स्वामी सानंद के आत्मकथ्य पर आधारित शीघ्र प्रकाश्य हिंदी पुस्तक

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आई एन वी सी न्यूज़

नई दिल्ली

ख़ास परिचितों के बीच ‘जी डी’ के संबोधन से चर्चित सन्यासी स्वर्गीय स्वामी श्री ज्ञानस्वरूप सानंद के गंगापुत्र होने के बारे में शायद ही किसी को संदेह हो। बकौल श्री नरेन्द्र मोदी जी, वह भी गंगापुत्र हैं। ”मैं आया नहीं हूं, मुझे मां गंगा ने बुलाया है।” – वर्ष 2014 में वाराणसी से सांसद चुनाव के उम्मीदवार के तौर पर श्री नरेन्द्र भाई दामोदर मोदी जी का यह बयान तो बाद में आया, गंगापुत्र स्वामी श्री सानंद के मन में यह आशा पहले बलवती हो गई थी कि यदि श्री मोदी के नेतृत्व वाला दल केन्द्र में आया तो गंगा जी को लेकर उनकी मांगों पर विचार अवश्य किया जायेगा। हालांकि उस वक्त तक राजनेताओं और धर्माचार्यों को लेकर स्वामी श्री सानंद के अनुभव व आकलन पूरी तरह आशान्वित करने वाले नहीं थे; बावज़ू़द इसके यदि आशा थी तो शायद इसलिए कि इस आशा के पीछे पुरी के शंकराचार्य स्वामी श्री निश्चलानंद सरस्वती जी का वह आश्वासन था, जो उन्होने स्वामी श्री सानंद के 128 दिन लंबे पांचवें अनशन का समापन कराते हुए वृंदावन में क्रमशः दिया था। सूत्रानुसार, शंकराचार्य जी के आश्वासन का आधार, भारतीय जनता पार्टी के तत्कालीन अध्यक्ष श्री राजनाथ सिंह की ओर से मिला आश्वासन था।

इस दस्तावेज़ को लेखक अरुण तिवारी द्वारा कलमबद्ध करने के वक्त स्वामी श्री सानंद के पांचवें ऐतिहासिक उपवास का समापन हुए दो वर्ष से अधिक समय बीत चुका था और अब पुस्तकाकार में प्रथम हिंदी संस्करण प्रकाशित करते वक्त अपने छठे और अंतिम अनशन के पश्चात् स्वामी श्री सानंद की आत्मा, देह का त्याग कर चुकी है।

गौर कीजिए बीते पांच वर्षो के दौरान श्री मोदी द्वारा गंगा और अपने रिश्ते का बयान आया; केन्द्रीय जल संसाधन मंत्रालय में ‘गंगा पुनर्जीवन’ और ‘नदी विकास’ के शब्द जुङे; ‘नमामि गंगे’ और ‘राष्ट्रीय गंगा मिशन’ ने नया सपना दिखाया; कई घोषणायें भी हुईं। वक्त लगता है. किंतु इतना वक्त कि आज साढे़ चार वर्ष बाद, अक्तूबर, 2018 में भी स्वयं गंगा मंत्रालय यह कहने की स्थिति में नहीं कि देखो, हमने गंगा का यह सौवां हिस्सा या गंगा में मिलने वाली किसी एक छोटी सी नदी को पूरी तरह प्रदूषण मुक्त कर दिया है !! गौर कीजिए कि गंगा को स्वच्छ कर देने के केन्द्र सरकार के दावे की सीमा रेखा हर वर्ष खिसकती हुई अब वर्ष-2020 हो गई है; जबकि विज्ञान पर्यावरण केन्द्र, नई दिल्ली द्वारा 30 अक्तूबर, 2018 को मीडिया में जारी आकलन रिपोर्ट के अनुसार, गंगा और अधिक प्रदूषित होने की ओर अग्रसर है। इस निष्कर्ष का आधार यह है कि केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अनुसार, गंगा हेतु स्थापित 70 निगरानी केन्द्रों में से मात्र स्थानों पर पानी पीने योग्य तथा सात स्थानों पर स्नान योग्य पाया है।

स्वयं स्वामी श्री सानंद के बलिदान के पश्चात लेखक ही नहीं, जैसे स्वयं स्वामी श्री सानंद से हुई बातचीत का भी धैर्य जवाब दे गया है। अतः लेखक ने इस बातचीत को पुस्तकाकार में समाज के सामने रखने का निर्णय लिया। संभव है कि स्वामी श्री सानंद के अनुभवों व निष्कर्षों से समाज, सरकार और गैर-सरकारी संगठन.. तीनों ही समझ सकें कि क्या हालात हैं, जिनसे निराशा पनपती है और क्या हालात हैं, जिनका विकास कर हम आशा को बलवती कर सकते हैं।

