सोच व संस्कारों का परिचय कराते बेतुके बोल

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–  तनवीर जाफरी –

भारतीय राजनीति में मधुर व सार्थक वचन बोलना,सौम्यता व सुशीलता का प्रदर्शन,पक्ष-प्रतिपक्ष के मध्य सद्भाव व मधुर संबंध तथा देश के विकास को लेकर परस्पर सहमति जैसी बातें तो शायद बीते इतिहास की बातें बनकर रह गई हैं। तीन-चार दशक पहले की राजनीति के शिखर पर छाए हुए लोगों की तुलना यदि आज के राजनैतिक गुरू-घंटालों से की जाए तो काफी हद तक तस्वीर अपने-आप साफ हो जाती है और हमें कल और आज की राजनीति का अंतर स्पष्ट दिखाई देने लगता है। उदाहरण के तौर पर पंडित जवाहर लाल नेहरू व अटल बिहारी वाजपेयी दोनों विपरीत विचारधारा रखने के बावजूद एक-दूसरे की राजनैतिक कला-कौशल के कितने कायल थे यह बात देश से छुपी नहीं है। इतना ही नहीं पंडित नेहरू व वाजपेयी के मध्य के मधुर संबंधों को राजीव गांधी व सोनिया गांधी तक ने कितना आदर दिया यह भी सभी जानते हैं। वाजपेयी ने संसद में अपने भाषण में यह बात स्वीकार की है कि देश ने कांग्रेस के पचास वर्षों के शासनकाल में काफी तरक्की की है।  यह वाजपेयी ही थे जिन्होंने मोरार जी देसाई मंत्रीमंडल में विदेश मंत्री बनने के बाद उनके कार्यालय से हटाए गए पंडित नेहरू के चित्र को पुन: उसी स्थान पर स्थापित किए जाने का आदेश दिया था। ज़रा आज के नेताओं की सोच,उनके इरादे,उनके बोलने के लहजे,उनका तालियां बजाना,चुटकियां बजाना,सदन में सीटियां बजाना,देश की जनता की खून-पसीने की कमाई खाकर संसद भवन में सुरती व खैनी खाकर उनका सोते रहना क्या हमारे तीन दशक पूर्व के नेताओं की चाल व चरित्र से तुलना करने के योग्य है? क्या इनकी बातें,इनके बयान तथा उन बयानों में छुपे इरादे ऐसे प्रतीत होते हैं जिससे इन्हें देश का नेता, भारतवर्ष का भाग्यविधाता या जनता का प्रतिनिधि कहा जा सके?

स्वयं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी  के मुंह से ही कई बार ऐसी बातें निकल चुकी हैं जो देश के प्रधानमंत्री तो क्या किसी साधारण विधायक अथवा सांसद के मुंह से भी शोभा नहीं देतीं। मिसाल के तौर पर नरेंद्र मोदी ने प्रधानमंत्री रहते हुए बिहार की एक चुनावी सभा में नितीश कुमार के डीएनए पर सवाल उठा दिया था। यह और बात है कि नितीश आज इस सवाल को भूल बैठे हैं परंतु उस दौरान नितीश ने अपने डीएनए को पूरे बिहार के डीएनए व बिहार के स्वाभिमान से जोड़ दिया था तथा लाखों लोगों ने मोदी को बिहार के डीएनए के नमूने भेजने शुरु कर दिए थे। पचास करोड़ की गर्लफेंड जैसी ओछी व हल्की टिप्पणी भी मोदी द्वारा शशि थरूर पर की गई थी। शमशान व कब्रिस्तान में बिजली की तुलना करने वाले मोदी ही हैं। ज़ाहिर है जब देश के प्रधानमंत्री पद पर बैठा व्यक्ति इस स्तर की बातें करने लगेगा तो क्या ऐसे व्यक्ति से यह उम्मीद की जा सकती है कि वह वाजपेयी के विचारों का अनुसरण करते हुए पंडित नेहरू के कार्यकाल में हुए देश के विकास को स्वीकार सके? जी नहीं। मोदी व अमित शाह की जोड़ी तो देश में घूम-घूम कर राहुल गांधी से उनकी चार पीढिय़ों के शासनकाल का हिसाब मांग रही है। यह दोनों तो देश को यह बता रहे हैं कि कांग्रेस के शासनकाल में देश को केवल लूटा व उजाड़ा गया है। अथवा अधीनस्थ वही राह चलने की कोशिश करते हैं। भारतीय जनता पार्टी में भी यही स्थिति दिखाई दे रही है। बेतुके व अमर्यादित बोल बोलने वाला कोई भी नेता यह सोचने की तो कोशिश भी नहीं करता कि उसके द्वारा बोले गए कड़वे या अमर्यादित बोल स्वयं उसके लिए या उसकी पार्टी के लिए शर्मिंदगी का कारण भी बन सकते हैं। बजाए इसके उसकी सोच यही रहती है कि वह ऐसे घटिया व निम्न्स्तरीय बयान देकर एक तो मीडिया में सुिर्खयां बटोरने में कामयाब रहेगा तो दूसरा इस प्रकार के वाहियात बयान देकर अपने उन आकाओं की नज़रों में भी अपना उचित स्थान बना सकेगा जो इस प्रकार की ज़हरीली व बेतुकी बातों को पसंद करते हैं या स्वयं उसी प्रकार की भाषा बोलते रहते हैं। केंद्रीय स्वास्थय राज्य मंत्री अश्विनी चौबे मोदी मंत्रिमंडल के विवादित बयान देने वाले मंत्रियों में एक हैं। इन्हें प्रधानमंत्री मोदी को खुश करने की एक ही कला समझ में आई। वे कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी की तुलना नाली के कीड़े से कर बैठे जबकि नरेंद्र मोदी का आकार उन्हें गगन के समान दिखाई दिया। इसमें मोदी को या अपने किसी भी नेता को देवी-देवता,भगवान, ईश्वर ,गगन,ब्रह्मंाड,या आसमान,सूरज-चांद-सितारा अथवा समुद्र जैसा समझना कोई नई या बड़ी बात नहीं है। चाटुकारिता की राजनीति के दौर में ऐसी उपमाएं कतई संभव हैं। कांग्रेस में भी इस प्रकार के चाटुकार तत्व हमेशा से ही भरे रहे हैं। परंतु मुख्य विपक्षी पार्टी के अध्यक्ष की तुलना नाली के कीड़े से करना एक केंद्रीय मंत्री की मानसिकता तथा उसकी नफरत भरी सोच को उजागर करता है। यह वही अश्विनी चौबे है जिसने कभी लालू यादव नितीश कुमार को 1978 में दिल्ली में हुए संजय व गीता चोपड़ा हत्याकांड में दोषी बताया था। इतना ही नहीं इसी केंद्रीय मंत्री ने सोनिया गांधी की तुलना राक्षसी चरित्र की पूतना से भी की थी।

