हज्जाम और अर्थशास्त्री के वार-पलटवार

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{डॉ. भूपेन्द्र सिंह गर्गवंशी**}
शाम को शहर की सड़क पर ‘इवनिंग वाक’ के लिए निकला था, तभी एक हज्जाम (नाई/बारबर) का सैलून खुला दिखा। बड़ी लकदक दुकान और दूधिया प्रकाश से रौनक महंगी कुर्सियाँ और आगे-पीछे शीशे लगे हुए थे। युवा हज्जाम से सड़क की ऊबड़-खाबड़ पटरी पर खड़ा ही लगभग चिल्लाकर जोर की आवाज में पूँछता हूँ क्यों बेटा अभी तक दुकान खोल रखे हो? वह बोला हाँ मास्साब ग्राहक थे इसलिए दुकान देर तक खुली रखना पड़ा। उसने अपने दुकान का फर्नीचर, शीशे, कुर्सी, बेंच, सोफे आदि पोंछते हुए मुझसे कहा, आइए मास्साब बहुत दिन हो गया आप मिले नहीं। 
 
मैं भी उस लड़के के बुलावे पर उसके सैलून के अन्दर पहुँच गया और चेहरा शीशे में देखता हुआ स्वयं के हाथ को दोनों गाल पर फेरा तो कुछ खुरदरापन महसूस हुआ, मैंने सोचा दाढ़ी बनाते समय कुछ बाल छूट गए होंगे। मैने नाई से कहा बेटा जरा देखो तो कुछ बाल रह गए हैं, इसे अपने अस्तुरे से निकाल दो। वह तुरन्त अपना छुरा जिसमें पुराना ब्लेड लगा था लेकर मेरी ताजी बनी दाढ़ी को देखने लगा। बोला मास्साब दस रूप्ए बचाने के चक्कर में अपना चेहरा कई जगह काट लिए हैं। वह जानता है कि दाढ़ी मैं अपने हाथों से ही बनाता हूँ। 
 
मैंने कहा नहीं डियर पैसा बचाने की वजह से नहीं बल्कि कारण यह है कि दाढ़ी बनवाने के लिए तुम्हारे सैलून पर आऊँ तो इन्तजार करना पड़ेगा, और समय की कीमत तुम बेहतर समझ सकते हो। वह बोला हाँ मास्साब मेरी दुकान पर आएँगे तब मैं अन्य ग्राहकों से इतर आप का नम्बर पहले लगा दूँगा। मैंने कहा डियर इसके लिए थैंक्स, थोड़ा देख लो कि दाढ़ी बाल तो नहीं रह गए हैं। उसने उसी पुराना ब्लेड लगा अस्तुरा मेरे गाल के दोनों तरफ चला दिया और कहा काफी बाल छूट गए थे। मैंने कहा यार दाढ़ी बनाते समय बिजली गुल हो गई थी, तब ढिबरी की रोशनी में अधूरी दाढ़ी बनानी पड़ी थी। हज्जाम लड़के ने कहा बिजली की समस्या कभी नहीं सुधरेगी। 
 
मैंने उससे बहस करना नहीं चाहा था। उस लड़के से बहस करके क्या मिलता। वह अल्पज्ञ और मैं अर्थशास्त्र  में डाक्टरेट। कितना अन्तर हम दोनों की सोच में होगा, इसका अन्दाजा मुझ जैसा व्यक्ति सहज ही लगा सकता है। वैसे उसने तो मुझे पहले ही अपने व्यंग्य बाण से आहत कर दिया था कि मैंने दस रूपया बचाने के चक्कर में गाल पर ब्लेड कटिंग्स कर डाला था। उसने यह बात तो सहज कहा था क्योंकि यदि हर कोई स्वयं के हाथों दाढ़ी बाल बनाने लगे तो हज्जाम का अर्थशास्त्र गड़बड़ा जाएगा, लेकिन वह भूल गया कि मुझे अर्थशास्त्र में पी.एच.डी. की उपाधि/सनद बेवजह नहीं मिली थी। हाँ यह बात दीगर है कि वर्तमान महँगाई के युग में मेरी वित्तीय स्थिति कुछ ठीक नहीं है, इसलिए न चाहते हुए भी धनाभाव में कई काम ऐसे करने पड़ते हैं, जिसमेसं मेरी कमजोर नजर साथ नहीं देती है। मसलन दाढ़ी बनाने को ही ले लीजिए। चेहरा साफ-सुथरा रहे, लोगों को अच्छा सुन्दर दिखूँ तो इस पर उगने वाली झाड़-झंखाड़ को नियमित रूप् से साफ करना ही पड़ेगा। यह बाद अलहदा है कि किसी को दृष्टि दोष होने के कारण वह अपनी शेविंग खुद कर पाने में दिक्कत महसूस करे जैसा कि मैं। 
 
