सौम्‍य दक्षता विकास : मानव संसाधन विकास एक अभिन्‍न घटक

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*डॉ. के परमेश्‍वरन,,    

*(विशेष लेख  व  क्षेत्रीय उपकथा )


गर्मियां आते ही भारत के छोटे शहरों में भी गर्मियों में चलने वाले विद्यालयों में भीड़-भाड़ शुरू हो जाती है। इन स्‍कूलों में विद्यार्थियों को एक्‍यूपंचर से लेकर बागवानी तक सभी विषयों में लघु अवधि का प्रशिक्षण दिया जाता है।

ऐसे प्रमुख विद्यालयों में जो कोर्स पढ़ाए जाते हैं उनमें ऐसे पाठ्यक्रम भी होते हैं, जिन्‍हें सौम्‍य दक्षता पाठ्यक्रम कहा जाता है। इसके कारणों को जान लेना कोई मुश्किल बात नहीं।

इस समय देश में जिस तरह का नौकरियों का परिदृश्‍य मौजूद है उसमें मूल्‍यवर्धित दक्षताओं की काफी मांग होती है। इंजीनियरी और विज्ञान जैसे तकनीकी विषयों के बारे में भी यह बात खरी उतरती है। मानवीय विषयों और भाषाओं से लेकर समाजशास्‍त्र और इतिहास पर भी यह बात लागू होती है।

दक्षिण भारत के एक जाने-माने कैरियर कंसलटेंट, श्री बीएस वारियर का कहना है कि जहां तक बाजार का सवाल है, मूल्‍यवर्धित कारकों में संचार दक्षता प्रमुख है। वह यह भी कहते हैं कि नौकरी कुछ भी हो और काम कोई भी करना पड़े, एक ऐसा अवसर आ जाएगा जहां आपको दी गयी प्रमुख जिम्‍मेदारियों को पूरा करने के लिए अच्‍छी संचार दक्षता की जरूरत पड़ेगी।
इससे ही संबंधित एक अन्‍य दृष्टिकोण भी है। संचार कला का विकास एक बड़ी दक्षता समूह का अंग है, जिसे सौम्‍य दक्षता कहेंगे। इसमें समाज के एक समूह में व्‍यक्ति का व्‍यवहार, उसके हावभाव, पहनावा, काम के प्रति उसका रुझान और जिम्‍मेदारी संभालने की इच्‍छा आदि शामिल हैं।

सौम्‍य दक्षता समूह
सौम्‍य दक्षता समाज विज्ञान का एक शब्‍द है, जिसका सीधा वास्‍ता व्‍यक्ति के इमोशनल कोशेंट (ई-क्‍यू) से है। इसमें व्‍यक्तित्‍व से संबंधित वे बाते आती हैं, जिनमें सामाजिक प्रतिष्‍ठा, संचारकला, भाषा ज्ञान, निजी आदतें, मित्र भावना और आशावदिता शामिल हैं। इन बातों का अन्‍य लोगों पर प्रभाव पड़ता है। सौम्‍य दक्षताएं कठोर दक्षताओं की पूरक होती हैं और ये कोई भी नौकरी संभालने वाले व्‍यक्ति के व्‍यक्तित्‍व के भाग होते हैं।

सौम्‍य दक्षताएं व्‍यक्तिगत सदगुण होती हैं जो किसी व्‍यक्ति की बातचीत करने की कला, काम पूरा करने की क्षमता और काम पाने संभावनाएं बढ़ा देती हैं। कठोर दक्षताएं लोगों के व्‍यक्तित्‍व के अनुरूप होती हैं और उनके जरिए वे कुछ प्रकार की गतिविधियां पूरी कर पाते हैं। लेकिन सौम्‍य दक्षताएं किसी व्‍यक्ति की उस क्षमता से संबंधित होती हैं, जिनके जरिए वह अपने संपर्क में आने वाले व्‍यक्तियों, सहकर्मियों और ग्राहकों से बात करता है।

किसी भी व्‍यक्ति की सौम्‍य दक्षताएं संबद्ध संगठन की सफलता में उसके व्‍यक्तिगत येागदान का महत्‍वपूर्ण भाग बनती हैं। इनमें खासतौर से वे ऐसे संगठन शामिल हैं जो दिन प्रतिदिन के काम में अपने ग्राहकों से आमने-सामने बात करते हैं। अगर वे अपने कर्मचारियों को इन सौम्‍य दक्षताओं का प्रशिक्षण देते हैं तो वे अधिक सफल रहते हैं। अगर कर्मचारियों की निजी आदतों या व्‍यवहारों को परखा जाए अथवा प्रशिक्षित करने की कोशिश की जाए तो इससे महत्‍वपूर्ण प्रतिफल प्राप्‍त होते हैं और संगठन को लाभ होता है। यही कारण है कि सौम्‍य दक्षताओं की काफी मांग रहती है और नियोजक संस्‍थाएं मानक योग्‍यताओं के अलावा सौम्‍य दक्षताओं की भी मांग करती हैं।
सौम्‍य दक्षताओं का महत्‍व विश्‍व समाज विज्ञान एसोसिएशन के अध्‍ययन ग्रुप से समझा जा सकता है जो नीचे दिया जा रहा है। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि अनेक व्‍यवसाय ऐसे हैं जिनमें सौम्‍य दक्षताओं का महत्‍व ज्‍यादा होता है और लम्‍बी अवधि में वे व्‍यावसायिक दक्षता से ज्‍यादा प्रभावकारी होती हैं। इसका एक उदाहरण है – वकालत का धंधा, जिसमें विनम्रता और कुशलतापूर्वक लोगों से व्‍यवहार करने की क्षमता बहुत उपयोगी होती है। कुछ अर्थो में तो यह व्‍यावसायिक दक्षता से भी ज्‍यादा कारगर होती है और किसी भी वकील की व्‍यावसायिक सफलता इसी पर निर्भर हो सकती है।

