सीमा पर सेना और बाज़ार में चीनी सामग्री की घुसपैठ?

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 – तनवीर जाफरी –

china-marketभारत द्वारा चीन के साथ रिश्ते सुधारने के लिए उठाए गए अनेक कूटनीतिक कदमों के बावजूद चीन अपनी पारंपरिक विस्तारवादी नीति पर आगे बढ़ता जा रहा है। भारत-चीन व भूटान के त्रिकोणीय सीमा क्षेत्र पर स्थित सिक्किम सेक्टर के डोकलाम इलाके में पिछले जून महीने से तनाव की खबरें आ रही हैं। यहां भारतीय व चीनी सैनिक आमने-सामने हैं। यहां तक कि सीमा पर डटे भारतीय जवानों ने चीनी सैनिकों के साथ धक्का-मुक्की कर उन्हें घुसपैठ करने से रोकने का भी प्रयास किया है। इस बीच चीन ने अपने रुख को और आक्रामक करते हुए तिब्बत क्षेत्र में एक युद्धाभ्यास भी किया है जिसमें चीनी सैनिकों द्वारा होवित्ज़र तोपों,एंटी टैंक ग्रिनेड,एंटी एयरक्राफ्ट गन तथा मोर्टार जैसे सैन्य शस्त्रों का प्रयोग किए जाने का समाचार है। चीन के तेवरों से तो ऐसा ही प्रतीत हो रहा है कि वह हर हाल में सीमा पर तनाव बनाए रखना चाहता है। इसमें भी कोई शक नहीं कि भारत द्वारा भी चीन को कड़ी चुनौती दी जा रही है तथा उसे इस बात का एहसास कतई नहीं होने दिया जा रहा है कि भारत चीन द्वारा की जा रही घुसपैठ को आंख मूंद कर देखता रह जाएगा।

सीमा पर चल रहे इसी तनावपूर्ण माहौल के बीच देश के भीतर भी चीन विरोधी वातावरण बनता दिखाई दे रहा है। देश के कई प्रमुख स्थानों पर तथा विभिन्न महानगरों में चीन के विरुद्ध अपनी आवाज़ बुलंद करते हुए जहां भारतीय सेना के साथ देश की एकजुटता दर्शाने की कोशिश की जा रही है वहीं भारत जैसे विश्व के सबसे विशाल बाज़ार में चीनी सामानों के बहिष्कार की अपील भी की जा रही है। हालांकि चीन द्वारा भारत में लगभग प्रत्येक िकस्म की वस्तुओं की भारी आपूर्ति की जाती है। परंतु त्यौहारों के समय चीनी वस्तुओं से बाज़ार पूरी तरह भर जाता है। रक्षाबंधन में प्रयोग होने वाली राखियों से लेकर दीवाली में इस्तेमाल की जाने वाली रौशनी से संबंधित हज़ारों सामग्रियां तथा गिफ्ट संबंधी अनगिणत वस्तुएं जोकि भारतीय वस्तुओं की तुलना में कहीं अधिक आकर्षक व सस्ती होती हैं भारतीय बाज़ार में हमारे ही देश के डीलरों,आपूर्तिकर्ताओं,एजेंटों तथा दुकानदारों द्वारा भारतीय नागरिकों को बेची जाती हैं। संभवत: आज हमारे जीवन का कोई भी क्षेत्र ऐसा नहीं है जहां चीनी वस्तुओं ने अपनी गहरी पैठ न बना ली हो। ऐसे में सवाल यह उठता है कि जो चीन भारत के साथ सौहाद्र्रपूर्ण संबंध बनाए रखने का इच्छुक न हो तथा सीमा पर निरंतर घुसपैठ करता जा रहा हो और अपनी विस्तारवादी नीति पर दिन-प्रतिदिन आगे बढ़ता जा रहा हो, इतना ही नहीं बल्कि हमारे दूसरे पड़ोसी देश पाकिस्तान को भारत के विरुद्ध मज़बूती देने में, उसे सैन्य सहायता देने में यहां तक कि परमाणु सहयोग तक देने में पूरी दिलचस्पी रखता हो,और तो और पाकिस्तान में बैठकर भारत के विरुद्ध प्रमाणित रूप से षड्यंत्र रचने वाले कई आतंकवादी उसे आतंकवादी नहीं बल्कि अपने मित्र दिखाई देते हों ऐसे देश के साथ क्या हमें अपने बाज़ारी रिश्ते बनाए रखने चाहिएं? और इन हालात में क्या धरातल पर यह संभव है कि भारतीय बाज़ार में चीनी सामानों की बिक्री न हो और भारतीय नागरिक चीनी सामान न खरीदें?

