह बैनर थे जिनपर साफतौर पर लिखा हुआ था-‘अब की बार फिर मोदी सरकार’। अपने अलग-अलग संबोधनों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तथा भाजपा अध्यक्ष अमित शाह द्वारा पार्टी नेताओं व कार्यकर्ताओं को भाजपा का सुनहरा भविष्य दिखाने का प्रयास करते हुए उनमें ऊर्जा व उत्साह भरने की कोशिश की गई। पिछले दिनों राजस्थान,मध्यप्रदेश तथा छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनाव हारने के बावजूद अमित शाह द्वारा कार्यकर्ताओं को यह ‘सुनहरा सपना’ दिखाया गया कि- ‘यदि 2019 में भाजपा पुन: सत्ता में आती है तो पार्टी का परचम केरल तक लहराएगा’। जो भाजपा, केंद्र व उत्तर प्रदेश में भी सत्ता में होने के बावजूद उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की गोरखपुर की संसदीय सीट तथा उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य की फूलपुर सीट नहीं जीत सकी उस भाजपा के अध्यक्ष अमितशाह ने अपने कार्यकर्ताओं से यह उम्मीद बांध रखी है कि वे इस बार उत्तर प्रदेश में 73 सीटें जीतने के बजाए 74 की संख्या पर पहुंचेंगे।

बहरहाल, प्रत्येक पार्टी अपने नेताओं व कार्यकर्ताओं की हौसला अफज़ाई इसी प्रकार करती है ताकि उनका जोश व उत्साह कायम रह सके। भाजपा भी गत् पांच वर्षों में विभिन्न चुनावों में बार-बार मिलने वाली पराजय के बावजूद अपने कार्यकर्ताओं का मनोबल बढ़ाने के उद्देश्य से कुछ ऐसा ही कर रही है। परंतु इन सबसे महत्वपूर्ण प्रश्र यह है कि जब 2014 से लेकर अब तक मोदी व शाह की जोड़ी ने पार्टी को विभिन्न स्तरों पर काफी क्षति पहुंचाई है ऐसे में पार्टी 2019 में पुन: इन्हीं नेताओं को अगले लोकसभा चुनाव का चेहरा बनाने क्यों जा रही है? क्या पार्टी के पास इस जोड़ी के अतिरिक्त कोई दूसरा नेतृत्व नहीं है? या फिर मोदी व अमित शाह के अतिरिक्त और कोई नेता राजनीति के वर्तमान वातावरण में जूझने की क्षमता नहीं रखता? या फिर मोदी व अमित शाह भारतीय जनता पार्टी की ज़रूरत नहीं बल्कि मजबूरी बन चुके हैं? अभी पिछले दिनों केंद्रीय मंत्री एवं भाजपा के पूर्व अध्यक्ष नितिन गडकरी द्वारा बार-बार कुछ ऐसे बयान दिए गए जो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बयानों के या तो विरुद्ध थे या उनकी राजनैतिक सोच से मेल नहीं खाते थे। गडकरी की इस बयानबाज़ी को राजनैतिक विश£ेषकों द्वारा बड़ी ही सूक्ष्म दृष्टि से देखा जा रहा था। उधर मध्यप्रदेश,छत्तीसगढ़ व राजस्थान जैसे बड़े राज्यों के हाथ से निकलने के बाद राष्ट्रीय स्वयं संघ की ओर से भी यह चिंतन किया जाने लगा था कि 2019 में मोदी-शाह पर विश्वास जताया जाना चाहिए या फिर इसका विकल्प तलाश करने की ज़रूरत है?

2014 के बाद भाजपा खासतौर पर मोदी व शाह की जोड़ी को देश ने एक अहंकारी नेतृत्व के रूप में देखा है। अपने सहयोगी घटक दलों को अपने साथ जोड़ पाने में भी पार्टी सफल नहीं रही है। उसके अपने कई सहयोगी गठबंधन छोडक़र जा चुके हैं और कई साथ छोडऩे को तैयार बैठे हें। यशवंत सिन्हा तथा शत्रुघ्र सिन्हा जैसे नेता हर वक्त भाजपा व नरेंद्र मोदी को आईना दिखाने का काम कर रहे हैं। जनता दल यूनाईटेड,शिवसेना व लोकतांत्रिक जनशक्ति पार्टी जैसे कई सहयोगी घटक दल ऐसे भी हैं जिनकी शर्तों को मानकर अपना साथ न छोडऩे देना भाजपा की मजबूरी बन चुकी है। तीन राज्यों की हार के बाद पार्टी की राज्य इकाईयों के न केवल नेता व मंत्री बल्कि मुख्यमंत्री तक गुपचुप तरीके से यही कह रहे हैं कि इन राज्यों में भाजपा की हार मोदी व शाह की वजह से तथा केंद्र सरकार की किसान विरोधी नीतियों तथा नोटबंदी,जीएसटी,मंहगाई व बेरोज़गारी जैसे मुद्दों की वजह से हुई है अन्यथा राज्य की भाजपा सरकारें अपने-अपने चुनाव पुन: जीत सकती थीं। स्वयं आंकड़े इस बात के साक्षी हैं कि राजस्थान,मध्यप्रदेश व छत्तीसगढ़ के जिन-जिन क्षेत्रों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जनसभाएं कीं उनमें से अधिकांश सीटों पर भाजपा को हार का ही मुंह देखना पड़ा। उधर प्रधानमंत्री व अमितशाह की सभाओं में भी लाख प्रयासों व सरकारी साधनों के दुरुपयोग के बावजूद अपेक्षित भीड़ भी नहीं आ रही थी।

