सरकारें सेवा का पर्याय बनें, दहशत या रुतबे की नहीं

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vip{निर्मल रानी**}
लगभग तीन दशक पूर्व की बात है, महाराष्ट्र के तत्कालीन मुख्यमंत्री अब्दुल रहमान अंतुले ने $खली$फा हारून रशीद की शासन प्रणाली का अनुसरण करते हुए महाराष्ट्र की सडक़ों पर भेष बदलकर घूमने का काम शुरू किया था। अपनी इस शासन शैली के द्वारा वे जनता की वास्तविक दु:ख-तकली$फ तथा समस्याओं से अवगत होना चाहते थे। अंतुले का यह प्रयोग जनता के लिए का$फी हितकारी साबित हुआ। वास्तव में ऐसे प्रयोग होते रहने चाहिए जिनसे आम जनमानस को यह महसूस हो कि देश में वास्तविक लोकतंत्र है न कि लोकतंत्र के नाम पर चुनी गई कोई तानाशाह,दहशत फैलाने वाली अथवा मात्र संपत्ति व धनार्जन में जुटी निर्वाचित सरकार। देश के  नवोदित राजनैतिक दल आम आदमी पार्टी ने न केवल देश की जनता बल्कि $खासतौर पर अन्य राष्ट्रीय व क्षेत्रीय राजनैतिक दलों के समक्ष कुछ ऐसे नए प्रतिमान स्थापित करने की कोशिश की है जिससे भारतीय राजनीति में परिवर्तन की एक नई आस बंधी है। कल तक सत्ता को ‘राज’ करने का साधन समझने वाले अब सडक़ों पर घूमते-फिरते तथा आम लोगों के बीच उठते-बैठते व बातें करते तथा उनका दु:ख-दर्द सुनते दिखाई देने लगे हैं। अब चाहे इसे ‘केजरीवाल इ$फेक्ट’ कहें या पांव के नीचे से ‘ज़मीन’ खिसकने का भय, जो भी हो देश के लोगों के लिए निश्चित रूप से यह एक शुभ संकेत है। 
दरअसल, लोकतंत्र की तो वास्तविक परिभाषा ही यही है कि जनता द्वारा चुनी गई जनता की सरकार जनता के लिए काम करने वाली सरकार। परंतु आज़ादी के गत् लगभग सात दशकों में हमारे देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था में दिन-प्रतिदिन आती हुई गिरावट तथा इसमें शामिल लूट-खसोट,भ्रष्टाचार आदि ने देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था का चेहरा ही बिगाड़ कर रख दिया है। जनता द्वारा निर्वाचित व्यक्ति, विधायक या सांसद होने के बाद या मंत्री बनने के पश्चात जनता से ऐसे दूर हो जाता है गोया उसके अपने मतदाताओं से उसका कोई वास्ता ही न हो। नेता व मतदाता के मध्य ऐसे रिश्ते स्थापित रहते हैं जैसे किसी तानाशाह राजा व प्रजा के बीच होते हैं। सत्ता दंभ,अहंकार, तानाशाही,अपने मित्रों व परिजनों को लाभ पहुंचाने का साधन तथा धन संग्रह करने का स्त्रोत मात्र बनकर रह गई है। इस लोकतांत्रिक व्यवस्था को अपनी गिर$फ्त में ले चुका तथाकथित वीआईपी कल्चर देश को तबाही की राह पर ले जा रहा है। स्वार्थी व लोभी प्रवृति के तथाकथित नेता अपनी गाडिय़ों पर लाल बत्ती लगवाने के लिए तरह-तरह के यत्न करते दिखाई देते हैं। भीड़भाड़ व घने ट्रै$िफक वाली सडक़ों पर जिस समय किसी मंत्री जी को गुज़रना होता है उस समय सडक़ों पर चल रही आम जनता के साथ पुलिस कैसा व्यवहार करती है यह बात सभी को मालूम है। देश में सडक़ों व गलियों के निर्माण में ठेकेदार द्वारा कैसी सामग्री का प्रयोग किया जा रहा है, कोई विधायक,मंत्री या सांसद इस ओर ध्यान नहीं देना चाहता। आम जनता पूरी तरह से यह मान चुकी है कि सडक़ों के निर्माण में प्रयुक्त घटिया सामग्री के लिए संबंधित कार्यालय,उसके अधिकारी,ठेकेदार तथा स्थानीय नेता आदि सभी की मिलीभगत होती है। सीधे शब्दों में यह सब मिलकर देश को बेचने का काम कर रहे हैं। 