बहरहाल! युवा हज्जाम ने मेरी दाढ़ी में से शेष रह गए बालों की सफाई कर दिया था। फिर मैंने उसे शुक्रिया कहा और चल पड़ा घर की तरफ। घर की वापसी में मैं सोच रहा था अपने और हज्जाम में अन्तर के बारे में। क्या मुझ जैसे पी.एच.डी. धारक से बड़ा है उस अपढ़ हज्जाम का अर्थशास्त्र। वह तो हज्जाम है उसकी दुकान पर तरह-तरह के लोग दाढ़ी-बाल और चेहरे का मेकअप कराने आते हैं, और वह उनसे अपनी चापलूसी एवं ठकुरसोहाती भरी बातों से मनचाहा पैसा ऐंठता है। इस तरह की लकदक दुकानों पर भारी वजन के बटुआ वाले ही जाते हैं, मुझ जैसे लोग बड़ी हिम्मत करके ही हज्जाम के अर्थशास्त्र के आगे नतमस्तक हो सकते हैं। 
 
मेरी अपनी सोच है कि हज्जाम की चापलूसी और ठकुरसोहाती भरी बातों से किसी की माली हालत सुदृढ़ नहीं हो सकती उल्टे पाकेट ही ढीली होगी और उनका अर्थशास्त्र गड़बड़ा जाएगा। चूँकि एक अर्थशास्त्री होने का चार दशकीय अनुभव प्राप्त है, इसलिए मैं समझता हूँ कि वह हज्जाम मुझे उकसाने में कामयाब नहीं रहा, उल्टे मैं ही अपने मकसद में सफल रहा। हाँ यह बात दूसरी है कि उस हज्जाम ने पुराने ब्लेड वाले अस्तुरे से मेरी दाढ़ी के छूटे बालों को साफ किया था। मैं खुश हूँ कि अर्थशास्त्र में पी.एच.डी. की सनद/उपाधि हासिल करके मैं अर्थ को व्यर्थ में नहीं खर्च करता हूँ। किसी की ठकुर सोहाती का असर भी नहीं पड़ता है मुझ पर वह चाहे हज्जाम हो या फिर कोई अन्य पेशेवर चापलूस। 
 
खैर! मेरा दस रूपया बचा था, मैं इसी को लेकर खुश था। हज्जाम को मैंने आश्वस्त किया था कि घर के सभी किड्स (बच्चे) तुम्हारी दुकान पर आकर बाल बनवाएँगे। वह भी खुश था कि मास्साब उसके परमानेन्ट ग्राहक बन गए हैं, और मैं इस बात पर प्रसन्न था कि एक पी.एच.डी. उपाधि धारक ने हज्जाम को उसी के वार से पलटवार करके फ्री में दाढ़ी के बालों को साफ कराकर चेहरा साफ-सुथरा करा लिया। 
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B.S.Gargvanshi*डॉ. भूपेन्द्र सिंह गर्गवंशी
(वरिष्ठ पत्रकार/टिप्पणीकार)
अकबरपुर, अम्बेडकरनगर (उ.प्र.)
मो.नं. 9454908400
*लेखक स्वतंत्र पत्रकार है
*लेख में व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं और आई.एन.वी.सी  का इससे सहमत होना आवश्यक नहीं।

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