सैन्य शासन की प्रबल संभावनाओं के मध्य पाकिस्तान

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Pakistan army{  तनवीर जाफ़री **  } पाकिस्तान वैसे तो गत दो दशकों से हिंसा खासतौर पर लक्षित जातिवादी हिंसा का शिकार है। परंतु धीरे-धीरे पूरे पाकिस्तान में हिंसक घटनाओं में तेज़ी आती जा रही है। वहां का आलम यह है कि एक ओर तो चरमपंथियों का मुकाबला करने वाले सुरक्षाकर्मियों खासतौर पर पाकिस्तानी सेना का मनोबल टूटने के कगार पर है तो दूसरी ओर पाकिस्तान को आतंकवादी संगठनों के हाथों में जाता देखकर वहां के संभ्रांत लोग, शिक्षित तथा बुद्धिजीवी वर्ग अब देश छोडक़र सुरक्षित देशों में पनाह लेने लगे हैं। पाकिस्तान में फैली अराजकता तथा चरमपंथियों की देश पर मज़बूत होती पकड़ ने राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर देश की पहचान आतंकवादियों के देश के रूप में बना दी है। गत् माह ह्यूमन राईटस द्वारा जारी एक रिपोर्ट में साफ लब्ज़ों में यह कहा गया है कि ‘पूरे पाकिस्तान में चरमपंथी गुटों को अपनी गतिविधियां अंजाम देने की खुली छूट हासिल है। क़ानून लागू करने वाली एजेंसियों और अफसरों ने या तो अपनी आंखें बंद कर रखी हैं या हमलों को रोक पाने में लाचार हो गए हैं। अब तो इस बात के भी कय़ास लगाए जाने लगे हैं कि कहीं इराक के फलूज़ा तथा सीरियाई शहरों की तरह आतंकी संगठन कराची जैसे बड़े नगरों पर अपना कब्ज़ा न जमा बैठें। इन परिस्थितियों में सवाल यह उठता है कि देश की निर्वाचित नवाज़ शरीफ सरकार क्या तालिबानों व अन्य आतंकवादी संगठनों की बढ़ती हुई ताक़त को रोक पाने के लिए कोई बड़ा कदम उठाने की स्थिति में है? अथवा सेना अध्यक्ष राहिल शरीफ़ सेना के गिरते मनोबल को बचाने के लिए तथा चरमपंथियों को मुंह तोड़ जवाब देने के लिए पाक सत्ता को एक बार फिर सैन्य नियंत्रण में लेने का काम करेंगे?
पाकिस्तान में छुटपुट हत्याओं का सिलसिला तो गत् दशकों से जारी है। परंतु पिछले दिनों न केवल हिंसक वारदातों में तेज़ी आई है बल्कि पाकिस्तान में सक्रिय सुन्नी चरमपंथी गुटों तथा तालिबानों ने अपने जिस प्रकार के निशाने साधने शुरू किए हैं उससे यह बात स्पष्ट हो गई है कि इन हिंसक शक्तियों का मक़सद पाकिस्तान में अराजकता का वातावरण पैदा कर देश को गृहयुद्ध की स्थिति में डालना तथा ख़ूनी संघर्ष के द्वारा सत्ता पर नियंत्रण स्थापित करना है। यानी अफगानिस्तान के राष्ट्रपति नजीब से जिस ढंग से तालिबानों ने पहली बार सत्ता छीनी थी, उसी की पुनरावृति यह शक्तियां पाकिस्तान में भी करना चाह रही हैं। यही वजह है कि अब पाक स्थित तालिबानों ने जहां चुन-चुन कर फ़ौजी ठिकानों, सुरक्षा चौकियों तथा सुरक्षा से जुड़े जवानों को निशाना बनाना शुरू कर दिया है, वहीं सुन्नी चरमपंथी गुटों द्वारा शिया समुदाय के लोगों की लक्षित सामूहिक हत्याएं की जाने लगी हैं। और इन हिंसक कार्रवाईयों को अंजाम देने के लिए आतंकवादी संगठनों द्वारा बड़े पैमाने पर फिदाईन अथवा आत्मघाती हमलावरों की भर्ती की गई है। गत् 21 जनवरी को ब्लूचिस्तान में क्वेटा शहर के समीप शिया समुदाय के 29 लोगों को उस समय मार दिया गया जबकि शिया समुदाय के लोग एक बस में यात्रा कर रहे थे। विस्फ़ोटक से लदी हुए एक कार ने जिसे एक फिदायीन हमलावर चला रहा था कार से उस बस को टक्कर मार दी। ठीक उसी समय कराची में शिया समुदाय के तीन लोगों को गोली मारकर हलाक कर दिया गया।
इसी प्रकार 22 जनवरी को 12 सुरक्षाकर्मी अलग-अलग घटनाओं में मारे गए। 