सोलहवीं कहानी -: गवाही

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कहानीकार महेंद्र भीष्म कि ” कृति लाल डोरा ”  पुस्तक की सभी कहानियां आई एन वी सी न्यूज़ पर सिलसिलेवार प्रकाशित होंगी , आई एन वी सी न्यूज़ पर यह एक पहला और अलग तरहा प्रयास  व् प्रयोग हैं .

 – लाल डोरा पुस्तक की सोलहवीं  कहानी –

___ गवाही ____

Mahendra-BhishmaMahendra-Bhishma-storystory-by-Mahendra-Bhishma111111दोनों ने अपनी-अपनी साइकिल अपने-अपने घर की ओर जाने वाली सड़क पर मोड़ दी। शंकर और दीनू परस्पर अच्छे मित्रा थे। दोनों एक ही फैक्टरी में काम करते थे। फैक्टरी से वापस घर लौटते समय दोनों का साथ नक्खास चैराहे तक रहता था। शंकर अपनी साइकिल हमेशा फिट-फाट रखता था। वह उसकी आयलिंग-ग्रीसिंग, साफ-सफाई नियमित किया करता था। तभी उसकी साइकिल अन्य फैक्टरी वर्करों से अच्छी हालत में रहती थी। गांव छोड़कर लखनऊ आने के दूसरे साल उसने यह साइकिल खरीदी थी। उसे साइकिल खरीदे पूरे दस साल हो चुके थे, परन्तु साइकिल को कोई भी देखकर यह अन्दाजा नहीं लगा सकता था कि शंकर की साइकिल दस साल पुरानी है। साइकिल दो-तीन बरस से ज्यादा पुरानी नहीं दिखती थी। शंकर को साइकिल चलाने का शौक बचपन से था। उसे याद है, जब वह अपने गांव के हम-उम्र बच्चों के साथ साइकिल के पुराने टायरों को हाथभर लम्बे डंडे से पीटते-पीटते लम्बा रास्ता तय कर लिया करता था और फिर कब वह छोटी उम्र में ही कैंची, डंडा, फिर सीट पर चढ़कर साइकिल चलाने लगा था, उसे पक्का याद नहीं है। शंकर अपने बचपन की यादों में खोया साइकिल के पैडल मारते चला जा रहा था। तभी उसे याद आया, ‘सुबह इसी सड़क से गुजरते हुए उसने निश्चय किया था कि वह वापसी में दुलारी के लिए फूलों की वेणी खरीदेगा।’ शंकर ने साइकिल के ब्रेक लगाए। उसने विपरीत दिशा में साइकिल मोड़ी और दो फर्लांग पीछे छूट गयी फूलों की दुकान पर आ पहुंचा। अपना एक पैर
सड़क पर रखके साइकिल पर चढ़े-चढ़े ही उसने मालिन से फूलों की एक वेणी पैक कर देने को कहा। मालिन ने फूलों की वेणी केले के पत्ते में बांधकर शंकर को थमा दी और उससे प्राप्त दो रुपये का खरखरा नया नोट मोड़कर अपने ब्लाउज में डाल लिया।
शंकर फूलों की वेणी वाला पैकिट टिफिन वाले झोले में रख ही रहा था, तभी उसकी साइकिल को पीछे से मोटर-साइकिल की जबर्दस्त टक्कर लगी। अगले ही पल वह साइकिल सहित धड़ाम से सड़क पर गिर पड़ा।
मोटर साइकिल झटके से रुकी और उस पर पीछे बैठे दूसरे सवार ने अपनी जेब से रिवाल्वर निकाल कर सड़क पर पड़े शंकर की ओर तान दिया। तेज धमाकेदार आवाज हुई, ‘धांय।’ शंकर ने स्थिति भांपकर फुर्ती से करवट ले ली थी। हमलावर का पहला फायर बेकार चला गया। ‘धांय’ दूसरा फायर भी शंकर बचा ले गया। तीसरा फायर होने से पहले शंकर उठ चुका था। उसने अपनी पूरी शक्ति समेटकर, अपने प्राणों की रक्षा के लिए भीड़-भरी सड़क पर दौड़ लगा दी। यातायात अस्तव्यस्त हो गया। धमाके की आवाज से सड़क पर अफरा-तफरी मच गयी।
शंकर गिरते-पड़ते भागा जा रहा था, परन्तु वह अधिक दूर भाग न सका। मोटर साइकिल पर सवार हमलावर उसके बहुत निकट आ पहुंचे।
‘धांय…’
