‘‘हिन्दुस्तान को हिन्दुस्तान बनाने की कवायद’’

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‘‘ भारतीय ऋषि परम्पराके पुरोधा मुनि क्षमासागर जी का एक उपदेष है जिसका शीर्षक है-
 मुखौटे
  अपने बच्चे को डराने, धमकाने,
  हमने कुछ डरावने चेहरे ,
अपने लिये बनवाये थे।
  बच्चे कुछ दिन डरते रहे,
  फिर असलियत जानकर,
  हॅंसते रहे,
  अब बच्चे बडे़ हो गये हैं,
  हमारे चेहरे लगाकर,
  हमें हीं डरा रहें है।’

        (Mask- To scare our children; We made some scary masks; The children were  frightened for a while ;When they got wise about the masks;They smiled,The children are no longer small ;They frighten us now wearing our masks.)

             आजकल हिन्दुस्तान की राजनीति में ‘‘राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आर एस एस)’’ को लेकर जिस हाय-तौब्वा का स्यापा मचा है वह हिन्दुस्तान के राष्ट्रवादी नागरिक को प्रभावित करने में निःषक्त है। मुनि क्षमासागर जी का उपरोक्त भावपूर्ण उपदेष आज के संदर्भ में समीचीन है।खासकर अपने-आपको पंथ-निरपेक्षता का ढ़ोंग,राष्ट्रवादिता का स्वांग रचनेवाला,वंषवादी कुल परम्परा का पोषक क्षेत्रीय राजनीतिक दलों एवं भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (ई) के संदर्भ में में यह अक्षरषः लागु होता है। कल तक जिस मुखौटे का भय ह्रिन्दुस्तान के देषभक्त नागरिक को डराने-धमकाने में यह कुनवा करता था आज वही नागरिक उसी कुनवे को उसी अंदाज में जबाव दे रहा है। अपने जन्मकाल से दहषतगर्दी ,चाटुकारिता,साम्प्रदायिकता, जातिवाद, क्षेत्रवाद जैसे लोकतंत्र का दीमक को बढ़ावा देने बाले ये राजनीतिक दलों के पाप का खामियाजा आजतक देष भुगत रहा है। जिस तरह से विष्व के अद्वितीय सांस्कृतिक स्वयंसेवी संगठन ‘‘राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ’’ के बारे में गोबल्स के मानसपुत्रों ने मिथ्या कुत्सित व दुभार्वनाग्रस्त अपप्रचार का धारा बहाया आज वही धारा देष में राष्ट्रवाद का रूप लेकर जो अलख जगाया है वही धारा में वे अराजक तत्व विलीन हो रहें हैं ठीक उसी प्रकार जैसे शक-हुणों जैसों को हिन्दुस्तान की संस्कृति ने अपने आप में समाहित कर लिया।
जो देष अपने अतीत की चेतना से रहित है उसका कोई भविष्य नहीं होता । हिन्दुस्तान की जनमानस में इसी अतीत को जो विदेषी आक्रान्ताओं ,मुगलों, अंग्रेजों और पंथ निरपेक्षता के ढ़ोंग रचने वाले राजनीतिक दलों ने दबाने का, उसे दलन करने का निरतंर घृणित प्रयास किया है उसे ‘‘राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आर एस एस)’’ ने उभारने का प्रयास मात्र किया है।क्या हमसब अपने पूर्वजों के पराक्रम और अपनी अमूल्य संस्कृति को को छोड़कर परकीय शासन और संस्कृति का चरण-वन्दना करें ? कोई भी स्वाभिमानी देष और उसके देषभक्त नागरिक अपने अतीत के विस्मृत किये गये विरासत को खोजेगा और पाकर उसपर गर्व करेगा चाहे विघ्वसंक देषद्रोही शक्तियां कुछ भी सोचे फर्क नही पड़ता है ।अपना मत स्पष्ट है कि राष्ट्र को अपने इतिहास का गुलाम नहीं मालिक होना चाहिए।‘‘राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आर एस एस)’’ ने भारत की श्रेष्ठ जीवन मूल्यों को अपने देष के प्रति सदा सर्वस्व समर्पण करने वाले स्वयंसेवकों में जो ओज भरी है जो प्रेरणा दिया है अब वह स्पष्ट दृष्टिगोचर हो रहा है।