19 जनवरी को खैबर पतूनख़वाह प्रांत के बन्नु क्षेत्र में सैन्य छावनी पर हुए हमले में 22 जवान हलाक हो गए। इस हमले की ज़िम्मेदारी तहरीक-ए-तालिबान ने ली। पाक स्थित तहरीक-ए-तालिबान के प्रवक्ता शाहिदुल्ला शाहिद ने कहा कि यह कार्रवाई मौलाना वलीउर्रहमान की मौत का बदला है। तालिबान प्रवक्ता ने कहा कि सेना हमारी दुश्मन है और ऐसे हमले हम भविष्य में भी करते रहेंगे। अब पाकिस्तान में रेल ट्रैक उड़ाने का काम भी आतंकवादियों ने शुरू कर दिया है। पिछले दिनों ज़िला राजपुर के कोटला हसनशाह क्षेत्र में एक रेल लाईन को धमाके से उड़ा दिया गया। उसके बाद एक ट्रेन पटरी से नीचे उतर गई जिसमें तीन लोग मारे गए जबकि 25 घायल हो गए। धर्मस्थलों व धार्मिक जुलूसों तथा भीड़ भरे बाज़ारों में फ़िदायीन हमले करना या बम विस्फोट के द्वारा बेगुनाह लोगों की हत्याएं करना तो गोया इन चरमपंथियों के लिए आम बात होकर रह गई हैं। और तो और विश्वव्यापी स्तर पर पोलियो जैसे मर्ज को जड़ से उखाड़ फेंकने के लिए चलाए जाने वाले अभियान को भी यह अनपढ़ चरमपंथी संदेह की नज़रों से देखते हैं। इन्हें इसमें भी अमेरिका की साजि़श नज़र आती है। पिछले दिनों इन मानवता विरोधियों ने पोलियो कर्मियों पर कई हमले किए जिसमें महिलाए व बच्चे मारे गए। गत् दो वर्षों के दौरान पोलियो अभियान में लगे 30 लोगों की पाकिस्तान में हत्या की जा चुकी है। इन घटनाओं से दुखी होकर पोलियो अभियान को आर्थिक सहायता पहुंचाने वाले प्रमुख उद्योग पति बिल गेटस ने पाकिस्तान में पोलियो अभियान को आर्थिक सहायता रोकने संबंधी संकेत दिए हैं। ज़ाहिर है पाकिस्तान के बद से बदतर होते जा रहे ऐसे हालात सेना को संभवत: अब और अधिक समय तक मूकदर्शक बने रहने नहीं देंगे।
हालांकि पिछले दिनों सेना पर हुए हमले के बाद पाकिस्तान ने तालिबानी ठिकानों पर हवाई हमले कर 40 आतंकवादियों को मारने का दावा भी किया है। परंतु देश में निर्वाचित सरकार होने के चलते पाक सेना स्वतंत्र रूप से सैन्य कार्रवाई कर पाने में फिलहाल सक्षम नहीं है। उधर पाकिस्तान में लोगों की बेचैनी इसहद तक बढ़ती जा रही है कि बेनज़ीर भुट्टो के बेटे बिलावल भुट्टो ज़रदारी को भी पिछले दिनों साफ़तौर पर यह कहना पड़ा कि इनके खिलाफ कड़ी सैन्य कार्रवाई की ज़रूरत है। बिलावल ने कहा है कि पाकिस्तान का चेहरा ओसामा बिन लाडेन या वह आतंकवादी नहीं हो सकते जो रोज़ हज़ारों जाने लेते हैं। उनके बजाए पाकिस्तान के चेहरे वे होने चाहिएं जो इनके खिलाफ खड़े हैं और देश को उम्मीद बंधाते हैं। इस बीच प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ ने सत्ता में आते ही तालिबान से बातचीत करने की जो पेशकश की थी उस पर दो क़दम आगे बढ़ऩे की कोशिश करते हुए गत् दिनों एक चार सदस्यीय वार्ताकार समिति बनाए जाने की घोषणा की है। इस समिति में पाकिस्तान के दो वरिष्ठ पत्रकार रहीमुल्ला युसुफ़ ज़ई तथा इरफ़ान सिद्दीक़ी को शामिल किया गया है जबकि एक पूर्व राजदूत रूस्तम शाह मोह मद व आई एस आई के सेवानिवृत मेजर आमिर शाह को रखा गया है। यह वार्तकार समिति तालिबानों से बातचीत कर गृहमंत्रालय को अपनी रिपोर्ट सौंपेगी।
इन हालात में सवाल यह उठता है कि नवाज़ शरीफ द्वारा इस चार सदस्यीय वार्तकार समिति के गठन के बाद क्या तालिबानी व अन्य चरमपंथी संगठनों के हमलों में कोई कमी आने वाली है? क्या तालिबानी ताकतें जोकि चरमपंथ व हिंसा के मार्ग पर इस कद्र आगे बढ़ने के बाद वे नवाज़ शरीफ के वार्तालाप जैसे उदारवादी प्रस्ताव को गंभीरता से लेने की कोशिश करेंगी? दूसरा सवाल यह भी है कि पाकिस्तानी सेना तालिबानी हमलों में आए दिन मारे जा रहे अपने जवानों के बावजूद अब भी नवाज़ शरी$फ सरकार के निर्देशों की प्रतीक्षा करती रहेगी? क्या पाक सेना के आलाअधिकारी अपने जवानों के मनोबल को गिरता हुआ इसी प्रकार देखते रहेंगे? और इन सबसे बड़ी बात यह है कि क्या पाकिस्तान की नवाज़ शरीफ़ सरकार और जनरल राहिल शरीफ़ को इस बात का भी अंदाज़ा है कि निर्वाचित सरकार तथा सेना में भी किस हद तक चरमपंथियों की घुसपैठ हो चुकी है? पाकिस्तान में फ़ौजी एयरबेस पर हो चुके हमले तथा गवर्नर सलमान तासीर की हत्या से आखिर पाकिस्तान के नीति निर्धारकों को क्या सबक़ हासिल हो रहा है? क्या यह घटनाएं इस बात का सुबूत नहीं हैं कि चरमपंथी ताक़तें पाकिस्तान के हर क्षेत्र में अपनी घुसपैठ मज़बूत कर चुकी हैं? यहां तक कि राष्ट्रीय असेंबली में उनकी हमदर्दी में आवाज़ उठाने वाली ताकतें पहुंच चुकी हैं? और सेना में भी कट्टरपंथी विचारधारा रखने वाले कर्मचारी व अधिकारी उनके हिमायती बने हुए हैं?
