16 दिसंबर गैंगरेप – औरत हूँ कोई गुनाह नहीं… फिर क्यूँ अपने होने को भुगतु

2
26

qqqqसोनाली बोस,

16 दिसंबर की उस काली रात को आज एक साल का लंबा वक़्त बीत चुका है। ‘दामिनी’ ‘निर्भया’ या फिर एक स्वाभिमानी और जीने की  ललक से भरी हुई लड़की का जीवन उससे छीना जा चुका है। समय अपनी रफ़्तार से आगे निकल चुका है और शायद हम सभी इस वक़्त के पहिये के साथ साथ ज़िंदगी में काफी आगे निकल चुके हैं। लेकिन क्या समय वाक़ई बदल चुका है? क्या आज हमारी सोच, हमारी विचारधारा और हमारा दृष्टिकोण बदल गये हैं? नहीं……

16 दिसंबर 2012 यानी एक साल पहले दिल्ली में एक ऐसी घटना हुई जिसने सब को झकझोर कर रख दिया। दिल्ली में हुए उस गैंग रेप और उससे जुड़ी घटनाओं की यादें हर किसी के ज़हन में आज भी ताज़ा हैं। उस घटना की सिहरन आज भी हमारा वजूद हिला देती है। एक के बाद खुलती परतों से साथ सामने delhi-gang-rapeआती हैवानियत की दास्तान। उस बहादुर लड़की के लिए इंसाफ मांगता रायसीना हिल्स पर उमड़ा जन सैलाब। उस समय हमारा भारत पूरी दुनिया के लिए एक ऐसा इवेंट बना जिसे लोग याद रखेंगे।

लेकिन क्या यह पूरी घटना महज एक ‘समाचार’  बनकर ही रह गई या फिर यह हमारे लिए एक सबक भी बनी है? क्या  इस घटना के एक साल में हमारा सिस्टम बदला है, क्या हमारे समाज में बदलाव  आया है? और उन सबसे ज़रूरी और अहम सवाल है कि कितने बदले हैं हम?

उस दिलेर लड़की ने तो लंबी जद्दोजहद के बाद दम तोड़ दिया, लेकिन अपने पीछे उसने महिलाओं की सुरक्षा को लेकर कई सवाल छोड़ दिए?  आज एक साल बाद यदि देखा जाए तो रेप केस कम नहीं हुए बल्कि दोगुने हो गए हैं। उत्पीड़न की घटनाएं 5 गुणा तक बढ़ गई हैं। दिल्ली में पिछले साल हुई गैंगरेप की घटना ने देश को हिलाकर रख दिया था। कड़ी सर्दी में भी लोग आंदोलन के लिए सड़कों पर उतर आए थे। इस मामले में इंसाफ हुआ भी और दोषी पाए गए सभी वयस्कों को फांसी की सजा सुनाई गई। लेकिन इस सबके बाद भी महिलाओं के खिलाफ अपराधों में कमी नहीं आई, बल्कि बढ़ोतरी ही देखने को मिली।
पुलिस ने महिलाओं की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए हेल्पलाइन नंबर शुरू करने समेत कई कदम उठाए, लेकिन मामले कम होने की बजाय लगातार बढ़ रहे हैं।

पिछले 13 सालों में 2013 में बलात्कार के सबसे ज्यादा केस सामने आए, हालांकि दिल्ली पुलिस इसे दूसरे नज़रिए से देखती है। उसका कहना है कि ऐसा इसलिए है, क्योंकि लोग अब जागरुक हो गए हैं और gang rap_152946मामले दर्ज कराने लगे हैं जबकि पहले ऐसे मामले दर्ज ही नहीं कराए जाते थे। दिल्ली पुलिस के आंकड़े के अनुसार, राष्ट्रीय राजधानी में 30 नवंबर तक बलात्कार के कुल 1,493 मामले दर्ज किए गए जो कि 2012 में इसी अवधि में दर्ज मामलों की तुलना में दोगुने से अधिक हैं। सबसे बड़ी चिंताजनक बात यह है कि महिलाओं के खिलाफ उत्पीड़न के मामलों में पांच गुना बढोतरी दर्ज की गई है। नवंबर 2013 तक पिछले वर्ष के 625 मामलों की तुलना में 3237 मामले दर्ज किए गए।

