स्मृति शेष: महेंद्रनाथ श्रीवास्तव –  इक शख्स सारे शहर को वीरान कर गया 

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–  घनश्याम भारतीय –

साहित्यिक, सामाजिक व सांस्कृतिक गतिविधियों में हमेशा अग्रिम पंक्ति में खड़े रहने वाले महेंद्रनाथ श्रीवास्तव इस तरह दुनिया से रुखसत हो जाएंगे, किसी ने सोचा भी नहीं था। किसी ने यह भी नहीं सोचा था कि जिस व्यक्ति के अंदर सामाजिक बुराइयों और भ्रष्टाचार से लड़ने का क्रांतिकारी जज्बा हो वह इतनी आसानी से जिंदगी की जंग हार जाएगा। लेकिन वह सब कुछ हो गया। आज महेंद्रनाथ श्रीवास्तव को दिवंगत लिखने का साहस जुटाने में दो दिन लग गए। लगता ही नहीं कि वे हमारे बीच नहीं हैं। महेंद्र जी को याद करते हुए परवीन शाकिर का शेर ताजा हो रहा है- “एक सूरज था कि तारों के घराने से उठा, आंख हैरान है क्या शख्स जमाने से उठा।”
     
वास्तव में 5 मार्च का दिन महेंद्र जी के चाहने वालों के लिए काला दिन साबित हुआ। तमसा नदी में उनका शव पाए जाने की जानकारी जिसे भी मिली वही दंग रह गया। वे जितने कुशल अधिवक्ता थे, उतने ही कुशल कवि,लेखक और पत्रकार भी थे। न्यायालय में भ्रष्टाचार और शोषण के विरुद्ध जिस तरह वे काले कोट में दहाड़ते थे, उससे कहीं अधिक कविताओं से कुरीतियों पर प्रहार करते थे। समाज में उनका कोई दुश्मन नहीं था। जो भी मिला उसे उन्होंने गले लगा लिया।
         
कहा जाता है कि अपने अवध और पूर्वांचल की माटी कई मामलों में अत्यंत उर्बर है। यहां की माटी ने तमाम सपूतों को पैदा कर पाला पोसा और देश व समाज के लिए समर्पित किया है। इसी अवध और पूर्वाचंल की साझी संस्कृति वाली बुनकर नगरी टांडा के निकट पियारेपुर गांव में 21 जुलाई 1962 को महेंद्रनाथ श्रीवास्तव ने भी जन्म लिया और यहीं की माटी में विलीन हो गए। इनके पिता कृष्ण कुमार लाल टांडा तहसील में मुंशी थे और मां विद्या देवी गृहणी। इन्हीं दोनों से महेंद्र ने ईमानदारी और जुझारू पन की पहली शिक्षा ली। जिस पर आजीवन अमल भी करते रहे।
       
विधि स्नातक की शिक्षा प्राप्त महेंद्र नाथ का बचपन से ही साहित्य से गहरा लगाव रहा। यही कारण रहा कि महज 21 वर्ष की उम्र में उन्होंने अपनी पहली रचना लिखी।जिसे खूब सराहना मिली। फिर उनके कदम कभी नहीं रुके। सन 1983 में टांडा में हुए एक धार्मिक विवाद के बाद कर्फ़्यू लगा दिया गया था। जिसके चलते कई दिनों तक लोग अपने घरों के अंदर कैद होकर रह गए थे। इसी मजबूरी के अनुभव को महेंद्रनाथ ने जब शब्दों में ढाला तो लोग अवाक रह गए। यही उनकी पहली व्यंग्य रचना थी। उन्होंने लिखा- “मजहब में अंधा होने से क्या खेल हो गया है, कर्फ़्यू लगने से जीवन बेमेल हो गया है,अपना ही घर देखो यारों जेल हो गया है।” । इसे लोगों ने खूब सराहा। धीरे धीरे समाज में फैली कुरीतियों के खिलाफ आवाज उठाने का जज्बा और बढ़ते भ्रष्टाचार के खिलाफ मुहिम ने महेंद्रनाथ को एक अलग पहचान दी।
       
अपने ख्यालात और जज्बात को पेश करने का बेहतरीन जरिया बनी कविता के माध्मय से महेंद्रनाथ श्रीवास्तव समय समय पर कुरीतियों पर वार करते हुए लोगों को सामाजिक बुराइयों के प्रति जागरुक करते रहे।महिला उत्पीड़न व अन्य सामाजिक कुरीतियों पर उनका प्रहार अंतिम सांस तक जारी रहा। ऐसा नहीं कि उनकी कविताएं सिर्फ पत्र पत्रिकाओं तक सीमित रहीं, बल्कि मंचों पर भी महेंद्रनाथ ने खासी पहचान बनायीं। मशहूर कवि अदम गोंडवी की अध्यक्षता और हास्य कवि सुड़ फैजाबादी के संचालन में हुए ऑल इंडिया कवि सम्मेलन एवं मुशायरे में बड़े शायरों और कवियों के बीच जब उन्हें पहली बार मंच मिला तो इनके हिस्से खूब वाहवाही आयी। उन्होंने व्यंग्य के माध्यम से सीधे तौर पर सामाजिक बुराइयों को आइना दिखाया। “सरकारी अस्पताल में इलाज” के अलावा “दरोगा जी दुम दबाकर भागे” को भी खूब सराहना मिली।
       
