1947 स्वतंत्रता की असलियत : भाग -1

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1947 स्वतंत्रता की असलियत 

– सुनील दत्ता –

प्रस्तावना —-
sunil kumar dutta,sunil dutta1947 के की स्वतंत्रता के सन्दर्भ में देश की आम जनता मुख्यत: यही बात जानती है कि 15 अगसर को देश ब्रिटिश  आधिपत्य से पूर्ण रूप से स्वतंत्र हो गया और यह स्वतंत्रता किसी रक्तपात के बिना ही मिल गयी | गांधी जी के नेतृत्व में सत्य – अहिसा के रास्ते पर चलते हुए शांतिपूर्ण आंदोलनों प्रदर्शनों आदि के जरिये मिली | इस पाठ – प्रचार का ज्यो – का त्यों मान लेने का कारण भी प्रत्यक्ष था | 15 अगस्त 1947 को अग्रेज शासको के हाथ से सत्ता – सरकार एवं शासन – प्रशासन की बागडोर देश के प्रतिनिधियों शासको  के हाथो में आ गयी | अंग्रेज शासक – प्रशासक देश छोड़कर चले गये | देश के शासन व समाज व्यवस्था के हर प्रमुख क्षेत्र में देशवासियों का नियंत्रण व संचालन स्थापित हो गया |

मुख्यत: गांधी जी एवं कांग्रेस की शांतिपूर्ण एवं अहिसात्मक पद्दतियो से मिली आजादी के पाठो – प्रचारों के विपरीत ब्रिटिश राजनेताओं तथा निति निर्माताओं ने यह प्रचार किया की अंग्रेज का भारत छोड़ने का निर्णय स्वैच्छिक था | ब्रिटेन की औपनिवेशिक सत्ता द्वारा समय – समय पर दिए गये सवैधानिक सुधारों अधिकारों के जरिये भारत को स्वराज्य के लिए तैयार किया गया  था | इस सन्दर्भ में ब्रिटेन की उस समय की सत्ताधारी लेबर पार्टी के प्रधानमन्त्री का ब्यान काबिले गौर है |

उन्होंने ब्रिटिश संसद में 4 जुलाई 1947 को हिन्दुस्तान को स्वतंत्रत करने वाला विधेयक प्रस्तुत करते हुए कहा कि ” इतिहास  में ऐसे अनेक उदाहरण है जब शासको को तलवारों की शक्ति से अन्य लोगो के हाथो में शासन — सत्ता देने के लिए बाध्य होना पडा है | बिरले ही ऐसा हुआ है कि वे लोग , जो दुसरो पर राज्य करते रहे हो अधीनस्थ लोगो को स्वेच्छा से शक्ति का हस्तान्तरण कर दे | ”
इस संसदीय घोषणा से एक साल पहले मई 1946 में ही सत्ताधारी लेबर पार्टी के नेता लास्की ने यह भी घोषणा किया था कि आधुनिक इतिहास में अहिसक रूप में सत्ता शक्ति का यह हस्तातरण ऐसा सबसे बड़ा हस्तातरण है , जिसे किसी साम्राज्यी शक्ति ने किन्ही लोगो को किया है |

मैं यह आशा करता हूँ कि भारतीय राष्ट्रीय नेता सोने की थाली में प्रस्तुत इस भेट का
( सत्ता – शक्ति  के हस्तातरण की भेट का ) सम्मान करेगे | “

जुलाई 1947 में भारतीय स्वतंत्रता विधेयक प्रस्तुत करते हुए ब्रिटिश प्रधानमन्त्री ने यह भी कहा कि ‘ सता के हस्तातरण की यह घटना एक लम्बी श्रृखला का चरम बिंदु है | मारले – मिन्टो तथा मान्टेग्यु – चेम्सफोर्ड सुधार , साइमन कमीशन की रिपोर्ट  गोलमेज कांफ्रेंस , कैबिनेट मिशन आदि द्वारा किये गये प्रयास इस चरम बिंदु तक पहुचने के रास्ते में मील के पत्थर है | अब इस रास्ते का अनत भारत को स्वतंत्रता प्रदान करने की मंजिल के रूप में हो रहा है ” |

