हमने आईना दिखाया तो बुरा मान गये *

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असीमानंद{ वसीम अकरम त्यागी ** }  असीमानंद के जिस हलफनामे को लेकर facebook पर हौ हल्ला मचा था वह दो साल पुराना है। कारवां पत्रिका के संपादक विनोद के दोसे ने उस स्टोरी को दो साल पहले किया था। अफसोस की बात है कि दो साल से लेकर आज तक देश में कई स्थानों पर बम विस्फोट हुऐ। और उनमें भी जांच एजंसियों का निशाना सिर्फ एक ही समुदाय रहा। जिसको असीमानंद ने साफ – साफ साजिशकर्ता करार दिया उस संघ प्रमुख मोहन भागवत के खिलाफ आज तक कोई प्राथमिकी दर्ज नहीं हो पाई। और देश में विभिन्न स्थानों पर बम विस्फोट होते रहे, सबकुछ एक प्रायोजित प्रतीत हो रहा है। एक तरफ केवल शक की बिना नौजवान बेगुनाहों को सालों तक जेल में सड़ाया जाता है, जबरदस्ती उनके मुंह से आतंकवादी होने का दावा कराने के लिये उनके जनन अंगों में बिजली के करेंट दिये जाते हैं। दूसरी तरफ मास्टर माईंड का नाम दो साल पहले सामने आ चुका है और कहीं पर कोई हलचल तक नजर नहीं आ रही है। जो कल तक इस्लामी आतंकवाद का हौवा खड़ा करके राष्ट्रीय सुरक्षा की दुहाई दे रहे थे, आज उन्हीं के सुर बदल गये हैं, और उन्हीं की जुबान संघ प्रमुख का नाम धमाकों में आने को लेकर सियासी साजिश करार दे रही है। आतंकवाद पर यह दोहरा नजरिया आखिर किसलिये ? एक तरफ यही एजंसियां, यही सरकारें सिर्फ शक की बिना पत्रकार एस एम ए काजमी को महीनों जेल में रखती हैं, दिल्ली विवि के प्रोफेसर गिलानी को निचली अदालत फांसी की सजा तक सुना देती है। उन्हीं के शब्दों में कहें तो “मेरे साथ जो सलूक पुलिस ने किया उसे शब्दों में बताया नहीं जा सकता मेरी आज भी रूह कांप जाती है जब भी में उस मंजर को याद करता हूं जब पुलिस वाले मुझे यातनाऐं दिया करते थे, मैं सोच भी नहीं सकता था कि कोई इंसान किसी दूसरे इंसान के लिये इतना जालिम भी बन सकता है” दूसरी ओर यही पुलिस, यही मीडिया, यही एजंसिया, संघी आतंकवाद पर खामोश हैं क्यों आखिर ? ऊपर से तुर्रा कि यह तो राजनीतिक षड़यंत्र है, हो सकता है राजनीतिक षड़यंत्र हो ? मगर आपने सैकड़ों बेगुनाहों की जिंदगी तबाह की और सालों बाद वे जेल से बाईज्जत बरी हुऐ उसके बाद भी धमाकों के असल मजरिम गिरफ्त में नहीं आये ? क्योंकि जिन्हें आतंकवादी कहकर मीडिया ने संबोधित किया था वे तो बरी हो गये, उसके लिये कौन जिम्मेदार है ? कथित राष्ट्रवादी कहते हैं कि मुस्लिम तुष्टीकरण हो रहा है, उनको अगर कोई यह कह दे कि मुस्लिम तुष्टीकरण नहीं बल्कि आतंकवाद के नाम पर उत्पीड़न हो रहा है। और तुष्टीकरण तो संघियों का हो रहा है तो कैसा रहेगा ? दो साल बाद भी मोहन भागवत को के खिलाफ मुकदमा तक दर्ज नहीं हो पाता वह खुला घूमता रहता है। आखिर ये दौगलापन नहीं तो क्या है ? एक तरफ ढोल पीटा जाता है कि सबके लिये समान अधिकार, समान संविधान है आखिर मोहन भागवत का नाम आते ही वह समानता कहां गायब हो गई ? कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह, गृह मंत्री सुशील कुमार शिंदे, कई बार संघी आतंकवाद का हौवा खड़ा कर चुके हैं अगर संघ आतंकवादी गतिविधियों में संलिप्त है तो उसके खिलाफ केवल गाल बजाने से ही काम चल जायेगा या कार्रावाई भी की जायेगी ? हैरानी तो इस बात की है कि जो अखबार केवल संदिग्ध के तौर पर तुरंत किसी उजैर के तार आईएसआई या इंडियन मुजाहिदीन जैसे कथित आतंकवादी संगठन से जोड़ देते थे, उनके कारनामों का सच झूठ से पूरे पृष्ठ को रंग डालते थे। वही अखबार आज संघ प्रमुख की सफाई  में आलेख, और संपादकीय लिख रहे हैं, जिससे यह अंदाजा आसान से लगाया जा सकता है कि किस कद्र मीडिया संप्रदाय विशेष के प्रति पूर्वाग्रह से ग्रस्त है ? जिस तरह मीडिया किसी फहीम अंसारी किसी हिमायत बेग, किसी उजैर को आतंकवादी कह देना शुरु कर देता है क्या उसी हिम्मत के साथ मोहन भागवत, कर्नल पुरोहित, इंद्रेश कुमार को आतंकवादी कह सकता है ? नहीं न लानत है तुम्हारी कायरता और भेदभाव पूर्ण, गंदी मानसिकता पर।
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वसीम-अकरम-त्यागी**वसीम अकरम त्यागी
युवा पत्रकार
9927972718, 9716428646
journalistwasimakram@gmail.com

*Disclaimer: The views expressed by the author in this feature are entirely his own and do not necessarily reflect the views of INVC.

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