‘सांस्कृतिक राष्ट्रवादी’ बंगारू लक्ष्मण ने बनाया कीर्तिमान**

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तनवीर जाफरी**,,

हमारे देश के तमाम ‘रहबरों’ का भ्रष्टाचार, रिश्वतखोरी तथा अन्य छोटे-बड़े अपराधों में जेल जाना कोई नई बात नहीं है। भारतवर्ष में जहां अनेक केंद्रीय मंत्री,मुख्यमंत्री, केंद्र व राज्य सरकार के मंत्री, सांसद, विधायक तथा तमाम बड़े-छोटे अधिकारी जेल जाते रहे हैं। वहीं लालू प्रसाद यादव, जयललिता, करुणानिधि तथा शिब्बू सोरेन जैसे नेता भी भ्रष्टाचार अथवा अन्य गंभीर अपराधों में जेल की हवा खा चुके हैं। यह सभी नेता भी इत्तेफाक से अपने-अपने क्षेत्रीय राजनैतिक दलों के प्रमुख हैं। परंतु देश का कोई भी राष्ट्रीय राजनैतिक दल ऐसा नहीं था जिसके किसी प्रमुख अथवा अध्यक्ष के मुंह पर रिश्वतखोरी या भ्रष्टाचार की ऐसी कालिख लगी हो जिससे कि उसे जेल जाना पड़ा। निश्चित रूप से यह कहा जा सकता है कि इस दृष्टिकोण से स्वयंभू ‘सांस्कृतिक राष्ट्रवादी’ पार्टी अर्थात भारतीय जनता पार्टी के पूर्व अध्यक्ष बंगारू लक्ष्मण ने रिश्वतखोरी के आरोप में जेल जाकर एक कीर्तिमान स्थापित किया है।

गौरतलब है कि सन् 2001 में भारतीय जनता पार्टी के तत्कालीन राष्ट्रीय अध्यक्ष बंगारू लक्ष्मण को गुप्त कैमरे के माध्यम से किए गए एक स्टिंग आप्रेशन के दौरान एक लाख रुपये की रिश्वत लेते दिखाया गया था। ‘सांस्कृतिक राष्ट्रवादी’ भाजपा के इस 72 वर्षीय नेता ने उस समय एक न$कली हथियार डीलर से इस वादे के तहत एक लाख रुपये की रिश्वत स्वीकार की थी कि वह भारतीय थल सेना को थर्मल वाईनाकुलर(दूरबीन)की आपूर्ति हेतु उसे ठेका दिए जाने में रक्षामंत्रालय से सि$फारिश करेंगे। इस स्टिंग आप्रेशन के पश्चात विभिन्न टीवी चैनल्स पर सांस्कृतिक राष्ट्रवादी दल के इस अध्यक्ष की वास्तविकता पूरे देश ने देखी। उस समय बंगारू लक्ष्बण को न सिर्फ अध्यक्ष पद छोडऩा पड़ा था बल्कि वे राजनीति के पटल से भी अदृश्य हो गए थे। दिल्ली के अतिरिक्त सत्र न्यायधीश की अदालत ने ग्यारह वर्षों बाद इस मामले पर अपना निर्णय सुनाते हुए बंगारू लक्ष्मण को रिश्वत लेने का दोषी करार देते हुए यह कहा है कि-‘सीबीआई यह साबित कर पाने में सफल रही है कि बंगारू लक्ष्मण ने एक लाख रुपये की रिश्वत ली थी’। अदालत ने यह भी कहा कि भ्रष्टाचार पर हमारा अपना रवैया ही जुर्म का साथी है। माननीय अदालत ने अपने फैसले में सचेत किया कि ‘सब चलता है’ की सोच मौजूदा हालात की जि़म्मेदार है। बंगारू लक्ष्मण को अदालत ने चार वर्ष की कैद तथा एक लाख रुपये का जुर्माना अदा करने की सज़ा सुनाने के साथ ही तिहाड़ जेल भी भेज दिया। गोया बंगारू लक्ष्मण देश की किसी राष्ट्रीय राजनैतिक पार्टी के ऐसे पहले अध्यक्ष होने का रिकॉर्ड बना पाने में सफल रहे जोकि रिश्वत$खोरी जैसे अपराध में जेल भेजा गया हो।

