सुलोचना वर्मा की पांच कविताएँ
1.उम्र
मेरे तुम्हारे बीच
आकर ठहर गया है
एक लम्बा मौन
छुपी हैं जिसमे
उम्र भर की शिकायतें
हर एक शिकायत की
है अपनी अपनी उम्र
उम्र लम्बी है शिकायतों की
और उम्र से लम्बा है मौन–
2.घर से भागी हुई लड़की
घर से भागी हुई लड़की
चल पड़ती है भीड़ में
लिए अंतस में कई प्रश्नडाल देती है संदेह की चादर
अपनापन जताते हर शख्स पर
पाना होता है उसे अजनबी शहर में
छोटा ही सही, अपना भी एक कोना
रह रहकर करना होता है व्यवस्थित
उसे अपना चिरमार्जित परिधान
मनचलों की लोलुप नज़रों से बचने के लिए
दबे पाँव उतरती है लॉज की सीढियां
कि तभी उसकी आँखें देखती है
असमंजस में पड़ा चैत्र का ललित आकाश
जो उसे याद दिलाता है उसके पिता की
करती है कल्पना उनकी पेशानी पर पड़े बल की
और रह रहकर डगमगाते मेघों के संयम को
सौदामनी की तेज फटकार
उकेरती है उसकी माँ की तस्वीर
विह्वल हो उठता है उसका अंतःकरण
उसके मौन को निर्बाध बेधती है प्रेयस की पदचाप
और फिर कई स्वप्न लेने लगते हैं आकार
पलकों पर तैरते ख्वाब के कैनवास पर
जिसमें वह रंग भरती है अपनी पसंद के
यादें, अनुभव, उमंग और आशायें
प्रत्याशा की धवल किरण //
और एक अत्यंत सुन्दर जीवन
जिसमें वह पहनेगी मेखला
और हाथ भर लाल लहठी
जहाँ आलता में रंगे पाँव
आ रहे हों नज़र
कैसे तौले वह खुद को वहाँ
सामाजिक मापदंडों पर …….
3.पीहर
बाटिक प्रिंट की साड़ी में लिपटी लड़की
आज सोती रही देर तक
और घर में कोई चिल्ल पो नहीं
खूब लगाए ठहाके उसने भाई के चुटकुलों पर
और नहीं तनी भौहें उसकी हँसी के आयाम पर
नहीं लगाया “जी” किसी संबोधन के बाद उसने
और किसी ने बुरा भी तो नहीं माना
भूल गयी रखना माथे पर साड़ी का पल्लू
और लोग हुए चिंतित उसके रूखे होते बालों पर
और एक लम्बे अंतराल के बाद, पीहर आते ही
घरवालों के साथ साथ उसकी मुलाक़ात हुई
अपने आप से, जिसे वो छोड़ गयी थी
इस घर की दहलीज पर, गाँव के चैती मेले में
आँगन के तुलसी चौड़े पर, और संकीर्ण पगडंडियों में
4.औरतें
औरतें अन्नपूर्णा सी लगती हैं
देहात के भंसा घरों से लेकर
शहरों के किचन तकसीता की साक्षात प्रतिमा हैं
तुलसी पर जलाती दीया बाती से लेकर
सत्संग के प्रवचन तकआती है नज़र पार्वती की स्वरूप
पितृ गृह त्याग से लेकर
विवाह के वचन तककहलाती है उन्मादी
चाँद पर जाने की सोच से लेकर
दूरदर्शिता के मंचन तककरार दी जाती है अहंकारी
अपने पैरों पर खड़ा होने से लेकर
भविष्य के रचन तकबन जाती है चरित्रहीन
स्वेक्षा से किसी को समर्पित होने से लेकर
सख़ाओं के सचन तक
5.वटवृक्ष
क्यों व्यथित हो वटवृक्ष
जो रेंग रही हैं तुम्हारे तन पर अमरबेलें
और जकड़ रही है निशिदिन
तुम्हे निज बाहुपाश मेंनहीं, तुम असहाय नहीं
ये है सामर्थ्य तुम्हारा
कि धरा है तुमने धरणी को अपनी बहुभुजाओं से
देने औरो को आश्रय, रचा है विधाता ने तुम्हारी नियति मेंसनद रहे ! तुम्हारी कोटरों में
रहते है विषयुक्त काले सर्प
फैलाकर चलते फन, जब भी जाते भ्रमण को
और अपने गरल पर व्यर्थ ही करते दर्पतुम्हारी क्षमता का परिचायक हैं
तुम्हारी असंख्य शाखाओं पर पत्तों की भरमार
तुम्हें होना है परिणत कल्पतरु में
और करना है पोषित ये समस्त संसार
