सुशांत सुप्रिय की कविताएँ

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 सुशांत सुप्रिय की कविताएँ  

                            1. जागी नींद में

धरती पर बहुत कुछ ऐसा है
जो नहीं देख पाता हूँ मैं :
बाल मज़दूरों का
छिन गया बचपन
ऋतु के यौवन के समय
उखाड़ फेंके गए पौधे की व्यथा
घरेलू कामकाज में दिन-रात पिसती
पत्नी की थकान
रक्त में टहल रही
चापलूसी और अवसरवादिता …
इसी तरह खुली आँखों से सो रहे
और लोग भी तो होंगे
जो नहीं देख पाते होंगे
हत्यारों को और
मासूमियत से कहते होंगे —
कितनी सुख-शांति है चारो ओर
कहाँ हैं लाशें यहाँ ?
———-०———-

                             2. प्यार

यह ऐसे ही होता है
मैंने कहा —
अकेले आना
किंतु वह अपने साथ
पूरा वसंत ले आई
मैंने कहा —
चुपचाप आना
किंतु वह अपने साथ
पक्षियों का संगीत ले आई
मैंने कहा —
रात में आना
किंतु वह अपने साथ
चुंबनों का उजाला ले आई
मैंने कहा —
कुछ मत कहना
किंतु वह अपनी चुप्पी में भी
चाहत के गूँजते गीत ले आई
उसकी आँखों में
कोमल स्पर्श अटके हुए थे
उसके रोम-रोम में
मृदुल निगाहें उगी हुई थीं
उसकी देह में
महासागर हिलोरें ले रहा था
सोने के समय भी
उसका अंग-अंग जगा हुआ था …
———-०———-

                             3. लापता का हुलिया

उसका रंग ख़ुशनुमा था
क़द ईश्वर का-सा था
चेहरा मशाल की
रोशनी-सा था
वह ऊपर से कठोर
किंतु भीतर से मुलायम था
वैसे हमेशा
इंसानियत पर क़ायम था
अकसर वह बेबाक़ था
कभी-कभी वह
घिर गए जानवर-सा
ख़तरनाक था
उसे नहीं स्वीकार थी
तुच्छताओं की ग़ुलामी
उसे नहीं देनी थी
निकृष्टताओं को सलामी
सम्भावना की पीठ पर
सवार हो कर
वह अपनी ही खोज में
निकला था
और ग़ायब हो गया
पुराने लोग बताते हैं कि
देखने पर लगता था वह
गाँधीजी के सपनों का भारत
———-०———-

                         4. अहसास

जब से मेरी गली की कुतिया
झबरी चल बसी थी
गली का कुत्ता कालू
सुस्त और उदास
रहने लगा था
कभी वह मुझे
किसी दुखी दार्शनिक-सा लगता
कभी किसी हताश भविष्यवेत्ता-सा
कभी वह मुझे
कोई उदास कहानीकार लगता
कभी किसी पीड़ित संत-सा
वह मुझे और न जाने
क्या-क्या लगता
कि एक दिन अचानक
गली में आ गई
एक और कुतिया
गली के बच्चों ने
जिसका नाम रख दिया चमेली
मैंने पाया कि
चमेली को देखते ही
ख़ुशी से उछलते-कूदते हुए
रातोंरात बदल गया
हमारा कालू
कितना आदमी-सा
लगने लगा था
वह जानवर भी
अपनी प्रसन्नता में
———-०———-

                        5. तिब्बत : एक

तिब्बत की बात करना
‘ राजनीतिक भूल ‘ है
तिब्बत के बौद्ध लामा
रो रहे हैं
उनके रुदन में छिपा है
दशकों के दमन का दर्द
उनके दर्द में छिपी है
आज़ाद होने की
उत्कट इच्छा
उनकी आज़ादी की इच्छा
दमनकारी शासकों का सिर-दर्द है
दमनकारी शासक
बेहद शक्तिशाली हैं
उन्हें सिर-दर्द देना
‘ राजनीतिक भूल ‘ है
कोई ‘ राजनीतिक भूल ‘
नहीं करना चाहता
इसलिए
तिब्बत के बौद्ध लामा
दशकों से रो रहे हैं
———-०———-

                        6. तिब्बत : दो

जब तिब्बत के
लामा रोते हैं
तो नदियों में
बाढ़ नहीं आती
जब तिब्बत के
लामा रोते हैं
तो भयंकर सूखा
नहीं पड़ता
जब तिब्बत के
लामा रोते हैं
तो कोई भूकंप
नहीं आता
जब तिब्बत के
लामा रोते हैं
तो धरती से केवल
हरियाली
संगीत
और मिठास
कम हो जाती है
जब तिब्बत के
लामा रोते हैं
तो धरती से केवल
रोशनी
सुगंध
और इंसानियत
कम हो जाती है
———-०———-

