सूचना प्रौद्योगिकी का भारतीयकरण – अनंत संभावनाओं का द्वार

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अलकेश त्यागी

सूचना और प्रौद्योगिकी क्षेत्र में भारतीयों का दबदबा तो विश्व मान ही चुका है लेकिन अब इस क्षेत्र में भारतीयता ने भी अपने कदम बढा दिए हैं । राजभाषा माह में, 8 सितम्बर, 2009 को दिल्ली में छह भारतीय भाषाओं में सूचना प्रौद्योगिकी उपकरणों व फॉन्टस के लोकार्पण के साथ ही समस्त 22 अनुसूचित भारतीय भाषाओं में इस प्रकार की भाषा तकनीक अब आम आदमी के उपयोग हेतु उपलब्ध हो गई । अब बहुभाषी भारतीय, अपनी-अपनी भाषाबोली में कंप्यूटर के माध्यम से संचार व्यवहार करने में सक्षम हैं ।

          यूं तो डेस्कटाप प्रकाशन व्यवस्था ने प्रकाशन उद्योग के स्वरूप में क्रांतिकारी बदलाव कर दिए थे किन्तु ये केवल अंग्रेजी हिंदी प्रकाशनों तक ही सीमित रहे । लेकिन अब सभी भारतीय भाषाओं का सूचना प्रौद्योगिकी में खुलकर उपयोग होने से भारतीयता के सभी पक्षों जैसे भाषाएं, मूल्य, पारंपरिक ज्ञान, सहज संपर्क, व्यापार, पत्र व्यवहार आदि के लिए अनंत संभावनाओं के द्वार खुल गए हैं और यह सब संभव किया है सूचना प्रौद्योगिकी विकास विभाग के भारतीय भाषाओं के लिए तकनीकी कार्यक्रम (TDIL) एवं उन्नत संगणनक विकास केन्द्र (CDAC)के मिले जुले प्रयत्नों ने ।

          केवल पांच प्रतिशत अंग्रेजी जानने वाली बहुभाषी भारतीय जनसंख्या के लिए उनकी भाषा में सूचना प्रसंस्करण हेतु आवश्यक था  लोकभाषा में सापऊटवेयर का विकास किया जाए । इसकी शुरूआत हुई 15 अप्रैल 2005 को जब पहले कदम के रूप में तमिल भाषा के फॉन्टस एवं शब्दकोष का लोकार्पण किया गया । बाकी भारतीय भाषाओं को भी चरणबध्द तरीके से सूचना प्रौद्योगिकी उपकरण उपलब्ध कराए गए । अब तक केवल सोलह भारतीय भाषाओं में प्रिंट एवं इलेक्ट्रोनिक संचार माध्यमों के लिए तरह-तरह के फॉन्टस तथा कार्यालय के कामकाज , बेव ब्राउजिंग तथा ई-मेल आदि हेतु सापऊटवेयर ही उपलब्ध था । यह भाषाएं थीं हिंदी, तमिल,तेलुगु,, असामी, कन्नड़, मलयालम, मराठी, उड़िया, पंजाबी, उर्दू, बोडो डोगरी, मैथिली, नेपाली, गुजराती एवं संस्कृत । अब बंगाली, कश्मीरी, कोंकणी, मणिपुरी, संथाली और सिंधी समेत छ भाषाओं की अंतिम किस्त के साथ ही राष्ट्रीय रोलआउट प्लान का पहला चरण पूरा हो गया है । भारतीय भाषाओं में सूचना तकनीक उपकरण निशुल्क उपलब्ध हैं ।

              चूंकि कुछ भाषाएं प्रांतीय सीमाओं को लांघ दूसरे राज्यों में भी बोली जाती हैं अत: उन भाषाओं को एक से अधिक लिपियों में उपलब्ध कराया गया है ताकि किसी भी भाषा को लिपिबध्द करने में कोई बाधा न आए । कश्मीरी व सिंधी भाषा को फारसी अरेबिक तथा देवनागरी लिपियों में निकाला । इसी तरह महाराष्ट्र , कर्नाटक और केरल में बोली जाने वाली कोंकणी को देवनागरी और रोमन लिपि में, मणिपुरी भाषा को मीतेई यामेक लिपि के साथ ही संशोधित बंगला में तथा संथाली को ओल चिक्की लिपि के साथ-साथ देवनागरी में भी निकाला गया है ।

          यह भाषा प्रौद्योगिकी विकास भारतीय सांस्कृतिक विरासत के संरक्षण संवर्धन व भावी राष्ट्रीय विकास की समृध्दि में अहम भूमिका निभाएगा । अनुपम सांस्कृतिक ज्ञान का भंडार होने के कारण प्रत्येक भाषा विविधता, मानवीय विरासत का अभिन्न अंग है । किसी भी भाषा का लुप्त हो जाना मानव मात्र की क्षति है । परन्तु इस तकनीकी युग में उनके लुप्त होने का डर अब समाप्त होगया है । क्योंकि भारतीय भाषाओं व लिपियों का सूचना तकनीक पोषित संरक्षण और संवर्धन संभव है । भारतीय अब अपनी-अपनी भाषा में सोच और लिख सकेंगे । इस मौलिक लेखन से अनुदित कृतियों की नीरसता से मुक्ति मिलेगी । भारतीय भाषाओं में चिंतन व सामग्री सृजन को बढावा मिलेगा और अंग्रेजी की बाधा से मुक्ति । अब वह चाहे व्यापार का क्षेत्र हो, साहित्य का या फिर कोई और ।

          2 सितम्बर को इंटरनेट ने अपनी आयु के 40 वर्ष पूरे कर लिए हैं । एसोसिएटिड प्रेस (ए पी) की एक रिपोर्ट के अनुसार विश्व के 70-80 प्रतिशत इंटरनेट उपयोग करने वालों की तुलना में केवल 7 प्रतिशत भारतीय ही इंटरनेट का प्रयोग करते हैं । भाषायी दुविधा समाप्ति से भारतीयों की इस संख्या में निसंदेह वृध्दि होने की आशा है ।

          वैश्वीकरण की प्रक्रिया और समग्र विकास जन-जनको जोड़ने वाली सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी द्वारा ही संभव है । भाषा वह वाहन है जिसके द्वारा दूरदराज के लोगों के साथ संवाद द्वारा विकास लक्ष्यों को बढावा दिया जा रहा है । पिछली यूपीए सरकार में ई-गर्वनेंस न्यूनतम साझा कार्यक्रम का हिस्सा बनने के बाद से इस पर बड़े स्तर पर काम हो रहा है । भारतीय भाषाओं में सूचना संचार तकनीक की उपलब्धता के बाद अब इस दिशा में अगला कदम बदलती तकनीकों की चुनौती को स्वीकारते हुए भारतीय भाषाओं में ध्वनि तकनीक आधारित इंटरफेस का विकास करना है ताकि दृष्टिहीनों व अनपढ लाेग भी इसका लाभ उठा सकें । सूचना संचार तकनीक के लाभ ग्रामीण भारत में तभी पैठ बना सकेंगे जब लोकभाषा में नवीनतम तकनीक उपलब्ध होंगी ।

          देश के सामाजिक तानों बानों को भी भाषा तकनीक की बुनावट एक सूत्र में बांधने में सहायक होगी तथा क्षेत्रीय अलगाव व भाषाई अलगाव को सूचना तकनीकी जुडाव पाटने में भी योगदान करेंगे ।

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