सरकार की साम्प्रदायिक सोच का प्रतिक विधेयक *

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{  संजय कुमार आजाद **}
मुन्नबर राणा की एक प्रसिद्ध गज़ल है-

  अजब दुनियां है, नाषायर यहां पर सर उठाते हैं।

     जो शायर हैं वो महफिल में दरी चादर उठाते है।।

“गज़ल की यह पंक्ति हिन्दुस्तान के राजनीतिक खिलाड़ियों द्वारा बंाटा गया बहुसंख्यक और अल्पसंख्यक के मुद्दों पर बहुसंख्यकों के लिये अत्यन्त सटीक बैठता है।आज इस देष में फिरकापरस्तों और दहषतगर्दों की जमात ने बहुसंख्यकों को इसी मुकाम पर ला खड़ा किया है। पहले से ही यह देष ‘सच्चर-समिति’ रूपी खाज़ से पीड़ित था उस पर वर्तमान यु.पी.ए. सरकार की नीति कोढ़ हीं तो है। कुछ उदाहरणेंा को देखें तो स्पष्ट हो जाता है कि यह सरकार इस देष के बहुसंख्यकों को फुटीं आंख भी नही देखना चाहता है। देष के शीर्षस्थ खुफिया ऐजेन्सी के महानिदेषक का पद श्री आसिफ इब्राहिम को इनसे चार-चार वरिष्ठ अधिकारियों को नजरअंदाज कर इसलिये नही बनाया गया कि उन चारों से ए अधिक काबिल है सिर्फ इसलिये उन चारों को हतोत्साहित किया क्योंकि वे चारों के चारों बहुसंख्यक समाज के थे ? संविधान की आत्मा को तार-तार करने बाला यह कुठिंत फैसला लोकतंत्र के माथे पर कलंक है। देष के वैंको को निर्देष दिया जाना कि अपनी जमा धन राषि का 15 प्रतिषत हरहाल में अल्पसंख्यक समुदाय को ऋण के रूप में दें और कंाग्रेस के एक सुवे के अध्यक्ष का यह फतवा कि मुस्लिम समुदाय जो वैंक से ऋण लेतें हैं उसे लौटाने  की आवष्यकता नही क्योंकि वह आपके विकास के लिये है यह नादिरषाही प्रवृति का पोषक है। संविधान लागु होने के 64 साल बाद भी समानता के अधिकार को फिरकापरस्तो और दहषतगर्दो की सत्तालोलुप नेहरूवादी सरकार ने समाज में लागु होने नही दिया। वोट के लिये यह कुनवा कभी जाति कभी पंथ कभी भाषा तो कभी क्षेत्रियता का सहारा लेकर समाज में सदैव विखराव पैदा कर इस देष में साम्प्रदायिकता की आग लगाता रहा। वोट वैंक के लिये तो इस गिरोह ने बाज्वता अवैध बांग्लादेषी को भारतीय नागरिक बनाकर देष की एकता और अखंडता पर कुठाराघात किया है।

इस्लाम के नाम पर कुछ कठमुल्लों को गैरइस्लामी सुविधायों से तरवतर कर मुसलमानों को आतंक के राह पर यह सरकार उन कठमुललों के सहयोग से ठेल कर अपना उल्लु सीधा कर रही है ठीक उसी प्रकार जैसे कभी इसने पंजाव में भिण्डरावाले को बढ़ाया था ? इधर अपने जीवन की तालिवान की तरह आखिरी सांस गिनता वर्तमान केन्द्रीय सरकार एक और देष्द्रोही विधेयक लाने का कुत्सित प्रयास कर रही है। यह समाजघातक विधेयक इस देष के सुपरपॉवर श्रीमती सोनिया गांधी का पोप-प्रायोजित एजेण्डा का दूरगामी सोच है जो भारत के बहुसंख्यक समुदाय को हरहाल में अल्पसंख्यक बनाने का हथकण्डा है। कुख्यात मुगल शासको द्वारा लगाया जजिया-कानून एवं अंग्रेजो का रॉलेट एक्ट का यह आधुनिकतम रूप है। देष में लोकतंत्र और सत्ता को नियंत्रित करने बाली श्रीमती सोनिया गांधी अपने राष्ट्रीय सलाहकार परिषद् के द्वारा वर्ष-2011 में करोड़ो सरकारी रूप्ये फुंककर जिस घृणित सोच से यह जमात पीड़ित था उसी का सकार ‘‘साम्प्रदायिक और लक्ष्यित हिंसा निवारण (न्याय तक पहुंच और हानिपूर्ति) विधेयक-2011’’ के माध्यम से किया। अब संसद के शीतकालीन सत्र में संसद के पवित्र पटल पर इस अपवित्र विधेयक को यह समाजघातक रोग से पीड़ित केन्द्रीय सरकार रखने की चाल चल रही है। यह विधेयक संविधान की मूल भावना पर प्रहार कर देष की एकता और अखण्डता के लिये घातक है जिसे सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती भी दी जा सकती है। सरकार यह सब जानते हुए भी ऐसे विवादास्पद विधेयक को संसद में लाने का चाल क्यों चल रही है,? सिर्फ इसलिये कि लोकसभा चुनाव-2014 को ध्यान में रखकर कुछ जिहादी मुस्लिमों का जमात को यह दल यह समझा सके कि इस देष में मुस्लिमों का सच्चा हितैषी वही है?लोकतंत्र में हिंसा का कोई स्थान नहीं होता है। देष के किसी भी भाग में चाहे किसी भी प्रकार की शारीरिक, लैगिक, नस्लीय, भाषाई पंथीय या शासकीय हिंसा हो लोकतंत्र में वर्दाष्त नही होता है और सभ्य समाज के लिए बदनुमा दाग है।इस प्रकार के कुकृत्य करने बालों या प्रोत्साहन देने बाले का बगैर किसी भेदभाव या पूर्वाग्रह के कठोर से कठोरतम सजा मिलनी चाहिए इसमें इस देष के आम नागरिकों को किसी प्रकार का मतभेद नही है। किन्तु जिस पूर्वाग्रह से राष्ट्रीय सलाहकार परिषद् ने इस विधेयक का ढ़ांचा तैयार किया वह चिन्तनीय व निन्दनीय है। इस विधेयक का मानना है