                        7. नफ़ीस अली

तीन साल का
नफ़ीस अली
जब तुतला कर
बोलता है तो उसके
मुँह से फूल झरते हैं
एक ताल है वह
पुष्पों से भरा हुआ
एक चुंबन है वह
अंकित है जो
समय के अधरों पर
एक मौसम है वह
अपने देश का
एक त्योहार है वह
मासूमियत भरा
उसकी आसमानी आँखों में
मैं ख़ुशी के गुलाब
देखना चाहता हूँ
भय के सर्प नहीं
क्या इसमें आप
मेरी मदद करेंगे ?
————०————

Sushant-supriy-poems परिचय
सुशांत सुप्रिय
कवि , कथाकार व अनुवादक

शिक्षा: अमृतसर ( पंजाब ) व दिल्ली में ।
प्रकाशित कृतियाँ : हत्यारे , हे राम, दलदल ( कथा-संग्रह ) ।
एक बूँद यह भी , इस रूट की सभी लाइनें व्यस्त हैं (काव्य-संग्रह)।
सम्मान :  # भाषा विभाग ( पंजाब ) तथा प्रकाशन विभाग ( भारत सरकार ) द्वारा
रचनाएँ पुरस्कृत ।
# कमलेश्वर – कथाबिंब कथा प्रतियोगिता ( मुंबई ) में लगातार दो वर्ष प्रथम
पुरस्कार ।
अन्य प्राप्तियाँ : # कई कहानियाँ व कविताएँ अंग्रेज़ी , उर्दू , पंजाबी , उड़िया ,
असमिया , मराठी , कन्नड़ व मलयालम आदि भाषाओं में अनूदित
व प्रकाशित ।
#  कहानियाँ कुछ राज्यों के कक्षा सात व नौ के हिंदी पाठ्यक्रम में
शामिल ।
#  कविताएँ पुणे वि.वि. के बी.ए. ( द्वितीय वर्ष ) के पाठ्य-क्रम में
शामिल ।
#  कहानियों पर आगरा वि.वि. , कुरुक्षेत्र वि.वि. व गुरु नानक देव
वि.वि.,अमृतसर के हिंदी विभागों में शोधकर्ताओं द्वारा शोध-कार्य ।
#  अनुवाद की पुस्तक ” विश्व की श्रेष्ठ कहानियाँ ” प्रकाशनाधीन ।
# अंग्रेज़ी व पंजाबी में भी लेखन व प्रकाशन । अंग्रेज़ी में काव्य-संग्रह ” इन गाँधीज़ कंट्री ” प्रकाशित । अंग्रेज़ी कथा-संग्रह ” द फ़िफ़्थ डायरेक्शन ” प्रकाशनाधीन ।
# सम्पर्क : मो – 8512070086
ई-मेल: sushant1968@gmail.com
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  आत्म-कथ्य
मुझमें कविता है , इसलिए मैं हूँ : सुशांत सुप्रिय
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कविता मेरा आॅक्सीजन है । कविता मेरे रक्त में है , मज्जा में है । यह मेरी धमनियों में बहती है । यह मेरी हर साँस में समायी है । यह मेरे जीवन को अर्थ देती है । यह मेरी आत्मा को ख़ुशी देती है । मुझमें कविता है , इसलिए मैं हूँ । मेरे लिए लेखन एक तड़प है, धुन है , जुनून है । कविता लिखना मेरे लिए व्यक्तिगत स्तर पर ख़ुद को टूटने, ढहने , बिखरने से बचाना है । लेकिन सामाजिक स्तर पर मेरे लिए कविता लिखना अपने समय के अँधेरों से जूझने का माध्यम है , हथियार है , मशाल है ताकि मैं प्रकाश की ओर जाने का कोई मार्ग ढूँढ़ सकूँ । मेरा मानना है कि श्रेष्ठ कविता शिल्प के आगे संवेदना के धरातल पर भी खरी उतरनी चाहिए । उसे मानवता का पक्षधर होना चाहिए । उसमें व्यंग्य के पुट के साथ करुणा और प्रेम भी होना चाहिए । वह सामाजिक यथार्थ से भी दीप्त होनी चाहिए । कवि जब लिखे तो लगे कि वह केवल अपनी बात नहीं कर रहा , सबकी बात कर रहा है । यह बहुत ज़रूरी है कि कवि के अंदर एक कभी न बुझने वाली आग हो जिससे वह काले दिनों में भी अपने हौसले और संकल्प की मशाल जलाए रखे ।उसके पास एक धड़कता हुआ ‘रिसेप्टिव’ दिल हो ।उसके पास एक ‘विजन’ हो, एक सुलझी हुई जीवन-दृष्टि हो । श्रेष्ठ कवि की कविता कभी अलाव होती है, कभी लौ होती
है , कभी अंगारा होती है…
( २०१५ में प्रकाशित मेरे काव्य-संग्रह
” एक बूँद यह भी ” में से )

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