पीठ पर लगी गोली से लड़खड़ाकर शंकर सड़क पर गिर पड़ा। हमलावरों ने एक पल के लिए अपनी मोटर-साइकिल धीमी की और रिवाल्वर की शेष गोलियां पीठ के बल सड़क पर गिर चुके शंकर के शरीर में उतार
दीं और भाग गये। शंकर का शरीर कुछ पल तड़पा, फिर शांत हो गया। कुछ ही पलों में यह दर्दनाक हादसा सैकड़ों राहगीरों के सामने पलक झपकते घट गया।
शाम का धुंधलका हो चला था। कुछ मिनटों में ही पास की पुलिस चैकी के सिपाही मृत शंकर की लाश के पास पहुंच गये थे। लगभग एक घंटे तक यातायात बंद रहा।
शंकर की आसमानी रंग की फैक्टरी की वर्दी एवं हाथ में गुदे शंकर नाम से उसकी शिनाख्त जल्दी हो गयी, परन्तु पंचनामें में किसी ने भी हस्ताक्षर नहीं किए जबकि यह हत्याकांड बीसियों ने अपनी आंखों के सामने घटित होते देखा था।
शंकर की लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी गयी। बंद यातायात पूर्ववत चालू हो गया। सड़क पर आने-जाने वालों में से कई यह नहीं जानते थे कि कुछ देर पहले ही एक निर्दोष मानव शरीर को कुछ आतताइयों ने अपने जमीर को बेचकर सदा के लिए खत्म कर दिया था। परन्तु अगले दिन, जब लोगों ने सुबह-सुबह अखबार पढ़ा, तब वे जाने कि
कल शाम छह बजे महानगर पालिका के मृतक पार्षद राम बाबू तिवारी की हत्या के एकमात्र चश्मदीद गवाह शंकर को कुछ अज्ञात हमलावरों ने नक्खास चैराहे से कुछ दूर भीड़-भरी सड़क विक्टोरिया स्ट्रीट पर गोलियों से उस समय भून दिया, जब वह फैक्टरी से वापस अपने घर लौट रहा था।
शंकर की हत्या से फैक्टरी वर्करों में रोष फैल गया। फैक्टरी में काम बंद कर दिया गया। तत्काल वर्कर्स यूनियन की आम सभा आहूत की गयी, जिसमें यूनियन के नेताओं ने जोशीले भाषण दिए। फिर सभी वर्कर पुलिस स्टेशन गये, जहां से शंकर की लाश उसके घर लाई गयी। दोपहर बाद शंकर की मृत देह को अग्नि को समर्पित कर दिया गया। मुखाग्नि शंकर के नौ वर्षीय बेटे ने दी। मृतक शंकर अपने पीछे विधवा पत्नी दुलारी और दो बच्चों को छोड़ गया था।
फैक्टरी-वर्कर्स यूनियन की ओर से शंकर की विधवा पत्नी को आकस्मिक राहत स्वरूप दो हजार रुपये प्रदान किए गये एवं फैक्टरी में उसे काम दिलाने का आश्वासन भी दिया गया। देर शाम को एक जीप शंकर के घर के बाहर रुकी। जीप से क्षेत्राीय विधायक श्याम बाबू तिवारी उतरे, जो मृतक पार्षद रामबाबू तिवारी के बड़े भाई थे। वह झक सफेद धोती-कुर्ता पहने हुए थे। उनके जनेऊ के पास रिवाल्वर लटक रहा था।
मृतक शंकर के घर में पास-पड़ोस की महिलाएं शोक-संवेदना प्रकट करने के लिए लिए इकट्ठी थीं। उसका परम मित्रा दीनू सूचना मिलते ही सपरिवार आ गया था। उसी ने विधायक जी व उनके सहचरों की आगवानी की।
विधायक जी ज्यादा देर तक नहीं रुके। वह जितनी देर रुके, ‘शंकर के हत्यारों को सजा जरूर मिलेगी।’ चुनावी वादे जैसा वचन दुहराते रहे और जाते समय सौ-सौ के पांच नोट शंकर की विधवा पत्नी दुलारी के हाथ पर रखते गये।
दीनू सोच रहा था कि उसने शंकर को कितना समझाया था, ‘‘देख भाई शंकर तू मत पड़ इस पचड़े में और लोगों ने भी तो तिवारी जी की हत्या होते देखी थी। तू ही क्यों गवाही देने पर तुला हुआ है?’’
