1947 स्वतंत्रता की असलियत : भाग तीन

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1947 स्वतंत्रता की असलियत : भाग तीन

– सुनील दत्ता –

sunil-kumar-duttasunil-dutta1947इण्डिया इन्डिपेंड्स एक्ट की धाराओं  का सवाल है  तो उसके अंतर्गत  इस देश को दो अधिराज्यो  ( भारत  – पाकिस्तान ) के रूप में स्वतंत्रता देने दोनों देशो की विधायिकाओ  को अपना सविधान  व कानून बनाने की स्वतंत्रता देने , ब्रिटिश सरकार द्वारा देशी राजाओं व अन्य  किसी क्षेत्र  के साथ किये गये राजनितिक संधियों को समाप्त किये जाने  , ब्रिटिश शासन द्वारा  नियुक्त  गवर्नर  जनरल  को इस देश में इन्डियन इन्डिपेंड्स एक्ट को लागू किये जाने तक बने रहने  तथा ब्रिटिश काल  के समूचे प्रशासन तंत्र को अब भारत  सरकार के प्रशासन तंत्र के रूप में कार्य करने आदि की कानूनी धरो को शामिल किया गया था |

इन सारी धाराओं  को देखते हुए यह बात आसानी से समझी जा सकती है  कि भारत  स्वतंत्रता  कानून ये सभी  धाराए देश के ( भारत – पकिस्तान में बटे  देशो के  ) सत्ता – सरकार  तथा प्रशासन के बदलाव की अर्थात  राजनितिक प्रशासनिक बदलाव की धाराए है | इन धाराओ में ब्रिटेन के साथ बनते रहे  आर्थिक शैक्षणिक सांस्कृतिक संबंधो की खासकर  ब्रिटेन द्वारा  इस देश को लूटने –  पाटने के लिए ढाई सौ साल से बनाये व बढ़ते जाते रहे सम्बंधो के बारे में कोई चर्चा नही है | स्वभावत: इन धाराओ  में उन आर्थिक सम्बन्धो से इस देश को स्वतंत्रत किये जाने की भी कोई चर्चा नही हो सकती | जबकि मुख्य रूप से उन्ही आर्थिक सम्बन्धो को संचालित करने के लिए ही ईस्ट इण्डिया कम्पनी द्वारा ब्रिटिश  –  राज को निर्मित व संचालित करने की राजनितिक प्रशासनिक तथा न्याय प्रणाली को स्थापित किया गया था |
जहा  तक राजनितिक  स्वतंत्रता की बात है , तो इसे भारत  स्वतंत्रता कानून  के जरिये प्रदान करने के साथ ब्रिटिश गवर्नर जनरल को देश में बनाये रखने तथा ब्रिटिश काल के प्रशासन को बनाये रखने की धाराए  उस राजनितिक स्वतंत्रता पर भी प्रश्न – चिन्ह खड़ा कर देती है  |
आखिर ब्रिटिश गवर्नर जनरल को देश में कुछ समय तक ( सम्भवत: नये सविधान के निर्माण तक ) इस देश में बने रहने  का कानून  ब्रिटिश संसद द्वारा क्यों पास किया गया ? और फिर 15 अगस्त 1947 को स्वतंत्र हुए देश के प्रतिनिधियों की सरकार ने स्वीकार क्यों कर लिया ? स्पष्ट है  कि ब्रिटेन की सरकार मुख्यत: ब्रिटिश पूजी एवं ब्रिटिश कम्पनियों आदि के रूप में मौजूद ब्रिटिश हितो की रक्षा के लिए तथा इस देश के श्रम संपदा के लूट के लिए ब्रिटेन द्वारा  बनाये गये सम्बंधो को बरकरार रखने के लिए भारत स्वतंत्रता कानून की इन धाराओ  को पास किया  था |