ना हो व्यथित, कि तुम हो वटवृक्ष
सह लो थोड़ा संताप, धरे रहो तुम धीर
और करो अभिमान निज पर कि तुम्हारी छाया में रहकर
सिद्धार्थ “गौतम” कहलायेपढ़ा होगा हर एक पत्ते को तप के तमाम वर्षों में
और तथागत ने सीखा होगा धैर्य का पाठ तुम्ही से
सीखा होगा तृष्णा का त्याग, प्रज्ञा की वृद्धि तुम्हारे आचरणरुपी धर्म से
धर्म, जो यह बताए कि करुणा से भी अधिक मैत्री है आवश्यक |
Assistant Editor
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सुलोचना वर्मा
सम्प्रति : कॅंप्यूटर विज्ञान के क्षेत्र मे कार्यक्रम प्रबंधक के पद पर कार्यरत हैं
शिक्षा : स्नातक(वनस्पति विज्ञान), मगध विश्वविद्यालय, कॅंप्यूटर अभियांत्रिकी में स्नातकोत्तर डिप्लोमा
लिखना मेरे लिए : जैसे श्वास लेना है ज़रूरी, मेरे लिए लिखना ठीक उसी प्रकार आवश्यक है| मेरी कवितायें महज कल्पनाओं की स्याही मात्र ना होकर जीवन के अनुभवों, मन के भावों और ज़रूरी मुद्दों को प्रकट करने का रचनात्मक माध्यम है | मेरे आस-पास जो कुछ भी घटता है, उसे मेरी संवेदनाएं ढाल देती है रचनाओं में |
कुछ विशेष : किशोरावस्था से ही साहित्य की ओर विशेष लगाव | हिंदी की अनेकों पत्रिकाओं से जुड़ाव एवं रचनाओं का प्रकाशन | इनकी काव्य रचनाएँ वार्षिक, दैनिक और मासिक प्रकाशनों (हिन्दुस्तान, कथादेश, भवदीय प्रभात, आगमन, प्रवाह, कल्पतरु एक्सप्रेस, पारस परस, साहित्य रागिनीआदि)में प्रकाशित होती रहती हैं | ब्लागर्स मीट एवं कवि सम्मलेन भी कर चुकी हैं |
कविताएँ पढ़ने लिखने के अतिरिक्त छायाचित्रण व चित्रकारी में उनकी रुचि है तथा संगीत को वह जीवन का अभिन्न अंग मानती हैं।
सम्मान : आगमन तेजस्विनी सम्मान
संपर्क : डी -१ / २०१ , स्टेलर सिग्मा, सिग्मा-४, ग्रेटर नॉएडा, २०१३१० – ई मेल :verma.sulochana@gmail.com
शानदार एक से बढकर एक कविता ! बधाई
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उम्दा कविताएं ….पीहर ….बहुत कुछ याद दिलाता हैं …बहुत शानदार !
आई एन वी सी के बारे मेरे मित्र मुझे बताया था पर मुझे तब यकीन नहीं हुआ था ! भारत में भी कोई international brands हैं जो अच्छी पत्रकारिता और सामाजिक जिम्मेदारी का पूरी तरहा निर्भाह कर रहा हैं …पूरी टीम को धन्यवाद
किसी एक कविता की तारीफ़ करना बहुत मुश्किल काम कर दिया हैं आपने …फिर भी औरतें …आलोचकों को ज़रूर पढ़ानी चाहियें ….
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यह जानकर अच्छा लगा कि सुलोचना कविता को लेकर प्रतिबद्ध हैं!पर यहाँ प्रस्तुत कविताएँ यह एहसास देती हैं कि उन्हें अध्ययन और तैयारी पर ख़ूब ध्यान देना होगा । उनमें कविता तो है, मगर वह कच्ची भावुकता और पुराने रूमान के खोल में बन्द है । और यह जड़ाऊ-धराऊ प्राक-छायावादी भाषा क्यों । इन सब को तोड़ना होगा । शुभकामनाएँ ।
सुलोचना जी को पहली बार पढ़ा… सभी कविताएं शानदार… पहली कविता उम्र खासतौर पर पसंद आई…बधाई
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पहली कविता सुंदर है। दूसरी कविता की भाषा पूरे बोध को मज़ाक में बदल देती है। पार्वती की स्वरूप नहीं पार्वती का स्वरूप!