महेंद्रनाथ मानते थे कि तमाम बुराइयों से समाज पूरी तरह जकड़ा है। जिसमें सुधार के लिए प्रयास नाकाफी है। सामाजिक हालात पर जब भी उनकी नजर पड़ी ऐसी रचनाएं स्वतः ही उनकी कलम से शब्द बनकर फूट पड़ी। उन्होंने व्यंग्य विधा में हजारों कविताओं का सृजन किया। जिसका संकलन पुस्तक के रूप में प्रकाशित करने की उनकी बड़ी तमन्ना थी। जो प्रकृति की क्रूरता के आगे जीते जी सफल नहीं हो सकी।      
         
उनका साहित्यिक पक्ष जितना उज्जवल रहा उससे कहीं अधिक वकालत में भी वे चर्चित रहे। लगातार कई बार टांडा बार एसोसिएशन के अध्यक्ष चुने गए। इस दौरान उन्होंने तहसील परिसर में लूट,खसोट, भ्र्ष्टाचार और दलालों के प्रवेश पर पाबंदी को लेकर जबरदस्त आंदोलन चलाया। कई अन्य संस्थाओं के साथ मिलकर टांडा में नशाखोरी और स्मैक के कारोबार के विरुद्ध भी आंदोलन छेड़ा था। वे एक अच्छे पत्रकार भी थे। 90 के दशक में महेंद्रनाथ ने कई समाचार पत्रों में पत्रकारिता की। “आवाज ए टांडा” नामक साप्ताहिक समाचार पत्र के वे उप संपादक भी रहे। साथ ही ग्रामीण पत्रकार एसोसिएशन की टांडा इकाई के अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी भी कई बरसों तक निभाई। करीब तीन दशक तक निर्बाध रूप से चली मेरी मित्रता में मैने कभी उनका दो रूप नहीं देखा। कार्यक्रम कोई भी हो उसके मंच का संचालन महेंद्रनाथ श्रीवास्तव ही करते थे।
         
इन सबके साथ ही उनका सियासी पक्ष भी काफी मजबूत रहा। लोकपाल विधेयक को लेकर जब अन्ना हजारे ने अपना आंदोलन शुरू किया तो महेंद्रनाथ उसमें प्रमुखता से शामिल हुए और अन्ना हजारे के आंदोलन को जनपद अंबेडकरनगर में बृहद रूप दिया। बाद में अन्ना के सहयोगी अरविंद केजरीवाल ने जब आम आदमी पार्टी का गठन किया तो महेंद्रनाथ श्रीवास्तव केजरीवाल के करीबियों में शुमार रहे। संगठन में उन्होंने पार्टी प्रवक्ता की भी जिम्मेदारी निभाई।
       
“ताजा गप्प” स्तंभ के लेखक ध्रुव जायसवाल से प्रेरित और प्रभावित महेंद्रनाथ श्रीवास्तव के अंदर दोस्ती का जज्बा भी खूब था। वह जिससे मिलते थे उसे अपना बना लेते हुए खुद सामने वाले के दिल में बस जाते थे। सादा जीवन उच्च विचार की शैली पर हमेशा अमल करते रहे महेंद्रनाथ श्रीवास्तव का जीवन अत्यंत आसान होकर एक पेचीदा किताब जैसा था। जिसे पढ़ना आसान था लेकिन समझना कठिन।
       
वे बीते एक वर्ष से अपना पैतृक गांव छोड़कर जिला मुख्यालय अकबरपुर में एक किराए के मकान में परिवार के साथ रहने लगे थे। इसी बीच अपना एक आलीशान मकान भी अकबरपुर में बनवा लिया था, लेकिन बेटी की शादी के बाद गृह प्रवेश की इच्छा थी। दो माह पूर्व बेटी को विदा तो कर ले गए लेकिन गृह प्रवेश की इच्छा पूर्ण होने से पहले ही वे सदा के लिए सो गए। खालिद शरीफ़ के शब्दों में कहें तो यही सत्य है कि “बिछड़ा कुछ इस अदा से कि रुत ही बदल गयी, इक शख्स सारे शहर को वीरान कर गया।”

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परिचय -:

घनश्याम भारतीय

स्वतन्त्र पत्रकार/ स्तम्भकार

राजीव गांधी एक्सीलेंस एवार्ड प्राप्त पत्रकार

संपर्क – : ग्राम व पोस्ट – दुलहूपुर ,जनपद-अम्बेडकरनगर 224139 मो -: 9450489946 – ई-मेल- :  ghanshyamreporter@gmail.com

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