ताकि सविधान  के किसी धारा के जरिये उन हितो , सम्बन्धो पर कोई खरोच न आये  |
मुख्यत: इसीलिए गवर्नर जनरल  को बनाये रखने  के साथ उस समय के ब्रिटिश हुकूमत के प्रति वफादार रहे  प्रशासन  तंत्र को भी बनाये रखने की कानूनी धारा  को भारत स्वतंत्रता कानून का हिस्सा बना दिया गया  | तत्कालिन  भारत – सरकार ने यह बात जानते समझते हुए भी भारत स्वतंत्रता कानून की इन धाराओ  को सहर्ष कबूल लिया | क्योकि न तो उन्हें ब्रिटेन के आर्थिक हितो  को कोई नुकसान पहुचना था और न ही ब्रिटेन के साथ बनते रहे लूट – पाट  के सम्बन्धो को खत्म ही करना था | उन आर्थिक संबंधो पर आगे चर्चा करेंगे हम | लेकिन यह बात सष्ट है कि भारत स्वतंत्रता कानून में वर्णित या प्रदर्शित धाराओं पर गवर्नर जनरल को कुछ दिनों के लिए तथा प्रशासन तंत्र को हमेशा के लिए बनाये रखने का विरोध भारत सरकार के प्रतिनिधियों ने यह बात जानते हुए भी नही किया कि गवर्नर जनरल  और ब्रिटिश प्रशासन – तंत्र देश में ब्रिटिश राज के प्रमुख अंग के रूप में ब्रिटिश साम्राज्य के प्रतिनिधि एवं  सेवक भी रहे  है | गवर्नर जनरल  समेत समूचा प्रशासनिक ढाचा ही इस  देश को ब्रिटेन का औपनिवेशिक गुलाम बनाये रखने वाले नीतियों , कानूनों को लागू करता रहा है  | देश के स्वतंत्रता आंदोलनों व संघर्षो को दबाता व कुचलता रहा है |

1947 में भारत स्वतंत्रता कानून के जरिये मिली स्वतंत्रता में इस प्रशासन तंत्र के साथ अंग्रेजी राज द्वारा बनाये गये कानूनों को भी बरकरार रखा गया | देश के सविधान निर्माण की प्रक्रिया में ब्रिटिश राज में लागू रहे तमाम कानूनों में कोई बदलाव नही किया गया | अत: देश के राज्य को ( जिसे आधुनिक युग में कानून राज भी कहा जा सकता   है ) तथा शासन प्रशासन के तंत्र को भी ब्रिटिश राज्य से मुक्त कानून का राज्य तथा शासन – प्रशासन नही कहा जा सकता | इसीलिए भी भारत  स्वतंत्रता कानून के जरिये मिली राजनितिक स्वतंत्रता  को देश की पूर्ण राजनितिक स्वतंत्रता भी नही कहा  जा सकता है |

1947 के राजनितिक स्वतंत्रता के प्रश्न को ब्रिटिश ईस्ट इण्डिया कम्पनी द्वारा 1757 में स्थापित और फिर लगातार विस्तारित कम्पनी राज के उदाहरण से भी समझा जा सकता है |

कम्पनी ने 1757 और उसके बाद से देश के तत्कालीन शासको को हटाने के साथ उनकी शासन प्रणाली को लगातार तोड़ते हुए कम्पनी के हितो वाली शासन प्रणाली के साथ शासन के नए कायदे कानूनों वाले नए राज्य के ढाचे को निर्मित व विस्तृत करने का काम  किया था | कम्पनी ने पुराने राज और उसके शासकीय प्रशासकीय ढाचे से , या उसमे थोड़े  बहुत सुधार बदलाव से काम  चलाने की जगह उसे पूरी तरह  से बदल कर कम्पनी राज बना दिया |

राज व शासन प्रशासन के इसी ढाचे को इस देश को उपनिवेश बनाये रखने वाले ढाचे के रूप में विकसित व विस्तृत किया  जाता रहा | भारत स्वतंत्रता कानून में भी इस ढाचे को बरकरार रखा गया | ब्रिटिश राज के दिनों में सवैधानिक सुधारो के जरिये ( 1861 , 1891 , 1909 , 1920 , 1935 में ब्रिटिश सत्ता द्वारा लागू  किये गये सवैधानिक  सुधारो के जरिये ) राज एकं शासन प्रशासन में तथा  देश की औपनिवेशिक व्यवस्था में सुधार भी किया जाता  रहा | उन्ही सुधारों की अगली कड़ी के रूप में 1947 का भारत स्वतंत्रता कानून लाया व लागू  किया गया | इसे ही देश की पूर्ण स्वतंत्रता बताया व प्रचारित कर दिया गया |

