सांप्रदायिक सौहाद्र्र का संदेश देता बराड़ा महोत्सव

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  { निर्मल रानी }    इन दिनों कट्टरपंथी हिंदुत्ववादी सोच रखने वाले सांप्रदायिक नेताओं द्वारा अल्पसंख्यक समुदाय के विरुद्ध तरह-तरह की साजि़शें रची जा रही हैं। लव जेहाद ऐसी ही एक सुनियोजित साजि़श का नाम है। हालाकि उत्तरप्रदेश में पिछले दिनों हुए उपचुनावों के परिणामों ने यह साबित कर दिया है कि समाज को गुमराह कर धर्म के नाम पर बांटने की किसी भी साजि़श को अब और सहन नहीं किया जाएगा। परंतु सांप्रदायिकता व नफरत के ‘व्यापारी’ अपने कट्टरपंथी एजेंडे से अपने कदम पीछे हटाने का नाम ही नहीं ले रहे। बल्कि इनमें और इज़ाफा होता जा रहा है। लव जेहाद का शिगूफा यदि उत्तर प्रदेश में छोड़ा गया तो मध्य प्रदेश में इसे और आगे बढ़ाने की कोशिश की जा रही है। गरबा नामक त्यौहार जिसे हम एक सामाजिक समागम भी कह सकते हैं इसमें समाज के सभी वर्गों व समुदायों की भागीदारी होती रही है। परंतु इस बार मध्य प्रदेश भाजपाflex की एक महिला विधायक ने इस आयोजन में मुस्लिमों के शरीक होने पर रोक लगाने की कोशिश की है। मुस्लिम युवकों के विरुद्ध यह कहकर हव्वा खड़ा किया जा रहा है कि मुस्लिम युवक स्वयं को हिंदू बताकर हिंदू लड़कियों को अपने जाल में फंसाते हैं तथा उनका शोषण करते हैं। फायर ब्रांड हिंदुत्ववादी नेता प्रवीण तोगडिय़ा ने गरबा में मुस्लिमों के प्रवेश पर पाबंदी लगाने की कोशिशों का समर्थन भी किया है। क्या भारतीय समाज में ऐसे विघटनकारी प्रयास करना देश की सामाजिक एकता व समरसता के लिए शोभनीय है? यदि हम सच्चे भारतीय नागरिक हैं तो हमारी कोशिश यह होनी चाहिए कि हम सभी धर्मों व समुदाय के लोगों को इस बात के लिए प्रोत्साहित करें कि सभी धर्मों के लोग मिलजुल कर एक-दूसरे के त्यौहारों व आयोजनों में बढ-चढ़ कर हिस्सा लें।

हमारे देश में अनगिनत उदाहरण ऐसे हें जिन्हें देखकर यह विश्वास किया जा सकता है कि देश में ऐसी िफरक़ापरस्ती सोच रखने वालों की संख्या न के बराबर है। जबकि देश के अधिकांश आयोजन ऐसे होते हैं जिनमें सभी धर्मों व समुदायों के लोग शरीक होते हैं। इन दिनों देश का ऐसा ही एक आयोजन जिसे बराड़ा महोत्सव के नाम से प्रसिद्धि प्राप्त हो रही है पूरे देश व दुनिया का ध्यान अपनी ओर आकर्षित कर रहा है। देश-विदेश के अखबार,रेडियो तथा टेलीविज़न इस आयोजन की चर्चा करते रहते हैं। पांच दिवसीय बराड़ा महोत्सव हरियाणा राज्य के अंबाला जि़ले के बराड़ा कस्बे में विजयदशमी के अवसर पर आयोजित होता है। इस आयोजन का मुख्य आकर्षण विश्व का सबसे ऊंचा रावण का पुतला होता है। इस पुतले के निर्माण में कभी मोहम्मद उस्मान अपने पूरे परिवार के साथ लगे दिखाई देते हैं तो कभी मोहर्रम अली अपनी पूरी मेहनत और लगन के साथ इस विशाल पुतले के निर्माण में अपनी भागीदारी सुनिश्चित करते हैं। पांच दिनों तक चलने वाले बराड़ा महोत्सव आयोजन में गीत-संगीत के जो कार्यक्रम प्रस्तुत किए जाते हैं उनमें भी सभी धर्मों के कलाकारों को आमंत्रित किया जाता है। इस आयोजन का निमंत्रण भी कलाकार को उसकी कला के आधार पर दिया जाता है न कि उसके धर्म व जाति की पहचान के आधार पर। उदाहरण के तौर पर इस आयोजन में अब तक जहां हंसराज हंस,गुरुदास मान,शैरी मान,प्रीत हरपाल व शंकर सम्राट(जादूगार) जैसे कलाकारों ने बराड़ा महोत्सव की सफलता में अपनी शिरकत से चार चांद लगाए। अशोक चक्रधर,सुरेंद्र शर्मा तथा अरुण जेमिनी जैसे हास्य कवियों ने श्रोताओं को अपने हास्य-व्यंग्य से हंसा-हंसा कर लोटपोट किया वहीं एजाज़ हुसैन(पापुलर मेरठी)ने भी इस आयोजन में लगातार दो वर्षों तक शिरकत कर कार्यक्रम की सफलता सुनिश्चित की।

