सुब्रमणयम स्वामी के भाजपा में शामिल होने के मायने

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Sub swa{निर्मल रानी**,,}
कभी सिकंदर बख्त तो कभी आरिफ बेग, कभी मुख्तार अब्बास नकवी तो कभी शाहनवाज़ हुसैन जैसे मुस्लिम ‘मुखैटों’ को आगे रखकर भले ही भारतीय जनता पार्टी दुनिया को यह दिखाने की कोशिश क्यों न करती हो कि भाजपा एक ऐसा धर्मनिरपेक्ष राजनैतिक दल है जिसमें कि सभी धर्मों व समुदायों के लोगों को समान प्रतिनिधित्व दिया जाता है। परंतु वास्तव में ऐसा बिल्कुल नहीं है भारतीय जनता पार्टी दरअसल एक ऐसा दक्षिणपंथी हिंदुत्ववादी संगठन है जिसका मुख्य एजेंडा ही हिंदुत्ववाद को बढ़ावा देना तथा हिंदुत्व से संबंधित प्राचीन संस्कृति की बातें करना है। यह संगठन अपने गुप्त एजेंडे पर चलते हुए किसी दूसरे धर्म एवं समुदाय के लोगों के हितों के बारे में कतई नहीं सोचना चाहता। और तो और देश और दुनिया के अधिकांश ऐसे हिंदु धर्मावलंबी जो कि वास्तविक उदारवादी हिंदुत्व के मार्ग पर चलते हुए धर्मनिरपेक्षता का पालन करते हैं, भाजपा व उनके सहयोगी संगठन ऐसे धर्मनिरपेक्ष व उदारवादी हिंदुओं को भी अपना सबसे बड़ा दुश्मन मानते हैं। कहा जा सकता है कि ठीक उसी तरह जैसे कि कई मुस्लिम देशों में तालिबानी व आतंकी विचारधारा के लोग मुसलमान होने के बावजूद उदारवादी, सूफी व धर्मनिरपेक्ष सोच रखने वाले मुसलमानों का प्रबल विरोध यहां तक कि उनकी हत्याएं करने से भी बाज़ नहीं आते। और यह सांप्रदायिक कट्टरपंथी ताकतें भी ऐसे उदारवादी मुसलमानों को अपनी राह का सबसे बड़ा रोड़ा मानती हैं।

आज हमारे देश में यदि धर्मनिरपेक्षता के मार्ग पर चलने संबंधी सार्वजनिक बहस की बात हो तो भारतीय जनता पार्टी के लोग यह जताने से हरगिज़ नहीं चूकते कि 2002 में डा०एपीजे अब्दुल कलाम को राष्ट्रपति बनाए जाने का प्रस्ताव भारतीय जनता पार्टी की ओर से ही रखा गया था। जबकि देश जानता है कि 2002 में गुजरात में नरेंद्र मोदी की भाजपाई सरकार ने वहां के अल्पसंख्यकों के हुए सामूहिक नरसंहार में अपनी संदिग्ध भूमिका होने के बाद मोदी व भाजपा को राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर होने वाली बदनामी तथा उनपर मुस्लिम विरोधी होने का ठप्पा लगने से स्वयं को बचाने के लिए भाजपा द्वारा डा० कलाम के नाम को राष्टपति पद के लिए प्रस्तावित किया गया था। गुजरात की घटना की गंभीरता को किसी कांग्रेस पार्टी या भाजपा विरोधी दलों अथवा धर्मनिरपेक्षतावादियों से या उदारवादियों की नज़रों से देखने की कोई आवश्यकता नहीं। बल्कि तत्कालीन भाजपाई प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी द्वारा उस समय गुजरात दंगों के संबंध में बोले गए उनके दो ही बोल काफी हैं। एक तो यह कि नरेंद्र मोदी को राजधर्म का पालन करना चाहिए था। जिसके जवाब में नरेंद्र मोदी ने बड़ी ही बेशर्मी से यह कहा था कि मैं वही तो कर रहा हूं। गोया नरेंद्र मोदी की गुजरात दंगों में जो भूमिका थी वही उनका राजधर्म भी था। मोदी के इस जवाब को बहुत गहराई से समझने की ज़रूरत है कि आिखर मोदी की नज़र में राजधर्म की परिभाषा है क्या? और दूसरी बात वाजपेयी जी ने दंगों से आहत हो कर यह कही थी कि वे आिखर दुनिया को क्या मुंह दिखाएंगे?

