सीएसआर के मूल्यांकन का हब बन सकता है गोबिन्द बल्लभ पंत संस्थान

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imagesप्रवीण राय,
आई एन वी सी ,
इलाबाद,,
 गोबिन्द बल्लभ पंत सामाजिक विज्ञान संस्थान में इन दिनों डोनर्स,आकदमिक जगत और सिविल सोसाइटी के साथ संस्थान के ग्रामीण छात्रों के बीच  संवाद  का आयोजन किया गया। इस संवाद कार्यक्रम में शोध छात्रों ग्रामीण् ा प्रबंधन के छात्रों ने अपने विचारों का आदान-प्रदान किया।
प्रथम सत्र
 इस कार्यक्रम के प्रथम सत्र में पीएचडी चैम्बर्स आफ कामर्स के सचिव जतिंदर सिंह ने कहा कि पंत संस्थान की बौद्धिका क्षमता का उपयोग समाज के बंचित बर्ग के लिए किया जा सकता है।यह कार्य संस्थान द्वारा किये जाने वाले कार्यों में सबसे महत्पूर्ण होगा। भारत व इंडिया के बीच की खाई को पाटने के लिए कार्पोरेट सोशल रिस्पांसिबिलिटी को रणनीतिक और प्रभावकारी तरीके से लागू करना होगा। भारत सरकार के लोक उपक्रम विभाग के उमेश डोंगरे ने स्पष्ट किया कि सीएसआर कोई दान या चैरिटी नहीं है बल्कि यह कंपनी की जिम्मेदारी है। इसकी आवश्यकता किसे है यह बताने में यहां के छात्र व संस्था मदद कर सकते हैं। देश में सीएसआर के मूल्यांकन के लिए अभी तक केवल टीआईएसएस ही मान्य संस्थान था, अब ऐसा नहीं है। पंत संस्थान भी सीएसआर के मूल्यांकन का बड़ा केन्द्र बन सकता है। संस्थान में 2 दिसंबर को अकादमिक सत्र का प्रारंभ केएन भट्ट ने किया। उन्होंने पर्यावरण की धारणीयता को कारपोरेट सोशल रेस्पांसिबिलिटी से जोड़ते हुए बताया कि इसके तीन पक्ष  हैं जिसमें सामाजिक विकास, अर्थव्यस्था व पर्यावरण का बचाव है। प्रकृति के संसाधनों को नुकसान पहुंचाने वालों में मानव जाति ही महत्वपूर्ण है जिसने अपनी अतृप्त भौतिक अवस्थाओं को पूरा करने के लिए इसका जमकर दोहन किया है। सीएसआर गांधीवादी विचारधारा व धारणीय विकास दो महत्वपूर्ण बातों को आत्मसात करता है। हम सभी जानते हैं कि पंचमहाभूतों से सृष्टि की उत्तपत्ति हुई है लेकिन मनुष्य के दोहन के कारण संसार के पंचतत्व प्रभावित हुए हैं और इसी का परिणाम है कि पर्यावरण की समस्या हमारे लिए विकराल बनती जा रही है। सच्चिदानंद भारती के साथ बिताए गये अपने अनुभवों को बताते हुए प्रो. भट्ट ने कहा कि भारतीके प्रयासों से ही उत्तराखण्ड में जल की उपलब्धता सुनिश्चित की गयी और धारणीय विकास संभव हो पाया।
द्वितीय सत्र
द्वितीय सत्र में टीएचडीसी के एसी जोशी ने प्रजेन्टेशन के माध्यम से समझाया कि कैसे सीएसआर के बारे में जनता में विश्वास पैदा किया गया। उन्होंने टीएचडीसी कारपोरेशन द्वारा टिहरी में किए गये धारणीय विकास के माडल के बारे में विस्तार से चर्चा की। उन्होंने यह भी बताया कि टिहरी बांध के कारण हुए बिस्थापन तथा पुनर्वास के मुद्दों का समाधान वहां पर कृषि, रोजगार, जल, जंगल व जमीन जैसे संसाधनों का  विकास करके किया गया। इसी मुद्दे पर बोलते हुए पीएचडी चैम्बर्स ऑफ कामर्स के सचिव जतिंदर सिंह ने बताया कि सीएसआर को मिलेनियम डेवेलपमेंट गोल से जोड़कर माडल की प्रभावकारिता किस प्रकार बढ़ाई जा सकती है और डीबीटी इसके लिए अच्छा कदम है। सीएसी आर का जोर सोशल बिजनेस माडल विकसित करके समावेशी बाजार का विकासकरना है।
दलितों व बंचितों के लिए काम कर रहा है संस्थानःप्रो. प्रदीप भार्गव
कार्यक्रम में बोलते हुए संस्थान के निदेशक प्रो. प्रदीप भार्गव ने कहा कि हम जनजातियों से लेकर दलितों के सामुदायिक अधिकारों पर काम कर रहे हैं। समाज के सबसे बंचित और  हाशिये पर रखे जाने वाले वर्ग के बारे में एक ज्ञान कोष बनाने के साथ-साथ हम हस्तक्षेप भी कर रहे हैं। स्थानीय रूप में, स्थानीय तौर पर वैश्विक परिदृश्य में काम कर रहे हैं। वहीं एमबीए ग्रामीण विकास के छात्र गांवों में जाकर छोटे-छोटे बेसलाइन सर्वेक्षण और हस्तक्षेप कर रहे हैं जैसे तालाबों पर अवैध कब्जे की पहचान, विकलांगों को प्रमाणपत्र दिलाना या ग्रामीण स्वास्थ्य कमेटी को गतिशील करना आदि। हमारे छात्रों द्वारा किये जाने वाले ये छोटे-छोटे कार्य समाज के बंचितों को समाज की धारा से जोड़ने की दिशा में बड़े साबित होंगे।

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