तब शंकर बोला था, ‘दीनू भाई, दूसरों की तरह में बुजदिल नहीं हूं। मैंने सरेआम तिवारीजी की हत्या होते देखी है। हत्यारों को मैंने अपनी आंखों से भली-भांति देखा है। मैं गवाही देने में पीछे नहीं हटूंगा। क्या मेरा यह कर्तव्य नहीं
कि मैं हत्यारों को सजा दिलाने में कानून की मदद करूं?’ अनेक तर्कों-वितर्कों के बाद भी दीनू दृढ़-निश्चयी शंकर से अपनी बात मनवाने में असफल रहा था।
चश्मदीद गवाह शंकर की पूरी सुरक्षा और खातिरदारी विधायक श्यामबाबू तिवारी द्वारा तब तक कराई जाती रही, जब तक कि उसकी आखिरी गवाही गुजर नहीं गयी।
शंकर की चश्मदीद-गवाही के आधार पर स्वर्गीय पार्षद राम बाबू तिवारी के दोनों हत्यारों को न्यायालय ने फांसी की सजा सुनाई थी। गवाही देने के दिनों में हत्यारों के गुट ने शंकर को अनेक बार डराया-धमकाया था, परन्तु वह अपने सिद्धान्त से डिगा नहीं। एक बार तो शंकर को खत्म करने के इरादे से हत्यारे गुट के कुछ लोगों ने शंकर को बड़े तड़के, जब वह दूध लेकर लौट रहा था, घेर लिया था, परन्तु वह किसी तरह उनके चंगुल से बचकर निकल आया था।
उसने इस घटना की चर्चा विधायक श्याम बाबू तिवारी से की थी। फिर विधायक जी ने शीघ्र ही उसकी अन्तिम गवाही जज साहब के सामने करा दी।
उन्हें अन्देशा हो गया था कि कहीं शंकर को हत्यारे गुट के लोग खत्म न कर दंे, जो उसके भाई की हत्या के समय का एकमात्रा चश्मदीद गवाह था। अन्तिम गवाही गुजर जाने के बाद से तिवारीजी की ओर से शंकर की उपेक्षा होने लगी, जो स्वाभाविक था किन्तु शंकर को इसकी कतई परवाह नहीं थी। उसने तो अपने कर्तव्य का पालन अपने सिद्धान्तों को जीवित रखने के लिए किया था।
बौखलाए हत्यारे गुट ने अन्तिम गवाही दे चुकने के तीसरे दिन ही सरेआम शंकर को गोलियों से भून दिया था।
शंकर हत्याकांड का केस पूरे आठ साल विभिन्न अदालतों में चलता रहा। दीनू अपने स्वर्गीय मित्रा शंकर की विधवा पत्नी दुलारी के साथ कोर्ट-कचहरी के चक्कर काटता रहा, परन्तु चश्मदीद गवाहों और तथ्यों के अभाव में हत्यारों को सजा नहीं हो सकी और जब उच्च न्यायालय ने भी चश्मदीद गवाहों और महत्त्वपूर्ण तथ्यों के अभाव पर सन्देह का लाभ देते हुए नामजद हत्यारों को इस आधार पर बरी कर दिया कि ‘एक निर्दोष को सजा न मिल पाए, भले ही सौ अपराधी छूट जाएं।’
तब उनकी रही-सही उम्मीद भी जाती रही।
शंकर हत्याकांड केस के अंतिम आदेश की नकल की प्रतियां फाड़ते हुए हताश, थका-हारा दीनू सोच रहा था, ‘जिस शंकर ने सच्ची गवाही देकर समाज के तथाकथित प्रतिष्ठित, सम्पन्न स्व. पार्षद रामबाबू तिवारी के हत्यारों को फांसी के तख्ते तक पहुंचाकर अपने कर्तव्य का पालन किया था, उस शंकर को समाज
और कानून ने क्या दिया?’ बीसियों लोगों की आंखों के सामने सरेआम गोली से मार दिए गये शंकर के लिए एक भी व्यक्ति चश्मदीद गवाह बनकर सामने नहीं आया। जिस शंकर ने अपने सामने घटी हत्या की चश्मदीद गवाही देकर समाज, कानून और जीवन के सिद्धान्तों को जिन्दा रखने की कोशिश की थी, उस बेचारे को मौत के अलावा
क्या मिला और क्या मिला उसकी विधवा पत्नी और अनाथ बच्चों को, जो अपना
शेष जीवन अब अभावों के जंगल में जीने के लिए मजबूर हो चुके थे?