कभी भाजपा का बंसीलाल महतो नाम का छत्तीसगढ़ का सांसद आदिवासी महिलाओं को ‘टनाटन’ बताकर अपनी बदनीयती का परिचय कराता है तो कभी भाजपा नेता कैलाश विजयवर्गीय शशी थरूर को महिलओं का शौक़ीन बताने से परहेज़ नहीं करते। विजयवर्गीय बलात्कार मुद्दे पर भी अपनी राय देते हुए महिलाओं को ही मर्यादित रहने की सीख देते हैं। वे कहते हैं कि यदि औरतें अपनी सीमाएं लांघती हैं तो उन्हें दंड मिलना तय है। लक्ष्मण रेखा पार होगी तो सामने बैठा रावण सीता हरण करके ले जाएगा। कभी सुब्रमण्यम स्वामी सोनिया गांधी को वैश्या कहकर संबोधित करते हैं तो कभी प्रियंका गांधी उन्हें अत्यधिक शराब पीने वाली दिखाई देती है। कभी बिहार में नितीश कुमार के महागठबंधन के जीतने पर अमित शाह को पाकिस्तान में पटाखे फूटते दिखाई देते हैं तो कभी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को बिहार में कांग्रेस,आरजेडी तथा जेडीयू का गठबंधन ‘थ्री इडियट्स’ का गठबंधन नज़र आता है। कभी केंद्रीय मंत्री गिरीराज सिंह नरेंद्र मोदी से असहमति रखने वालों को पाकिस्तान भेजने की सलाह देते हैं तो कभी लालू यादव के ‘बधिया’ न होने पर देश की आबादी बढऩे का जि़म्मेदार ठहरा देते हें। गिरीराज सिंह ने ही सोनिया गांधी पर नस्ली टिप्पणी करते हुए यह भी कहा था कि गोरी चमड़ी होने के कारण कांग्रेस ने सोनिया गांधी का नेतृत्व स्वीकार किया। कभी अमित शाह लालू यादव को चारा चोर कहते हैं तो जवाब में लालू व राबड़ी, मोदी व शाह को ब्रह्म पिशाच व जल्लाद तथा नरभक्षी व तड़ीपार जैसे विशेषणों से नवाज़ते हैं।

उपरोक्त छिछोरी व ओछी बयानबाजि़यों के अतिरिक्त भी इससे अधिक ऊंची बकवास बाजि़यां देश के राजनैतिक क्षेत्रों में हो चुकी हैं। रामज़ादे-हरामज़ादे,पांच के पच्चीस,मौत का सौदागर,इटली का चश्मा,विकास पुरुष नहीं विनाश पुरुष जैसी और न जाने कितनी घटियां बातें राजनेताओं के मुंह से बोली जा चुकी हैं। ऐसा नहीं लगता कि भारत जैसे ज्ञानवान,सौम्य तथा संस्कार,संस्कृति व तहज़ीब की बातें करने वाले देश के राजनेताओं की बातों का स्तर इतना निम्न होगा। हो सकता है ऐसे विवादित व घटिया बोल कुछ समय के लिए मीडिया के लिए आकर्षण का विषय बन जाएं और बकवास करने वाले व्यक्ति को इन बयानों के माध्यम से कुछ शोहरत भी मिल जाए। परंतु इस प्रकार के बेतुके बोल किसी भी नेता के सोच-विचार,उसके पूर्वाग्रह तथा उसके संस्कारों का परिचय भी ज़रूर कराते हैं।

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About the Author

Tanveer Jafri

Columnist and Author

Tanveer Jafri, Former Member of Haryana Sahitya Academy (Shasi Parishad),is a writer & columnist based in Haryana, India.He is related with hundreds of most popular daily news papers, magazines & portals in India and abroad. Jafri, Almost writes in the field of communal harmony, world peace, anti communalism, anti terrorism, national integration, national & international politics etc.

He is a devoted social activist for world peace, unity, integrity & global brotherhood. Thousands articles of the author have been published in different newspapers, websites & news-portals throughout the world. He is also recipient of so many awards in the field of Communal Harmony & other social activities.

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