 ‘‘राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आर एस एस)’’ का उदय उस वक्त की जो सामाजिक परिस्थ्तिियां थी उस विकट परिस्थिति को भविष्यद्रष्टा और महान राष्ट्रभक्त डॉक्टर केषव वलिराम हेडगेवार उपाख्य डॉक्टर जी ने समझा और उसके निदान हेतु वर्ष 1925 में विजयादषमी के दिन इस अद्भुत संगठन की नींव डाली। सैकड़ो वर्षों की परकीय विधर्मी शासकों ने जिस तरह से इस देष का मान मर्दन किया खासकर हिन्दू मानविन्दुओं पर वह अत्यंत दुःखदायी है । ऐसा नहीं की उस कालखंड में हमारे पूर्वजों ने इन आतातायियों का मुकावला नही किया। संघर्ष सत्त जारी रहा। किन्तु कुछ जयचन्दों के कारण उन्हें असफलता मिलती फिर भी वे सदा संघर्षषील रहे। अहिंसा के पुजारी महात्मा गांधी को भी अंत में कहना पड़ा कि-‘‘ हिंसा और कायरतापूर्ण पलायन में से किसी एक को चुनना हो तो मै हिंसा को ही चुनुंगा’’। आखिर अहिंसा के इस उपासक को भी हिंसा को सही ठहराने की आवष्यकता क्यों पड़ी ? भले हीं नेहरूवादी शासकों की जमात ने हिन्दुओं पर हुए अत्याचारों की लोमहर्षक कुकृत्यों को इतिहास के पन्नों से निकाल दिया हो किन्तु आधुनिक समय में लाख सरकारी प्रतिबंधों के बाद भी जो तथ्य एवं दस्तावेज उभर कर आ रहे हैं वह किसी भी मायने में सत्य को नहीं छुपा सकता है। उसी सत्य का जबाव जव इस देष का आम नागरिक मांगता है तो उसे साम्प्रदायिक जैसे उपनामों से नवाजा जाता है आखिर क्यों ? जो समाज अपने इतिहास से सबक नही सीखा उसका विनाष निष्चित है । ‘‘राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आर एस एस)’’ उसी इतिहास से इस देष के आम लोगों को रूवरू कराने का प्रयास मात्र करती आई है ताकि इस देष का सनातन संस्कार और संस्कृति जिन गलतियों से धुमिल हुई दुवारा उसपर नापाक दृष्टि किसी का ना पड़े इस निमित हम जाग्रत हो। जिस तरह के अमानुषिक वर्वर अत्याचार मोपला में हिन्दुओं पर किया गया था और उस अत्याचार को इस देष के नरपिपासु बुद्धिजीवियों का वर्ग ‘बगावत’ कहते नही शर्मा रहा है। इस देष के गुलाम मानसिकता में जीने वाले राजनीतिक दल और उसका जमात पवित्र 1857 का प्रथम स्वतंत्रता आन्दोलन को आजतक अपने स्वाभिमानविहीन कलमघिस्सुओं के सहारे ‘‘ बगावत’’ की संज्ञा देकर हमारे नायक हुतात्माओं को अपमानित करती रही है । ऐसे में अपने हुतात्माओं की शहादत पर जब ‘‘राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आर एस एस)’’ के स्वयंसेवक गर्व की बात करते हैं तो उन्हें समाज को तोड़नेवाला बताया जाता है। ‘‘राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आर एस एस)’’ इस पवित्र भूमि को भूमि का टुकड़ा या भोगभूमि नही मातृभूमि, पितृभूमि और पूण्यभूमि मानता है ।जो इसे भूमि का टुकड़ा या भोगभूमि मानता है वैसे चार्वक दर्षन के मानसपुत्रों के लिये संघ सदा साम्प्रदायिक लगेगा इसमें रंचमात्र भी संदेह नहीं है।