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Mahendra-BhishmaMahendra-Bhishma-storystory-by-Mahendra-BhishmaMahendra-Bhishma111112परिचय -:

महेन्द्र भीष्म

सुपरिचित कथाकार

बसंत पंचमी 1966 को ननिहाल के गाँव खरेला, (महोबा) उ.प्र. में जन्मे महेन्द्र भीष्म की प्रारम्भिक षिक्षा बिलासपुर (छत्तीसगढ़), पैतृक गाँव कुलपहाड़ (महोबा) में हुई। अतर्रा (बांदा) उ.प्र. से सैन्य विज्ञान में स्नातक। राजनीति विज्ञान से परास्नातक बुंदेलखण्ड विष्वविद्यालय झाँसी से एवं लखनऊ विश्वविद्यालय से विधि स्नातक महेन्द्र भीष्म सुपरिचित कथाकार हैं।

कृतियाँ
कहानी संग्रह: तेरह करवटें, एक अप्रेषित-पत्र (तीन संस्करण), क्या कहें? (दो संस्करण)  उपन्यास: जय! हिन्द की सेना (2010), किन्नर कथा (2011)  इनकी एक कहानी ‘लालच’ पर टेलीफिल्म का निर्माण भी हुआ है। महेन्द्र भीष्म जी अब तक मुंशी प्रेमचन्द्र कथा सम्मान, डॉ. विद्यानिवास मिश्र पुरस्कार, महाकवि अवधेश साहित्य सम्मान, अमृत लाल नागर कथा सम्मान सहित कई सम्मानों से सम्मानित हो चुके हैं।

संप्रति -:  मा. उच्च न्यायालय इलाहाबाद की  लखनऊ पीठ में संयुक्त निबंधक/न्यायपीठ सचिव

सम्पर्क -: डी-5 बटलर पैलेस ऑफीसर्स कॉलोनी , लखनऊ – 226 001
दूरभाष -: 08004905043, 07607333001-  ई-मेल -: mahendrabhishma@gmail.com

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