जहां आज देश में अनेक नगरों व महानगरोंं में चीनी सामानों के बहिष्कार के पक्ष में विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं वहीं देश के प्रबुद्ध नागरिकों द्वारा यह सवाल भी पूछा जा रहा है कि आिखर चीन की वस्तुएं भारतीय बाज़ार में किन हालात में अपना प्रभाव जमा चुकी है? क्योंकर भारतीय व्यापारी प्रतिदिन हवाई जहाज़ में भरकर शंघाई,बीजिंग, चांगशा तथा ग्वांगज़ू जैसे शहरों की यात्रा कर रहे हैं और वहां से प्रतिदिन हज़ारों टन चीनी माल भारतीय बंदरगाहों पर उतारा जा रहा है? ज़ाहिर है किसी व्यवसायी तथा उपभोक्ता का क्रय-विक्रय का मापदंड प्राय: यही होता है कि बाज़ार में ऐसी चीज़ें बेची जाएं जो देखने में आकर्षक हों,उसकी कीमत तुलनात्मक दृष्टि से कम हो और बाज़ार में उसकी शीघ्र खपत हो। ग्राहक का नज़रिया भी यही होता है। वह सस्ती व आकर्षक वस्तु खरीदना चाहता है? टिकाऊ व मज़बूत चीज़ों की खरीद-फरोख्त का ज़माना भी अब कहीं पीछे छूट गया है। ज़ाहिर है चीनी उत्पाद ने हमारे देश में इसी वाणिजिक थ्यौरी के लिहाज़ से ही अपनी जगह बनाई है। ऐसे में सबसे महत्वपूर्ण प्रश्र यह है कि आिखर क्या वजह है कि भारतीय उत्पादनकर्ता,हमारे डीलर, एजेंट व दुकानदार ग्राहकों को चीन जैसी आकर्षक व साफ-सुथरी कोई भी सामग्री उतने ही मूल्य में क्योंकर उपलब्ध नहीं करा पाते? याद कीजिए दीवाली के वह बीते हुए दिन जबकि अपने घरों को सजाने के लिए किसी बिजली के दुकानदार से सैकड़ों रुपये खर्च कर किराए पर बिजली की झालर लगवानी पड़ती थी और दुकानदार एक रात के लिए बिजली की रौशनी करने के सैकड़ों रुपये वसूल कर लिया करता था। आज चीनी विद्युत प्रकाश ने पूरे भारत को कितना जगमग कर दिया है यह बताने की ज़रूरत ही नहीं है। देश की संसद से लेकर सभी मंदिर-मस्जिद,गुरुद्वारे तथा बड़े से बड़े राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय आयोजन चीनी सामग्री विशेषकर वहां की रंग-बिरंगी रौशनी से अछूते नहीं हैं।