इन बातों से साफ ज़ाहिर है कि भारतीय जनता पार्टी का सार्वजनिक एजेंडा कुछ और है तथा गुप्त एजेंडा कुछ और। भाजपा में कभी-कभार कुछ नेता यह कहते सुनाई देते हैं कि भारतीय जनता पार्टी ही वास्तविक धर्मनिरपेक्ष पार्टी है। ज़ाहिर है इसके जवाब में उनके पास शाहनवाज़ हुसैन व मुख्तार अब्बास नकवी जैसे दो चेहरे हैं जिन्हें वे मीडिया के माध्यम से अपनी पार्टी के धर्मनिरपेक्ष मुखौटे के रूप में दुनिया को दिखाते रहते हैं। परंतु जब गुजरात जैसे राष्ट्रीय स्वयं संघ की सफल प्रयोगशाला कहे जाने वाले राज्य में चुनाव का समय आता है तो इन्हीं मुस्लिम मुखौटों को गुजराज जाने की इजाज़त नहीं दी जाती। पार्टी स्वयं को धर्मनिरपेक्ष ज़रूर कहती है पर गुजरात में किसी मुस्लिम व्यक्ति को अपना प्रत्याशी नहीं बनाती। मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी विभिन्न धर्माचार्यों अथवा संगठनों द्वारा भेंट की जाने वाली पगड़ी,साफा अथवा टोपी तो ग्रहण कर लेते हैं परंतु जब कोई मुस्लिम मौलवी उन्हें उनकी कथित सद्भावना यात्रा के दौरान उनके सिर पर टोपी रखने की कोशिश करता है तो वे मुस्लिम धर्मगुरुओं द्वारा भेंट की जाने वाली इस टोपी को पहनने से इंकार कर देते हैं। दूसरी ओर इसी पार्टी के दूसरे मुख्यमंत्री मध्य प्रदेश के शिवराज सिंह चौहान ईद के दिन मुस्लिम समुदाय के मध्य जाकर अपने सिर पर मुस्लिम समुदाय की टोपी पहनकर लोगों से गले मिलते हैं और एक बार फिर भाजपा के कथित धर्मनिरपेक्ष स्वरूप की रक्षा करने का प्रयास करते हैं।

मज़े की बात तो यह है कि यदि दूसरे धर्मनिरपेक्ष दलों के नेता मुस्लिम समुदाय के लोगों के बीच जाकर उन की भेंट की गई टोपी अपने सिर पर रखें तथा रोज़ा-अफ्तार जैसे धार्मिक व सामाजिक आयोजनों में भाग लें तो यही भाजपा उन नेताओं को वोट बैंक की राजनीति करने वाला नेता बताने से भी नहीं चूकती। पंरतु यदि यही काम शिवराज चौहान द्वारा किया जाए तो इसे भाजपा का धर्मनिरपेक्ष चरित्र बताया जाता है। जबकि यदि भाजपा की ही नज़रों से देखा जाए तो चौहान द्वारा मुस्लिमों की भेंट की हुई टोपी ग्रहण करना भी वोट बैंक की राजनीति है तथा नरेंद्र मोदी द्वारा टोपी स्वीकार किए जाने से इंकार करना भी हिंदू मतों को अपनी ओर आकर्षित करने हेतु की जाने वाली वोट बैंक की ही राजनीति है। वैसे तो भारतीय जनता पार्टी के आधार सिद्धांतों को देखें व पढ़ें तो यह आसानी से पता चल जाएगा कि पार्टी हिंदुत्व व गैर हिंदुत्ववादी लोगों के बीच कितना अंतर करती है। सर्वधर्म संभाव, सांप्रदायिक सौहाद्र्र तथा धर्मरिनपेक्षता जैसी बातें उसके किसी भी एजेंडे में शामिल ही नहीं हैं। समय-समय पर भाजपा द्वारा उठाए जाने वाले कई कदम इस बात की गवाही भी देते हैं। उदाहरण के तौर पर 2009 के चुनावों के दौरान वरुण गांधी द्वारी पीलीभीत में मुस्लिम समुदाय के विरुद्ध बहुत ही तल्ख व भडक़ाऊ टिप्पणी की गई थी। उत्तर प्रदेश की तत्कालीन मायावती सरकार द्वारा वरुण गांधी की सांप्रदायिक दुर्भावना फैलाने वाली विवादित टिप्पणी के विरुद्ध मुकद्दमा दर्ज कर उन्हें जेल भी भेज दिया गया था। परंतु भारतीय जनता पार्टी के नेताओं द्वारा वरुण गांधी को महिमामंडित किए जाने में कोई कसर नहीं छोड़ी गई। राजनाथ सिंह जैसे वरिष्ठ भाजपा नेता ने वरूण गांधी से जेल में जाकर मुलाकात की। उन्हें पार्टी में संगठन के महत्वपूर्ण पद नवाज़े गए। आिखर यह सब किस बात का इनाम था जो वरुण को पार्टी द्वारा दिया गया और आज भी दिया जा रहा है।