सौम्‍य दक्षताओं को अंतर व्‍यक्तिगत दक्षताएं भी कहा जाता है। इन अर्थों में उनमें बातचीत करने की दक्षता, संघर्ष समाधान और वार्ता, व्‍यक्तिगत प्रभावशीलता, रचनात्‍मक ढंग से समस्‍या सुलझाने, रणनीतिक ढंग से सोचने, टीम निर्माण, प्रभाव डालने की कला और विपणन दक्षता आदि शामिल हैं।

सरकार में मानव संसाधन विकास
भारत सरकार को अनेक ऐसी रिपोर्टें प्रस्‍तुत की गयी हैं जो सौम्‍य दक्षताओं को सामान्‍य और तकनीकी शिक्षा का एक महत्‍वपूर्ण भाग मानकर उन पर जोर देती हैं। तदनुसार योजना आयोग ने 2009 में प्रस्‍तुत अपनी रिपोर्ट में कहा है कि सौम्‍य दक्षताओं के विकास को व्‍यावसायिक पाठ्यक्रमों का एक अभिन्‍न अंग बनाया जाना चाहिए, चाहे वे डिगी स्‍तर के हों अथवा डिप्‍लोमा स्‍तर के। इस तरह से सौम्‍य दक्षताओं का समूह तकनीकी पाठ्यक्रमों का धीरे-धीरे एक अटूट अंग बनता जा रहा है।

मदुरई में परीक्षण
एक परीक्षण में जिसे मदुरई में संचालित किया जा रहा है, कुछ सरकारी स्‍कूलों को छठी कक्षा से आगे सौम्‍य दक्षता विकास पाठ्यक्रमों को संचालित करने के लिए केन्‍द्र और राज्‍य सरकारों द्वारा विशेष सहायता दी जा रही है। भारतीय उद्योग परिषद की तमिलनाडु शाखा के अनुसार इस कार्यक्रम का आधार यह है कि कई ऐसी लैंग्‍वेज लैब्‍स स्‍कूलों में मौजूद हैं जहां बातचीत की कला सीखी जा सकती है लेकिन फिर भी इन्‍हें मजबूत बनाने की जरूरत है। भारत सरकार ने एक अध्‍ययन करवाया, जिसमें भारतीय उद्योग परिषद ने भी सहयोग दिया। इस अध्‍ययन में कहा गया है कि अनेक बैक आफिस प्रोसेसिंग संस्‍थान सिर्फ इसलिए उम्मीदवारों को स्‍वीकार नहीं करते, क्‍योंकि वे अंग्रेजी नहीं बोल पाते और उनकी बातचीत करने की कला अच्‍छी नहीं पाई जाती। इस परियोजना का उद्देश्‍य यह है कि स्‍कूल पाठ्यक्रमों में सौम्‍य दक्षताओं के प्रशिक्षण की शुरूआत की जाए ताकि ऐसे परिदृश्‍य में बदलाव लाया जा सके।

इसके लिए जो माड्यूल बनाया गया है उसमें आधारभूत दक्षता का स्‍वप्रबंधन, संप्रेषण, दलगत गतिशीलता, भावनात्‍मक बौद्धिकता और स्‍वास्‍थ्‍य सफाई, दिन प्रतिदिन के काम मूल्‍यों का महत्‍व, कानून की महत्‍ता और अन्‍य दक्षताएं और सभ्‍याचार शामिल हैं।

बातचीत की अंग्रेजी के लिए गर्मियों के संस्‍थान
इस सिलसिले में हाल ही में एक और घटनाक्रम हुआ है, जिसमें मदुरई के कामराज विश्‍वविद्यालय ने बातचीत की अंग्रेजी सिखाने का एक गर्मियों में काम करने वाला संस्‍थान शुरू किया है।

अंग्रेजी बोलने की कला नौकरी ढूंढने जाने वाले छात्रों के लिए एक महत्‍वपूर्ण मूल्‍यवर्धित गुण सिद्ध होता है, अत: चार हफ्ते के एक सघन पाठ्यक्रम की रूपरेखा बनाई गयी है ताकि छात्रों को जीवन में आने वाली परिस्थितियों का व्‍यवहारिक अनुभव दिलाया जा सके।

अंग्रेजी बोलने की कला से संबद्ध संस्‍थान के निदेशक डॉ. एस चेलैया का कहना है कि यह पाठ्यक्रम बुनियादी तौर पर अंग्रेजी बोलने की कला में सामान्‍य दक्षता बढ़ाने के लिए शुरू किया गया है। इसकी कक्षाएं उन भाषा विशेषज्ञों द्वारा संचालित की जाएंगी, जो पढ़ाने की अति आधुनिक कार्यनीतियों का प्रयोग करते हैं।

इस तरह का प्रशिक्षण लेने वाले और मदुरई के पास वाडीपट्टी से आने वाले एक छात्र राजेश का कहना है कि इस चलन के जरिए संस्‍थान ने अंग्रेजी बोलने में उसकी शुरूआती मुश्किलें दूर करने में मदद की हैं। इसी तरह से तिरूपराकुंडरम की राम्‍या का कहना है कि इन कक्षाओं में पढ़ने से खासतौर से विदेशी पर्यटकों से बातचीत करने का उसका आत्‍मविश्‍वास बढ़ गया है। राम्‍या एक हस्‍तशिप इम्‍पोरियम में काम करती है, जहां उसे अनेक विदेशी पर्यटकों से बातचीत करनी पड़ती है।

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डॉ. के परमेश्‍वरन*

*सहायक निदेशक, पत्र सूचना कार्यालय, मदुरई

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