ज़ाहिर है 2019 में होने वाले लोकसभा चुनाव इन तीन राज्यों के चुनाव परिणामों से अछूते कतई नहीं रहेंगे। क्योंकि भाजपा नेताओं की ओर से ही यह बार-बार कहा जा रहा था कि इन राज्यों के विधानसभा चुनाव 2019 लोकसभा चुनाव का सेमीफाईनल हैं। जो बाबा रामदेव 2014 में इस संकल्प के साथ अपने हरिद्वार आश्रम से बाहर निकल गए थे कि जब तक नरेंद्र मोदी को वे प्रधानमंत्री नहीं बना लेंगे तब तक हरिद्वार वापस नहीं आएंगे। अब वही बाबा रामदेव यह कहते सुनाई दे रहे हैं कि 2019 के आम चुनाव के बाद अगला प्रधानमंत्री कौन होगा यह हम नहीं कह सकते। वैसे भी राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ तथा मोदी-अमित शाह की चुनावी रणनीति में काफी अंतर नज़र आ रहा है। संघ जहां चुनाव पूर्व अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण करने की दिशा में मोदी-शाह से कुछ सकारात्मक,रचनात्मक तथा निर्णायक कदम उठाए जाने की उम्मीद रखता है  वहीं दूसरी ओर पार्टी के चाणक्य समझे जाने वाले अमितशाह तथा स्वयं को अजेय समझने वाले प्रधानमंत्री मोदी जोकि हमेशा वोट बैंक की राजनीति का विरोध करते रहे हैं अब स्वयं उसी वोट बैंक की राजनीति कर 2019 में पुन: सत्ता में वापसी की जुगत लगा रहे हैं।

मोदी-शाह की रणनीति में सामान्य श्रेणी के लोगों को सरकारी नौकरियों में 10 प्रतिशत आरक्षण दिए जाने की घोषणा,मुस्लिम महिलाओं को खुश करने के लिए संसद में तीन तलाक बिल पास कराना,मूर्तियों की राजनीति करना,महिला अधिकारों के विषय पर तीन तलाक व सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश में भेद करना,गाय तथा गंगा के नाम पर राजनीति करना, हिंसक भीड़ द्वारा निहत्थे लोगों की हत्याओं पर खामोश रहना,यहां तक कि बलात्कारियों व हत्यारों के समर्थन में खड़े होने वाले पार्टी नेताओं व कार्यकर्ताओं पर नकेल कसने के बजाए उन्हें अपनी खामोशी से मूक स्वीकृति देना,शरणार्थियों के नाम पर हंगामा खड़ा करना,कांगे्रस व नेहरू परिवार को देश का दुश्मन साबित करने में अपनी पूरी उर्जा लगा देना,देश को आधुनिक तथा वैज्ञानिक युग की ओर ले जाने के बजाए पौराणिक व काल्पनिक युग में ले जाने की कोशिश करना जैसी अनेक बातें शामिल हैं। इस समय देश भाजपाईयों द्वारा लोगों का राष्ट्रभक्ति व राष्ट्रवाद का प्रमाणपत्र बांटे जाने के चलन को लेकर भी बहुत दु:खी है। ऐसे में देश की नज़रें इस बात पर भी टिकी हुई हैं कि क्या 2019 में भी भाजपा की राज्य इकाईयां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पार्टी के सबसे बड़े स्टार प्रचारक के रूप में उसी जोश के साथ आमंत्रित करेंगी जैसाकि 2014 में किया था? क्या 2014 की ही तरह कांग्रेस व नेहरू-गांधी परिवार के विरोध पर आधारित मोदी-शाह का भाषण 2019 में भी उन्हें उर्जा प्रदान करेगा? या फिर तीन बड़े राज्यों में हार की छाया 2019 पर भी पड़ेगी? आने वाला समय देश के साथ-साथ भाजपा की भीतरी राजनीति के लिए भी अत्यंत महत्वपूर्ण साबित होगा?

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About the Author

Tanveer Jafri

Columnist and Author

Tanveer Jafri, Former Member of Haryana Sahitya Academy (Shasi Parishad),is a writer & columnist based in Haryana, India.He is related with hundreds of most popular daily news papers, magazines & portals in India and abroad. Jafri, Almost writes in the field of communal harmony, world peace, anti communalism, anti terrorism, national integration, national & international politics etc.

 He is a devoted social activist for world peace, unity, integrity & global brotherhood. Thousands articles of the author have been published in different newspapers, websites & news-portals throughout the world. He is also recipient of so many awards in the field of Communal Harmony & other social activities.

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