क्या राष्ट्रवाद की दुहाई देने वाली हमारे देश की सरकार,यहां की राष्ट्रवादी जनता विशेषकर उद्योगपति,आपूर्तिकर्ता देश में ऐसा वातावरण बना सकते हैं कि हम स्वयं अपने ही देश में  चीन से भी अच्छे व सस्ते सामान उत्पादित कर सकें जो भारतीय बाज़ार में चीनी सामानों का स्थान ले सकें? इस निष्कर्ष पर पहुंचने के लिए हमें भारत व चीन के शासन व प्रशासन के तौर-तरीकों,उनके तथा वहां की जनता के राष्ट्र के प्रति सोच-विचार,उनकी राष्ट्रवादिता की वास्तविकता तथा हमारी राष्ट्रवादिता के ढोंग जैसे बुनियादी अंतरों का समझना ज़रूरी है। हमें यह भी समझना होगा कि आिखर किन कारणों से तथा किन नीतियों पर चलते हुए चीन से भारत आया हुआ सामान भारी माल भाड़े के चुकता करने के बावजूद हमें भारतीय सामानों की तुलना में काफी सस्ता मिलता है? हमें ऐसी नीतियों में चीन की नकल करने की ज़रूरत है या उससे प्रतिस्पर्धा करने की आवश्यकता है जो चीन को दिन-प्रतिदिन मज़बूत बनाती जा रही हैं। ज़ाहिर है रिश्वतखोरी,भ्रष्टाचार,झूठा व खोखला राष्ट्रवाद,कम समय में अधिक से अधिक धन कमाने की लालसा जैसे कई कारण हैं जो हमें नुकसान पहुंचा रहे हैं। और जब कभी हम चीन में कमियां निकालने या उसकी आलोचना करने के लिए अपना मुंह खोलते हैं तो हमें केवल यही दिखाई देता है कि वे कम्युनिस्ट लोग हैं, वे कुत्ता-बिल्ली का भक्षण करने वाले लोग हैं,वे पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने वाले लोग हैं आदि। जबकि इन बातों का किसी भी देश की अर्थव्यवस्था, उसकी बाहरी नीतियों,उसकी औद्योगिक व व्यवसायिक नीतियों यहां तक की उसके राष्ट्रवाद से भी इसका कोई लेना-देना नहीं होता। दुर्भाग्यवश यह हमारे ही देश की एक सबसे बड़ी त्रासदी है कि हम इस विषय पर तो शासन-प्रशासन,नीतियों तथा नागरिक स्तर पर एकमत तो नहीं हो पाते कि हम चीन जैसी सामग्रियों का उत्पादन भारत में कैसे शुरु करें ताकि चीनी सामग्री का बहिष्कार कर पाना संभव हो सके। परंतु हम गाय के नाम पर सामाजिक धु्रवीकरण का प्रयास ज़रूर करने लगते हैं। हम शक्ल-सूरत व धार्मिक पहचान के नाम पर एक-दूसरे के दुश्मन ज़रूर बन जाते हैं। भ्रष्टाचार,स्वार्थ,सत्ता मोह, मुफ्तखोरी,लालच,एक-दूसरे को नीचा दिखाना व ज़लील करना हमारी िफतरत में शामिल हो चुका है। ऐसे में यह कहां तक संभव है कि सीमा पर युद्ध उन्मादी वातावरण के मध्य हम देश में चीनी वस्तुओं का बहिष्कार कर सकें ?

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Tanveer-JafariAbout the Author

Tanveer Jafri

Columnist and Author

Tanveer Jafri, Former Member of Haryana Sahitya Academy (Shasi Parishad),is a writer & columnist based in Haryana, India.He is related with hundreds of most popular daily news papers, magazines & portals in India and abroad. Jafri, Almost writes in the field of communal harmony, world peace, anti communalism, anti terrorism, national integration, national & international politics etc.

He is a devoted social activist for world peace, unity, integrity & global brotherhood. Thousands articles of the author have been published in different newspapers, websites & news-portals throughout the world. He is also recipient of so many awards in the field of Communal Harmony & other social activities.

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Email – tjafri1@gmail.com –  Mob.- 098962-19228 & 094668-09228 , Address – Jaf Cottage – 1885/2, Ranjit Nagar,  Ambala City(Haryana)  Pin. 134003

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