जिस तरह से आज वोट की राजनीति ने सामाजिक ताना बाना को छिन्न भिन्न करने का प्रयास किया है वह सदा ‘‘राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आर एस एस)’’ के लिये चिन्तनीय रहा है। खासकर मुसलमानों के संदर्भ में जिस तरह के अराष्ट्रीय कुकृत्य का सहारा वर्तमान राजनीति में चल रही है वह तुष्टिकरण की पराकाष्ठा है। जिस तरह से आजादी संग्राम के समय मुस्लिम तुष्टिकरण की नीति अपनाई गयी थी जिसका खामियाजा आज भी देष भुगत रहा है।आज भी इस देष के राजनीतिक दल मुसलमानों को राष्ट्र के मुख्यधारा में लाने के बजाय सच्चर समितियों जैसे सिरफिरों की सिफारिषेंा के सहारे उनमें अलगाव की भावना भर रही है। प्रसिद्ध विचारक श्री रामचन्द्र गुहा अपनी पुस्तक ‘ भारतः गांधी के बाद’ पृष्ठ सं-32 पर लिखतें हैं- ‘‘….. 1920 के दषक में नेहरू ने दंभपूर्वक और गलत तरीके से ये दावा किया कि मुस्लिम समुदाय के लोग उनके समाजवादी दर्षन का समर्थन करेगें न कि ऐसी पार्टी का जो धर्म के आधार पर गठित हुई हो। इस बीच मुसलमान धीरे-धीरे कांग्रेस छोड़कर मुस्लिम लीग के समर्थन में आते गये ।1930 के दषक में जब जिन्ना, कांग्रेस के साथ एक समझौता करने को इच्छूक थे तो उन्हें फिर दरकिनार कर दिया गया लेकिन 1940 के दषक में जब मुसलमान उनके पीछे पुरी तरह गोलबन्द हो गये तो जिन्ना के पास कांग्रेस से समझौता करने की कोई बजह नहीं बची थी’’। यह तथ्य अत्यन्त मार्मिक है कि नेहरू का सत्ता जिद ने इस देष में साम्प्रदायिकता का जन्म देकर हिन्दुस्तान को खण्डित कराने का पाप किया। 1946 में जब कांग्रेस और मुस्लिम लीग दोनो ने मंत्रिमंडलीय षिष्टमंडल योजना सवीकार कर ली तो सत्ता के आतुर नेहरू ने एक बयान देकर देष का इतिहास बदलने का जघन्य अपराध किया और वो वयान था-‘ एकबार संविधान सभा बुलाये जाने के उपरांत कांग्रेस को यह अधिकार होगा कि मंत्रिमंडलीय षिष्टमंडल योजना के किसी विषेष भाग को बदल दे।’ नेहरू के इस बयान के संदर्भ में लियोमार्ग मोजले का कहना है कि-इन शब्दों ने सबकुछ बदल दिया। लियोमार्ग मोजले लिखते हैं-… नेहरू और अन्य कांग्रेसी नेता अब थक गये हैं और बुढ़े हो रहे थे और पुनः जेल जाने को उद्दत नही थे और शीघ्रतिषघ्र मंत्री पद प्राप्त करना चाहते थे इसलिए उन्होने देष बॅंटवारे को स्वीकार कर लिया।’’(भारतीय स्वतंत्रता संग्राम तथा संवैधानिक विकास पृष्ठ-371)इस भोगवादी नैतिकताविहीन पष्चिमी मानसिकता से ग्रसित व्यक्ति ने सत्ता सुख के लिये देष के लाखों लोगों को बलि चढ़ा दिया करोड़ों लोगों को वेघरवार करवा दिया। हिन्दुस्तान की सनातन परम्परा को कलंकित करने वाला यह परिवार आजतक देष निर्माण के बजाय परिवार का निर्माण करता आया।देष का भुगोल बदलकर इसके इतिहास को विकृत करने का अक्षम्य पाप नेहरू और उसके गिरोहों ने मिलकर किया है इसी सत्यता को जब समाज के बीच ‘‘राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आर एस एस)’’ रखता है तो भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ई और उसका कुनवा उसे पानी पी पी कर कोसता आ रहा है। जब यह गिरोह संघ को वैचारिक रूप से नही रोक पाया तब राजकीय सहारा लिया और महात्मा गांधी के हत्या के बाद 04 फरवरी 1948 को जबरदस्ती ‘‘राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आर एस एस)’’ पर प्रतिबंध लगा दिया गया। मामला जब न्यायलय में गया तो नेहरूवादी गिरोह के मानसिकता का पर्दाफाष हुआ और अतंतः राष्ट्रवादी विचारधारा के आगे झुकना पड़ा ।फलतः संघ पर से 11 जुलाई 1949 को प्रतिबंध हटाना पड़ा। इसी संदर्भ में विचारक श्री रामचन्द्र गुहा का विचार समीचीन है-‘‘… आरएसएस के बारे में पटेल के खुद के विचार मिलेजुले थे।हालांकि उन्होने उसकी मुस्लिम विरोधी भावनाओं की आलेाचना की लेकिन उसके समर्पण और अनुषासन की तारीफ भी की। आरएसएस से पाबन्दी हटाते हुए उन्होने सलाह दी की उनके लिये कांग्रेस में सुधार लाने का एक हीं रास्ता है कि वे कांग्रेस के अन्दर से सुधार लाने की कोषिष करें ,अगर वे बाकई समझतें हैं कि कांग्रेस गलत रास्ते पर जा रही है।’’ (भारतः गांधी के बाद पृष्ठ-123)।