ब्रिटिश प्रधानमन्त्री के उपरोक्त बयानों के साथ ब्रिटिश संसद 4 जुलाई को पेश किया गया प्रस्ताव 18 जुलाई को ब्रिटिश संसद द्वारा पारित कर दिया गया  | 18 जुलाई को ब्रिटिश साम्राज्ञी द्वारा स्वीकृत किये जाने के बाद यह इन्डियन इंडीपेंडेंस   एक्ट 1947 के रूप में प्रभावी हो गया  | इस कानून ने इससे पहले ब्रिटिश संसद द्वारा पास किये एवं लागू किये गये गवर्मेन्ट आफ इंडिया एक्ट 1935 की जगह ले लिया | इन्डियन इंडीपेंडेंस  एक्ट की मुख्य धाराए ययू थी |

1 — 15 अगस्त 1947 से यह देश दो स्वतंत्र अधिराज्यो ( डोमिनियने ) में भारत – पाकिस्तान के रूप में बट जाएगा |
2 — पाकिस्तान में सिंध , ब्रिटिश – बलूचिस्तान , उत्तरी पश्चिमी सीमान्त प्रदेश , पश्चिमी पंजाब और पूर्वी बंगाल शामिल रहेगे |भारत और पाकिस्तान के बीच सीमा निधारण का काम , सीमा निर्धारण कमीशन करेगा |
3— ब्रिटेन द्वारा दोनों देशो के लिए अलग – अलग गवर्नर जनरल की नियुक्ति की जायेगी जो ब्रिटिश हुकूमत के प्रतिनिधि के रूप में दोनों देशो की सरकारों के लिए काम करेगे |
4— दोनों देशो की विधायिका अपने देशो के लिए कानून बनाने के लिए पूरी तरह से अधिकृत रहेगी | 15 अगस्त 1947 के बाद ब्रिटिश संसद द्वारा पास  किया गया कानून या राजाज्ञा दोनों अधिराज्यो पर लागू नही होगा |
5 — 15 अगस्त 1947 के बाद ब्रिटेन की सरकार भारत में रहे ब्रिटिश राज के प्रति उत्तरदायी नही रह जायेगी और ब्रिटिश सरकार द्वारा अपने राज्य के दौरान रियासतों तथा किन्ही आदिवासी क्षेत्रो के साथ की गयी संधि या समझौता को 15 अगस्त 1947 से रद्द माना  जाएगा |
6 —   दोनों देशो की सविधान  सभाओं को ही केन्द्रीय विधायिका का दर्जा प्राप्त होगा | ब्रिटिश राज द्वारा पहले से स्थापित केन्द्रीय विधान असेम्बली और काउंसिलिंग आफ स्टेट अपने आप समाप्त हो जायेगे |
7 — नियुक्त गवर्नर जनरल को इन्डियन इंडिपेडेंस  एक्ट को सफलता पूर्वक लागू करने के लिए अधिकृत किया गया है |
8 — भारत में अभी भी मौजूद ब्रिटिश अधिकारियों के हितो की रक्षा के लिए बनाये गये प्राविधान अभी भी लागू  रहेगे | लेकिन अब ब्रिटेन भारत में कोई अधिकारी नियुक्त नही कर सकेगा |
9 – बटवारे से पूर्व की भारतीय सेनाओं को दोनों राज्यों में विभक्त  कर दिया जाएगा | लेकिन इन देशो में मौजूद ब्रिटिश (गोरे ) सैनिक गवर्नर जनरल की अधीनता में ही कार्य करेगे |
10 — समूचा प्रशासन जो अभी तक ब्रिटिश राज के अंतर्गत काम करता था 15 अगस्त 1947 से भारत सरकार के अंतर्गत कार्य करेगा |
इन्डियन इंडिपेन्नेस  एक्ट की इन धाराओ पर आगे चर्चा करेगे |

देश की स्वतंत्रता के लिए ब्रिटिश संसद द्वारा पास किये गये उपरोक्त कानून में और वहा  के प्रधानमन्त्री की घोषणा में इस स्वतंत्रता को अंग्रेज हुक्मरानों  द्वारा लिया गया स्वैच्छिक निर्णय बताया व प्रचारित किया गया | जबकि कांग्रेस पार्टी इसे मुख्यत: गांधी जी द्वारा शान्ति अहिंसा के जरिये चलाए गये स्वतंत्रता आन्दोलन से ब्रिटिश हुकूमत को स्वतंत्रता देने के लिए बाध्य कर देने के महान प्रयासों से मिली स्वतंत्रता बताती रही है |

