सुधा राजे की गज़ल

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भूख दरवाज़े के बाहर ही रही।
थे भरे गोदाम पहरे में रहे।

प्यास लंबी थी कतारों में सही।
तृप्ति के ख़य्याम बजरे में रहे।

थी कुटी में शीतल हरी हाङ तक।
कंबलों के थान कमरे में रहे।

जब सुधा तन्हाहु नर जंगल जले।
छल भरे भरे कुछ नाम गहरे में रहे।
सुधा राजे
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Sudha Raje

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