सुधेश की पांच कविताएँ
1. छाया
ज्यों ज्यों सूर्य चढ़ता
गगन के विस्तार में
वृक्ष छायाएँ
सिकुड़ती जा रही हैं
मध्याह्न में
लम्बे से लम्बे पेड़ की छाया
बौनी हुई
जैसे ज्ञान के आलोक में
मानव का अहम्
लुप्त होता ।
2. मन का ख़ालीपन
पेट भर जाता है
मासिक वेतन दोस्त की मदद
महाजन के उधार से
पर पेट आख़िरी सत्य नहीं
शरीर में मन बुद्धि आत्मा भी है ।
बुद्धि लीन है अहंकार में
आत्मा अपने परमात्मा में
मन का ख़ालीपन कौन भरे
वह भरता है प्यार से ।
3. मौसमों का क्रम ओर मानव
गर्मी बहुत है
पर प्यार की गर्मी नहीं है
रिश्ते सारे विश्व से हैं
उन की डोर में अपने नहीं क्यों
रिश्ते मात्र औपचारिक हुए ।
समय के चक़ में
बरसात भी आई झमाझम
उस के साथ अश्रु वर्षा
आपदा की बाढ़ भी
मन की किश्तियों को
बहा ले जाएगी अतल में ।
धरती खिसक कर
सूर्य से कुछ दूर होती
सर्दी शुरु हुई
वक़्त पर कभी बेवक्त
हड्डियों को कँपाती
तब गर्मी याद आई
बिछुड़ी प़ेमिका सी ।
ग्रीष्म वर्षा शरद के बाद
शिशिर का क्रम
न जाने कब से चला
कब तक चलेगा ।
प्रकृति के मंच का
पात्र है मानव
हंसेगा कभी रोयेगा
जगत नाटक कब तक चलेगा
शायद समय के अन्त तक ।
4. अमृत से अजीर्णता
जिन्हें भोजन के लाले
ग़रीबी ने पाले
वे खाते मोटा अनाज
पीते गन्दा पानी
आँसुओं का सैलाब झेलते
पसीने की नदी तैर कर
भँवरों में फँस कर भी
सुरक्षित बाहर आते हैं ।
जिन के पेट भरे
गालों पर चर्बी
हाथों पर मछलियाँ नाचती
निशि दिन अमृत पी
अजीर्णता से मरते हैं ।
5. मेरे बाद
मेरे बाद
मेरी पाण्डुलिपियाँ
अविवाहित बेटियों सी
घर में रहेंगी पड़ी
मेरी पुस्तकों पत्रिकाओं को
मिलेगा ंघरनिकाला
दोस्तों की चिट्ठियों को
अग्निपरीक्षा देन,ी होगी
या किसी मनहूस दिन
कोई कबाड़ी काँटे पर चढ़ा उन को
फाँसी लगा देगा
ंंउन की लाश को सजा देगा
दरियागंज के फुटपाथ पर
जहाँ कवि पुंंगवों अमर कथाकारों
तानाशाह नेताओं रंगीन अभिनेताओं
की नुमाइश में
किसी कोने पर पड़ा मैं प्रतीक्षा करूँगा
किसी नटखट की
जो ओने पौने दाम में मुझे ख़रीदे
पढ़े फाड़े उस की मर्जी
या फिर सौंप दे चाट वाले को
चटोंरों की चटोरी के लिए ।
सुधेश
शिक्षक ,लेखक , कवि व् आलोचक
जवाहरलाल नेहरू वि वि में २३ वर्षों तकअध्यापन प़ोफेसर पद से सेवानिवृत्त
शिक्षा देवबन्द, मुज़फ़्फ़रनगर , देहरादून में पाई । एम ए हिन्दी में ( नागपुर वि वि ) पीएच डी आगरा विवि से ।
उ प़ के तीन कॉलेजों में अध्यापन के बाद दिल्ली के जवाहरलाल नेहरू वि वि में २३ वर्षों तकअध्यापन । । तीन बार विदेंश यात्राएँ । अब स्वतन्त्र लेखन ।सम्पर्क:
डा सुधेश
314 सरल अपार्टमैन्ट्स , द्वारिका , सैक्टर 10 . दिल्ली 110075
फ़ोन नम्बर – : 09350974120 – email- : dr.sudhesh@gmail.com
अब तक 29 पुस्तके प़काशित
पुस्तकें व् काव्य कृतियाँ