इसी प्रकार प्रसिद्ध सूफी गायक मगहर अली बराड़ा महोत्सव में दो बार लगातार शिरकत कर चुके हैं। यही नहीं बल्कि रावण के 200 फुट ऊंचे पुतले के सामने बनी विशाल स्टेज पर महिफल-ए-कव्वाली का भी आयोजन होता रहा है। गत् वर्ष उत्तर प्रदेश के मशहूर कव्वाल तसलीम आरिफ एंड पार्टी ने बराड़ा महोत्सव में अपनी कव्वालियों से शानदार समां बांधा। इन कव्वालों ने केवल कव्वाली ही नहीं बल्कि अपनी पूरी मुस्लिम संगत के साथ इन्होंने भजन भी पेश किए। मज़े की बात तो यह है कि गत् वर्ष के आयोजन का सबसे सफल आयोजन महिफल-ए-कव्वाली का ही रहा। इस वर्ष भी जहां गरबा आयोजन में मुस्लिम समुदाय के लोगों को रोकने के उपाय किए जा रहे हैं वहीं बराड़ा महोत्सव में तसलीम आरिफ कव्वाल एंड पार्टी तथा पंजाब के सूफी गायक मगहर अली को जनता की मांग पर पुन: बुलाया जा रहा है। एक अक्तूबर को मगहर अली बराड़ा महोत्सव में अपने सूफी संगीत व सूफी कलाम से श्रोताओं को मंत्रमुग्ध करेंगे तो 2 अक्तूबर यानी विजयदशमी से एक दिन पूर्व महिफल-ए-कव्वाली में एक बार फिर तसलीम आरिफ एंड पार्टी कव्वाली,भजन तथा नात आदि प्रस्तुत करेंगे। बराड़ा महोत्सव हालांकि राजपूत बाहुल्य बराड़ा क्षेत्र में आयोजित किया जाता है। परंतु इस आयोजन समिति में प्रसिद्ध स्तंभकार व लेखक तनवीर जाफरी भी श्री रामलीला क्लब बराड़ा के संयोजक के रूप में आयोजन से जुड़े हैं। श्री रामलीला क्लब बराड़ा ही बराड़ा महोत्सव का आयोजन प्रत्येक वर्ष करता है। इस क्लब को रावण के विश्व के सबसे ऊंचे पुतले के निर्माण व सर्वधर्म व सांप्रदायिक सौहाद्र्र के प्रतीक बराड़ा महोत्सव आयोजन के लिए 2011,2013,2014व 2015 के लिम्का रिकॉर्ड से सम्मानित किया जा चुका है।