निश्चित रूप से यह फैसला दिल्ली की अतिरिक्त सत्र न्यायालय का फैसला है तथा बंगारू लक्ष्मण ऊपरी अदालतों में इस फैसले को चुनौती भी देंगे। परंतु फिलहाल स्वयं को सांस्कृतिक राष्ट्रवादी, महान राष्ट्रभक्त व भारतीय प्राचीन संस्कृति व सभ्यता की प्रहरी बताने वाली भाजपा को बहुत गहरा झटका लगा है। बंगारू लक्ष्मण के मुंह पर लगी रिश्वतखोरी की इस कालिख के धब्बे से पार्टी ने स्वयं को बचाए रखने के लिए इस कांड के उजागर होने के समय भी बंगारू लक्ष्मण को ग्यारह वर्ष पूर्व उनके पद से हटा दिया था। और इस निर्णय के आने के बाद अर्थातॅ बंगारू लक्ष्मण पर लगा रिश्वतखोरी का आरोप तय होने के पश्चात भाजपा ने इस विषय से स्वयं का बचाने का प्रयास करते हुए यह कहा है कि यह प्रकरण बंगारू लक्ष्मण का व्यक्तिगत मामला है। जबकि इस निर्णय के आने से एक दिन पहले तक यही भाजपा बोफोर्स मुद्दे को लेकर कांग्रेस पार्टी को घेरने का ज़बरदस्त प्रयास करती दिखाई दे रही थी। परंतु बंगारू लक्ष्मण के विरुद्ध अदालती $फैसला आने व उन्हें सज़ा सुृनाए जाने के बाद भाजपा के आक्रमण की तलवार की धार कुंद हो गई है।

राजनेताओं में अनैतिकता के बढ़ते चलन को देखकर ही देश के आम आदमी का देश की राजनैतिक व्यवस्था विशेषकर राजनैतिक दलों तथा इसके नेताओं पर से विश्वास समाप्त होने लगा है। इस समय शायद देश का कोई भी ऐसा राजनैतिक दल नहीं है जिसके किसी न किसी नेता पर भ्रष्टाचार रिश्वतखोरी अथवा किसी अन्य अपराध का कोई न कोई आरोप न लगा हो। ज़ाहिर है चूंकि कांग्रेस पार्टी देश की सबसे पुरानी, सबसे बड़ी व सबसे लंबे समय तक देश पर शासन करने वाली पार्टी रही है इसलिए संभव है कि अनैतिक आचरण वाले नेताओं की संख्या कांग्रेस पार्टी में कुछ ज़्यादा ही हो। परंतु जब-जब भारतीय जनता पार्टी के किसी जि़म्मेदार व बड़े नेता पर अनैतिक आचरण का आरोप लगता है उस समय यह ज़रूर सोचना पड़ता है कि आखिर स्वयं को देश का एकमात्र सांस्कृतिक राष्ट्रवादी राजनैतिक दल बताने वाली पार्टी के इन नेताओं का आचरण ऐसा क्यों है? राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ जोकि अपने विशेष संस्कारों का प्रशिक्षण देकर अपने स्वयं सेवकों को भाजपा में भेजता रहता है तथा किस व्यक्ति को पार्टी का प्रत्याशी बनाना है तथा किसे मंत्री, मुख्यमंत्री तथा पार्टी का राज्यस्तरीय या राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाना है यह सब तय करता है व साथ-साथ भाजपा को भी नियंत्रित व निर्देशित करता रहता है उस संघ के यही ‘संस्कारी’ लोग आखिर आगे चलकर या अवसर मिलने पर अथवा सत्ताशक्ति हाथ में आने पर रिश्वतखोर, भ्रष्ट या अनैतिक आचरण का शिकार क्यों हो जाते हैं?