         संघ अपने आरंभ काल से ही अपना लक्ष्य समाज के बीच स्पष्ट रखा है जिसे बाद में जब संघ का संविधान अस्तित्व में आया तो उसके प्रस्तावना में उल्लेख है कि – (क) हिन्दुओं में से संप्रदाय,मत,जाति और पंथ की विभिन्नताओं तथा राजनीति, अर्थनीति, भाषा तथा प्रांत संबधी भेदों से उत्पन्न विघटनकारी प्रवृतियों को दूर करने   (ख) उनको अपने अतीत का महानता का ज्ञान कराने (ग) उनमें सेवा, त्याग, एवं समाज के प्रति निःस्वार्थ भक्ति का भाव भरने  (घ) इस प्रकार एक संगठित एवं अनुषासित समष्टि जीवन का निर्माण करने तथा  (ड) हिन्दु समाज का सर्वांगीण पुनरूज्जीवन उसके धर्म और संस्कृति के आधार पर करने के लिये एक संगठन का निर्माण आवष्यक समझा गया।…..।
      संघ का यह संविधान और उसकी प्रस्तावना भारत सरकार को भी समर्पित है। संघ का यह संविधान करोड़ों स्वयंसेवकों का पाथेय है। क्या इस प्रस्तावना के भावना के विपरीत संघ ने आजतक कोई काम किया । सरकारी आंकड़े बताते हैं नहीं। फिर संघ के बारे में ऐसी दुर्भावना क्यों ?इस देष के स्वांगधारी राजनीतिक दल ने अपने मन मुताविक सत्ता संचालन हेतु भारत के संविधान को ही दो सौ से अधिक बार संषोधित कर दिया और इसके बाद भी कहती है हम संविधान के मूल भावना को बनाए है? संघ प्रसिद्धि से सदा दूर रहकर कार्य करता रहा है। संघ इस देष को प्राचीन परम्परा से लेकर सवामी विवेकानंद और डॉक्टर हेडगेवार जी के सपनों का भारत मानता रहा है। संघ के बारे में कौरव कुल परम्परा के वाहकों और उसके क्षत्रपों ने समाज को दिग्भ्रमित करने का घृणित प्रयास चला रखा है ? हिन्दु समाज, संस्ंकार और संस्कृति से विद्वेष रखने वाले ‘‘ मार्क्स-मुल्ला-मैकाले और मायनो ’’ के मानसपुत्रों ने सत्त इस राष्ट्रवादी संगठन को समाज के बीच बदनाम करने के अनेको चाल चलता रहा किन्तु समाज के प्रयास और ईष्वरीय कार्य  के कारण सदैव प्रयास विफल होता आया है। देष विभाजन की त्रासदी हो या पाकिस्तान का छुपा हमला , चीन का कायराना हमला हो या भीषण दैवीय प्राकृतिक आपदा हर विपती और विषम परिस्थिति में संघ के स्वयंसेवकों ने निःस्वार्थ सेवा कार्य की जो मिसाल कायम की उसके कायल विरोधी भी रहें है फिर भी चूकि विरोध करना है तो करना है चाहे कुछ हो ।
        आज हिन्दुस्तान में ही नही विष्व में संघ के स्वयंसेवको सेवा का जो कार्य किया उससे लााख विरोधोंके बाद भी संघ की एक सम्मानित छवि कायम है संघ पर एक अटुट विष्वास लोगेां का है यह सुखद अनुभूति संघ का प्रेरणास्त्रोत है।आज पुरे देष में 25950 स्थानों पर कुल 39962 दैनिक शाखा, 9703 साप्ताहिक मिलन केन्द्र, तथा 6904 मासिक संघ मंडली के माध्यम से व्यक्ति निर्माण का कार्य संघ कर रहा है। सेवा क्षेत्र में संघ 1,33,397 सेवाकार्य समाज को आत्मनिर्भर बनाने के लिये संचालित कर रही है।अकेले जम्मु-कष्मीर के श्रीनगर में 300 सेवा कार्य एवं नॉर्थ-इस्ट क्षेत्र के 4500 गॉवों में 5000 कार्यकर्ता आरोग्य मित्र के रूप में निःस्वार्थ सेवा कार्य कर रहें है। संघ का यह सारा सेवाकार्य समाज के सहयोग से संचालित है ना कि किसी सरकार के सहयोग से ।बगैर किसी प्रचार के बगैर किसी पूर्वाग्रह के देष के हर नागरिक के बीच उसके सुख दुःख में संघ आज उपस्थित है फिर भी संघ पर मिथ्या आरोप ? पब्लिक सब जानती है।