इसी प्रकार पिछले दिनों लुप्त प्राय हो चुकी जनता पार्टी के स्वयंभू अध्यक्ष सुब्रमण्यम स्वामी द्वारा भारतीय जनता पार्टी में अपनी पार्टी के विलय की घोषणा की गई। पार्टी अध्यक्ष राजनाथ सिंह,पूर्व अध्यक्ष वेंकैया नायडू तथा राज्यसभा में नेता विपक्ष अरुण जेटली की उपस्थिति में सुब्रमण्यम स्वामी ने यह घोषणा की तथा उक्त सभी नेताओं ने स्वामी का पार्टी में स्वागत किया। याद कीजिए कि सुब्रमणयम स्वामी देश के अल्पसंख्यकों के विषय में क्या विचार रखते हैं। डा० सुब्रमण्यम स्वामी ने अभी कुछ समय पूर्व यह वक्तव्य दिया था कि भारत में रहने वाले मुसलमानों को मताधिकार से वंचित कर दिया जाना चाहिए। इस प्रकार की गैर संवैधानिक बात करने वाले व्यक्ति को भाजपा अपनी पार्टी में सम्मान देती है तथा इनके पार्टी में शामिल होने से पार्टी के मज़बूत होने की उम्मीद करती है। इसी प्रकार प्रवीण तोगडिय़ा जोकि संघ परिवार के प्रमुख नेता हैं वे भी मुसलमानों के मताधिकार समाप्त करने के पक्षधर हैं। पूर्वांचल क्षेत्र के भाजपा सांसद आदित्य नाथ योगी उत्तर प्रदेश के पूर्वी जि़लों में किस प्रकार की सांप्रदायिक राजनीति कर पार्टी को लाभ पहुंचाने की कोशिशों मे लगे हुए हैं यह भी सभी देख रहे हैं। माया कोडनानी व अमित शाह जैसे अल्पसंख्यक विरोधी नेताओं को भाजपा द्वारा किस प्रकार पुरस्कृत किया जाता है यह किसी से छुपा नहीं है। गोया जो अल्पसंख्यकों का जितना बड़ा दुश्मन वह भाजपा का उतना ही बड़ा दोस्त? और उस पर तुर्रा इस बात का कि हम हैं राजधर्म का पालन करने वाले तथा हम ही हैं धर्मनिरपेक्षता के वास्तविक प्रहरी। और शेष सभी दल वोट बैंक की राजनीति करने वाले? ऐसा नहीं लगता कि भारतीय जनता पार्टी के अतिरिक्त देश का कोई दूसरा राजनैतिक दल इस प्रकार के दोहरे मापदंड अपनाता है। यानी सार्वजनिक एजेंडा कुछ और गुप्त एजेंडा कुछ और। देश में सामुदायिक आधार पर बातें कुछ तो अदालतों में हलफनामे कुछ और। देश व संविधान की रक्षा हेतु दिखावे की शपथ परंतु अपने गुप्त कट्टरपंथी हिंदुत्ववादी एजेंडे पर अमल करना उनका असली मकसद?निश्चित रूप से सुब्रमण्यम स्वामी को भाजपा में शामिल किए जाने की ताज़ातरीन घटना भी भाजपा के अल्पसंख्यक विरोधी होने तथा दोहरे राजनैतिक मापदंड अपनाए जाने का जीवंत उदाहरण है।

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Nirmal Rani**निर्मल रानी

कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर निर्मल रानी गत 15 वर्षों से देश के विभिन्न समाचारपत्रों, पत्रिकाओं व न्यूज़ वेबसाइट्स में सक्रिय रूप से स्तंभकार के रूप में लेखन कर रही हैं.

Nirmal Rani (Writer )
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*Disclaimer : The views expressed by the author in this feature are entirely her own and do not necessarily reflect the views of INVC.

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