बंगारू लक्ष्मण ही नहीं भाजपा के एक और केंद्रीय मंत्री रहे दिलीप सिंह जूदेव को भी पूरे देश ने इस प्रकरण में अपने हाथों में रिश्वत की र$कम लेते सरेआम टेलीविज़न चैनल्स पर देखा था। येदिउरप्पा व रमेश पोखरियाल निशंक जैसे मुख्यमंत्रियों का भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरने के बाद उन्हें पद से हटाया जाना भी पूरा देश देख चुका है। भारत माता और धरती माता की बात करने वाली भारतीय जनता पार्टी के ही बेल्लारी के रेड्डी बंधु धरती माता का कितना अवैध खनन कर चुके हैं व करते रहे हैं और आज भी इन्हीं आरोपों में जेल में भी हैं यह भी सारा देश देख रहा है। मध्य प्रदेश,छत्तीसगढ़, कर्नाटक व उत्तराखंड राज्यों के इस प्रकार के और भी कई उदाहरण हैं जो भाजपा के ‘सांस्कृतिक राष्ट्रवाद’ की क़लई खोलते हैं। नोट के बदले संसद में प्रश्र पूछे जाने को लेकर भी सबसे अधिक सांसद इसी ‘सांस्कृतिक राष्ट्रवादी’ पार्टी भाजपा के ही देखे गए हैं। संसद में नोटों के बंडल लाए जाने के प्रकरण में भी भाजपा के ही सुधीर कुलकर्णी जेल की हवा खा चुके हैं। ऐसे और भी कई उदाहरण हैं जिनसे भाजपा का वास्तविक चेहरा उजागर होता है। यानी अपने स्वयंसेवकों, नेताओं व कैडर्स को शिष्टाचार, नैतिकता, राष्ट्रवाद व सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की घुट्टी पिलाने का दावा करने वाली भाजपा का वह रूप नज़र आता है जोकि अन्य राजनैतिक दलों अथवा भ्रष्ट नेताओं से अलग तो क्या बल्कि इनसे भी अधिक भयावह व बदनुमा प्रतीत होता है। यहां मैं भाजपा पर लगने वाले सांप्रदायिकता या गुजरात के सामूहिक नरसंहार अथवा बाबरी मसिजद विध्वंस जैसे आरोपों की बात कतई नहीं करना चाहूंगा।

सवाल यह है कि रिश्वतखोरी व भ्रष्टाचार के दलदल में स्वयं आकंठ डूबी भाजपा फिर आखिर स्वयं को सबसे अलग दिखाने तथा अपनी पार्टी को ‘पार्टी विद ए डिफरेंस’ बताने का ढोंगपूर्ण प्रयास बार-बार क्यों करती रहती है? ज़ाहिर है यह सबकुछ भारतीय राजनीति के उस बदकिस्मत तौर-तरीकों का ही परिणाम है जिसके तहत लगभग सभी राजनैतिक दल अपने प्रतिद्वंद्वी, विरोधी अथवा अपने मुख्य विपक्षी दलों व उनके नेताओं को मौ$का पाते ही बदनाम, अपमानित,दोषी, अपराधी या अनैतिक प्रमाणित करने की पूरी कोशिश करते हैं। और अपने प्रतिद्वन्द्वी दल या नेता को अपमानित, बदनाम या आरोपी साबित करना ही ऐसे दलों के लिए फायदे का सौदा साबित होता है क्योंकि आम मतदाता किसी नेता या राजनैतिक दल पर लगने वाले आरोपों से दु:खी होकर आरोप लगाने वालों के पक्ष में अपना मतदान कर बैठता है। और दशकों से देश के राजनैतिक दलों की यही एक सधी हुई पारंपरिक रणनीति चली आ रही है। अब यदि ऐसे में किसी राजनैतिक दल में सांस्कृतिक राष्ट्रवाद, धार्मिकता, सांप्रदायिकता, देश की प्राचीन संस्कृति के अलमबरदार व सबसे अधिक संस्कारवादी होने जैसा ‘तडक़ा’लगा दिया जाए फिर तो इससे सोने में सुहागा हो जाता है। जैसाकि भाजपा अपने लिए करती रही है। भाजपा की ऐसी ही एक वह चाल भी थी जबकि बैठे-बिठाए पार्टी नेताओं को 2004 के लोकसभा चुनावों से पूर्व अचानक इंडिया शाईनिंग होता हुआ दिखाई देने लगा था। मगर देश के मतदाताओं को वह इंडिया शाईनिंग नज़र नहीं आया। लिहाज़ा कहा जा सकता है कि बंगारू लक्ष्मण जैसे किसी पार्टी के पहले अध्यक्ष द्वारा जेल जाने जैसा कीर्तिमान स्थापित करने के बाद एक बार फिर भाजपा के वास्तविक संस्कार उजागर हो गए हैं ।

**Tanveer Jafri ( columnist),(About the Author) Author  Tanveer Jafri, Former Member of Haryana Sahitya Academy (Shasi Parishad),is a writer & columnist based in Haryana, India.He is related with hundreds of most popular daily news papers, magazines & portals in India and abroad. Jafri, Almost  writes in the field of communal harmony, world peace, anti communalism, anti terrorism, national integration, national & international politics etc.He is a devoted social activist for world peace, unity, integrity & global brotherhood. Thousands articles of the author have been published in different newspapers, websites & news-portals throughout the world. He is also a recipient of so many awards in the field of Communal Harmony & other social activities.
(Email : tanveerjafriamb@gmail.com)

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*Disclaimer: The views expressed by the author in this feature are entirely his own and do not necessarily reflect the views of INVC

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