dmrसरकारी कार्यालयों में कोई भी कर्मचारी अपनी ड्यूटी पर किस समय आता है और कब वापस चला जाता है, किसी नेता, मंत्री, विधायक या सांसद को इन बातों से कोई लेना-देना नहीं रहा है। वैसे भी जब किसी कार्यालय का प्रमुख अधिकारी अथवा मुखिया स्वयं ड्यृटी से $गैरहाजि़र रहे या देर से कार्यालय पहुंचे तो उसे अपने मातहत कर्मचारियों को समय पर कार्यालय आने के लिए निर्देश देने का कोई नैतिक अधिकार नहीं बनता है। परंतु ऐसा प्रतीत हो रहा है कि संभवत: प्रकृति के परिवर्तन के सिद्धांत का प्रभाव भारतीय लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था पर भी पडऩे जा रहा है। दिल्ली में सत्तारूढ़ हुई आम आदमी पार्टी ने ऐसे कई नए प्रयोग शुरु किए हैं या शुरु करने की कोशिश कर रही है जिससे आम जनता को यह महसूस हो कि देश में वास्तव में लोक का ही तंत्र विद्यमान है न कि आम जनता किसी राजा के अधीन है। अरविंद केजरीवाल ने सडक़ पर आम जनता की शिकायतें सुनने के लिए आम दरबार लगाने की कोशिश की और इस दरबार में बा$कायदा एक मंत्री भी अधिकारियों के साथ सडक़ पर बिठाने का निर्णय लिया। हालांकि भारी भीड़ के चलते यह योजना $िफलहाल अटक गई परंतु इस योजना को लेकर अरविंद केजरीवाल की नीयत पर कोई संदेह नहीं किया जा सकता। जनता के बीच दिल्ली सरकार का शपथ ग्रहण समारोह, रिश्वत$खोरों को पकडऩे हेतु हेल्पलाईन नंबर, 26 जनवरी की परेड में आम आदमी की सरकार को आम आदमी की ही तरह शामिल होना, जनशिकायतों पर तत्काल संज्ञान लेना, दिल्ली सरकार के मंत्रियों का किसी भी समय सडक़ों पर आम लोगों के बीच घूमते-फिरते रहना तथा जनता की शिकायतों को व्यक्तिगत् रूप से सुनना-समझना तथा उनका समाधान करना जैसे और कई क़दम नि:संदेह लोकतांत्रिक व्यवस्था में एक बड़े परिवर्तन का संकेत है। 
अब इसे आम आदमी पार्टी की कार्यशैली से अन्य पार्टियों के मध्य पैदा हाने वाली दहशत का नतीजा समझा जाए या फिर देर आए दुरुस्त आए वाली कहावत को चरितार्थ करने के परिपेक्ष्य में इसे देखा जाए, बहरहाल जो भी हो देश के कई राज्यों के ‘शासकों’ के हवाले से अब कुछ ऐसे ही समाचार प्राप्त होने लगे हैं। राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सिंधिया जोकि वास्तव में राजघराने की बेटी व बहू दोनों हैं उनके संपर्क में राजस्थान के आम लोगों का आना कोई आसान बात नहीं थी। परंतु पिछले दिनों राजस्थान के मुख्यमंत्री पद पर एक बार फिर आसीन होने के बाद उन्होंने अपनी कार्यशैली में परिवर्तन किए जाने के संकेत दिए हैं। उन्हें न केवल सडक़ों पर आम लोगों से मिलते-जुलते देखा जा रहा है बल्कि अब ‘राजमाता’ को साधारण सी चाय की दुकान पर बैठकर लोगों से बातें करने व उनका दु:ख-दर्द पूछने में भी कोई आपत्ति नहीं है। उधर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने भी यह निर्देश जारी किए हैं कि एक तो उनके क़ा$िफले में कारों की संख्या कम की जाए और दूसरे यह कि सडक़ पर उनके निकलने के समय ट्रै$िफक नियमों का पूरा पालन करते हुए उनके क़ा$िफले को आगे जाने की अनुमति दी जाए। अखिलेश यादव ने अपनी पार्टी के चुनाव चिन्ह साईकल पर बैठकर आम लोगों से मिलने-जुलने की $कवायद भी अभी से शुरु कर दी है। 
देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था को चुस्त-दुरुस्त करने तथा इसे जनता का शासन साबित करने के पक्ष में अब तक दिल्ली सरकार के अतिरिक्त सबसे अधिक सूचनाएं मध्य प्रदेश राज्य से प्राप्त हो रही हैं। राज्य में पहले से ही लोकप्रिय तथा मामा की उपाधि प्राप्त कर चुके मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान अपनी सादगी,सौम्यता व साधारण रहन-सहन के अतिरिक्त अब एक कुशल, पारदर्शी व जवाबदेह शासन के लिए भी अपनी पहचान बनाने लगे हैं। पिछले दिनों पुन: सत्ता में वापस आने के बाद उन्होंने भी अपनी सरकार की कार्यशैली में कई बड़े बदलाव के संकेत दिए हैं। प्राप्त $खबरों के अनुसार शिवराज सिंह चौहान स्वयं कई कार्यालयों पर जाकर अचानक छापेमाारी कर चुके हैं। इस छापेमारी में कई कर्मचारियों को निलंबित किए जाने के समाचार आ रहे हैं। मुख्यमंत्री भोपाल व इंदौर जैसे शहरों में निर्मित की गई नई सडक़ों पर से गुज़रते समय अपना $का$िफला रुकवाकर अचानक सडक़ निर्माण में प्रयुक्त सामग्री की जांच कर चुके हैं। इन छापों के बाद वे कई ठेकदारों के पैसे रोकने तो कई जगह पुन:नई सडक़ बनाने के आदेश भी दे चुके हैं। इतना ही नहीं बल्कि ई-मेल अथवा पत्राचार द्वारा प्राप्त शिकायतों पर भी मुख्यमंत्री द्वारा गंभीरता से संज्ञान लिया जा रहा है। भ्रष्टाचार रोकने के लिए भी उनकी ओर से कई बड़े $कदम उठाए जाने के समाचार हैं। 
राजनेताओं को अब इस बात का एहसास हो जाना चाहिए कि भारतीय राजनीति अब परिवर्तन की राह पर है। अब वह समय दूर नहीं जबकि सत्ता को दहशतगर्दी फैलाने, रुतबा बनाने, धन संपत्ति व साम्राज्य का विस्तार करने का पर्याय समझने वाले लोगों को आम जनता सत्ता से बाहर का रास्ता दिखा देगी। अब समय आ गया है कि निर्वाचित सरकारें अपनी जनता के समक्ष यह प्रमाणित करें कि वे नि:स्वार्थ रूप से जनता की सेवा कर रहे हैं अथवा नहीं। देश का आम मतदाता अब ऐसी सरकार व अपने ऐसे प्रतिनिधि चाहता है जो समय पडऩे पर जनता के दु:ख-सुख में उसके साथ खड़ा हो, उसकी समस्याओं का समाधान करे तथा सा$फ-सुथरी, पारदर्शी व भ्रष्टाचार मुक्त शासन व्यवस्था प्रदान करे।
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**निर्मल रानी कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर निर्मल रानी गत 15 वर्षों से देश के विभिन्न समाचारपत्रों, पत्रिकाओं व न्यूज़ वेबसाइट्स में सक्रिय रूप से स्तंभकार के रूप में लेखन कर रही हैं.

Nirmal RaniNirmal Rani (Writer )
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*Disclaimer : The views expressed by the author in this feature are entirely her own and do not necessarily reflect the views of INVC. 

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