जहा तक ब्रिटिश सरकार द्वारा इस देश को स्वेच्छा से आजाद किये जाने के वक्तव्यों प्रयासों का मामला है तो इस पर सीधा प्रश्न यह बनता है कि अपने दो ढाई सौ सालो के शासन काल में अंग्रेज शासको के अन्दर यह सदिच्छा पहले क्यों नही आई ? जबकि हिन्दुस्तान के लोग इसकी मांग खासकर 1905 के बाद से लगातार करते रहे ? क्या पहले के अंग्रेज शासक सत्ता लोभी थे ? और 1947 में सत्ता सौपने वाले अंग्रेज शासक सत्ता त्यागी थे ? क्या उन्होंने यह त्याग इसलिए  कर डिया की 1947 में इंग्लैण्ड की पहले की सत्ताधारी पार्टी कंजर्वेटिव पार्टी की जगह अब वह पर शासन सत्ता की बागडोर लेबर पार्टी के हाथ में थी ? अथवा सच्चाई यह है की द्वितीय विश्व युद्द 1939 – 44 के बाद की परिस्थितियों ने उन्हें सत्ता सौपने के लिए मजबूर कर दिया था ? अन्यथा खतरा केवल ब्रिटिश सत्ता के लिए ही नही बल्कि समूचे ब्रिटिश साम्राज्यवाद के लिए खड़ा था | खतरा ब्रिटिश कम्पनियों एवं ब्रिटिश साम्राज्यी पूजी के जरिये इस देश में बने लूटपाट के सम्बन्धो के लिए भी खड़ा था | इस खतरे पर 1947 के स्वतंत्रता के समझौते के सन्दर्भ में चर्चा जरुर होनी चाहिए | आगे हम इसपे चर्चा जरुर करेगे |
इसी तरह जहा तक शांतिपूर्ण तरीके से स्वतंत्रता प्राप्ति का प्रश्न  है तो यह बात सभी जानते है कि स्वतंत्रता केवल भारत को ही नही बल्कि पाकिस्तान को भी मिली है | पाकिस्तान बनाने के पक्षधर लोग इसे काग्रेस और गांधी जी के प्रयासों का परिणाम नही मानते | इसके अलावा देश के गैर काग्रेसी राजनितिक एवं बौद्दिक हिस्से भी इस स्वतंत्रता को केवल या मुख्यत: काग्रेस के आंदोलनों का परिणाम नही मानते | उसे काग्रेस के आन्दोलनों के साथ स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए चलते रहे क्रांतिकारी संघर्षो का भी परिणाम मानते है |

यह बाते गलत भी नही है | एकदम सच है | इसके वावजूद यह तथ्यगत सच्चाई तो सामने है कि स्वतंत्रता के इस शान्ति पूर्ण समझौते के जरिये इस देश की सत्ता की बागडोर काग्रेस के ही हाथ में आई | देश की किसी अन्य पार्टी या सगठन को उसके योग्य नही मन गया  | लेकिन क्यों ? क्या इसलिए की काग्रेस सबसे बड़ी पार्टी थी ? देश की बहुसख्यक जनता उसके समर्थन में थी ? 1937 में हुए प्रांतीय विधान सभा चुनावों में उसे सबसे ज्यादा वोट व समर्थन मिला था ? या इसका प्रमुख कारण काग्रेस द्वारा देश की आजादी के सवाल को मुख्यत: सत्ता प्राप्ति तक ही सीमित रखना था ? उसके लिए ब्रिटिश हुकूमत से बारम्बार होते समझौते के जरिये सत्ता – सिंहासन पर अपनी पहुच बनाना व बढ़ाना था ? सत्ता प्राप्ति को ही देश की पूर्ण आजादी प्राप्त करना बताकर ब्रिटिश साम्राज्यवादीयो  के साथ पहले से बने आर्थिक सम्बन्धो को – महाजनी व औद्योगिक व्यापारिक लुट के सम्बन्धो को जारी रखना था | | विदेशी शोषण लूट के आर्थिक सम्बन्धो से इस राष्ट्र की मुक्ति के सवाल को उपेक्षित करना और उस पर पर्दा डालना था ? इस सन्दर्भ में इस बात को रखा जाना एकदम आवश्यक है कि ईस्ट इंडिया कम्पनी ने अपना राज इस देश के व्यापारिक लूट के लिए स्थापित किया था | मुख्यत: उसी के लिए कम्पनी राज , शासन प्रशासन को निर्मित व विकसित किया था | इसलिए देश की स्वतंत्रता को मुख्यत: या महज सता हस्तान्तरण या सता प्राप्ति के रूप में नही देखा जा सकता | लेकिन विडम्बना यह है की देश की पूर्ण स्वतंत्रता अर्थात राजनितिक आर्थिक सांस्कृतिक एवं सैन्य स्वतंत्रता से जुड़े बुनियादी सवालों को 1947 के दौर में और उसके बाद भी चर्चा का विषय नही बनने दिया गया | 1947 से पहले भी यह सवाल प्रमुखता से नही उठ पाया कि ब्रिटिश साम्राज्य की आर्थिक राजनितिक , शैक्षणिक सांस्कृतिक एवं सैन्य गुलामी में जी रहे इस राष्ट्र की स्वतंत्रता का क्या मतलब है और क्या होना  चाहिए ?
क्या इस देश को गुलाम बनाने के लिए ईस्ट इंडिया कम्पनी द्वारा स्थापित ब्रिटिश राज तथा उसके शासन – प्रशासन से अंग्रेजो के हटने और वहा  हिन्दुस्तानियों के बैठ जाने से या देश में राज्य द्वारा समय – समय पर लागू किये जाने वाले सवैधानिक सुधारों से देश को औपनिवेशिक गुलामी के लिए बने और बनाये गये आर्थिक , कुटनीतिक शैक्षणिक सांस्कृतिक एवं सैन्य सम्बन्धो से मुक्ति मिल पाएगी ?

