हिंदी को राष्ट्र भाषा होना बहुत कठिन

0
28

सौ बरस से अधिक समय हो गया हिंदी को राष्ट्रभाषा का अधिकार मिले पर आज भी हिंदी सिर्फ हिंदी मानने वालों के कारण बची हैं .महात्मा गाँधी ने १९१८मे अपने अध्यक्षीय भाषण में कहा था की हिंदी को राष्ट्रभाषा का अधिकारी घोषित करना और दक्षिण भारत में हिंदी के प्रचार -प्रसार का अनुष्ठान करना ,
” नर  हो न निराश करो मन को ,कुछ काम करो कुछ काम करो “ये शब्द हमें हर बार पढ़ते पढ़ते धिक्कारते हैं की काम में सफलता क्यों नहीं मिलती ? क्या हमारे प्रयास लक्ष्य को पाने में असफल हैं ? क्या हम इतने स्वाभिमानी   नहीं हैं ? क्या हम अब भी पराधीन हैं ?क्या हमें काले अंग्रेजों  से फिर लड़ना होंगा?जब लड़ने वाले खुद शासक के साथ हैं तो हमारा हश्र क्या होगा ? हमें कब तक भीख मांगना होगी ?हमें कब तक लड़ना होगा ?कैसे लड़ना होंगा ?और क्यों लड़ें? ये प्रश्न बरबस नहीं उठ रहे। ये प्रश्न हमारे देश की दुरंगी नीति का परिणाम नहीं हैं  क्या ?
आज  भी हिंदी के समाचार पत्रों में आवेदन अंग्रेजी भाषा में मंगाया गया।  बिलकुल ठीक जैसे शराब बंदी की दलील शराब पीने वाला कर रहा हैं कि शराब पीने से बहुत लाभ हैं। सिगरेटबंद करने वाला कहता हैं कि सिगरेट पीने से तीन फायदा पहला घर में चोरी नहीं होती ,कुत्ता नहीं काटता और बुढ़ापा नहीं आता। इसी प्रकार जब गंगोत्री ही अपवित्र हो गयी तब गंगा कहाँ तक पवित्र होंगी।।  कारण जहाँ से हिंदी का बिगुल बजाना हैं वहां से अंग्रेजी का गुणगान है रहा हैं। वेश्याओं को सधवा स्त्री  से बहुत जलन होती हैं।
हिंदी कि लड़ाई लगभग सौ बरस हो गए कि राष्ट्र भाषा बने, हिंदुस्तान की, भारत की ,इंडिया की  पर हम न भारतीय हो पाए ,न हिंदुस्तानी हो पाए और हम हो गए अधकचरे इंडियन।  अधकच्चे आम रोमांचकारी होते हैं पर उतना अच्छा स्वाद नहीं देते हैं।  हम क्या थे ,क्या हैं और क्या हो रहे।  किस्से न्याय की भीख मांगे. जहाँ बेदर्द हाकिम हो वहां फरियाद क्या करना।  
हमारे हाकिम असल में पहले के विदेशों में पढ़े थे ,विदेशी भाषा पढ़े थे तो उनकी विदेशी मानसिकता हो गयी. यहाँ कोई बुराई नहीं हैं ज्ञान के लिए भाषा का कोई बंधन नहीं। कारन हमें अपने मस्तिष्क के खिड़की दरवाजे हमेशा खुले रखना चाहिए. पर इतने खुले नहीं की धूल ,कचरा हमारे घर आँगन को गन्दा कर दे। आज की स्थिति यह हैं की विश्व में संपर्क भाषा के लिए अंग्रेजी अनिवार्य हैं तो फिर चीन ,जापान ,रशिया आदि देशों को क्यों नहीं अनिवार्य हैं।  हम अब भी गुलामी से मुक्त नहीं हो पाए।  