है इबादत से दुश्मनी जिनको…

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– तनवीर जाफरी –

हमारे देश में इस विषय पर कई दशकों से लंबी बहस चली आ रही है कि चूंकि धर्म किसी भी व्यक्ति का अत्यंत निजी मामला है लिहाज़ा इससे संबंधित किसी भी गतिविधि का संचालन केवल अपने घर के भीतर या समुदाय विशेष से संबद्ध इबादतगाहों की चहारदीवारी के भीतर ही होना चाहिए अथवा सडक़ों पर इनका नुमाईश अथवा प्रदर्शन होना भी ज़रूरी है? परंतु स्वतंत्र भारत में लगता है सबसे अधिक स्वतंत्रता का लाभ लगभग सभी भारतीय धर्मों व समुदायों के लोगों को इसी बात का मिला कि वे अपने धार्मिक रीति-रिवाज अथवा धार्मिक शोभा यात्राओं,नगर कीर्तनों,नमाज़ों तथा सैकड़ों िकस्म के धार्मिक समागमों व जुलूसों को सडक़ों,पार्कों व सार्वजनिक स्थानों पर ले आए। और यदि इस समय देश में ऐसी स्थिति बन भी चुकी है कि हमारा देश इन्हीं धार्मिक स्वतंत्राओं के चलते धर्म प्रधान देश हो गया है फिर आिखर धार्मिक लोगों,मान्यताओं तथा धर्म पर चलने का दावा करने वाले विभिन्न समुदायों के लोगों में किसी भी प्रकार के टकराव,वैमनस्य अथवा दुश्मनी का औचित्य ही क्या है? अब यदि धार्मिक गतिविधियां सार्वजनिक स्थलों,सडक़ों या राजमार्गों पर संचालित हो रही हैं और लोगों द्वारा इसका विरोध भी किया जा रहा है तो इस विरोध के भी यही कारण हो सकते हैं कि या तो किसी विशेष समुदाय की धार्मिक गतिविधियों से लोगों को बैर या नफरत है या फिर विरोध करने वाले लोगों को किसी धार्मिक गतिविधि से कोई नुकसान पहुंच रहा है या फिर वह गतिविधि किसी समुदाय विशेष को तकलीफ पहुंचाने वाली या समुदाय विशेष के विरोध पर आधारित है। अन्यथा किसी भी धर्म की किसी भी प्रकार की धार्मिक गतिविधि या रीति-रिवाज मानवता विरोधी तो कतई नहीं हो सकते।

कोई बोले राम-राम, कोई खुदा-ए। कोई सेवै गौसईंयां कोई अल्लाहे।। कोई न्हावे तीर्थ कोई हज जाए। कोई करे पूजा कोई सिर नवाए।। गुरू अर्जुन देव की यह प्रमुख वाणी जिसे पूरे देश व दुनिया में याद किया जाता है। इसके शब्दार्थ पूरे विश्व को मानवता तथा सदभाव की सीख देते हैं। अल्लाह तथा राम के भेद को मिटाते हैं। पूजा पद्धति अलग-अलग होने के बावजूद सबका मालिक एक होने का ज्ञान देते हैं। परंतु निश्चित रूप से गुरू नानक देव,गुरू अर्जुन देव,रामानंदाचार्य व संत कबीर दास,बुल्ले शाह,बाबा फरीद तथा शिरडी वाले साईं बाबा जैसे उन संतों का दौर अब नहीं रहा जो सभी धर्मों व समुदायों के लोगों को एक समान नज़रों से देखते हुए उन्हें हिंदू-मुसलमान, सिख या ईसाई की नज़रों से देखने के बजाए एक इंसान की नज़र से देखा करें। आज के संत मंदिर-मस्जिद तथा पूजा व नमाज़ आदि को समान नज़रों से देखने के बजाए उनमें आलोचना व अंतर के पहलू तलाश करते हैं। उदाहरण के तौर पर मध्यप्रदेश में चुनाव के दौरान राहुल गांधी किसी मंदिर में गए और वहां पूरी श्रद्धा व अनुशासन के साथ अपने दोनों घुटने मोड़ कर घुटनों के बल बैठ गए। उनकी यह फोटों मीडिया द्वारा प्रसारित की गई। परंतु उनके बैठने के अंदाज़ को और किसी ने नहीं बल्कि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने ज़रूर नोट किया। मध्यप्रदेश में धार की एक जनसभा में उन्होंने राहुल गांधी पर यह कहकर अपना शब्दबाण छोड़ा कि-‘मध्य प्रदेश में राहुल गांधी ने पता नहीं दर्शन किए या नहीं परंतु मंदिरों में जब वे दर्शन करने गए और घुटनों के बल बैठ गए तो पुजारी को टोकना पड़ा कि यह मंदिर है मस्जिद नहीं’ यहां पालथी मारकर बैठा जाता है।’ इसी शस्त्र का उपयोग योगी आदित्यनाथ गुजरात विधानसभा चुनावों के दौरान गत् वर्ष भी कर चुके हैं। वहां भी योगी ने जनता को यह बताया था कि-‘राहुल वाराणसी के काशी-विश्वनाथ मंदिर में जाकर ऐसे बैठे मानों नमाज़ पढ़ रहे हों। पुजारी के टोकने पर उन्हें पूजा की मुद्रा में आना पड़ा। जबकि वास्तव में किसी भी मंदिर के किसी पुजारी ने राहुल के बैठने के तरीके पर कोई आपत्ति नहीं की थी। योगी आदित्यनाथ के इस दुष्प्रचार का हश्र गुजरात से लेकर मध्यप्रदेश तक क्या हुआ यह बात किसी से छुपी नहीं है। गोया योगी को भले ही मंदिर व मस्जिद में बैठने के तरीके में फर्क नज़र आता हो परंतु जनता को उनकी ऐसी नफरत भरी बातें अच्छी नहीं लगीं।

