हिंदी कविता से देश प्रेम ग़ायब : तेजेन्द्र शर्मा

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tejendra-sharmaआई एन वी सी न्यूज़
नई दिल्ली ,

कल शाम कथा यू.के. एवं एशियन कम्यूनिटी आर्ट्स ने नेहरू सेन्टर लंदन में एक अनूठा कार्यक्रम प्रस्तुत किया। कथा यू.के. के महासचिव एवं पुरवाई पत्रिका के संपादक तेजेन्द्र शर्मा ने हिंदी गीतकारों द्वारा हिंदी सिनेमा के लिये लिखे गये देश-प्रेम के गीतों के बारे में ना केवल विस्तार से चर्चा की बल्कि उनके वीडियो भी दिखाए।तेजेन्द्र जी के अनुसार हिंदी फ़िल्मों में चित्रित किये गये देश-प्रेम गीतों को मुख्य तौर पर पांच श्रेणियों में रखा जा सकता है – 1. जब भारत ग़ुलाम था, उन दिनों के विदेशी हुक्मरान के विरोध में लिखे गये गीत।
 2. देश की सुन्दरता और सुदृड़ता के बार में गीत। यह लगभग वैसा ही है जैसे कोई अपनी प्रेमिका की सुन्दरता की तारीफ़ करता हो मग़र अक़ीदत के साथ।
 3. सैनिकों और सेना का मनोबल बढ़ाने वाले गीत विशेषकर युद्ध के माहौल में।
 4. सैनिकों द्वारा अपनी मनःस्थिति को दर्शाते गीत।
 5. सैनिकों की कुरबानी पर श्रद्धांजलि देते गीत….

तेजेन्द्र जी ने अफ़सोस जताया कि हिंदी कविता से देश प्रेम लगभग तीन दशकों से ग़ायब सा हो गया है। जब से कविता एक ख़ास विचारधारा के दबाव में लिखी जाने लगी है और गीत विधा की अवहेलना शुरू हुई है तबसे देश प्रेम भी वहां से ग़ायब हो गया है।

उन्होंने विस्तार से इस क्षेत्र में पण्डित प्रदीप के योगदान की चर्चा करते हुए बताया कि 1943 मे बनी फ़िल्म किस्मत में उन्होंने गीत लिखा था – दूर हटो ऐ दुनियां वालो हिन्दुस्तान हमारा है। वे देश प्रेम के गीतों के पितामह थे। उनके लिखे गीत ऐ मेरे वतन के लोगो… की भी विशेष चर्चा हुई।

जिन गीतकारों के गीतों पर चर्चा करते हुए वीडियो दिखाए गये उनमें शामिल थे – आओ बच्चो तुम्हें दिखाएं…(प्रदीप – जागृति), आवाज़ दो हम एक हैं (जां निसार अख़्तर – ग़ैरफ़िल्मी), ये देश है वीर जवानों का (साहिर – नया दौर), होठों पे सच्चाई रहती है (शैलेन्द्र – जिस देश में गंगा बहती है), ओ पवन वेग से उड़ने वाले घोड़े (भरत व्यास – जय चित्तौड़), अपनी आज़ादी को हम हरगिज़ मिटा सकते नहीं (शकील बदायुनी – लीडर), कर चले हम फ़िदा (कैफ़ी आज़मी – हकीक़त), मेरा रंग दे बसन्ती चोला ( प्रेम धवन – शहीद), जहां डाल डाल पर सोने की चिड़िया करती हैं बसेरा (राजेन्दर कृष्ण – सिकन्दर-ए-आज़म), मेरे देश की धर्ती सोना उगले (गुलशन बावरा – उपकार), जब ज़ीरो दिया भारत ने (इंदीवर – पूरब और पश्चिम), देखो वीर जवानो अपने ख़ून पे ये इल्ज़ाम ना लेना (आनन्द बक्षी – आक्रमण), ताक़त वतन की तुम से है (नीरज – प्रेम पुजारी), संदेसे आते हैं (जावेद अख़्तर – बॉर्डर)।

अपने दो घन्टे चले पॉवर-पाइण्ट प्रेज़ेन्टेशन में तेजेन्द्र शर्मा ने आश्चर्य व्यक्त करते हुए कहा कि आजकल भारत में देश-प्रेम को शक़ की निगाह से देखा जाने लगा है और देश-प्रेमी को ऐसी निगाह से देखा जाता है जैसे कोई चोरी करता हुआ पकड़ा जाए।

1960 और 1970 के दशक में कितनी आसानी से वन्दे मातरम् और भारत माता की जय शब्दों का प्रयोग किया जाता था। प्रदीप ने तो जय हिन्द के नारे को पूर्णता प्रदान करते हुए अपने गीत में जय हिन्द की सेना का नारा दे दिया।

तेजेन्द्र शर्मा ने भारतीय सरकार को लन्दन से यह संदेश भेजा कि हमारे वीर सैनिकों की कुर्बानियां देते हुए उनकी मांगों पर सरकार जल्दी से जल्दी निर्णय ले। यह सैनिकों का हक़ है और सरकार का फ़र्ज़।

उपस्थित श्रोताओं ने तेजेन्द्र शर्मा की बातों पर और बहुत से गीतों के बाद करतल ध्वनि से अपनी प्रतिक्रिया प्रकट की।

_________रिपोर्टः अनुपमा कुमार ज्योति

1 COMMENT

  1. तेजेंद्र शर्मा जी ने बहुत सही कहा है कि हिंदी कविता से देश प्रेम गायब है इनका अफसोस जायज है।आज वह भाव ही नही तो कविता कैसे लिखेंगे ।हम जो आज चैन की नींद सोते है वह सैनिको की वजह से ही ।भारत माता की जय ।

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