इस बात से भी इनकार नहीं किया जा सकता कि नवाज़ शरीफ सरकार इन तालिबानी ताक़तों से दहशतज़दा है। संभवत: यही वजह है कि नवाज़ शरीफ़ ने सत्ता में आते ही तालिबान से बातचीत करने की जो पेशकश की थी उस पर अमल करने का वे अब तक कोई साहस नहीं कर पाए। न ही अब तक किसी शांतिवार्ता संबंधी प्रतिनिधिमंडल की घोषणा की। परंतु अब जबकि आतंकवादियों के हौसले इतने बुलंद हो गए हैं कि उन्होंने सेना को ही अपना निशाना बनाना शुरू कर दिया तथा सीधे तौर पर सेना को चुनौती देनी शुरू कर दी। और तब नवाज़ शरीफ़ ने अपनी आंखें खोली हैं और गत् सप्ताह ही उन्होंने चार सदस्यीय वार्ताकार समिति की घोषणा की है? नवाज़ शरीफ़ की इस वार्ताकार समिति की घोषणा के बाद यह कयास भी लगाया जा रहा है सेना के रुख को भांपते हुए ही नवाज़ शरीफ़ ने वार्ता का यह निर्णय लिया है। ज़ाहिर है पाकिस्तानी सेना अपने जवानों की बड़े पैमाने पर हो रही हत्याओं के बाद व अपने सुरक्षा ठिकानों, चौकियों, छावनियों व सैन्य प्रशिक्षण केंद्रों पर होने वाले आतंकवादी हमलों के बाद अपने जवानों के मनोबल को अब और अधिक गिरता हुआ देखने के मूड में नहीं है। वह भी जनरल परवेज़ मुशर्रफ़ का ही शासन था जिसमें लाल मस्जिद में ऑपरेशन करने का साहस जुटाया गया था। आतंकवादी ताकतें हिंसा के मार्ग पर आगे बढऩे के बाद वार्ता अथवा उदारवाद की भाषा को नहीं समझना चाहती हैं। इन हालात में पाकिस्तान में सैन्य शासन की संभावनाएं प्रबल होती दिखाई दे रही हैं और निश्चित रूप से इन चरमपंथी ताक़तों को शिकस्त देने का अब एक मात्र रास्ता यही रह गया है कि एक बड़ी व निरंतर चलने वाली आरपार की फ़ौजी कार्रवाई कर इन तालिबानी ताकतों को नेस्तोनाबूद किया जाए तथा ऐसी हिंसक मानसिकता रखने वाले सभी चरमपंथी लोगों को हथियारमुक्त किया जाए। अन्यथा कोई आश्चर्य नहीं कि पाकिस्तान भी यथाशीघ्र अफगानिस्तान की ही तरह तालिबानों की गिरफ्त में आ जाए।
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Tanveer Jafri (1)**Tanveer Jafri ( columnist),(About the Author) Author Tanveer Jafri, Former Member of Haryana Sahitya Academy (Shasi Parishad),is a writer & columnist based in Haryana, India.He is related with hundreds of most popular daily news papers, magazines & portals in India and abroad. Jafri, Almost writes in the field of communal harmony, world peace, anti communalism, anti terrorism, national integration, national & international politics etc. He is a devoted social activist for world peace, unity, integrity & global brotherhood. Thousands articles of the author have been published in different newspapers, websites & news-portals throughout the world. He is also a recipient of so many awards in the field of Communal Harmony & other social activities.

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*Disclaimer: The views expressed by the author in this feature are entirely his own and do not necessarily reflect the views of INVC.

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