– कि राज्य को अतिरिक्त शक्तियों को देने के लिये यह विधेयक नही है क्योंकि इन समस्याओं से निवटने के लिये राज्यों के पास पहले से हीं व्यापक और पर्याप्त शक्तियां उपलब्ध है। – साम्प्रदायिक और लक्ष्यित हिंसा मुख्य रूप से इसलिए फैलती है कि प्रभारित लोक पदधारी लोकसेवक लोग रोकने में विफल या पक्षपात पूर्ण होतें है। – आज तक जो जांच रिर्पोट आई है उसके आधार पर यह माना गया कि ऐसे वारदातों पर राज्य सरकार व नागरिक प्रषासन अगंभीर एवं पक्षपातपूर्ण रवैया अख्तियार कर लेती है।

अगर उपरोक्त विन्दुओं पर ध्यान दे ंतो इन समस्याओं के त्वरित समाधान पहले से ही भारतीय दण्ड संहिता में उपलब्ध है फिर इस अधिनियम की आवष्यकता हीं क्यों? क्या इस अधिनियम के लागु होतें ही न्यायपालिका, कार्यपालिका और व्यवस्थापिका के सारे मषीनरी अपने उतरदायित्वों के प्रति संवेदनषील होकर कार्य करने लगेगें? इस देष में कानून की नही कार्यषीलता का उसके नैतिकता का अभाव है ।भारत की प्रषासनिक क्षमता आज भी हर समस्या का निदान करने मे सक्षम है। यदि इस देष के हर तंत्र को पगंु बनाया तो वह राजनीतिक हस्तक्षेप और वोटवैंक की घृणित मानसिकता है। राजनीतिक सुधार हीं हर समस्या का समाधान है। जिस प्रकार एक सड़ी मछली तालाब में गंध के लिये काफी है उसी प्रकार एक अनैतिक व भ्रष्ट नेता लोकतंत्र को दुषित करने के लिये काफी है। इस देष के लोकतंत्र को नेहरूवादी शासन ढ़ांचा ने दीमक की चांटकर खोखला कर डाला है और रही सही कसर पूरा करने को यह काला अधिनियम पर्याप्त है?