        ‘‘राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आर एस एस)’’ सदैव इस सिद्धांत में विष्वास किया है कि विकास मेरे द्वारा ‘‘भी’’ ना कि मेरे द्वारा ‘‘ही’’। इसी ‘‘भी’’ और ‘‘ही’’ का अंतर देष के पुर्ननिर्माण का बाधक है जिस दिन इस देष के राजनीतिक दलों की सोच ‘‘ही’’ के जगह ‘‘भी’’ होगा देष विकास के मार्ग पर दौड़ेगा इसमें संदेह नही है। संघ लाख बाधाओं के बाद भी समाज में ‘‘भी’’ की महत्ता को स्थापित करने हेतु कटिबद्ध है। देष के मार्क्स-मुल्ला-मैकाले और मायनो मानसपुत्रों की जो सोच है-‘‘यावत् जीवेत सुखं जीवेत,़ ऋणं कृत्वा घृतं पिवेत। भस्मीभूतस्य देहस्य पुनरागमनं कुतः।।’’ इस मनोवृति के सोच को ‘‘राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आर एस एस)’’ -‘‘ इन्द्रियाणि पराण्याहुः इन्द्रियेभ्यः परं मनः। मनसस्तु पर बुद्धिः यो बुद्धे परतस्तु सः ।। इस विचार अथार्त ‘‘तेरा वैभव अमर रहे मां, हम दिन चार रहें ना रहें’ में बदलकर सषक्त राष्ट्र का निर्माण मे लगा है। देष विभाजन कर सत्ता सुख भोगने बाले और उसके फेंके ठुकड़े पर पलने बाले भाट-चारणों के गिरोह को संघ का परम वैभव हो देष का लक्ष्य दिखाई नहीं देता है ठीक उसी प्रकार जैसे गंदगी में जीने वाले जीव के लिये स्वच्छता कष्टदायक होती है। ऐसे मानसिंकता से पीड़ीत दल,व्यक्ति, संस्था या समाज के लिये ‘भैंस के आगे बीन बजाए,भैंस रही पगुराय’ वाली उक्ति चरितार्थ होती है। हमें स्मरण रखना चाहिए कि संस्कारों का कोई मापयंत्र नहीं होता है किन्तु जब चुनौती आती है तो यही संस्कार मुकावला करने को उत्साहित कर विजयश्री देता है। इस देष का आम नागरिक अब जाग चुका है, युवा अंगड़ाईयां ले रहा है परिवर्तन करने का, चाहता है विकास, और करना है परम वैभव हिन्दुस्तान की पुर्नस्थापना और इसे कोई रोक सकेगा अब यह असंभव है।संघ के बारे में जो धारणा बताई जाती है वह सत्य से परे है शाखाओं में आईए और प्रत्यक्ष अनुभव कीजिये ।अंधे और हाथी की कहानी की तरह अनुमान लगाने से बचिए। अपना सोच बदलिये और इस बदलाव को समाज के नजरिए से देखिये समाज आपसे स्पष्ट कह रही है इस हिन्दुस्तान को हिन्दुस्तान हीं रहने दीजिये। अब भी समय है अपने साकारात्मक सोच को सक्रिय कर देष के नवनिर्माण में अपना योगदान देकर अपने अतीत और पूर्वजों पर गौरव तथा अपने देष के संस्कार व संस्कृति पर स्वाभिमान करें ताकि यह देष फिर से सोने की चीड़ियां के रूप मे वसुधैव में कुटुम्बकम् का संदेष लिये चहके इस विष्वास को बल प्रदान करे ।
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**संजय कुमार आजाद
पता : शीतल अपार्टमेंट,
निवारणपुर रांची 834002

मो- 09431162589
(*लेखक स्वतंत्र लेखक व पत्रकार हैं)
*लेख में व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं और आई.एन.वी.सी का इससे सहमत होना आवश्यक नहीं ।

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