इस बातचीत को पढ़कर आप समझ सकेंगे कि आखिर ऐसा क्या हुआ कि बांध निर्माण की कई परियोजनाओं में प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष तौर पर शामिल रहा एक इंजीनियर, अचानक बांधों के खिलाफ हो   गया ? क्या हुआ कि जो प्रो. जी. डी. अग्रवाल, एकाएक गंगा की तरफ खिंचे चले आये ? कौन से कारण थे कि एक शिक्षक, इंजीनियर और वैज्ञानिक होने के बावजूद प्रो. अग्रवाल ने अविरलता के रास्ते मां गंगा की निर्मलता सुनिश्चित कराने की अपनी यात्रा की नींव वैज्ञानिक तर्कों की बजाय, आस्था के सूत्रों पर रखी ? क्या प्रेरणा थी कि प्रो. अग्रवाल, सन्यासी बन स्वामी श्री ज्ञानस्वरूप सानंद हो गये ? कौन सी पुकार थी, जिसने प्रो. अग्रवाल को इतना संकल्पित किया कि वह अपने प्राण पर ही घात लगा बैठे ? जिस जी.डी. ने कभी स्वयं से पूछा कि क्या वह भागीरथी के सच्चे बेटे हैं, उसी ने स्वामी सानंद के रूप में प्रधानमंत्री को लिखे अपने अंतिम पत्र में स्वयं को गंगा का सच्चा बेटा क्यों लिखा ? समझ सकेंगे कि स्वामी सानंद, गंगा की निर्मलता हेतु नमामि गंगे द्वारा मंजूर परियोजनाओं पर चर्चा करने की बजाय, गंगा अविरलता सुनिश्चित कराने की मांग पर क्यों अड़े थे ? स्वामी सानंद ने गंगा मंत्रालय द्वारा जारी पर्यावरणीय प्रवाह संबंधी अधिसूचना का अपनी मृत्यु से चंद मिनट पहले तक क्यों विरोध किया ? स्वामी सानंद क्यों और कैसा गंगा क़ानून चाहते थे ??

यह बातचीत गंगा के मुद्दे पर सरकार, नागरिक समाज और धर्माचार्यों के असली और दिखावटी व्यवहार व चरित्र की कई परतें तो खोलती ही है, स्वयं स्वामी सानंद के व्यक्तित्व के कई पहलुओं को भी उजागर करती है। इसके ज़रिए आप स्वामी सानंद की गंगा संकल्प सिद्धि की रणनीति के संबंध में फैली कई शंकाओं का भी समाधान पा सकेंगे।

इस बातचीत के दौरान उल्लिखित रूङकी इंजीनियरिंग काॅलेज से लेकर बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी तक का उनका छात्र जीवन बताता है कि उस जमाने में काॅलेज और विश्वविद्यालय सिर्फ उच्च शिक्षा ही नहीं, समाज में गौरव और नैतिकता के उच्च मानकों को स्थापित करने का भी केन्द्र थे। स्वामी सांनद अपनी युवावस्था में क्या विचार रखते थे ? चंद घटनाओं से आपको इसका एहसास होगा।

आपको इस बातचीत में स्वामी श्री सानंद के पारिवरिक जीवन की एक झलक भी पढ़ने को मिलेगी। गंगा के विषय में स्वामी श्री सानंद की वैज्ञानिक और आस्थापूर्ण सोच, इस बातचीत का एक मुखर पहलू है ही। यह बातचीत दो दिन के दौरान छह बैठक और करीब 26 घंटों में सम्पन्न हुई। आगे भी दो खण्डों में कुछ बात हुई। बातचीत में तारतम्य करने की दृष्टि से तनिक संपादन की आवश्यकता भी लेखक को महसूस हुई। हां, ऐसा करने से न तो बातचीत के तथ्यों से खिलवाङ हो, न बातचीत को अनुचित तरीके से पेश किया जाये और न ही अपने विचारों को थोपने की कोशिश हो; इसका पूरा-पूरा ख्याल रखना तो ज़रूरी था ही। अतः लेखक ने इसका पूरा ख्याल रखा है।

स्वामी श्री सानंद के मरणोपरान्त उनकी गंगा तपस्या और उसकी महत्ता के मद्देनज़र यह दस्तावेज़ शीघ्र ही पुस्तकाकार में आपके हाथों में होगा। यह कार्य अब अपने अंतिम चरण में है। पानी पोस्ट को उम्मीद है कि यह पुस्तक पठनीय, संग्रहणीय और भारतीय वर्तमान की अनेक हक़ीक़तों से रुबरु कराने वाली साबित होगी। आशा है कि आप इसका स्वागत करेंगे।




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