केवल बराड़ा महोत्सव ही नहीं बल्कि गणेश पूजा,मोहर्रम,दीपावली,जन्माष्टमी,दूर्गा पूजा,होली तथा शिवरात्रि जैसे और भी कई ऐसे त्यौहार हैं जिनमें सभी धर्मों के लोगों की भागीदारी होती है। गणेश चुतर्थी के अवसर पर तो तमाम मुस्लिम व सिख परिवारों के लोग अपने घरों में गणपति की मूर्ति स्थापित कर सांप्रदायिक सौहाद्र्र की मिसाल पेश करते हैं। सलमान खान,शाहरुख खाऩ तथा आमिर खान जैसे िफल्मी सितारों का इन आयोजनों में भाग लेना तो टीवी व अखबारों के माध्यम से हमें पता चल जाता है। परंतु मुंबई के हज़ारों आम मुसलमान जो न केवल गणपति को अपने घरों में स्थापित करते हैं बल्कि उनका निर्माण करने से लेकर उन्हें विसर्जित करने तक के कार्यक्रम में अपने हिंदू भाईयों के साथ बराबर से शरीक होते हैं उन्हें मीडिया सुिखयों में नहीं लाता। इसी तरह मोहर्रम में देश के लाखों हिंदू व सिख भाई हज़रत इमाम हुसैन का गम मनाने में शरीक होते हैं। यह लोग अपने घरों में ताजि़यादारी करते हैं तथा मोहर्रम के दिन सबीलें लगाकर प्यासे हुसैन की याद में लोगों को शीतल जल व शरबत आदि पिलाते हैं। देश में हज़ारों हिंदू व सिख तो ऐसे भी हैं जो हज़रत इमाम हुसैन की याद में मातम व नौहाख्वानी भी करते हैं। पंजाब का मलेरकोटला शहर तो सांप्रदायिक सौहाद्र्र की एक मिसाल पेश करता है जहां दीवाली में हिंदू समुदाय के लोग अपने मुस्लिम पड़ोसियों व साथियों को आमंत्रित कर उन्हें मिठाई खिलाते हैं जबकि ईद में मुसलमान भाई अपने साथियों व पड़ोसियों को सेवईं खिलाकर उनका मुंह मीठा कराते हैं।

हम कह सकते हैं कि सांप्रदायिक सौहाद्र्र व सर्वधर्म संभाव की भावना हम भारतवासियों के ‘डीएनए’ में शामिल है। यदि ऐसा न होता तो न तो रहीम,जायसी व कबीर जैसे महान हिंदी कवि हिंदू देवी-देवताओं की स्तुति करते दिखाई देते न ही अजमेर शरीफ में ख्वाज़ा मोईनुदीन चिश्ती की दरगाह पर,दिल्ली में हज़रत निज़ामुद्दीन औलिया के आस्ताने पर तथा बाबा फरीद की चौखट पर हिंदू समुदाय के लोगों का जमावड़ा होता। आज दिल्ली से लेकर हरियाणा-पंजाब तक जहां भी किसी भी पीर-फकीर की मज़ारें हैं वहां न केवल अधिकांशत: हिंदू समुदाय के लोग अपना शीश नवाते हैं बल्कि उस स्थान की देखरेख व प्रबंधन में भी हिंदू अथवा सिख समाज के लोग ही अगुवाकार भी रहते हैं। शिरडी वाले साईं बाबा की देश में बढ़ती लोकप्रियता का कारण भी केवल यही है कि उन्होंने समाज को जोडऩे तथा प्रेम व सद्भाव के सूत्र में बांधने का प्रयास किया। आज भले ही कुछ स्वार्थी लोग उनकी बढ़ती लोकप्रियता से घबरा कर उनका विरोध करने के तरह-तरह के बहाने क्यों न ढंूढ रहे हों परंतु वास्तविकता यही है कि समाज के प्रति साईं बाबा ने जो जि़म्मेदार भूमिका निभाई तथा सद्भावना का प्रदर्शन किया उनके इसी बर्ताव ने उनके अनुयाईयों को यह सोचने का मौका ही नहीं दिया कि साईं बाबा किसी हिंदू की संतान हैं अथवा किसी मुस्लिम मां-बाप की या उनके आगे केवल किसी मुस्लिम को नतमस्तक होना चाहिए हिंदू को नहीं। निश्चित रूप से अतिवादी विचार रखने वाले लोग ही समाज को बांटने,तोडऩे व नफरत फैलाने के अपने नापाक मिशन में लगे रहते हैं। साधारण भारतीय नागरिक सदियों से सर्वधर्म संभाव सांप्रदायिक सौहाद्र्र के रास्ते पर चलने वाला था,है और भविष्य में भी रहेगा। विश्व के सबसे ऊंचे रावण की पृष्ठभूमि में आयोजित होने वाला बराड़ा महोत्सव भी सामाजिक व सांप्रदायिक सद्भाव का संदेश देने वाला ऐसा ही एक बड़ा आयोजन बन चुका है।

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निर्मल रानी
कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर निर्मल रानी गत 15 वर्षों से देश के विभिन्न समाचारपत्रों, पत्रिकाओं व न्यूज़ वेबसाइट्स में सक्रिय रूप से स्तंभकार के रूप में लेखन कर रही हैं.

 

Nirmal Rani  : 1622/11 Mahavir Nagar Ambala City134002 Haryana

 

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