यह समाजघातक विधेयक देष को दो समुहो में बांटता है- 1. प्रबल  और 2. अप्रबल समूह। यह दानो समूह भारत के संविधान के अनुच्छेद 15(1) जिसके अनुसार- राज्य किसी नागरिक के विरूद्ध केवल धर्म, मूल,वंष, जाति, लिंग या जन्मस्थान या इनमें से किसी एक के आधार पर विभेद नही करेगा। वहीं अनुच्छेद 21 प्राण और दैहिक स्वतंत्रता की गारन्टी देता है। ऐसे में इस विधेयक का प्रावधान संविधान के साथ भद्दा मजाक नही ंतो और क्या है। इतना ही नही यह विधेयक प्रबल समूहो के किये गये अपराध पर अलग और वही अपराध अप्रबल समूहों के द्वारा किये जाने पर अलग अलग दण्ड का प्रावधान देती है। यह सोच चंगेजी प्रवृति का सूचक है जो न्याय की परिभाषा का मजाक उड़ाती है। यह विधेयक यह मानती है कि अप्रबल समूह कभी अपराध करती ही नही है बल्कि उस क्षेत्र के प्र्रबल समूह ही अपराध करता है क्या सोच है इस अपराधी प्रवृति के विधेयक निर्माताओं को। अप्रबल क्षेत्र में रहने बाले प्रबल समूह के नागरिक हमेषा जेल जाने को तैयार रहें ऐसा इस अध्निियम की आत्मा है। इस विधेयक के अनुसार यदि अप्रबल समूह के लोग आपस में जैसे षिया और सुन्नी विवाद, मुस्लिम-ईसाई विवाद, अनुसूचित जाति और जनजाति के साथ का विवाद या अपराध इस अधिनियम की श्रेणी में नहीं आता है। यानि अगर एक मुस्लिम यह फतवा जारी करे कि अमुक होटल में अनुसूचित जाति या ईसाई या षिया के लोग का प्रवेष वर्जित है तो उसके विरूद्ध यह अधिनियम चुप है किन्तु यही यदि प्रबल समूह के लोग करेगें तो अपराध की श्रेणी में होगा। इतना ही नही अगर प्रबल समूह के किसी पुरूष के द्वारा अप्रबल समूह के महिला के साथ छेड़खानी या अन्य किसी भी प्रकार की घटना को अंजाम देता या उस महिला की स्वीकारोक्ति होती है तो उस पुरूष को इस विधेयक के तहत दण्ड मिलेगी किन्तु वही अपराध अप्रबल समूह के पुरूष के द्वारा किसी प्रबल समूह की महिला से की जाती है तो यह विधेयक उस पर लागु नही होगी। अप्रबल समूह की पीड़ित महिला के जांच में देरी होगी तो जांच अधिकारी को तीन साल की सजा किन्तु यदि प्रबल समूह की महिला हो तो जांच अधिकारी की लापरवाही पर कोई सजा नही,?विष्व मेें ऐसी घृणित एकतरफा विधेयक कहीं देखने को नही मिलेगा तालिवानी शासको केा भी यह परिषद् पीछे छोड़ दिया है।

आखिर परिषद् के सदस्यों की मानसिकता इतनी घृणित कैसे हुई जो इस देष के ताना बाना को छिन्न भिन्न करने की कुचेष्टा की है। ऐसे नापाक मानसिकता वाले देषद्रोही ताकतों के हाथों बिकी यह सरकार देष को आज किस दिषा में ले जा रही है यह विचाणीय है। इस रालेट एक्ट से भी खतरनाक विधेयक पर पष्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री सुश्री ममता वनर्जी का मानना है- किसी भी सरकार को संविधान के मूलभूत ढ़ांचे के साथ छेड़-छाड़ का अधिकार नहीं है, इस विधेयक में यही कुछ किया गया है। बिहार के मुख्यमंत्री श्री नीतीष कुमार का मानना है कि- विधेयक की कुछ धारायें घोर आापत्तिजनक है जिससे यह लगता है कि सदैव बहुसंख्यक समुदाय हीं साम्प्रदायिक हिंसा के लिये दोषी होता है।’’ वास्तव में यह विधेयक इस धारणा को कि अल्पसंख्यक सदैव बहुसंख्यकेा द्वारा शोषित होता है कि पष्चिमी-अरवी  अवधारणा को बल प्रदान करता है जिसे भारत की वसुधैव कुटुम्बकम् की अवधारणा में कहीं कोई स्थान नही है। वर्तमान सरकार जिस विद्रुप मानसिक बीमारी से त्रस्त है उसका प्रतिबिम्व यह काला विधेयक है। इस विधेयक का निर्माण जिस वैचारिक आतंकवादियों के कोख से हुआ है वह समूह भारत की ववित्र भूमि को भोगभूमि मानता है और वह जमात लष्कर-ए-तैयव्वा और हिजवुल से भी खतरनाक है।ऐसे तैमुरी वंष के पोषकों की नादिरषाही प्रवृति का जनता भी लोकसभा-14 में करारा जबाव देकर देष और संविधान की रक्षा हेतु प्रतिबद्ध है।**********************sanjay-kumar-azad**संजय कुमार आजाद
पता : शीतल अपार्टमेंट,
निवारणपुर रांची 834002

मो- 09431162589
(*लेखक स्वतंत्र लेखक व पत्रकार हैं)
*लेख में व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं और आई.एन.वी.सी का इससे सहमत होना आवश्यक नहीं ।

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