स्पष्ट है कि 1947 और उसके बाद ब्रिटिश राज के ढाचे , कानून एवं विधि – विधान को औपनिवेशिक राज का सुधरा – बदला रूप कहा जा सकता है | क्योकि उसमे कोई बुनियादी एवं ढाचागत  परिवर्तन नही किया गया | इसीलिए यह सवाल भी जरुर उठाना चाहिए कि कैसी  राजनितिक स्वतंत्रता थी व है , जिसमे उस राज के ढाचे और उसे चलाने वाले कायदे कानूनों को बरकरार रखा गया , जो ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कम्पनी से लेकर 1858  के बाद ब्रिटिश साम्राज्ञी द्वारा इस देश को गुलाम बनाकर लुटने – पाटने के लिए बनाया गया था ?

क्रमश : भाग तीन 

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sunil-kumar-duttasunil-dutta-219x3001परिचय:-

सुनील दत्ता

स्वतंत्र पत्रकार व समीक्षक

वर्तमान में कार्य — थियेटर , लोक कला और प्रतिरोध की संस्कृति ‘अवाम का सिनेमा ‘ लघु वृत्त चित्र पर  कार्य जारी है
कार्य 1985 से 1992 तक दैनिक जनमोर्चा में स्वतंत्र भारत , द पाइनियर , द टाइम्स आफ इंडिया , राष्ट्रीय सहारा में फोटो पत्रकारिता व इसके साथ ही 1993 से साप्ताहिक अमरदीप के लिए जिला संबाददाता के रूप में कार्य दैनिक जागरण में फोटो पत्रकार के रूप में बीस वर्षो तक कार्य अमरउजाला में तीन वर्षो तक कार्य किया |

एवार्ड – समानन्तर नाट्य संस्था द्वारा 1982 — 1990 में गोरखपुर परिक्षेत्र के पुलिस उप महानिरीक्षक द्वारा पुलिस वेलफेयर एवार्ड ,1994 में गवर्नर एवार्ड महामहिम राज्यपाल मोती लाल बोरा द्वारा राहुल स्मृति चिन्ह 1994 में राहुल जन पीठ द्वारा राहुल एवार्ड 1994 में अमरदीप द्वारा बेस्ट पत्रकारिता के लिए एवार्ड 1995 में उत्तर प्रदेश प्रोग्रेसिव एसोसियशन द्वारा बलदेव एवार्ड स्वामी विवेकानन्द संस्थान द्वारा 1996 में स्वामी विवेकानन्द एवार्ड
1998 में संस्कार भारती द्वारा रंगमंच के क्षेत्र में सम्मान व एवार्ड
1999 में किसान मेला गोरखपुर में बेस्ट फोटो कवरेज के लिए चौधरी चरण सिंह एवार्ड
2002 ; 2003 . 2005 आजमगढ़ महोत्सव में एवार्ड
2012- 2013 में सूत्रधार संस्था द्वारा सम्मान चिन्ह
2013 में बलिया में संकल्प संस्था द्वारा सम्मान चिन्ह
अन्तर्राष्ट्रीय बाल साहित्य सम्मेलन, देवभूमि खटीमा (उत्तराखण्ड) में 19 अक्टूबर, 2014 को “ब्लॉगरत्न” से सम्मानित।

प्रदर्शनी – 1982 में ग्रुप शो नेहरु हाल आजमगढ़ 1983 ग्रुप शो चन्द्र भवन आजमगढ़ 1983 ग्रुप शो नेहरु हल 1990 एकल प्रदर्शनी नेहरु हाल 1990 एकल प्रदर्शनी बनारस हिन्दू विश्व विधालय के फाइन आर्ट्स गैलरी में 1992 एकल प्रदर्शनी इलाहबाद संग्रहालय के बौद्द थंका आर्ट गैलरी 1992 राष्ट्रीय स्तर उत्तर – मध्य सांस्कृतिक क्षेत्र द्वारा आयोजित प्रदर्शनी डा देश पांडये आर्ट गैलरी नागपुर महाराष्ट्र 1994 में अन्तराष्ट्रीय चित्रकार फ्रेंक वेस्ली के आगमन पर चन्द्र भवन में एकल प्रदर्शनी 1995 में एकल प्रदर्शनी हरिऔध कलाभवन आजमगढ़।

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* Disclaimer : The views expressed by the author in this feature are entirely her own and do not necessarily reflect the views of INVC NEWS .

 

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