क्रमश : भाग एक

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sunil kumar dutta,sunil duttaपरिचय:-

सुनील दत्ता

स्वतंत्र पत्रकार व समीक्षक

वर्तमान में कार्य — थियेटर , लोक कला और प्रतिरोध की संस्कृति ‘अवाम का सिनेमा ‘ लघु वृत्त चित्र पर  कार्य जारी है

कार्य 1985 से 1992 तक दैनिक जनमोर्चा में स्वतंत्र भारत , द पाइनियर , द टाइम्स आफ इंडिया , राष्ट्रीय सहारा में फोटो पत्रकारिता व इसके साथ ही 1993 से साप्ताहिक अमरदीप के लिए जिला संबाददाता के रूप में कार्य दैनिक जागरण में फोटो पत्रकार के रूप में बीस वर्षो तक कार्य अमरउजाला में तीन वर्षो तक कार्य किया |

एवार्ड — समानन्तर नाट्य संस्था द्वारा 1982 — 1990 में गोरखपुर परिक्षेत्र के पुलिस उप महानिरीक्षक द्वारा पुलिस वेलफेयर एवार्ड ,1994 में गवर्नर एवार्ड महामहिम राज्यपाल मोती लाल बोरा द्वारा राहुल स्मृति चिन्ह 1994 में राहुल जन पीठ द्वारा राहुल एवार्ड 1994 में अमरदीप द्वारा बेस्ट पत्रकारिता के लिए एवार्ड 1995 में उत्तर प्रदेश प्रोग्रेसिव एसोसियशन द्वारा बलदेव एवार्ड स्वामी विवेकानन्द संस्थान द्वारा 1996 में स्वामी विवेकानन्द एवार्ड
1998 में संस्कार भारती द्वारा रंगमंच के क्षेत्र में सम्मान व एवार्ड
1999 में किसान मेला गोरखपुर में बेस्ट फोटो कवरेज के लिए चौधरी चरण सिंह एवार्ड
2002 ; 2003 . 2005 आजमगढ़ महोत्सव में एवार्ड
2012- 2013 में सूत्रधार संस्था द्वारा सम्मान चिन्ह
2013 में बलिया में संकल्प संस्था द्वारा सम्मान चिन्ह
अन्तर्राष्ट्रीय बाल साहित्य सम्मेलन, देवभूमि खटीमा (उत्तराखण्ड) में 19 अक्टूबर, 2014 को “ब्लॉगरत्न” से सम्मानित।

प्रदर्शनी – 1982 में ग्रुप शो नेहरु हाल आजमगढ़ 1983 ग्रुप शो चन्द्र भवन आजमगढ़ 1983 ग्रुप शो नेहरु हल 1990 एकल प्रदर्शनी नेहरु हाल 1990 एकल प्रदर्शनी बनारस हिन्दू विश्व विधालय के फाइन आर्ट्स गैलरी में 1992 एकल प्रदर्शनी इलाहबाद संग्रहालय के बौद्द थंका आर्ट गैलरी 1992 राष्ट्रीय स्तर उत्तर – मध्य सांस्कृतिक क्षेत्र द्वारा आयोजित प्रदर्शनी डा देश पांडये आर्ट गैलरी नागपुर महाराष्ट्र 1994 में अन्तराष्ट्रीय चित्रकार फ्रेंक वेस्ली के आगमन पर चन्द्र भवन में एकल प्रदर्शनी 1995 में एकल प्रदर्शनी हरिऔध कलाभवन आजमगढ़।

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