हम दूसरों की वैसाखी पर चल कर आगे बढ़नाचाहते हैं ,और शायद बढ़ गए। और इतने आगे निकल गए की शायद वापिस आना संभव नहीं हैं ,अंग्रेजी भाषा का प्रभुत्व इतना अधिक हो गया हैं वह देश की भाषायों   की महारानी हो गयी और अन्य भाषाएँ उसकी चेरी बन गयी. अब बस महारानी बनाने के लिए ताज़पोशी करना अनिवार्य हैं तो उसका इन्तज़ार कर रहे हैं. कारण अंग्रेजी को सिंहासन में विराजें, फिर हिंदी और अन्य भाषाएँ अधिकृत चेरी मान ली जाएंगी. अब हिंदी अधकच्चे आम के समान हैं । पता नहीं कब आम पकेगा। पर इस देश में हिंदी के आसार नहीं हैं आने के।  तो हम हिंदी प्रेमियों ,साहित्यकारों ,रचनाकारों को मूक दर्शक बन भाषा की गुलामी स्वीकार कर लेना चाहिए. अब तक जितना सृजन किया आपने वह शासक के साथ धोखा दिया ,राजद्रोह किया अंग्रेजी जैसे विक्टोरिया का अपमान किया। क्यों न सब पर देश द्रोह का मुकदमा चलाया जाय. क्यों ?अंग्रेजों के समय उनकी बगावत करने का क्या इलज़ाम होता।  
खैर अब बात करने ,विरोध करने का कोई अर्थ नहीं हैं। जब अंग्रेजी को राज्याश्रय मिल चूका हैं तो अब हिंदी के राष्ट्र भाषा बनाने का विचार त्याग देना क्या उचित नहीं होगा ?!और हिंदी  राष्ट्र भाषा यदि बन भी जाएंगी तो हमारे लिए कौन गौरव की बात होगी. महात्मा गाँधी और अन्य लोंगो ने व्यर्थ में स्वाधीनता का आंदोलन कर देश को स्वत्रन्त्र कराया। इससे क्या फायदा हुआ. अभी भी पुराने लोग कहते हैं की अंग्रेजो का ज़माना अच्छा था. कम  से कम  न्याय तो मिलता था ,सस्ता था ,पर अब तो हम और अधिक गुलाम हो गए ,मानसिक आर्थिक,राजनैतिक ,सामाजिक , सांस्कृतिक धार्मिक ,वैचारिक गुलाम,आदि  ।  हमारी सोच ,कार्य संस्कार पश्चिमी सभ्यता से प्रभावित हो गयी, अब हम सिर्फ यह कहते हैं की मेरा हाथ सुंघों मेरे पिता जी ने शुद्धघी खाया था उसकी खुशबू मेरे हाथ में हैं।  
अब हमें पुराणी विरासत पर गर्व करने का कोई  अधिकार नहीं हैं उनका मूल्यांकन जब नहीं होना हैं तब क्यों हम उसकी सेवा करे. ?जिन्होंने अंग्रेजी की सेवा की उनको मेवा मिल रहे हैं और मिलेंगे. एक दिन संयुक्त राष्ट्र में भाषण देने से हिंदी का विकास झूठी ,कोरी कल्पना हैं। जब तक जन जन की भाषा को उचित साथ नहीं मिलेंगा तब तक  हमारी प्रतिष्ठा बिना नींव की होंगी ,हम कितने भी मंज़िल भवन बनाले पर वह बेबुनियाद कहलायाएंगी।  
       इससे समझ में आ गया हिंदी को राष्ट्र भाषा होना बहुत कठिन हैं पर हम अपनी माँ ,भाषा हिंदी की सेवा में कोई कोर कसर  नहीं छोड़ेंगे और जहाँ जहाँ सरकार की खामियां हों उनको उजागर कर सरकार को मज़बूर करेंगे. हिंदी राष्ट्र भाषा बनेंगी बनेंगी उस दिन का इंतज़ार करेंगे। PLC.

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here