निश्चित रूप से आज ऐसे ही व्यक्ति को उत्तर प्रदेश जैसे देश के सबसे बड़े राज्य की सत्ता प्राप्त हो चुकी है। आज यदि इनके शासन में पुलिस या प्रशासन को यह कहना पड़ रहा है कि पार्क में नमाज़ पढऩे से धार्मिक सौहाद्र्र बिगड़ता है तो निश्चित रूप से यह सोचना भी ज़रूरी है कि प्रशासन का संवैधानिक मुखिया आिखर स्वयं कैसे विचारों का स्वामी है? जहां तक जनता के विरोध का प्रश्र है या हिंदू समाज द्वारा मुसलमानों की नमाज़ के विरोध का विषय है तो यह बात तो सिरे से खारिज करने वाली है। भारतीय हिंदू समाज ने कभी भी मुसलमानों या किसी दूसरे धर्म या समुदाय के लोगों के किसी भी धार्मिक जुलूस,आयोजन,नमाज़ आदि का कभी भी कोई विरोध नहीं किया। नमाज़ से सांप्रदायिक सौहाद्र्र बिगडऩे या फसाद फैलने की संभावना आिखर किस प्रकार हो सकती है? जहां नहा-धोकर,साफ-सुथरे हो कर खाली हाथ नमाज़ी लोग खुदा के सामने सजदा करने की गऱज़ से किसी स्थान पर इक_ा होते हों? आज तक देश की किसी भी नमाज़ की जमात के बाद या उसके कारण हिंसा का कोई उदाहरण सामने नहीं आया है। हां गुडग़ांव जैसे शहर में निहत्थे नमाजि़यों को कुछ मु_ी भर उपद्रवियों द्वारा नमाज़ पढऩे से रोकने व उन्हें नमाज़ पढऩे वाली जगह से अपमानित कर भगाए जाने के दृश्य ज़रूर देखे गए हैं।

जहां तक आम भारतीय जनमानस का प्रश्र है तो यहां के लोगों का स्वभाव तो ऐसा है कि देश की अनेक मस्जिदों के बाहर आज भी तमाम गैर मुस्लिम माता-पिता अपने बीमार बच्चों को लेकर या किसी दूसरी दु:ख-तकलीफ के चलते मस्जिद के द्वार पर नमाज़ के वक्त खड़े होते हें और नमाज़ पढक़र निकलने वाले लोगों के हाथ अपने बच्चों के सिर पर रखवाते हैं और उनसे दुआ देने का निवेदन करते हैं। हमारे देश में ऐसी खबरंे सैकड़ों बार आ चुकी हैं जब हिंदू मंदिरों या गणेश चतुर्थी के पंडाल में बारिश अथवा किसी अन्य कारण से नमाज़ पढऩे की अनुमति नमाजि़यों को दी गई हो। देश में सैकड़ों जगहों पर मुहर्रम के आयोजन गैर मुस्लिमों द्वारा किए जाते हैं। यहां तक कि हमारे देश के अनेक गैर मुस्लिम लोग रमज़ान के महीने में रोज़ा भी रखते हैं। रमज़ान के महीने में रोज़ा रखने वाले लोगों को इफ्तारी कराए जाने का चलन तो इतना बढ़ गया कि इसने राजनैतिक इफ्तार पार्टी का रूप धारण कर लिया। अयोध्या के हनुमानगढ़ी मंदिर तथा लखनऊ के प्राचीन मनोकामना हनुमान मंदिर जैसे प्रमुख धर्मस्थलों पर रोज़ा-इफ्तार कराया जाता रहा है। इसी प्रकार अनेक मुस्लिम गणेश पूजा भी करते हैं। कांवडिय़ों तथा इस प्रकार के अन्य धार्मिक आयोजनों में छबील व भंडारे भी लगाते हैं। होली-दीवाली जैसे त्यौहारों में भी सभी शरीक होते हैं। परंतु ऐसे लोग एक-दूसरे के धर्म में कमियां नहीं निकालते बल्कि एक-दूसरे को सहयोग करने की कोशिश करते हैं।

यह किसी कुत्सित मानसिकता वाले व्यक्ति की ही नज़रें देख सकती हैं कि कौन कहां घुटने मोड़ कर बैठा है या पालथी मारकर बैठा है। ऐसा ही व्यक्ति यह भी कह सकता है कि मैं हिंदू हूं और इसलिए मैं ईद नहीं मनाता। ऐसी ही विचारधारा यह भी कह सकती है कि दीवाली में शमशान में भी बिजली मिलनी चाहिए केवल कब्रिस्तान में नहीं। और निश्चित रूप से यही शक्तियां और यही विचारधारा देश का सांप्रदायिक सौहाद्र्र बिगाडऩे व धर्म के आधार परलोगों में वैमनस्य बढ़ाने में सक्रिय है। ऐसे में यह सोचना ज़रूरी है कि जो लोग किसी पंथ विशेष की इबादत से बैर रखते हों ऐसे लोग मानवता के मित्र कैसे हो सकते हैं।

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About the Author

Tanveer Jafri

Columnist and Author

Tanveer Jafri, Former Member of Haryana Sahitya Academy (Shasi Parishad),is a writer & columnist based in Haryana, India.He is related with hundreds of most popular daily news papers, magazines & portals in India and abroad. Jafri, Almost writes in the field of communal harmony, world peace, anti communalism, anti terrorism, national integration, national & international politics etc.

He is a devoted social activist for world peace, unity, integrity & global brotherhood. Thousands articles of the author have been published in different newspapers, websites & news-portals throughout the world. He is also recipient of so many awards in the field of Communal Harmony & other social activities.

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