१ फिर सुबह होगी ही ( राज पब्लिशिंग हाउस ,पुराना सीलमपुर ,दिल्ली ) १९८३
२ घटनाहीनता के विरुद्ध ( साहित्य संगम , विद्याविहार , पीतमपुरा ,दिल्ली ) १९८८ ,
३ तेज़ धूप ( साहित्य संगम , दिल्ली ) सन १९९३
४ जिये गये शब्द ( अनुभव प़काशन , साहिबाबाद़ ,ग़ाज़ियाबाद ) सन १९९९
५ गीतायन ( गीत और ग़ज़लें ) कवि सभा,विश्वास नगर , शाहदरा ,दिल्ली – २००१
६ बरगद ( खण्डकाव्य ) प़खर प़काशन ,नवीनशाहदरा ,दिल्ली – २००१
७ निर्वासन ( खण्ड काव्य ) साहित्य संगम , पीतमपुरा , दिल्ली – सन २००५
८जलती शाम (काव्यसंग़ह) अनुभव प़काशन , साहिबाबाद़, ग़ाज़ियाबाद-२००७
९ सप्तपदी , खण्ड ७(दोहा संग़ह ) ंअयन प़काशन , महरौली ,दिल्ली सन २००७
१०हादसों के समुन्दर ( ग़ज़लसंग़ह ) पराग बुक्स , ग़ाज़ियाबाद – सन २०१०
११ तपती चाँदनी ( काव्यसंग़ह ) अनुभव प़काशन , साहिबाबाद़ – २०१३
आलोचनात्मक पुस्तकें
१ आधुनिक हिन्दी और उर्दू कविता की प़वृत्तियां ,राज पब्लिशिंग हाउस ,पुराना
सीलम पुर दिल्ली सन १९७४
२ साहित्य के विविध आयाम -शारदा प़काशन ,दिल्ली १९८३
३ कविता का सृजन और मूल्याँकन – साहित्य संगम, पीतमपुरा ,दिल्ली १९९३
४ साहित्य चिन्तन – साहित्य संगम , दिल्ली १९९५
५ सहज कविता ,स्वरूप और सम्भावनाएँ – साहित्य संग़म ,दिल्ली १९९६
६ भाषा ,साहित्य और संस्कृति – स्रार्थक प़काशन ,दिल्ली २००३
७ राष़्ट्रीय एकता के सोपान – इण्डियन पब्लिशर्स,क़मला नगर ,दिल्ली २००४
८ सहज कविता की भूमिका – अनुभव प़काशन ,ग़ाज़ियाबाद २००८
९ चिन्तन अनुचिन्तन – यश पब्लिकेंशन्स, दिल्ली २०१२
१० हिन्दी की दशा और दिशा -जनवाणी प़काशन , दिल्ली २०१३
विविध प़काशन
तीन यात्रा वृत्तान्त ,दो संस्मरण संग़ह,एक उपन्यास,एक व्यंग्यसंग़ह ,
एक आत्मकथा प़काशित । कुल २९ पुस्तकें प़काशित ।
पुरस्कार व् सम्मान
मध्यप़देश साहित्य अकादमी का भारतीय कविता पुरस्कार २००६
भारत सरकार के सूचना प़सारण मंत्रालय का भारतेन्दु हरिश्चन्द़ पुरस्कार २०००
लखनऊ के राष्ट़़धर्म प़काशन का राष्ट़़धर्म गौरव सम्मान २००४
आगरा की नागरी प़चारिणी सभा द्वारा सार्वजनिक अभिनन्दन २००४
सर ,शानदार कविताएँ ,अब आपको पढ़ने का नया पता मिल गया हैं ! किसी एक कविता की तारीफ़ मुश्किल हैं !
सब कविता प्रेमियों का आभारी हू जिन्होंने मेरी कविताओं को पसन्द किया ।
शानदार ,बहुत ही उम्दा कविताएँ ,किसी एक की तारीफ़ बेमानी सा होगा !
आपको पढ़ना एक सुखद अहसास ,बहुत दिनों के बाद आपको मौलिक कविताएँ पढ़ने को मिली ! साभार
आपकी कविताएँ अतुल्य हैं ,आपकी कविताएँ पढ़ना सबसे सुखद अहसास ! साभार आई एन वी सी न्यूज़ को भी !
आदरणीय सर ,आपको आज आज बहुत दिनों के बाद पढ़ने को मिला ! आज भी उतना आन्दित हुआ जितना आज से 20 साल पहले ! आपकी हर कविता अपने आप में एक से बढकर एक हैं !