लेकिन मैं आज इन आंकड़ोँ के जाल में नहीं उलझना चाहती हूँ। मेरा सवाल ज़हनी और सामाजिक है।  दिल्ली में पिछले वर्ष 16 दिसंबर को गैंगरेप के बाद ऐसे मामलों की सुनवाई के लिए छह फास्ट ट्रैक अदालतों का गठन किया गया और 500 मामले सौंपे गए और इसके माध्यम से दो महीने में 24 मामलों की सुनवाई पूरी की गई। लेकिन इन सबके बावजूद आज भी ना जाने कितनी ऐसी ‘निर्भयाएँ’ हैं जो अपने ‘औरत ‘ होने को एक ”अभिशाप” की  तरह भुगतने को मजबूर हैं। ऐसा क्योँ है?

”औरत हूँ कोई गुनाह नहीं… फिर क्यूँ अपने होने की सज़ा भुगतु”

16 दिसंबर 2012 की उस हैवानियत के बाद भारी विरोध-प्रदर्शन हुए थे, कानून तक बदले गए थे और पुलिस भी ज्यादा सक्रिय व चौकस हो गई है लेकिन क्या महिलाओं के खिलाफ अपराध रुके हैं? आज भी हर दूसरे दिन बलात्कार और यौन उत्पीड़न की घटनाओं की खबर आती है, कहां हुआ है बदलाव? मुझे तो कोई बदलाव नहीं दिखता, आपको दिखता है?’ आज की ज़रुरत है कि कानून व्यवस्था में बदलाव किए जायेँ ताकि बलात्कार के मामलों की सुनवाई तय समय में हो और लोग ऐसे अपराध करने से डरें।

केंद्र सरकार अप्रैल में एक विधेयक लेकर आई थी, जिसके अनुसार बलात्कार के दोषियों को उम्रकैद और मौत की सजा का प्रावधान था। इसके अलावा तेज़ाब हमले, पीछा करने और अभद्र व्यवहार जैसे अपराधों के लिए भी कठोर सज़ाओं का प्रावधान किया गया था। दिल्ली में सामूहिक बलात्कार की घटना से पैदा हुए देशव्यापी गुस्से की पृष्ठभूमि में आपराधिक कानून (संशोधन) विधेयक-2013 लाया गया zzथा और इसे आपराधिक अधिनियम (संशोधन) अधिनियम 2013 का नाम दिया गया था। 19 मार्च को लोकसभा और 21 मार्च को राज्यसभा में पारित किए गए इस कानून ने 3 फरवरी को जारी किए गए अध्यादेश की जगह ले ली है। बलात्कार जैसे अपराधों के खिलाफ कड़ा भय दिखाने के लिए नया कानून कहता है कि अपराधी को न्यूनतम 20 साल की कैद की कड़ी सज़ा सुनाई जा सकती है और इसे उम्रकैद तक में तब्दील किया जा सकता है।गौर तलब है कि यहां उम्रकैद का मतलब अपराधी की मौत तक का समय है।

लेकिन क्या इतने से ही हमारे दायित्वोँ की इतिश्री हो जातीहै? क्या किसी भी अपराध या मानसिकता को रोकने और बदलने के लिये हमारा खुद को बदलना आवश्यक नहीं है? क्योँ आज भी हमारे देश और समाज में महिलायेँ दोयम दर्जे और हेय दृष्टि से देखी जाती हैं? इसका जवाब आपके हमारे हम सभी के भीतर ही है। तो आईये क्योँ ना आज ये संकल्प लेँ कि अब बहुत हो चुका, स्त्री की अस्मिता और सम्मान हम सभी की ज़िम्मेदारी है। आज ये अहद करेँ कि हम अपनी आने वाली पीढ़ी को एक दूसरे का सम्मान करना सिखायेंगे। लिंग मतभेद और स्त्री पुरूष की पहचान से परे एक स्वस्थ और इज़्ज़तदार देश बनायेंगे।

___________________________________________________
sonali bose*सोनाली बोस
लेखिका सोनाली बोस  वरिष्ठ पत्रकार है ,
उप सम्पादक –  अंतराष्ट्रीय समाचार एवम विचार निगम

2 COMMENTS

    • डॉ राजीवराज जी, आपका हार्दिक धन्यवाद, कोशिश यही है कि किसी तरह लोगोँ तक संदेश पहुंचे और मानसिकता में सकारात्मक बदलाव आये।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here